Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 73
________________ ८१ इतिहास के व्यक्तिगत अहंभाव को नष्ट कर दिया । इन्होंने सिक्खों के सम्मुख सेवा, त्याग और राष्ट्र प्रेम के आदर्श रखे ' १ श्री रामधारीसिंह दिनकर ने भी लिखा है -- " औरंगजेब की धर्माधता पर सब से विलक्षण टीका यह हुई कि उसके अन्याय से आहत होकर गुरू नानक का चलाया हुआ सिक्ख सम्प्रदाय जो शान्त भक्तों का सम्प्रदाय था खुल कर सैनिकों का सम्प्रदाय हो गया । ܕ ܙܙ मध्यकाल में राजनैतिक दृष्टि से शक्ति प्राप्त कर प्राचीन भारतीय राष्ट्रीय भावना की रक्षा में यदि किसी ने प्रमुख रूप से योगदान दिया तो वे थे छत्रपति शिवाजी महाराज । शिवाजी का खुले रूप में वर्णाश्रम व्यवस्था को स्वीकार करना, राजगुरु ( समर्थ रामदास ) के आदेशों को पालना, अपने क्षत्रिय होने का दावा करना एवं प्राचीन भारतीय पद्धति से अपना राज्याभिषेक करवाना ये सब बातें उनके राजनैतिक आदर्श को प्राचीन भारत की राष्ट्रीय भावना से सम्बद्ध करने वाली हैं । इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि उनकी दृष्टि सम्पूर्ण भारतवर्ष पर थी । जिन क्षेत्रों तक उनकी पहुँच नहीं हो सकी वहाँ पर भी जो इस आदर्श के उन्होंने दोस्ती की । मिर्जा राजा जयसिंह को पालन करने वाले थे, उनसे उन्होंने एक पत्र लिखा था-तथापि अपनी शक्ति का प्रयोग "L ओ महाराज, यद्यपि आप एक बड़े क्षत्रिय हैं बाबर के वंश की वृद्धि के लिए करते आये ह और रक्तवर्ण वाले मुसलमानों को विजयी बनाने के लिए हिन्दुओं का खून बहा रहे हैं । क्या आप इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि इस तरह से आप पूरे जगत के सामने अपनी कीर्ति को कलंकित कर रहे हैं ? यदि आप मुझे जीतने के लिये आये हैं तो मैं आपकी राह में अपना सिर बिछा देने के लिये तैयार हूँ, पर चूंकि आप सम्राट् के प्रतिनिधि होकर आये हैं, इसलिये मैं इस बात का निश्चय नहीं कर पा रहा हूँ कि आपके साथ कैसा व्यवहार करूं ? यदि आप हिन्दू धर्म की ओर से लड़ें तो मैं आपके साथ सहयोग करने और आपकी सहायता करने के लिए तैयार हूँ । आप वीर एवं पराक्रमी हैं । एक शक्तिशाली हिन्दू राजा की हैसियत से आपके लिये सम्राट् के विरुद्ध नेतृत्व ग्रहण करना ही शोभा देता है । आइए हम लोग चलें और दिल्ली के ऊपर विजय प्राप्त कर लें। हमारा मूल्यवान रक्त अपने प्राचीन धर्म को रक्षा और अपने प्यासे पूर्वजों को संतुष्ट करने के लिये बहे । यदि दो दिल मिल सकें तो वे कठोर से कठोर अवरोध को तोड़ कर फेंक देंगे। मुझे १. श्री गुरुग्रंथ दर्शन - डॉ. जयराम मिश्र, पृष्ठ २६ एवं २७ ॥ २. संस्कृति के चार अध्याय - श्री रामधारी सिंह दिनकर पृ. ३९४ ।

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