Book Title: Adhyatma Kalpdrumabhidhan Author(s): Fatahchand Mahatma Publisher: Fatahchand Shreelalji Mahatma View full book textPage 9
________________ परन्तु क्षणमात्र में उसको अपना पुराना मकान व सारा सामान तक बेच डालना पड़ता है फिर भी ऋण अदा नहीं होता है । एक, संसार के कपट व्यवहार से या कुटुम्ब के विषैले वातावरण से गृहत्यागी बनता है परन्तु धीरे-धीरे अपने मायाजाल में फंस जाता है । यही संसार की परिपाटी है। कोई अंधा है कोई बहरा है, कोई लूला है कोई लंगड़ा है, कोई असाध्य रोगी है तो कोई बहुपरिवार वाला दरिद्री है। कोई निसंतान वाला धनी है तो कोई बहुसतान निर्धन है । अतः इस दुःख भरे संसार में से अपने आपको निकालना चाहिए । सुबह से शाम तक की शारीरिक महनत, या मानसिक पीड़ा सहते हुए भी हम जो धन कमाते हैं वह हमारे लिए नहीं है। उसका भोगने वाला कोई दूसरा ही है, अतः इस व्यवसायं में से बचाकर थोड़ा सा समय हमें अपने लिए, अपनी आत्मा के लिए निकालना चाहिए नहीं तो जैसे आए थे वैसे ही चले जाएंगे। आत्म शांति की प्यास बुझ नहीं पाएगी अतः इस असंतोष के कारण अनेक भवों में दुख उठाना पड़ेगा पुनः मानव भव पाना दुर्लभ होजाएगा अत स्वयं को संतुष्ट करने वाली वस्तु जो अध्यात्म ज्ञान है, उसका पठन पाठन श्रवण नितांत आवश्यक हैं । यह ग्रन्थ प्रात्म शांति के लिए अजोड़ है। हमें संसार में से जाना है ही फिर जाने से पूर्व क्यों न अपने आपको पहचान कर अनन्त आनन्द का अनुभव किया जाय । क्यों न ऐसे स्थान पर पहुँचा जाय जहां से फिर पाया ही न जाय । उस स्थान (मोक्ष) के लिए अध्यात्मPage Navigation
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