Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 51
________________ धर्म और मूल्य शिक्षा एक प्रकार से विज्ञान की शिक्षा का रूप धारण कर रही है। इस सम्बन्ध में डॉ. नगेन्द्र ने लिखा हैं -- 'शिक्षा का प्रचलित अर्थ एक. प्रकार से आधुनिक प्रयोग है। प्राचीन युग में इस संदर्भ में प्राय: ' विद्या' शब्द का प्रयोग होता था और विद्या का अनिवार्य सम्बन्ध था धर्म के साथ। विद्या जीवन का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण वस्तुत: मूलभूत - साधन थी, परन्तु वह साधन ही रही, साध्य कभी नहीं बनी। विद्या के दो उद्देश्य थे - तत्त्विक दृष्टि से सत्यासत्य का और व्यावहारिक दृष्टि से कर्तव्याकर्तव्य का ज्ञान । सत्यासत्य का ज्ञान ही वास्तव में कर्तव्याकर्तव्य का निर्णायक है। अत: विद्या का धर्म के साथ अनिवार्य सम्बन्ध माना गया । विद्या और धर्म का यह समन्वय मानव व्यक्तित्व के निर्माण का आधार है, जो आज भी शिक्षा का चरम उद्देश्य है।'१ इस अर्थ में यदि आज को शिक्षा-पद्धति पर विचार करें तो यह सहज ही में ज्ञात हो जाएगा कि शिक्षा का सम्बन्ध अब धर्म से अनिवार्य रूप में नहीं रह गया है और इसके न रहने का एक बड़ा कारण विज्ञान है। विज्ञान ने अनेक धार्मिक मान्यताओं का खण्डन किया है। विज्ञान के कारण धार्मिक आस्था को चोट पहुँची है। इस संबंध में अनेक उदाहरण दिये जा सकते है। संक्षेप में यह समझ लिया जा सकता है कि धर्म के द्वारा दी गई व्यवस्था ( धर्मशास्त्रियों के अनुसार ) विज्ञान के द्वारा ( ज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में ) दी गई व्यवस्था की तुलना में अब अधिक मान्य नहीं है। तात्त्विक दृष्टि से विज्ञान, ज्ञान की व्यवस्थित खोज ही है। यह खोज निरन्तर जारी है। इस अर्थ में विज्ञान की उपयोगिता व्यावहारिक दृष्टि से अधिक है। शिक्षा न केवल साधन अपितु अब साध्य भी है और उसके द्वारा अब जगत की तकनीक बदल रही है। विज्ञान की यह शिक्षा अपने आप में सामान्य होने के नाते, उसका उपयोग सभी धर्मों के माननेवाले के लिए होने के नाते और तो और उसकी सीमा में चर-अचर को समान रूप से स्थान प्राप्त होने के नाते, इस ओर शिक्षा का ध्यान इस समय सर्वाधिक है। विज्ञान के विषय के सिद्धान्त और विज्ञान के परिणाम सार्वभौमिक है । अमेरिका या रूस में यदि किसी क्षेत्र में इस दृष्टि से कोई उपलब्धि होती है, तो उस उपलब्धि को जगत भर में ( विश्व की उपलब्धि ) उपलब्धि के रूप में स्वीकार किया जाता है विज्ञान धर्मनिरपेक्ष है और वस्तु सत्य में विश्वास करनेवाला है। राष्ट्रीयता के संदर्भ में धर्म और विज्ञान का सम्बन्ध देखा जा सकता है। जहाँ तक शिक्षा का क्षेत्र है, उस पर अब सरकार का नियंत्रण १. साहित्य-परिचय (शैक्षिक-उद्देश्य । विशेषांक ) - जनवरी - फरवरी-१९७२-पृ. ३४.

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