Book Title: Aacharopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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२८
अथ आचारोपनिषद अनापृच्छ्य तु कुर्वाण, उक्तसर्वविपर्ययम् ।। प्राप्नोत्यनर्थसन्दोहं, कार्याऽऽपृच्छा सदाप्यतः ।।६।।
आपृच्छा मङ्गलं प्रोक्त-मेवम्भूतनयाऽऽशयात् । मङ्गं कल्याणकं लाती-ति निरुक्तिसमन्वयात् ।। ७ ।।
गुरुमापृच्छतः पृच्छा, गौतमादिमहात्मनाम् । पारतव्यं श्रीवीरे च, परमपदकारणम् ॥ ८ ॥
(शिखरिणि) निमेषोन्मेषादीन्, गुरुवरमथाऽऽपृच्छ्य य इह, ह्यनापृच्छ्याजलं, गुरुतरमभीष्टं प्रकुरुते । न जाने दुर्भाग्यः, स तु कमतिसन्धत्त इतधीर्जिनं वा सूरिं वा- ऽप्यहह निजमात्मानमपि वा ? ॥७॥

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