Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 72
________________ आधुनिकता और राष्ट्रीयता मुसलमानों का विदेशी जामा उतार दिया और उन्हें भारतीयता का पद प्रदान किया । राजनैतिक स्तर पर इसी कोटि का काम सम्राट अकबर ने किया । गोस्वामी जी ने भारत की प्राचीन संस्कृति को -- संस्कृत भाषा का सहारा न लेकर लोकभाषा हिन्दी में-- फिर से जीवित करने का प्रयत्न किया । तुलसी का दृष्टिकोण भारत की व्यापक राष्ट्रीय भावना को व्यक्त करने वाला. दृष्टिकोण है । बाद में जब शासकों का दृष्टिकोण एकांगी हो गया और भारत की मूलभूत राष्ट्रीय मावना को कुचलने का प्रयास तलवार के बल पर होने लगे ( औरंगजेब के काल में ) तो राजनैतिक जाग्रति का होना आवश्यक हो गया। गुरु गोविंदसिंह और समर्थ रामदास ने राष्ट्रीय नवोत्थान में राजनैतिक चेतना को महत्त्व दिया । ८० समर्थ रामदास के दासबोध की विशेषताओं के सम्बन्ध में प्रो. भी. गो देशपांडे ने लिखा है- ' दासबोध में अन्य सन्तों के ग्रंथों की अपेक्षा अध्यात्म के साथ समयानुकूल एवं आवश्यक व्यावहारिक, सामाजिक, राजनैतिक, क्षत्रिय धर्म, उत्तम पुरुष, प्रयत्न, प्रारब्ध स्वधर्म पालन, सयानपन, मूर्खता या जड़ता निस्पृहता, चातुर्य उत्तम काव्य के लक्षण, लेखन इत्यादि जनजीवन सम्बन्धी विषयों का सरल और सुबोध वर्णन है जो पढ़ते ही बनता है । १ समर्थं ने राजनीतिपर बहुत बल दिया। उन्होंने यह अनुभव कर लिया था कि जब धर्म और संस्कृति की रक्षा संभव तक राजनैतिक जाग्रति नहीं होगी तब तक नहीं है। प्रो भी. गो. देशपांडे ने समर्थ के राजनैतिक दृष्टिकोण को व्यक्त करते लिखा है - हुए 'उनकी (समर्थ की ) दृष्टि में राजनीति का अर्थ है सामाजिक प्रपंच, लोक व्यवहार और सामाजिक कार्य जिसमें आज की राजनीति पूरी समा जाती है । इसी अर्थ में आपने दासबोध में सताईस स्थलों पर राजनीति का उल्लेख किया । २ राजनीति के क्षेत्र में वे उग्र और प्रगतिशील थे । समर्थ के इस स्वप्न को शिवाजी ने चरितार्थ किया । समर्थ रामदास ने जो क्रांतदर्शिता दक्षिण में दिखाई वही उत्तर में सिक्खों के दसवें गुरू गोविंदसिंह ने दिखाई । तत्कालीन राष्ट्रीय नवोत्थान आपने बड़ा महत्त्वपूर्ण कार्य किया । आपके समान पंजाब में उन दिनों कोई राजनैतिक नेता न था। डाक्टर जयराम मिश्र ने लिखा है- " गुरू गोविंदसिंह जी धार्मिक नेता तो थे ही, साथ ही अपूर्व महान राष्ट्रीय भी थे... इन्होंने सिक्खों को बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार का अमृत पिलाया । इन्होनें आध्यात्मिक उपदेशों द्वारा सिक्खों 4 १. मराठी का भक्ति साहित्य- प्रो. भी. गो. देशपांडे - पृ. २०६ । २. वही, पृ. २१७ |

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