Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 14
________________ प्रथम उद्देशक आयुष्मन् ! मैंने सुना है । भगवान् के द्वारा ऐसा कथित हैइस संसार में कुछ लोगों को यह समझ नहीं है, जैसे किमैं पूर्व दिशा से आया हूँ या अन्य दिशा से, अथवा दक्षिण दिशा से आया हूँ, अथवा पश्चिम दिशा से आया हूँ, अथवा उत्तर दिशा से आया हूँ, अथवा ऊर्ध्व दिशा से आया हूँ, अथवा अधो दिशा से आया हूँ, अथवा अन्यतर दिशा से या अनुदिशा, विदिशा से आया हूँ। २. इसी प्रकार कुछ लोगों को यह ज्ञात नहीं होता है मेरी आत्मा ओपपातिक है, मेरी आत्मा औपपातिक नहीं है। मैं कौन था? अथवा मैं यहाँ कहाँ से आया हूँ और यहाँ से च्युत होकर कहाँ जाऊँगा ? फिर भी वह जान लेता हैस्वयंवुद्ध होने से, पर-उपदेश से अथवा अन्य लोगों से सुनकर । जैसे किमैं पूर्व दिशा से आया हूँ या अन्य दिशा से, अथवा दक्षिण दिशा से आया हूँ, अथवा पश्चिम दिशा से आया हूँ, अथवा उत्तर दिशा से आया हूँ, अथवा ऊर्ध्व दिशा से आया हूँ, शस्त्र-परिज्ञा AS

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