Book Title: Aacharopnishad Author(s): Kalyanbodhisuri Publisher: Jinshasan Aradhana Trust View full book textPage 9
________________ || आचारोपनिषद् ॥ ॥ मंगलम् ॥ श्रीवर्द्धमानं जिनवर्द्धमानं, सूरीन्द्रमेवं गुरुहेमचन्द्रम् । प्रणम्य नम्यं वितनोमि सामाचारीश्रुतं सूत्रसमाश्रयेण ।।१।। सामाचारी समाची, श्रमणैर्या शुभक्रिया । त्रिधाऽस्त्येषा समाख्याता, जिनागमविशारदैः ।। २ ।। आद्या तत्रौघनियुक्ति - स्थिता सौघाभिधोच्यते । पदविभागनाम्नीह, छेदसूत्राऽऽश्रयाऽपरा ।। ३ ।। इच्छादिका तृतीया या, सामाचारी समीरिता । उत्तराध्ययने सेह, प्रक्रान्ता दशधोच्यते ।।४।। इच्छा मिथ्या तथाकार, आवश्यकी नैषेधिकी । आपृच्छा प्रतिपृच्छा च, छन्दना च निमन्त्रणा ॥ ५ ॥Page Navigation
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