Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 89
________________ समस्याएँ जनतंत्र की व्यवस्थानुसार ही है। ऐसी स्थिति में ये पार्टियाँ अपनी सरकार बना भी लें तब भी अपनी नीतियों का पालन उस रूप में नहीं कर सकती जो चीन या रुस में संभव है या पश्चिमी राष्ट्रों में है। सार बात यह है कि हमारी राष्ट्रीयता आज राजनैतिक विचारधारा-जिनका सम्बन्ध राजनैतिक पार्टियों से विशेष रूप से है-से अधिक प्रभावित है । अतः इस आलोक में वर्तमान ऐतिहासिक संदर्भ में राष्ट्रीय एकता को परखना चाहिए। इस सम्बध में हमारी जानकारी जितनी अधिक होगी उसी रूप में हमारा राष्ट्रीय बोध एवं राष्ट्रीय जागरण सशक्त होगा। डाक्टर गुलबराय ने राष्ट्रीयता की व्याख्या इस प्रकार की है-- “एक सम्मिलित राजनैतिक ध्येय में बंधे हुए किसी विशिष्ट भौगोलिक इकाई के जनसमुदाय के पारस्परिक सहयोग और उन्नति की अभिलाषा से प्रेरित भू-भाग के लिए प्रेम और गर्व की भावना को राष्ट्रीयता कहते हैं।" १ राष्ट्रीयता का लक्ष्य सामूहिक उत्थान, सामूहिक विकास और सामूहिक हित है। राष्ट्रीयता एक दृढ़ रागात्मकवृत्ति है, जो राष्ट्र के नागरिकों में राष्ट्र के प्रति होती है। इसमें एक ओर जहाँ एकत्र रहने की सहज वृत्ति है, वह निजी-रक्षा की वृत्ति भी है। भारतवर्ष अब स्वतंत्र है। उसका विकास अब स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हो रहा है। भारत की राष्ट्रीयता का मूल आधार भारतीय संविधान है। हमारे संविधान में निहित आदर्श हमारी राष्ट्रीयत के आधार हैं। इन आदर्शों की स्थापना में राष्ट्र की सरकार और राष्ट्र के जनता दोनों के सहयोग की आवश्यकता है। हमारे संविधान के अनुसार भारत सम्पूर्ण प्रभुत्वसंपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। इसमें समस्त नागरिकों के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक न्याय प्रदान करने की स्वीकृति है इसके अनुसार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता तथ प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने का सब को अधिकार प्राप्त है। इन सब बातों के साथ साथ व्यक्तियों की गरिमा और राष्ट्र की एकता को सुरक्षित रखनेवाली बन्धुता बढ़ाने का दृढ़ संकल्प भी इसमें है । निश्चित ही इन आवश्यक आदर्शों की स्थापना में जो तत्त्व सहायक सिद्ध होंगे वे राष्ट्र-रक्ष के साधक तत्त्व होंगे। हमारा संविधान केवल लिखित रूप में ही नहीं रहे वह नागरिकों में मूर्त हो सके इसी के प्रयत्न में गतिशील प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। १. राष्ट्रीयता-- डा. गुलाबराय-पृ. २. (प्रयम संस्करण, १९६१.) ।

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