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आधुनिकता और राष्ट्रीयता
हए हम आगे बननेवाले भारत की कल्पना कर सकते हैं। यह नीति शासक दल की हो या विरोधी दल की हो। किसी भी दल की हो। जनता उसका निर्णय करेगी। विचारों को क्रान्ति समाज में हो रही है और उसका प्रभाव हमें आम चुनावो में दिखलाई दे रहा है। जनता में, विचारों में क्रान्ति का बीज बोनेवाले विचारक, चिन्तक या दार्शनिक ही हो सकते हैं और वे ही आधुनिक सत्य की सही व्याख्या कर सकते हैं। दार्शनिकों का या चिन्तकों का आधुनिक सत्य जीवन में कितना स्वीकृत हो गया है, इसकी परीक्षा साहित्य में स्वीकृत सत्य आधार पर की जा सकती है।
सत्य को आधुनिक संदर्भ में देखते समय हम आज अपने राष्ट्र की उपलब्धि तक ही ( किसी भी क्षेत्र में ) सीमित नहीं रह सकते । अब विश्व की उपलब्धियों की ओर भी दृष्टि जाना स्वाभाविक है। निश्चित ही यह दौड वैज्ञानिक क्षेत्र में हो सकती है। वैज्ञानिक साधनों को सर्व सलभ बनाना और उनसे देश को उन्नत करना आधुनिक सत्य के निकट पहुँचना है, किन्तु इस होड़ में मानवीय संवेदना को जीवित रखना और तदनुकूल मानवीय व्यवस्था का निर्माण भी उतना ही आवश्यक है। यह समस्या बहुत बडी समस्या है। बट्टैण्ड रसेल इस दृष्टि से जगत की समस्याओं पर विचार करनेवाले हुए हैं। उन्होंने कहा है :
" जिन लोगों की विचार-शक्ति प्राणमय होती है अंत में चलकर उनकी शक्ति इससे कहीं अधिक होती है जितनी कि वे लोग समझते हैं, जो आधुनिक राजनीति की तर्कहीनता के शिकार हैं।" १
___यह कार्य आज के चिन्तकों को करना है । आनेवाले वर्षों में हम कैसे रहेंगे इसकी कल्पना हम आज के चिन्तन की दिशाओं को देखकर ही कर सकते हैं। चीन एवं अमेरिका की कीर्ति को देखते हुए तथा भारत में नित्य नए राजनैतिक परिवर्तनों के संकेतों को देखते हुए भविष्य खतरनाक प्रतीत हो सकता है। किन्तु इस पर भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है । गत पच्चीस वर्षों को स्वतन्त्रता का इतिहास निराशाजनक नहीं है । भारत में काफी परिवर्तन हो गया है। डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदीजी ने इतिहास की धारा को पहचाना है और भविष्य के भारत की कल्पना की है। वे लिखते हैं :
“ मैं उन लोगों में नहीं हूँ जो सोचते हैं कि पिछले बीस वर्षों में (सन् ६७ में लिखा हुआ होने के कारण) कोई कल्याणकारी परिवर्तन नहीं हुआ है,
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५. सामाजिक पुननिर्माण के सिद्धान्त--बट्रेंड रसेल-पृ. १८९ . ..