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सत्य
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खूब हुआ है, पर इसलिए नहीं कि किसी व्यक्ति ने या समूह ने कोई जादू का चिराग जला दिया था । जनता की उद्बुद्ध चेतना ने परिवर्तन कराया है । और भी होगा । हमारे घरौंदे बुरी तरह टूटेंगे । सरकार इसको कल्याणमय मोड़ देने में निमित्त बने तो अच्छा होगा, न बने तो थोडी-बहुत देर होगी । इतिहास विधाता के रथवेग को कोई रोक नहीं सकता । ' कर्तुम नेच्छसि यत्मोहात् करिष्यसि अवशोऽपितत्' अर्थात् जो मोहवश नहीं करना चाहोगे वह विवश होकर करना पडेगा । गीता का यह वाक्य सत्य सिद्ध होकर रहेगा। " - १
द्विवेदीजी की इन पंक्तियों में आशावादी दृष्टिकोण है । यह वैज्ञानिक सत्य को धर्म के निकट लानेवाला सत्य है । इस प्रकार की आस्था ही हमें आधुनिकता की पीड़ा से मुक्त होने में सहायक हो सकती है ।
( महावीर जयंती संस्मारिका, अप्रैल १९७१, हैदराबाद में ' सत्य : आधुनिक संदर्भ में ' शीर्षक से प्रकाशित )
१. आलोचना -- २८ ( अप्रैल, जून ६७) पृ. ४२