Book Title: Aacharopnishad
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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अथ आचारोपनिषद् अनिगृहितवीर्येण, भाव्यं हि साधुना सदा । अभ्यर्थना न कार्याडतः, कार्यादुत्कृष्टतो विना ।।६।।
अभ्यर्थनां मुनिः कुर्याद, ग्लानत्वादिककारणैः । रानिकं परिहृत्यैव, मुक्त्वा ज्ञानादिकारणम् ।। ७ ।।
निर्जरैकाभिलाषी तु, प्रेक्ष्य परप्रयोजनम् । उपेत्यापि मुनिः कुर्या-दिच्छाकारं विधानतः ।।८।।
(वसन्ततिलका) न कल्पते मुनिजनस्य बलाभियोग, इच्छैन् रानिकजनप्रभृतौ प्रयोज्या । कार्याऽभियोगकृतिरप्यपवादतः सा, ज्ञेयाविनीतहयसत्कनिदर्शनेन ॥ ९ ॥

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