Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 48
________________ ५२ आधुनिकता और राष्ट्रीयता १. धर्म ( चाहे कोई भी हो ) की राजनैतिक सीमाएं नहीं होती । सारे विश्व में धर्म अपना विस्तार चाहता है । २. धर्मं का सम्बन्ध विचारधारा ( दर्शन विशेष ) से होता है ।" यह विचारधारा समाजविशेष में ( विश्व समाज में जहाँ जहाँ उसको मान्यता प्राप्त है ) विश्वास के आधार पर बल ग्रहण करती है। धर्म का शासन व्यावहारिक दृष्टि से अधिक मान्य है और इस आधार पर मानव के सामान्य हितों की व्यवस्था का प्रबन्ध किया जाता है । इस विचारधारा का विरोध यदि राजनैतिक व्यवस्था के आधार पर होता है, तो संघर्ष होता है। सभी प्रकार की राजनैतिक व्यवस्था इस व्यवस्था के बल से परिचित है और इस व्यवस्था का वह आदर ही नहीं उसकी सुरक्षा का आश्वासन भी वह देती रहती है । ३. धर्म के आधार पर समाज का संगठन शक्तिशाली होता है । एक प्रकार से इस आधार पर समाज में स्थिर मूल्यों की पहचान होती है । परम्परा का उपयोग इस आधार पर अधिक होता है । इन मूल्यों का ( धार्मिक मूल्यों का ) विरोध व्यक्ति के लिए बहुत कठिन है । धार्मिक मूल्य प्रायः सामाजिक मूल्य होते हैं । व्यक्ति से समाज और समाज से फिर ये राजनीति की ओर अग्रसर होते हैं । इस आधार पर राष्ट्रीय मूल्य तथा धार्मिक मूल्य दोनों का संघर्ष होता है। धर्म को यदि राजनीति के द्वारा प्रश्रय प्राप्त हो जाता है, तो राजनीति धार्मिक मूल्यों से प्रभावित होती है । इस अर्थ में राष्ट्रीयता धार्मिक मूल्यों से युक्त होती है । धर्म की यह स्थिति विवादास्पद हे । ४. धर्म का शासन आत्मानुशासन है और यह शासन व्यक्ति को सब बाधाओं से छुटकारा दिलानेवाला है । यह शासन आस्थामूलक हैं। इसके आधार पर व्यक्ति को जीवित रहने का बल मिलता है । धर्म की अनिश्चितता आस्था की अनिश्चितता है और यह अनिश्चितता जीवनी शक्ति से रहित होती है । धर्म ( चाहे कोई भी हो ) जीवन का सम्बल है और इस आधार पर अनेक मूल्यों का उत्सर्ग कर इस मूल्य की रक्षा का प्रयत्न मानव जाति करते आई है।

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