Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Ek Parishilan
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay
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४ भगवती सूत्र : एक परिशीलन ___ व्यवहारभाष्य में आगम-व्यवहार पर चिंतन करते हुए आगम के प्रत्यक्ष और परोक्ष, ये दो भेद किए हैं। प्रत्यक्ष में केवलज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, अवधिज्ञान और इन्द्रियप्रत्यक्षज्ञान को लिया गया है तथा परोक्ष ज्ञान में चतुर्दश पूर्व और उससे न्यून श्रुतज्ञान को लिया है। इससे यह स्पष्ट है कि आगम साक्षात् ज्ञान (प्रत्यक्ष आगम) है। साक्षात् ज्ञान के आधार से जो उपदेश प्रदान किया जाता है और उससे श्रोताओं को जो ज्ञान होता है-वह परोक्ष आगम है। यहाँ पर यह स्मरण रखना होगा कि सर्वज्ञ सर्वदर्शी अरिहन्त के उपदेश को परोक्ष आगम माना गया है। परोक्ष आगम भी दो प्रकार का है-(१) अलौकिक आगम और (२) लौकिक आगम। केवलज्ञानी या श्रुतज्ञानी के उपदेशों का जिसमें संकलन हो, वह शास्त्र भी आगम की अभिधा से अभिहित किया जाता है। ____ आर्यरक्षित ने अनुयोगद्वार में आगम शब्द का प्रयोग शास्त्र के अर्थ में किया है। उन्होंने जीव के ज्ञान-गुणरूप प्रमाण के प्रत्यक्ष, अनुमान, औपम्य
और आगम- ये चार प्रकार बताए हैं, भगवती५ स्थानाङ्ग में भी ये भेद आये हैं। यहाँ पर आगम प्रमाण ज्ञान के अर्थ में ही आया है। महाभारत, रामायण आदि ग्रन्थों को लौकिक आगम की अभिधा दी गई है तो अरिहन्त द्वारा प्ररूपित द्वादशांग गणिपिटक को लोकोत्तर आगम कहा गया है। लोकोत्तर आगम को भावश्रुत भी कहा है। ग्रन्थ आदि को द्रव्यश्रुत की संज्ञा दी गई है और श्रुतज्ञान को भावश्रुत कहा गया है। ग्रन्थ आदि को उपचार से श्रुत कहा है। द्वादशांगी में जिस श्रुतज्ञान का प्रतिपादन हुआ है. वही सम्यक् श्रुत है। इस प्रकार हम देखते हैं कि आगम की दूसरी संज्ञा ही श्रुत
श्रुत और श्रुति
श्रुत और श्रुति ये दो शब्द हैं। श्रुति शब्द का प्रयोग वेदों के लिए मुख्य रूप से होता रहा है। श्रुति वेदों की पुरातन संज्ञा है और श्रुत शब्द जैन आगमों के लिए प्रयुक्त होता रहा है। श्रुति और श्रुत में शब्द और अर्थ की दृष्टि से बहुत अधिक साम्य है। श्रुति और श्रुत दोनों का ही सम्बन्ध श्रवण से है। जो सुनने में आता है वह श्रुत है। और वही भाववाचक मात्र श्रवण श्रुति है। श्रुत और श्रुति का वास्तविक अर्थ है-वह शब्द जो यथार्थ हो, प्रमाण रूप हो और जनमंगलकारी हो। चाहे श्रमणपरम्परा हो, चाहे ब्राह्मणपरम्परा हो; दोनों परम्पराओं ने यथार्थ ज्ञाता, वीतराग आप्त पुरुषों
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