Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 12
________________ हिंसा का विवेक और जो . आत्मा के प्रति असावधान रहता है, वह दूसरे जीवों के प्रति भी असावधान रहता है [२२] सब जगह अनेक प्रकार के जीव हैं, उनको भगवान् की आज्ञा के अनुसार जानकर भय रहित करो। जो जीवों के स्वरूप को जानने में कुशल हैं, वे ही अहिंसा के स्वरूप को जानने में कुशल हैं, और जो अहिंसा का स्वरूप जानने में कुशल हैं, वे ही जीवों का स्वरूप जानने में कुशल हैं। वासना को जीतनेवाले, संयमी, सदा प्रयत्नशील और प्रमाद हीन वीर मनुष्यों ने इसको अच्छी तरह जान लिया है । [ १५, २१, ३२-३३ ] विषयभोग में आसक्त मनुष्य पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि वनस्पति और स जीवों की हिंसा करते हैं, उन्हें इस हिंसा का भान तक नहीं होता । यह उनके लिये हितकारक तो है ही नहीं, बल्कि सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिये भी बाधक है। इसलिये इस सम्बन्ध में भगवान् के उपदेश को ग्रहण करो। जैसे कोई किसी अन्धे मनुष्य को छेदे-भेदे या मारे-पीटे तो वह उसे न देखते हुए भी दुःख का अनुभव करता है, वैसे ही पृथ्वी भी न देखते हुए भी अपने ऊपर होने वाले शस्त्र प्रहार के दुःख को अनुभव करती है, वे अासक्ति (स्वार्थ) के कारण उसकी हिंसा करते हैं, उनको अपनी आसक्ति के सामने हिंसा का भान नहीं रहता। परन्तु पृथ्वी की हिंसा न करने वाले संयमी मनुष्यों को इसका पूरा भान रहता है। बुद्धिमान् कभी पृथ्वी की हिंसा न करे, न करावे, न करते को अनुमति दे। जो मुनि अनेक प्रवृत्तियों से होने वाली पृथ्वी की हिंसा को अच्छी तरह जानता है वही सच्चा कज्ञ है। [१६-१७ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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