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८.
अथवा अघो दिशा से आया हूँ,
अथवा अन्यतर दिशा ने या अनुदिशा, विदिशा से आया हूँ ।
इसी प्रकार कुछ लोगों को यह ज्ञात होता हैमेरी आत्मा आपपातिक है.
जो इन दिशाओं या अनुदिशाओं में विचरण करती है ।
जो सभी दिशाओं और सभी अनुदिशाओं में आकर विचरण करती है,
वही मैं आत्मा हूँ ।
वही आत्मवादी. लोकवादी, कर्मवादी और क्रियावादी है ।
मैंने क्रिया की, मैंने करवाई और करने वाले का समर्थन करूंगा ।
ये सभी क्रियाएँ लोक में कर्म-बन्धन-रूप ज्ञातव्य है ।
निश्चय ही, कर्म को न जाननेवाला यह पुरुष इन दिशाओं एवं अनुदिशाओं में विचरण करता है,
सभी दिशाओं और सभी अनुदिशाओं में जाता है
अनेक प्रकार की योनियों में सम्बन्ध रखता है,
अनेक प्रकार के प्रहारों का अनुभव करता है ।
निश्चय हो, इस विषय में भगवान् ने प्रज्ञापूर्वक समझाया है ।
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१०. और इस जीवन के लिए
प्रशंसा, सम्मान एवं पूजा के लिए
जन्म, मरण एवं मुक्ति के लिए
दुःखों से छूटने के लिए
[ प्राणी कर्म-वन्धन की प्रवृत्ति करता है । ]
११. ये सभी त्रियाएँ लोक में कर्म चन्धन रूप ज्ञातव्य हैं |
१२. जिम लोक में कर्म-बन्धन की क्रियाए ज्ञात हैं, वही परिज्ञात-कर्मी [हिंसात्यागी ] मुनि है ।
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
शस्त्र-परिज्ञा
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