Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 55
________________ धर्म और मूल्य (सरकार को) बदलने के प्रयत्न में रहते हैं। यह संघर्ष चलता रहता है । इस संघर्ष में जो प्रवृत्तियां स्वरूप ग्रहण करती रहती हैं, उन प्रवृत्तियों का विश्लेषण राष्ट्रीयता के संदर्भ में ही किया जा सकता है । वास्तविकता यह है कि राष्ट्रीयता का व्यावहारिक रूप यही होता है । अतः जब राष्ट्रीयता का सम्बन्ध धर्म से या किसी अन्य तत्त्व से जोड़कर हम उसका विश्लेषण करने लगते है, तो हमारा ध्यान राष्ट्र की राजनैतिक प्रवृत्तियों की ओर ही जाता है। राष्ट्रीयता और धर्म दोनों ही सामान्य रूप से व्यक्ति के नैतिक मूल्यों को प्रभावित करते रहते हैं। किसी राष्ट्र पर जब बाह्य रूप से आक्रमण हो जाता है या राष्ट्र अपने राष्ट्रीय मूल्यों के लिए उलझ जाता है, उस समय राष्ट्रीय मूल्य राष्ट्र में अधिक सजग रहते हैं। इस समय राष्ट्रीयता की दुहाई दी जाती है और जनजीवन में उत्सर्ग और त्याग की भावना जगाई जाती है। सामूहिक हित के लिए सब संघबद्ध होकर काम करते हैं और प्रत्येक नागरिक राष्ट्रीय मूल्यों की रक्षा के लिए अन्य मूल्यों को उपेक्षित करता है। इस स्थिति में राष्ट्रीयता को नैतिक मान मिलता है। इस समय में धार्मिक भेदभाव ही नहीं, अन्य प्रकार के सामाजिक भेदभाव भी भुला दिये जाते हैं। किन्तु यह स्थिति बहुत समय तक बनी नहीं रहती। बाहय आक्रमण के समय में (विदेशी नीति के मामले में ) राष्ट्र एक हो सकता है किन्तु राष्ट्र के भीतर राष्ट्रीय हितों पर जब विचार होता है और उस विचार में भी जब जनजीवन के हितों की घोषणा सरकार की ओर से होती है और उसका विपरीत परिणाम जब जनता अनुभव करती है, तो उस स्थिति में अन्य प्रवृत्तियाँ प्रबल हो जाती हैं। कहना यह है कि व्यक्ति को नैतिक मूल्य सदैव सरकार ( कोई भी राष्ट्रीय सरकार ) की ओर से प्राप्त नहीं होते। स्थायी रूप से नैतिक मूल्यों की प्राप्ति धर्म के द्वारा हो होती है । इन मूल्यों का प्रभाव व्यक्ति पर अधिक होता है। सरकार की शक्ति वैज्ञानिक साधनों की संघबद्ध शक्ति होती है। इस शक्ति के बल पर वह अपनी नीति को मनवाने का प्रयल भी करती है किन्तु जनता का मनोबल यदि ऊँचा है और यदि वह सरकार का सामना करने के लिए कटिबद्ध है, तो वह सरकार बदल देती है। यह सब कुछ राष्ट्र के अपने इतिहास-बोध पर निर्भर है। धर्म के द्वारा नैतिक मूल्यों का बोध व्यक्ति को परम्परा रूप में प्राप्त होते हैं। इन मूल्यों को शिक्षा के क्षेत्र में अधिक मान्यता प्राप्त न होने पर भी ( विज्ञान को मान्यता प्राप्त है ) ये मूल्य परिवार और समाज के आधार पर तथा धर्मगुरुओं के आधार पर व्यक्ति को प्राप्त हो जाते हैं ।

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