Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Gopaldas Jivabhai Patel
Publisher: Jain Shwetambar Conference Mumbai

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Page 10
________________ पहिला अध्ययन हिंसा का विवेक श्री सुधर्मास्वामी कहने लगे--- हे आयुष्मान् जंबु ! भगवान् महावीर ने कहा है कि संसार में अनेक मनुष्यों को यह ज्ञान नहीं है कि वे कहाँ से आये हैं और कहाँ जाने वाले हैं। अपनी आत्मा जन्म-जन्मान्तर को प्राप्त करती रहती है या नहीं, पहिले कौन थे और बाद में कौन होने वाले हैं, इसको वे नहीं जानते । [३-३] परन्तु, अनेक मनुष्य जातिस्मरण ज्ञान से अथवा दूसरों के कहने से यह जानते हैं कि वे कहां से आये और कहां जाने वाले हैं । यह प्रात्मा जन्म-जन्मान्तर को प्राप्त करती है, अनेक लोक और योनियों में अपने कर्म के अनुसार भटकती रहती है और वे स्वयं आरमा होने के कारण ऐसे ही हैं, इसको वे जाने हुए होते हैं । [१] ऐसा जो जानता है, वह प्रात्मवादी कहा जाता है-कर्मवादी कहा जाता है-क्रियावादी कहा जाता है और लोकवादी कहा जाता टिप्पणी-कारण यह कि 'आत्मा है। ऐसा मानने पर वह क्रिया का कर्ता- क्रियावादी' होता है और क्रिया से कर्मबन्ध को प्राप्त होने पर कर्मवादी होने से लोकान्तर को-जन्म-जन्मान्तर को प्राप्त करता रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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