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विचार-स्वातंत्र्य
समकालीन इतिहास-बोध व्यक्ति की आत्मा को स्वतंत्र करने में सहायक होता है। व्यक्ति इस आधारपर अपने को और अपने आसपास के जगत को समझता है। इस प्रकार का बोध उसे शांत नहीं रहने देता। व्यक्ति फिर अपने को अभिव्यं जित करने के लिए उतावला हो जाता है। अभिव्यंजना के आधार पर ही वह जी सकता है । इस प्रकार की अभिव्यंजना में वह पूर्ण स्वातंत्र्य को माँग करता है, जो सहज है । आधुनिकता की सब से बड़ी माँग विचार-स्वातंत्र्य है। आधुनिकता की सब से बडी पीडा यह है कि व्यक्ति के विचार कुचल दिए जाते हैं। इसी से वह छटपटाता है। यह छटपटाहट मौन और करुणा से आप्लावित है। यदि इसे वाणी मिले तो मुक्ति मिलती है और जीवन मिलता है।
विचारों की जीत सब से बड़ी जीत होती है और विचारों की हार सबसे बडी हार। क्योंकि वास्तव में विचार ही व्यक्तित्व को पुष्ट करते हैं। जिसके अपने कोई विचार नहीं उसका अपना कोई व्यक्तित्व भी नहीं होता। जो बात एक व्यक्ति के लिए लागू है, वह समूह, समुदाय और राज्य के लिए भी लागू है। जिस राज्य की जनता का चिंतन-स्तर ऊंचा होगा और जिसकी अपनी निजी सत्ता होगी वह राज्य निश्चित ही समुन्नत होगा । जॉन ड्यूई ने लिखा है-" जैसे ही विचारशक्ति