Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 74
________________ आधुनिकता और राष्ट्रीयता आपसे किसी प्रकार की शत्रुता नहीं है और मैं आप के साथ लड़ने का इच्छुक नहीं हूँ। मैं आपके पास अकेले आने और भेंट करने के लिये तैयार हूँ । तब मैं आपको वह पत्र दिखाऊंगा जो मैंने शाइस्ताखां की जेब से जबरदस्ती छीन लिया था । यदि आप मेरी शर्तें स्वीकार नहीं करते तो तलवार उद्यत है । "१ कहते हैं छत्रसाल बुन्देला भी छत्रपति शिवाजी से प्रभावित हुए थे और वे दक्षिण में शिवाजी के पास कार्य करने के लिये आये थे । डॉक्टर भगवानदास गुप्त ने अपने शोधप्रवन्ध में लिखा है " छत्रसाल की प्रबल आकांक्षा शिवाजी के पास रह कर मराठों के स्वतंत्रता संग्राम में योग देने की थी । परन्तु शिवाजी इससे सहमत नहीं हुए। वे सारे भारत में हिन्दू पद पादशाही स्थापित करने के स्वप्न देख रहे थे। अतः महत्त्वाकांक्षी छत्रसाल को अपने यहाँ रहने देकर स्वराज्य के प्रयत्नों को दक्षिण तक ही सीमित रखना उन्हें अभीष्ट नहीं था । इसलिये उन्होंने छत्रसाल को बुन्देलखण्ड लौट कर मुगलों के विरुद्ध वहाँ भी स्वतंत्रता संग्राम कर स्वयं उसका नेतृत्व करने की मंत्रणा दी । २ सर देसाई ने भी लिखा है---" 'बुन्देला राजा छत्रसाल उनके ( शिवाजी के) मित्र थे और उनसे सलाह लेने के लिये दक्षिण आये थे । शिवाजी के आगरे से निकल भागने के बाद उत्तरी भारत के चारण और कवि उनके दरबार में आये और उनका संरक्षण प्राप्त किया। ये सारी बातें शिवाजी के कार्य की अखिल भारतीय प्रवृत्ति की ओर संकेत करती है । ।" " आये उन्होंने और भी स्पष्ट रूप से लिखा है --" --" परन्तु यह आदर्श राजनैतिक नहीं, धार्मिक था। शिवाजी तथा उनके अनुयायियों की प्रणाली मुख्य उद्देश्य था -- मुसलमानों के धार्मिक अत्याचारों अथवा हस्तक्षेप के हिन्दुओं के धार्मिक रीति-रिवाजों के लिये पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना । दिल्ली के सिंहासन पर हिन्दू सम्राट् बैठाने का वहाँ कोई इरादा नहीं " " ४ . था । ८२ उस युग के कवि भूषण ने शिवाजी के सम्बन्ध में ठीक ही लिखा है:" बेद राखे बिदित पुरान परसिद्ध राखे, राम-नाम राख्यो अति रसना सुधर #1 हिंदुने की चोटी रोटी राखी है सिपाहिन की, कांधे में जनेउ राख्यो माला राखी गर में । १. मराठों का इतिहास - गोविंद सखाराम सरदेसाई - पृ. ६९ २. महाराजा छत्रसाल बुन्देला --- डा० भगवान दास गुप्त - पृ० ३६ और ३७ । ३. मराठों का इतिहास - सर देसाई -- पृ० ७१ ४. वही पृ० ७१ । -

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