Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 27
________________ सत्य M प्राचीन होता है, जबकि वैज्ञानिक सत्य नवीनतम होता है। धर्म की बहुत सी मान्यताएँ विज्ञान के कारण बदल गई हैं। सत्य का वास्तविक आराधक दार्शनिक होता है। दर्शन का सत्य निश्चित या स्वीकृत सत्य नहीं होता । यों कहिये कि दार्शनिक सत्य की दिशा में सबसे आगे चलने वाला होता है। जगत में अब भी इतनी समस्याएँ है कि उनका निश्चित और ठीक ठीक उत्तर नहीं दिया जा सकता। और न ही उनका निदान किया जा सकता है। आज भी यह विश्व अनेक प्रकार की जिज्ञासाओं से भरा हुआ है। दर्शन का राही अनन्त काल तक इस मार्ग पर चल सकता है। किन्तु जो खोज में लगा हुआ है, वह प्राप्त सत्य का आनन्द नहीं ले सकता और इसीलिये सत्य के ये आराधक वर्तमान सत्य से कुछ आगे या उपलब्ध सत्य से आगे रहते हैं। जनमानस की दृष्टि में ये विश्वास के पात्र नहीं होते, क्योंकि इनका सत्य स्वीकृत सत्य नहीं होता। ऊपर धार्मिक सत्य, वैज्ञानिक सत्य एवं दार्शनिक सत्य के सम्बन्ध मे जो कुछ कहा गया है, वह स्थूल रूप में बतलाया गया अंतर है । इन तीनों के आपसी सम्बन्धों को देखें। धार्मिक नेता ( विशेष रूप से धर्म का संस्थापक ). एवं वैज्ञानिक ( विज्ञान की दिशा में नये सत्य की स्थापना करनेवाला) दोनों ही सत्य की उपलब्धि से पूर्व दार्शनिक होते हैं। गौतम बुद्ध का ही उदाहरण लें। वे सत्य की खोज में घर से निकले । जब तक उन्हें सत्य का ज्ञान नहीं हुआ या सत्य से साक्षात्कार नहीं हुआ. तब तक वे एक दार्शनिक के रूप में सत्य के अन्वेषक बने रहे । कहते हैं पेड के नीचे उन्हें प्रकाश दिखलाई दिया । वह सत्य का प्रकाश था और तब उन्हें सत्य की प्रतीति हुई। तत्पश्चात् उन्होंने उस सत्य का प्रचार करना शुरु किया। उनके शिष्यों ने उनसे उस सत्य की प्रतीति पाई। फिर उसका देशव्यापी प्रचार हुआ। यह सत्य जनमानस के विश्वास का आधार बना। यही स्थिति प्रत्येक धर्म के प्रवर्तक की रही है। धर्म का स्वीकृत सत्य, जीवन के सम्बन्ध में जिन विचारों को प्रस्तुत करते हैं. वे विचार संस्कृति के आधार बनते हैं। धर्म का क्षेत्र भारतीय दृष्टि से बहुन विस्तृत है । हिंदुओं को समाज-व्यवस्था और उनके व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के प्रायः प्रत्येक क्षेत्र जन्म-मरण, शिक्षा, विवाह, व्यवसाय, नीति, खान-पान, जात-पात, शौचाशोच आदि में धर्म का प्राधान्य है, धर्म का जितना व्यापक अर्थ और जितना विस्तृत क्षेत्र हिंदुओं में पाया जाता है, उतना संसार के किसी अन्य समाज, जाति या

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