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आधुनिकता और राष्ट्रीयता है। यह नियंत्रण अेक प्रकार से राष्ट्रीय नियंत्रण है। इसे राष्ट्रीय कहते समय यह ध्यान में रखा गया है कि राष्ट्र की सरकार अपनी राष्ट्रीयता को बनाए रखने की दष्टि से शिक्षा-सम्बन्धी नीति का पालन इस रूप में करेगी जिससे कि राष्ट्रीय हितों की हानि न हो। इस अर्थ में राष्ट्रीय स्तर पर जिन शिक्षा-संस्थाओं को चलाया जायगा उनमें ( उन शिक्षा-संस्थाओं में ) धर्म का अब महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं रहेगा। इस तुलना में विज्ञान को अधिक स्थान प्राप्त होगा । धर्म की शिक्षा का रूप अब वैज्ञानिक आधार पर हो रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में अब राजनैतिक उद्देश्यों का प्रवेश हो गया है । इस प्रवेश को विद्याप्रेमी हितकर नहीं मानते किन्तु यह प्रवेश वे अपनी आँखों से देख रहे हैं । विद्याप्रेमी शब्दका प्रयोग डॉ० नगेन्द्र के अर्थ के अनुसार--शिक्षा का धर्म के साथ अनिवार्य सम्बन्ध किया गया हैं। विद्याप्रेमियों के मन में आक्रोश का भाव है। उनका यह आक्रोश उनकी अपनी धार्मिक आस्था का एक कारण है। इसी तरह विद्याप्रेमियों के मन में राजनैतिक प्रवृत्तियों के प्रति अनास्था मूलक दृष्टि भी है। ऐसी स्थिति में मानवीय मूल्य व्यावहारिक धरातल पर प्रश्न-चिन्ह की स्थिति में हैं।
__ अब हम राष्ट्रीयता का विश्लेषण राष्ट्र विशेष के ऐतिहासिक संदर्भ में कर सकते हैं। राष्ट्रीयता के जो चार सामान्य तत्त्व पीछे बतलाए गये हैं, उनमें से दूसरे तत्त्व के व्यावहारिक पहलू पर विचार किया जा सकता है। इसी तरह तीसरा तत्त्व भी विचारणीय है। दूसरे तत्त्व के अन्तर्गत ऐतिहासिक बोध है और तीसरे के अन्तर्गत राजनैतिक व्यवस्था है। ये दोनों ही तत्त्व ऐसे हैं जो राष्ट्रीयता के लिए चुनौती का काम करते हैं। राष्ट्रीयता का निर्माण जिन तत्त्वों के आधार पर होता है, वे तत्त्व राजनैतिक व्यवस्था से सम्बध रखने के कारण गतिशील होते हैं। ऐतिहासिक बोध और राजनैतिक व्यवस्था दोनों ही तत्त्व गतिशील हैं। ऐतिहासिक बोध बदलता है, तो राजनैतिक व्यवस्था बदलती है। और राजनैतिक व्यवस्था बदलती है, तो राष्ट्रीयता बदलती है । इस दृष्टि से राष्ट्रीयता पर विचार करते समय राष्ट्र के ऐतिहासिक बोध पर विचार करना आवश्यक हो जाता है और इस माध्यम से धर्म का राष्ट्रीयता पर जो प्रभाव है, उसे स्पष्ट किया जा सकता है । ऊपर के विश्लेषण से एक बात स्पष्ट हो गई कि अब धर्म का प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उतना नहीं है जितना मध्यकाल में था। अर्थात् आज विश्व शान्ति को धर्म का खतरा नहीं है। धर्म के कारण अब विश्व में युद्ध नहीं होगा। विश्व का इतिहास-बोध इस दृष्टि से काफी समुन्नत हो गया है । आज विएतनाम में कुछ गड़बड़ होती है या बंगला देश मुक्त