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समस्याएँ
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राष्ट्र का जाग्रत ऐतिहासिक बोध ) में आपसी स्वार्थों के कारण टकराव की
स्थिति निर्मित होती है । इससे बचने के प्रयास में अन्य राष्ट्रों की राष्ट्रीयता से भी परिचित होना आवश्यक हो गया है। यह एक ऐसा प्रश्न है, जिस पर बहुत विस्तार से लिखा जा सकता है। संसार में जितने राष्ट्र हैं उन सब की राष्ट्रीयता अलग अलग है। प्रत्येक राष्ट्र की राष्ट्रीयता का आधार वहाँ का इतिहास और वहाँ की राजनैतिक व्यवस्था है । इसी तरह संस्कृति, धर्म, भाषा भौगोलिक सीमा आदि भी राष्ट्रीयता के आधार माने गए हैं । किन्तु मुख्य रूप से हमारा ध्यान इन सब उपादानों को स्वीकार करते हुए भी राजनैतिक व्यवस्था और उस देश के इतिहास पर ही अधिक रहता है । इस अन्तर के कारण राष्ट्रीयता में अन्तर रहना स्वाभाविक है । सब राष्ट्रों की. राष्ट्रीयता में अन्तर होने पर भी कुछ सामान्य लक्षण हैं जिनके आधार पर राष्ट्रीयता का सामान्य बोध दिखलाया जा सकता हैं। इस प्रकार की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हो सकती हैं ।
१. प्रत्येक राष्ट्र अपने आपको एक स्वतंत्र इकाई मानता है ।
२. प्रत्येक राष्ट्र की यह इकाई प्रमुख रूप से राजनैतिक व्यवस्था सम्बन्धी इकाई को स्वीकार करता है । अन्य राष्ट्रों के साथ उसका सम्बन्ध प्रमुख रूप से राजनैतिक स्तर पर होता है ।
३. राष्ट्रीयता के अन्य प्रमुख आधार ( राजनैतिक इकाई को छोड़ कर ) धर्म, संस्कृति, भाषा एवं विचारधारा है । इन आधारों पर राष्ट्र एक होकर रहता है किन्तु इस एकता का मुख्य आधार राजनैतिक एकता ही है ।
हम फिर लौटकर इतिहास की शरण में जाते हैं क्यों कि राष्ट्रीयता के सभी उपादानों का बोध हमें इतिहास के आधार पर होता है।
धर्म राष्ट्रीयता का मूल आधार रहा है और आज भी उसका प्रभाव कम नहीं है । इस आधार पर ही भारत की राष्ट्रीयता सन् १९४७ में दो भागों में खण्डित हुई । इसके बाद में पाकिस्तान - भारत के सम्बन्धों में जो समय समय पर परिवर्तन होता रहा और विवाद का मुख्य कारण कश्मीर बना हुआ है, उसने हमारी राष्ट्रीयता को बहुत प्रभावित किया है। कश्मीर की समस्या अब भी सिरदर्द है । बाद में पंजाबी सूबे की माँग धर्म के आधार पर राजनैतिक विभाजन की माँग थी । यह एक ऐसा प्रश्न है जिसको बहुत