Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

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Page 22
________________ आधुनिकता और राष्ट्रीयता दिशा उस नई दुनिया की ओर हो जो हमें अपने प्रायास से बनानी है। इसकी प्रेरणा हमें प्राचीन यूनान और पुनर्जागरण युग के विस्मृत वैभव का मातम करके नहीं, बल्कि आनेवाले समाज की भविष्य में विचारों की गौरवशाली सफलताओं की और मनुष्य द्वारा ब्रह्मांड के खोज के नित व्यापक होते हुए क्षितिज की उज्ज्वल कल्पना से लेनी चाहिए ।" ' शिक्षा के इस मूल उद्देश्य में स्वतंत्र चिंतन को विकसित करने की भावना निहित है। शिक्षा-संस्थाओं के साथ-साथ पारिवारिक व्यवस्था में भी व्यक्तिगत अधिकारों के प्रति सम्मान करने की दिशा में प्रयत्न होना चाहिए। जिस बालक को घर पर ही स्वतंत्र चिंतन का अवसर मिलता है और यदि उसके विचारों का सम्मान उचित रूप में होता है तो उसकी उन्नति शीघ्र होती है । अतः पारिवारिक व्यवस्था में माता-पिता को इस दिशा में प्रयत्न करना चाहिए । समाज में अनेक समुदाय और संस्थाएँ हैं। इन सब के नाम गिनाना यहाँ संभव नहीं है । चाहे वे राजनैतिक हों, आर्थिक हों, धार्मिक हों या किसी अन्य प्रकार के हों, सब जगह विचार-स्वातंत्र्य के प्रति आदर की भावना का निर्माण होना चाहिए। इसी से व्यक्ति जीवन में कुछ स्वतंत्रता का अनुभव करेगा। इसमें न केवल व्यक्ति मात्र का हित होगा, बल्कि समाज और राज्य का भी हित होगा। यदि किसी बालक को विद्यालय में तो स्वतंत्रता मिल गई किन्तु घर पर उसे अनुशासन में जकड़ा जा रहा है तो उसकी उन्नति में बाधा होगी। इसी तरह राज्य व्यवस्था में विचार-स्वातंत्र्य को व्यवस्था तो है, किन्तु यदि व्यक्ति जिस संस्था में कार्य कर रहा है वहाँ कड़ा अनुशासन ह और किसी को मुंह खोलने नहीं दिया जाता तो उस व्यक्ति के लिए जीना दूभर हो जाएगा। सच तो यह है कि व्यक्ति जिन समुदायों के भीतर रह कर कार्य करता है वहाँ उसे उन्मुक्त वातावरण मिलना चाहिए। एक-दूसरे के विचारों और अधिकारों के प्रति जब तक सम्मान का भाव पैदा नहीं होगा, तब तक राज्य की व्यवस्था को दोष देने से कोई लाभ नहीं होगा। राज्य यदि इस दिशा में प्रयत्न करना चाहे तो उसे छोटी-से-छोटी संस्थाओं का इस दृष्टि से निरीक्षण कर, सब में इस प्रकार की चेतना को जाग्रत करने का प्रयत्न करना चाहिए। ( विश्व-ज्योति, होशियारपुर, मार्च १९६५ ई. में ' लोकराज्य और विचार-स्वातंत्र्य' शीर्षक से प्रकाशित ) १. सामाजिक पुननिर्माण के सिद्धांत-बट्रेंड रसेल, अनुवादक : मुनीश सक्सेना, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली. पृ. १४० ।

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