Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 28
________________ आधुनिकता और राष्ट्रीयता अनुयायियों में नहीं पाया जाता । अतः जीवन के जिन-जिन क्षेत्रों में धर्म का प्रवेश हुआ है और जिन-जिन व्यवहारों के सम्बन्ध में, चाहे वे व्यक्तिगत जीवन में हों, सामाजिक जीवन में हों या राष्ट्रीय जीवन में हों, उन-उन क्षेत्रों में धर्म के अनुकूल संस्कृति का विकास हुआ है । २४ वैज्ञानिक भी आरंभ में दार्शनिक ही होता है। न्यूटन हो या आइन्स्टीन दोनों ही सत्य के अन्वेषक थे । सत्य की उपलब्धि से पूर्व, अपने परीक्षण काल में दार्शनिक ही थे । सत्य की उपलब्धि के बाद उन्होंने उस क्षेत्र में (जिस क्षेत्र में उन्होंने नवीनतम सत्य की उपलब्धि की ) अपने से पूर्व सभी सत्यों को ललकारा और उसे संशोधित कर पूर्ण सत्य को निकट से पहचाना | मनुष्य का हो या प्राकृतिक शक्तियों का हो, विज्ञान ने इनके सम्बन्ध में अणु अणु का अध्ययन प्रस्तुत किया और उनसे मानव-जाति के जीवन को अधिक सुगम एवं सुखप्रद बनाने का प्रयत्न किया। आवश्यकताओं के कारण अविष्कार हुए और अविष्कारों से आवश्यकताओं की पूर्ति हुई और इस तरह मानवजाति सभ्य बनती गई। विज्ञान ने मनुष्य को सभ्य बनाया है । आज जगत में जो राष्ट्र वैज्ञानिक साधनों का अधिक प्रयोग कर रहा है, वह राष्ट्र अपेक्षाकृत अधिक सभ्य है । धार्मिक सत्य एवं वैज्ञानिक सत्य दोनों की तुलना वस्तुतः संस्कृति एवं सभ्यता की तुलना करने सदृश है । यह तुलना करते हुए हमें यह देखना है कि आज का जन-मानस किस ओर अधिक आकर्षित है । इसी सन्दर्भ में आधुनिक सत्य की व्याख्या की जा सकती है और इसी के आधार पर आधुनिकता को ठीक समकालीन इतिहास-बोध के संदर्भ में परखा जा सकेगा । गौतम बुद्ध ने या महावीर ने या किसी और धर्म के प्रवर्तक न धर्म की जो व्यवस्था बतलाई, वह उन्होंने उस युग को लक्ष्य में रखकर ही बतलाई । उस युग का सामाजिक जीवन जैसा भी रहा होगा, उसी को उन्होने तदनुकूल व्यवस्थित करने का प्रयत्न किया है। दूसरी बात यह कि उस युग की जो वैज्ञानिक उपलब्धियाँ रही होंगी, उसी के अनुसार उस युग का समाज सभ्य रहा होगा । अतः सभ्यता के उस काल में बतलाई गई धार्मिक व्यवस्था १. धर्म शास्त्र का इतिहास - पांडुरंग वामन काणे - इस ग्रंथ की प्रकाशकीय पंक्तियों को ऊपर उद्धृत किया गया है। ठाकुर प्रसाद सिंह, सचिव हिन्दी समिति ।

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