Book Title: Aacharopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 37
________________ अथ आचारोपनिषद् ७. प्रतिपृच्छा पूर्वनियुक्तकार्यस्य, पृच्छा या करणक्षणे । कार्यान्तरादिज्ञानार्थं, प्रतिपृच्छा तु सोच्यते ।। १ ।। कार्यान्तरेण कार्यं स्यात्, कालान्तरेऽथवा भवेत् । कृतं वाऽस्ति तदा कार्य-मन्यो वा तत् करिष्यति ॥२॥ अथवाऽपि प्रवृत्तस्य, त्रिवारस्खलनावशात् । प्रतिपृच्छा प्रयोज्या स्यात्, ततः शकुनतो ब्रजेत् ।। ३ ।। केचिदाहुः प्रतिपृच्छा, प्राग निषिद्धे प्रवर्त्तते । एवमपि न दोषो य - दुत्सर्गेतरयोवृषः ।। ४ ।।

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