Book Title: Pratishtha Lekh Sangraha Part 02
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Vinaysagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रह द्वितीय भाग २४ साहित्यवाचस्पतिम. विनयसागर For Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मणि पुष्प : 2 प्राकृत भारती पुष्प : 151 प्रतिष्ठा-लेख-संग्रह द्वितीय भाग (प्राचीन शिलालेखों एवं मूर्तिलेखों का संग्रह) माय !!: मुनि मन्दिा कोशा, सि. मानार, पन--३८२००९ सङ्कलक एवं सम्पादक : साहित्यवाचस्पति म. विनयसागर प्रकाशक : प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर एम.एस.पी.एस.जी. चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक : डी.आर. मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी १३-ए, मेन मालवीय नगर जयपुर-३०२०१७ दूरभाष : ०१४१-२५२४८२७, २५२४८२८ मंजुल जैन मैनेजिंग ट्रस्टी एम.एस.पी.एस.जी. चेरिटेबल ट्रस्ट १३-ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-३०२ ०१७ दूरभाष : ०१४१-२५२४८२७, २५२४८२८ प्रथम संस्करण, २००३ मूल्य : १५०.०० लेजर टाईप सैटिंग : श्री ग्राफिक्स, जयपुर मुद्रक : जयपुर प्रिन्टर्स, जयपुर PRATISHTHA LEKH SANGRAHA PART - 2 M. VINAYA SAGAR, 2003 For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (प्रकाशकीय) मूर्ति-लेख इतिहास के अकाट्य साक्ष्य होते हैं, यह महत्त्वपूर्ण बात व्यवस्था की धुंध में छुपी रहती है। यदा-कदा ही कुछ समर्पित शोधार्थी सतह को भेद गहराई में जाने का प्रयत्न करते हैं। ऐसे परिवेश में, जहाँ जैन पुरातत्त्व व इतिहास संबंधी शोध को ही महत्त्व नहीं दिया जाता, मूर्ति-लेखों को पढ़ने और व्यवस्थित रूप से संकलित करने के कष्ट साध्य कार्य को संपन्न करने वालों की संख्या नगण्य सी हो गई है, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं । महोपाध्याय विनयसागर जी उन श्रमशील विद्वानों में से एक हैं जिन्होंने शहर-शहर गाँव-गाँव घूम कर अनेक मंदिरों से महत्त्वपूर्ण मूर्ति-लेखों का संकलन किया। इस प्रतिष्ठा लेख संग्रह को दो भागों में प्रकाशित करना था। प्रथम भाग सुमति सदन, कोटा से प्रकाशित होने के पश्चात् व्यवधानों के कारण दूसरे भाग 7 प्रकाशन लम्बी अवधि तक रुका रहा। प्रथम भाग विद्वद् जगत में सराहा गया और व्यापक रूप से शोधार्थियों द्वारा उपयोग में लिया गया। अब प्राकृत भारती व एम०एस०पी०एस०जी० चेरिटेबल ट्रस्ट के सहयोग यह दूसरा भाग सुधी पाठकों के हाथों में समर्पित किया जा रहा है। इसके काशन की योजना को एक वर्ष पूर्व गति दी गई थी। इस बीच म० विनयसागरजी जितने अतिरिक्त लेखों का संग्रह किया था वे भी इसमें सम्मिलित कर लिए गए । साथ ही कतिपय महत्त्वपूर्ण लेखों के संबंध में विशेष जानकारी भी शोधार्थियों के लिए उपलब्ध करा दी गई है। For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमें पूर्ण विश्वास है कि जैन इतिहास का यह महत्त्वपूर्ण दस्तावेज शोधार्थियों के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगा। हम यह आशा भी रखते हैं कि ऐसे प्रकाशन समाज और विद्वद् वर्ग को जैन इतिहास व पुरातत्त्व पर शोध के लिए प्रेरित करेगा। हम जैन पुरातत्त्व व इतिहास के मूर्धन्य विद्वान प्रो० श्री रमेशचन्द्र शर्मा के आभारी हैं कि उन्होंने इस पुस्तक का विद्वतापूर्ण प्राक्कथन लिखा। मंजुल जैन मैनेजिंग ट्रस्टी एम०एस०पी०एस०जी० चेरिटेबल ट्रस्ट देवेन्द्र राज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक, प्राकृत भारती अकादमी For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैन धर्म - दर्शन - साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् पुरातत्त्व और इतिहास के गम्भीर अनुसन्धानकर्ता प्राचीन साहित्य और ग्रन्थों के अध्यवसायी, अन्वेषक, संग्राहक राजस्थानी और हिन्दी साहित्य के अग्रणीय साहित्यकार मननशील विचारक, विशिष्ट साधक, कर्मठ कार्यकर्ता खरतरगच्छ के अनन्योपासक स्व. भाई श्री भंवरलालजी नाहटा > सादर समर्पित For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (विषय सूची • स्वकथ्य 1. XIV • प्राक्कथन XV - XVIII १-१४६ १४७-१९२ १४७-१५६ १५७-१६० प्रतिष्ठा लेख संग्रह परिशिष्ट नं. १. सम्बन्धित लेखों के आधुनिक प्राप्ति स्थान नं. २. लेखों में आये हुए गच्छों के नाम नं. ३. लेखस्थ आचार्य एवं मुनियों के नाम नं. ४. लेखस्थ ग्रामानुक्रमणिका नं. ५. लेखस्थ राजाओं के नाम नं. ६. लेखस्थ जातियों के नाम १६१-१७८ १७९-१८४ १८५-१८६ १८७-१८९ नं.७. लेखस्थ गोत्रों के नाम १९०-१९२ For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (स्वकथ्य) मेरे परमाराध्य पूज्य गुरुदेव श्री जिन मणिसागरसूरिजी महाराज का विक्रम सम्वत् २००० का चातुर्मास बीकानेर में था। श्री शुभराज जी नाहटा (श्री अगरचन्द जी नाहटा के बड़े भाई) के नव-निर्मित भवन शुभ-विलास में था। उस समय मैं कौमुदी पढ़ रहा था। "टाडसिंडस्सामिनात्स्याः , राजाह: सखिभ्यस्टच्" आदि सूत्रों का पठन करते हुए मैं ऊब-सा गया था। मन उचाट होने से पढ़ाई में दिल नहीं लग रहा था। बचपन जो था। पूज्य गुरुदेव मुझे योग्य विद्वान् बनाना चाहते थे। मेरी मन:स्थिति को भाँप कर उन्होंने श्री नाहटा-बन्धुओं को इस ओर संकेत किया। जैन साहित्य मनीषी श्री अगरचन्द जी और भँवरलाल जी नाहटा ने समय की माँग को देखकर मुझे साहित्य-संरक्षण और प्राचीन लिपि-पठन की ओर प्रेरित किया। प्राचीन हस्त-लिखित ग्रन्थों की लिपि पढ़ने और बिखरे हुए पत्रों के कागज की अवस्था, साईज, लिपि की मोड़ आदि की ओर मेरा ध्यान आकृष्ट कर मुझे इस मार्ग पर लगाया। मुझे यह मार्ग रुचिकर भी लगा। मैं कार्य भी करने लगा और पढ़ाई भी करने लगा। संयोग से इसी चातुर्मास में पूज्य गुरुदेव की निश्रा में उपधान तप भी हुआ। इसी प्रसंग में श्री चिन्तामण जी मंदिर में भंडारस्थ प्राचीनतम ग्यारह सौ प्रतिमाएँ भी भंडार से बाहर निकाली गईं। ये प्रतिमाएँ वर्षों बाद किसी विशिष्ट कारण पर ही निकाली जाती थीं। १३ वर्ष पूर्व सम्वत् १९८७ में परम-पूज्य आचार्यदेव श्री जिनकृपाचन्दसूरि जी महाराज के समय में निकाली गई थीं। उसके पश्चात् १९९५ में श्री जिनहरिसागरसूरि जी महाराज के समय में भी निकाली गई थी। आठ दिन का महोत्सव हुआ। श्री नाहटा-बन्धुओं ने इन समस्त प्रतिमाओं के लेखों की प्रतिलिपि करना प्रारम्भ किया। मुझे भी इस काम में नाहटा-बन्धुओं ने जोड़ा। मैं For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , भी रुचिकर कार्य होने से इस काम में दिल से जुट गया । जैसा कि स्वयं नाहटा बन्धुओं ने "बीकानेर लेख संग्रह वक्तव्य" पृष्ठ ११ पर उल्लेख किया है :- चिन्तामणि मन्दिर के गर्भगृहस्थ मूर्तियों के लेखों के लेने में स्व० हरिसागरसूरिजी, उ० कवीन्द्र सागरजी महो० विनयसागरजी, श्री ताजमलजी बोथरा, रूपचन्दजी सुराना आदि ने साथ दिया है। इसके पश्चात् तो मुझे यह कार्य इतना अच्छा लगा कि जहाँ भी जाता वहाँ मन्दिरस्थ मूर्तियों के लेखों की नकल करना मैंने प्रारम्भ कर दिया । नागौर, मेड़ता, अजमेर, किशनगढ़, जयपुर, कोटा आदि स्थानों पर जहाँ भी मैं गया, यह कार्य रुचिपूर्वक करता रहा । विक्रम सम्वत् २००२ में श्रेष्ठिवर्य श्री गुलाबचन्द जी ढढ्ढा और श्री सोहनमल जी गोलेछा के अनुरोध पर कि जयपुर के समस्त मन्दिरों के समग्र मूर्ति लेख आपने ले लिए हैं। जयपुर स्टेट के अन्तर्गत सभी स्थानों एवं मन्दिरों के लेखों का संकलन भी कर लें तो यह एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित की जाए। मैं भी जयपुर के गाँव-गाँव घूमकर मन्दिरों के दर्शन करते हुए मन्दिरस्थ मूर्तियों के लेख लेता रहा । पढ़ाई भी लेख के साथ चलती रही। कुछ समय पश्चात् इस वेग में शिथिलता आ गई । साधु-जीवन में रहते हुए भी व्यवहारिक / सामाजिक प्रपंचों में उलझ गया। इस मौलिक कार्य से विमुख हो गया। कभी तरंग आती तो कई स्थानों के, मन्दिरों के लेख अवश्य ले लेता । फिर भी लगभग इक्कीस सौ लेख संग्रहित कर लिए थे । प्रथम भाग का प्रकाशन विक्रम सम्वत् २०१० में यह भावना जागृत हुई कि इन लेखों को व्यवस्थित कर प्रकाशन अवश्य किया जाए, जिससे यह संग्रह उपयोगी हो सके । १२०० लेखों की प्रतिलिपि तैयार कर प्रकाशनकार्य प्रारम्भ किया। प्रथम भाग " हो रहा था उसी समय यह अभिलाषा ! , (ii) For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हुई कि इसकी भूमिका किसी प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् से लिखाई जाए। मैंने पुरातत्त्ववेत्ता स्वनामधन्य डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल, प्रोफेसर, काशी विश्वविद्यालय, वाराणसी से पत्र-व्यवहार किया। उन्होंने सहज भाव से स्वीकृति भी दी और यह सुझाव दिया कि "इस पुस्तक के लेखों में आगत श्रावक-श्राविकाओं के नामों की अकारानुक्रमणिका भी अवश्य दी जाए।" इस सुझाव को मैंने सहर्ष स्वीकार किया और प्रतिष्ठा लेख संग्रह के प्रथम भाग के परिशिष्ट के रूप में सम्मिलित किया। सम्माननीय श्री अग्रवाल जी ने उसकी भूमिका भी लिखी। उनकी भूमिका के साथ यह पुस्तक सन् १९५३ में प्रकाशित हुई। भूमिका में उन्होंने लिखा था : "उपाध्याय श्री विनयसागर जी ने अपने प्रवासकाल में नागौर, मेड़ता, अजमेर, किसनगढ़, जयपुर, कोटा और रतलाम आदि स्थानों के जैन मंदिरों में सुरक्षित मूर्तियों के लेखों का संग्रह किया था। वही इस संग्रह के रूप में प्रस्तुत है। इस संग्रह में बाहर सौ लेख हैं। श्री विनयसागर जी साहित्यिक अभिरुचि के व्यक्ति हैं। धर्म-प्रचार के साथ-साथ अपनी यात्रा को उन्होंने इस प्रकार के सुन्दर और उपयोगी साहित्यिक यज्ञ में परिणत कर दिया, इसके लिये मैं ऐतिहासिक जगत् की ओर से उनका विशेष अभिनन्दन करता हूँ। सचमुच जहाँ कुछ नहीं था वहाँ से भी उन्होंने ऐतिहासिक सामग्री का यह बड़ा सुमेरु खड़ा कर दिया है। अपने देश में यदि उचित रीति से ऐतिहासिक अनुसंधान का कार्य किया जाय तो कितनी अपरिमित सामग्री संकलित की जा सकती है, इसका सुन्दर दृष्टान्त विनयसागर जी का यह प्रयत्न है।" प्रतिष्ठा लेख संग्रह प्रथम भाग और प्रतिष्ठा लेख संग्रह द्वितीय भाग के प्रकाशन के अन्तराल में तीर्थों के इतिहास सम्बन्धी पुस्तक लिखने का मेरे कार्यक्रम चालू रहा। नाकोड़र्श्वनाथ का इतिहास लिखते हुए मैंने तत्रस्थ २५० मूर्ति-लेखों का संग्रह किया था। वह नाकोड़ा पार्श्वनाथ (ii) For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थ पुस्तक में सन् १९८८ में प्रकाशित हो चुके हैं। कुलपाक तीर्थ का इतिहास लिखते हुए वहाँ के प्राचीन एवं अर्वाचीन लेख भी लिए थे। वे कुलपाक तीर्थ माणिक्यदेव, ऋषभदेव पुस्तक में सन् १९९१ में प्रकाशित हुई है। समय-समय पर कुछ लेखों का और भी संग्रह किया था। वह खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास द्वितीय भाग - खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह में शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है। द्वितीय भाग का प्रकाशन प्रतिष्ठा लेख संग्रह के द्वितीय भाग की पाण्डुलिपि भी मैंने उसी समय तैयार कर ली थी किन्तु यह द्वितीय भाग मेरी उपेक्षा के कारण ही प्रकाशित न हो सका। जो पचास वर्षों के पश्चात् अब प्रकाशित होने जा रहा है। प्रतिष्ठा लेख संग्रहः द्वितीय भाग में ७५७ लेखों का संग्रह है। ये समस्त लेख वि०सं० १०५४ से सम्वतानुक्रम से दिये गये हैं। संख्यांक के साथ ही यह निर्दिष्ट किया गया है कि यदि पाषाण की मूर्ति है तो केवल नाम विशेष दिया गया है, धातु की मूर्ति है तो नाम के साथ पंचतीर्थी, चतुर्विंशतिपट्ट, एकतीर्थी का उल्लेख किया गया है। शिला-लेखों के लिए शिलालेख, शिलापट्टप्रशस्ति और भित्ति-लेख के नाम से संकेत किया गया है। शिलालेख या मूर्ति वर्तमान में किस मन्दिर में विराजमान है, इसका टिप्पणी में संख्यांक के रूप में उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक में अन्वेषकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सात परिशिष्ट दिये गये हैं :परिशिष्ट १. संबंधित लेखों के आधुनिक प्राप्ति स्थान - नगर या गाँव का नाम और किस मंदिर में यह मूर्ति है, इसका उल्लेख करते हुए लेखांक दिया गया है। For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट २. लेखों में आये हुए गच्छों के नाम अकारानुक्रम से लेखांक के साथ दिये गये हैं। परिशिष्ट ३. लेखस्थ आचार्य एवं मुनियों के नाम अकारानुक्रम में लेखांक के साथ दिये गये हैं। परिशिष्ट ४. लेखस्थ ग्रामानुक्रमणिका में ग्राम का नाम और लेखांक दिये गये हैं। परिशिष्ट ५. लेखस्थ राजाओं के नाम अकारानुक्रम से लेखांक दिये गये हैं। परिशिष्ट ६. लेखस्थ जातियों के नाम अकारानुक्रम से लेखांक दिये गये हैं। परिशिष्ट ७. लेखस्थ गोत्रों की सूचि अकारानुक्रम से दी गई है। स्थान-परिवर्तन ____ इन लेखों का संकलन लगभग पाँच दशक पूर्व किया गया था। अतः कई मूर्तियों के वर्तमान स्थान परिवर्तित हो गए हैं। प्रायशः समस्त मूर्तियाँ विशेष स्थानों और विशेष मन्दिरों की यथास्थान पर हैं किन्तु निजी उपाश्रयों और गृहदेरासर की प्रतिमाएँ कुछ कारणों से अन्यत्र विराजमान कर दी गई हैं अथवा हटा दी गई हैं। जैसे पार्श्वचन्दगच्छ उपाश्रय, जयपुर, इमली वाली धर्मशाला, जयपुर, यति श्यामलाल जी का उपाश्रय, जयपुर, श्री प्रतापचन्द जी ढढ्ढा गृह देरासर, जयपुर आदि की प्रतिमाएँ किन नये स्थानों पर विराजमान हैं या हटा दी गई हैं, मुझे जानकारी नहीं है। कई मूर्तियाँ पूजन के अभाव में पूजा की दृष्टि से अन्यत्र भी विराजमान की गई हैं। कई नव-निर्माण होने के कारण अन्यत्र स्थानों पर विराजमान की गई हैं, जैसे इमली वाली धर्मशाला की मूर्तियाँ। जीर्णोद्धार के नाम से कई मूर्तियाँ और कई शिलालेख हटा दिये गये हैं-जैसे लेखांक ६४० का शिलापट्ट। ऐसी जानकारी भी मिलती है कि कई अर्थलोभी तस्करों द्वारा मूर्तियाँ बेची भी गई हैं। For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखों का वैशिट्य सामान्यतः मूर्ति लेखों में सम्वत्, मास, तिथि, वार, मूर्ति-निर्माता की ज्ञाति (वंश), गोत्र, पिता-माता एवं परिवार का उल्लेख करते हुए तीर्थंकर का नाम और प्रतिष्ठापक आचार्य के गच्छ का नाम, आचार्य के गुरु का नाम और स्वयं के नाम का उल्लेख होता है। किन्हीं-किन्हीं लेखों में शासक का नाम और नगर का नाम भी प्राप्त होता है। शिलालेख प्रशस्तियाँ विस्तृत होती हैं, कई पद्यों में गुम्फित होती हैं। उनमें नगर का वर्णन, राज-परिवार का नामों के साथ वर्णन, निर्माता के पूर्वजों और परवर्ती पुत्र-पौत्र-प्रपौत्र आदि का वर्णन, उनके द्वारा विहित मन्दिर-मूर्तियों का, तीर्थ-यात्राओं, पुस्तक लेखन, भण्डार-स्थापन और धार्मिक कृत्यों का भी विशद वर्णन मिलता है। इसके साथ ही प्रतिष्ठापक आचार्य के गच्छ का उल्लेख करते हुए पूर्ववर्ती आचार्य परम्परा का नामोल्लेख के साथ यशस्वी वर्णन और उनके अधीनस्थ विद्वत् साधुगणों का भी वर्णन मिलता है। इसके साथ ही मन्दिर-निर्माता या मूर्ति-निर्माता के सूत्रधार का उल्लेख भी यथा-स्थान प्राप्त होता है। कतिपय लेखों में राजनैतिक और धार्मिक उथल-पुथल के भी संकेत प्राप्त होते हैं। प्रस्तुत लेख संग्रह से कई विशिष्ट जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। जिनका लेखांक के साथ उल्लेख करना पुरातत्त्व अध्येताओं के लिए आवश्यक है। लेखांक ११७-११८- सम्वत् १५२१ में प्राग्वाट ज्ञातीय सं० अर्जुन ने ७२ चतुर्विंशति पट्टों (चौबीसियों) का निर्माण करवाया था। लेखांक १२९- यह शिलालेख प्रशस्ति ४९ पद्यात्मक है। इसमें वागडदेश के गिरिपुर का वर्णन करते हुए सोम-महीपति के पूर्वजों का भी सुन्दर एवं सालंकारिक वर्णन है। उनके मंत्री, साधु साल्हराज के पूर्वजों और परिवार का विस्तार से वर्णन है। साधु साल्हराज न केवल धर्मनिष्ठ व्यक्ति ही थे अपितु राजनीतिज्ञ और युद्ध-कला निपुण भी थे। For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उनके द्वारा तीर्थ-यात्रा, मन्दिर-मूर्ति निर्माण, स्वधर्मी बन्धुओं की भक्तिसेवा का उल्लेख है। साथ ही प्रतिष्ठापक आचार्य श्री लक्ष्मीसागरसूरि के गुरुजनों एवं अधीनस्थ विद्वत् साधुओं का उल्लेख है। यह 'साल्हसुकृतराशि-प्रशस्ति' साधुविजयगणि ने सम्वत् १५२५ में लिखी है और बाधा सूत्रधार ने इसको टंकित किया है। यह आंतरी ग्राम के शान्तिनाथ मन्दिर के शिलालेख का सार है। लेखांक १७९- सम्वत् १५४३ में प्राग्वाट ज्ञातीय श्रेष्टि गोगंन के परिवार ने शत्रुजय आदि तीर्थमय शीतलनाथ चौबीसी का निर्माण करवाया। इस चौबीसी में रायण वृक्ष, ऋषभदेव पादुका, अम्बिका और पाँचों पाण्डुओं की मूर्तियाँ भी अंकित है। लेखांक २२८- यह अहमदाबादस्थ शिवा-सोमजी के मन्दिर में परिकर सहित मूलनायक भगवान् आदिनाथ की विशाल मूर्ति का विस्तृत लेख है। इस लेख में लिखा है- विक्रम सम्वत् १६५३, अल्लाई सम्वत् ४२ (अकबर का राज्यकाल का सम्वत्) में अहमदाबाद नगर में प्रतिष्ठापक आचार्य जिनचन्द्रसूरि के उपदेश से तीर्थरक्षण एवं अहिंसापालन आदि के फरमान प्राप्त सुकृतियों का यशस्वी वर्णन है। सम्राट अकबर द्वारा प्रदत्त युगप्रधान पद का उल्लेख है। लाभपुर (लाहोर) में मंत्री कर्मचन्द्र कृत उत्सव में जिनसिंहसूरि की पद-स्थापना का भी उल्लेख किया गया है। अहमदाबाद निवासी प्राग्वाट जातीय साईया के वंशज संघवी शिवा-सोमजी ने अपने पुत्र-पौत्र आदि के साथ इस पंचतीर्थी परिकर युक्त प्रतिमा का निर्माण करवाया। यह प्रशस्ति समयराजोपाध्याय ने लिखी है और इसका टंकण सूत्रधार गल्ला मुकुन्द ने किया है। ___ लेखांक २३४- सम्वत् १६६३ जिनकुशलसूरि स्तूप के लेख में अंकित है कि बाफना गोत्रीय सा० समरसिंह के पुत्र भरत को पत्तन नगर में राजा ने नगर श्रेष्ठी पद प्रदान किया था। यह लेख जाम राज्य में राजाधिराज शत्रुसल्ल के समय में लिखा गया था। For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखांक २७२- कृष्णगढ़ (किशनगढ़) राठौड़ रूपसिंह जी के राज्य में मुहणोत गोत्रीय रायचद ने चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाकर बड़े महोत्सव के साथ प्रतिष्ठा करवाई। प्रतिष्ठाकारक आचार्य तपागच्छीय श्री विजयदेवसूरि के पट्टधर विजयसिंहसूरि थे। इस समय की प्रतिष्ठित कई मर्तियों के लेख प्राप्त हैं। लेखांक २९८- सम्वत् १७१३ में औरंगाबाद नगर में महातीर्थ समवसरण पट्ट की प्रतिष्ठा विजयप्रभसूरि ने की थी। इस तीर्थ पट्ट के मध्य में समवसरण, आदीश्वर मूर्ति, सिद्धशिला, शत्रुजय, सम्मेतशिखर, गौडी-अंतरिक्ष-फलवर्द्धि-शंखेश्वर पार्श्वनाथ, नवपद, नवग्रह, ओंकार, हृींकार, २४ जिन और गिरनार तीर्थ की रचना अंकित है। लेखांक ३२८- देवगढ़ पार्श्वनाथ मन्दिर का यह शिलालेख सम्वत् १७७४ में मालव देश में काठलमण्डल में राणा हमीर वंश के विभूषण महाराजाधिराज महारावल पृथ्वीसिंह जी के विजय राज्य में, देवगढ़ नगर में, हुम्बड जातीय लघुशाखा के मात्रेश्वर गोत्रीय सा० श्री राम के वंशजों की विशाल परम्परा का उल्लेख करते हुए उनके धार्मिक कृत्यों का वर्णन किया है। इनके पूर्वजों-सा० कडुआ ने सागवाड़ा नगर में पार्श्वनाथ चैत्यालय में भद्रप्रासाद निर्माण करवाया था और मघा ने इसी नगर में पौषधशाला का निर्माण करवाया था। साह चहिया अमात्य पद धारक थे। इन्हीं ने विघ्नहर पार्श्वनाथ मन्दिर बनवाया और इस मन्दिर की प्रतिष्ठा तपागच्छीय महोपाध्याय सहजसुन्दर से करवाई। पंन्यास क्रांतिसुन्दर ने लेख लिखा और सूत्रधार देवा के पुत्र कानु ने उत्कीर्ण किया। लेखांक ३७३- सम्वत् १८४० में ओसवंशीय साण्डेचा गोत्रीय रायमल के पौत्र सं० जीवराज जो आमेर देशाधिपति के द्वारा प्रदत्त दीवान पद के धारक थे, ने अपने पुत्र मोहनराम, रामगोपाल और कमलापति के साथ खोहनगर में देवस्थल की स्थापना के लिए पार्श्वनाथ की मूर्ति का निर्माण करवाया। राजपुर के राजा हम्मीरसिंह के राज्य में विजयगच्छीय श्रीपूज्य महेन्द्रसागरसूरि (viii) For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से प्रतिष्ठा करवाई। इन्हीं जीवराजजी ने लेखांक ३६७ में सूरजपोल के बाहर मोहनबाड़ी में दादा जिनकुशलसूरि के चरणों की और लेखांक ३६८ के अनुसार ऋषभदेव की पादुका स्थापित/प्रतिष्ठित करवाई थी। मेरे विचारों के अनुसार सं० जीवराजजी के पुत्र मोहनराम के नाम से ही यह स्थान जयपुर सूरजपोल के बाहर मोहनबाड़ी के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। लेखांक ४२०- मोहनबाड़ी, जयपुर में सम्वत् १८६२ में जिनहर्षसूरि के विजय राज्य में श्री रत्नराजगणि के शिष्य प्राज्ञ ज्ञानसार मुनि की विद्यमानता में ही उनके शिष्यवर्ग ने पादुका स्थापित करवाई। ज्ञानसार जी नारायण बाबा के नाम से प्रसिद्ध थे और इनके भक्तवृन्दों में महाराजा बीकानेर, महाराजा किशनगढ़ के विशेष उल्लेख उन राजाओं के पत्रों द्वारा मिलते हैं। लेखांक ४४१- सम्वत् १८७७ में आमेर नगर में सवाई जयसिंह जी के राज्य में आमेर और सवाई जयनगरादि निवासी श्रीसंघ ने यह मन्दिर बनवाया। क्षेमकीर्ति शाखा के महोपाध्याय रूपचन्द्रगणि (रामविजय गणि) के पौत्र शिष्य महोपाध्याय श्री शिवचन्द्र गणि ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई। लेखांक ५०६- सम्वत् १९०१ में रतलाम नगर में श्रीजिनमहेन्द्रसूरि ने चातुर्मास किया था और उसके पश्चात् विशाल अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव भी सम्पन्न करवाया था। विशालकाय अनेक प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा राजराजेश्वर श्री बलवतसिंहजी के विजय राज्य में हुई थी। उस समय जिनमहेन्द्रसूरि के साथ उपाध्याय, वाचक आदिपदों के धारक ५१ साधुओं का समुदाय था। लेखांक ५०६ से ५२१ तक की मूर्तियाँ बाबा सा० के मन्दिर रतलाम में विद्यमान है। लेखांक ५२३- सम्वत् १९०२ में श्रीजिनरत्नसूरि की शाखा में वाचनाचार्य कर्मचन्द्रगणि की परम्परा में पण्डित प्रवर श्री कुशलचन्द का नागोर में बगीचा था। उसी में पण्डित रूपचन्द्र जी के उपदेश से सुमतिनाथ For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान् का सभामण्डप श्रीसंघ ने बनवाया । यह कार्य महाराज तखतसिंह जी के विजय राज्य में हुआ था । इसी क्रम में लेखांक ५२६ में विक्रम सम्वत् १९०३ में पण्डित रूपचन्द्र ने अपने पूर्ववर्ती गुरुजनों के षट् चरणों की स्थापना की थी । नागौर में यह सुमतिनाथ का विशाल एवं भव्य मुख्य मन्दिर है । लेखांक ५५५, ५५७- इसी मन्दिर में सम्वत् १९०७ में पण्डित रूपचन्द्र के उपदेश से जिनकुशलसूरि के चरणों की प्रतिष्ठा की गई थी। इस लेख में भी रूपचन्द्र जी ने अपनी पूर्ववर्ती छ: गुरुओं का उल्लेख किया है और साथ ही यह भी उल्लेख किया है कि इसी बगीचे में दादागुरुदेवों के चरण स्थापित किये गये थे । लेखांक ५५२-५३- सम्वत् १९०६ में २७ साधुओं के परिवार के साथ श्री जिनमहेन्द्रसूरि ने कोटा में दादा जिनदत्तसूरि, जिनकुशलसूरि के चरणों की प्रतिष्ठा की थी। लेखांक ५९३-५९८ - सम्वत् १९१९ में जयनगर निवासी कोचर मुहता चुन्नीलाल के पुत्र सुखलाल ने दातरी में मन्दिर बनवाया और इसकी प्रतिष्ठा तपागच्छीय विजयधरणेन्द्रसूरि ने की थी । इसी मन्दिर में निर्माता सुखलाल कोचर की मूर्ति भी विद्यमान है । लेखांक ६०१-६१८- सम्वत् १९२० में श्रीजिनमहेन्द्रसूरि के पट्टधर श्री जिनमुक्तिसूरि ने वृंदावती ( बूँदी नगर) में रावराजा महाराजा रामसिंह जी के विजय राज्य में प्रतिष्ठा करवाई थी । मन्दिर का निर्माण और प्रतिष्ठा बाफना गोत्रीय संघपति बहादरमलजी के पुत्रों- दानमल्ल, हमीरमल्ल, राजमल्ल ने करवाया था। ये बहादरमल जी बाफना वही हैं जिन्होंने जिनमहेन्द्रसूरि के आधिपत्य में वि० सं० १८९१ में शत्रुंजय तीर्थ का विशाल पैदल यात्री संघ निकाला था, जिसमें श्रीपूज्य, आचार्य, साधु-साध्वी, यति आदि २१०० की संख्या में सम्मिलित थे और इस संघ में उस समय १३,००,००० रुपये खर्च हुए थे। इसका विस्तृत वर्णन अमरसर (जैसलमेर) के शिलालेख में प्राप्त है । जैसलमेर में जो विश्व प्रसिद्ध पटवों की हवेलियाँ (x) For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं वे इन्हीं की थीं। इस मन्दिर में भगवान् की मूर्तियों के अतिरिक्त गणेश मूर्ति, जिनमहेन्द्रसूरि पादुका, चतुरकंवर पादुका, संघवी बहादुरमल पादुका और पूर्वजों की पादुकाएँ भी विद्यमान हैं । इन्हीं के वंशजों में नगर सेठ श्री बुद्धसिंह जी बाफना विद्यमान हैं जो आंग्ल भाषा के अच्छे कवि और चिन्तक हैं । लेखांक ६४० - विक्रम सम्वत् १९४३ में बांठिया गोत्रीय सेठ गम्भीरमल निवासी बीकानेर, हाल निवासी आगरा की पुत्री जवारकंवर की पुत्री राजकंवर ने सवाई जयपुर में आदिनाथ मन्दिर और मूलनायक आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई। प्रतिष्ठाकारक थेपार्श्वचन्द्र गच्छीय श्री हेमचन्द्रसूरि और खरतरगच्छीय भट्टारक श्री जिनमुक्तिसूरि । मन्दिर का निर्माण डागा पुंजाणी गोत्रीय कन्हैयालाल के हस्ते हुआ था । इसकी व्यवस्था आगरा वाले ही कर रहे थे । कुछ वर्षों पूर्व उन्होंने सारी व्यवस्था जयपुर निवासियों को सौंप दी। नये व्यवस्थापकों ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार भी करवाया। उस समय से यह शिलापट्ट आज यथा-स्थान पर दृष्टिगत नहीं होता है । लेखांक ६५४-६६२– सम्वत् १९५५ में श्रीजिनमुक्तिसूरि ने आहोर में अंजनशलाका की प्रतिष्ठा करवाई थी। लेखांक ६७० - जयपुर स्टेशन के पास ऋषभदेव मन्दिर का निर्माण जयपुर के जौहरी सेठ भूरालाल गोकलचन्द पुंगलिया ने करवाया था और इसकी प्रतिष्ठा वि०सं० १९५८ में श्री जिनसिद्धिसूरि ने की थी । लेखांक ६८२-६८५- अजमेर स्थित भगतियों के मन्दिर का निर्माण भड़गतिया फतहमलजी कल्याणमलजी की धर्मपत्नी जवाहरबाई ने विक्रम सम्वत् १९७१ में करवाया था । इसकी प्रतिष्ठा श्री जिनचन्द्रसूरि के विजय राज्य में श्री मोहनलाल जी महाराज के शिष्य पंन्यास हर्षमुनि और प्रेमसुखमुनि ने करवाई थी। दादागुरुदेवों के पादुकाओं के अतिरिक्त श्री (xi) For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोहनलाल जी महाराज की पादुकाएँ भी विद्यमान है । इस लेख में जिनचन्द्रसूरि के विजय राज्य का उल्लेख होने से यह स्पष्ट है कि सम्वत् १९७१ तक पंन्यास श्री हर्षमुनिजी खरतरगच्छ की मान्यता को ही स्वीकार करते थे। लेखांक ६९४- चाँदमल - हुलासकंवर स्मारक के लेख से यह स्पष्ट है कि सेठ चाँदमल जी लूनिया का १९९७ में और उनकी पत्नी हुलासकंवर का स्वर्गवास १९३६ में अजमेर में हुआ। उनके दाहसंस्कार स्थान पर यह स्मारक सम्वत् १९७६ में श्री चाँदमल जी के पुत्र रायबहादुर, राजा बहादुर सेठ थानमल जी लूनिया (हैदराबाद) अजमेर वालों ने अजमेर दादाबाड़ी में बनवाया । लेखांक ७१६-७१७- खरतरगच्छीय प्रवर्तिनी पुण्यश्रीजी की शिष्या कनकश्री का स्वर्गवास १९९४ में नागौर में हुआ । उन्हीं की स्मृति में साध्वी शान्तिश्री के उपदेश से आगरा निवासी बाबू पूर्णचन्द्र और कपूरचन्द्र की माता श्रीमती मगाबाई बसंतीबाई ने यह कनक मन्दिर बनवाया और समारोहपूर्वक १९९४ में इसकी प्रतिष्ठा करवाई । लेखांक ७५२ - बीकानेर निवासी मंत्री संग्रामसिंह के पुत्र मंत्री कर्मचन्द्र ने फलोदी में राज्याधिकारी रहते हुए जिनदत्तसूरि की पादुका प्रतिष्ठित करवाई। यह पादुका आज भी फलोदी राणीसर दादाबाड़ी में पूजित है। लेखांक ७५३ - विक्रम सम्वत् १६५३ में मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र बच्छावत ने अमरसर में श्री जिनकुशलसूरि की पादुका स्थापित करवाई और युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई । अमरसर निवासी श्री थानसिंह के प्रयत्नों से यह कार्य सम्पन्न हुआ था । यह अमरसर शाहपुरा ( जयपुर ) से १० कि०मी० दूर है। यह उस समय में प्रसिद्ध नगर रहा था। जहाँ महोपाध्याय समयसुन्दर और गुणविनय इत्यादि ने यहाँ चातुर्मास भी किये थे। यहाँ शीतलनाथ का मन्दिर था जिसका अब नामो-निशान भी नहीं (xii) For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है। दादागुरुदेव की छतरी छिन्न-भिन्न अवस्था में दादा-पोता की छतरी के नाम से प्रसिद्ध थी। जिसका कुछ वर्षों पूर्व ही श्री विनयचन्द धांधिया के तत्वावधान में जीर्णोद्धार हुआ है। लेखांक ७५४ के अनुसार एक कुआँ भी था, आज उसका पता नहीं है। ___ लेखांक ७५५- सम्वत् १९५६ में संग्रामपुर (सांगानेर) में महाराजा श्री मानसिंह जी के विजय राज्य में महामंत्री कर्मचन्द्र ने दादा जिनकुशलसूरि जी की पादुका स्थापित की थी और इसकी प्रतिष्ठा युग-प्रधान जिनचन्द्रसूरि के विजय राज्य में वाचनाचार्य यश:कुशल ने की। यह सांगानेर की दादाबाड़ी आज भी चमत्कारी स्थानों में गिनी जाती है। विचारणीय- लेखांक ५३९ से ५४८- सम्वत् १९०५ के लेखों में प्रतिष्ठापक के रूप में श्रीखरतरगच्छे श्री जिनरत्नसूरिभिः' लिखा है। इन जिनरलसूरि का खरतरगच्छ की मूल परम्परा एवं शाखाओं के पट्टधर आचार्यों के वर्णन में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। सम्भवतः पट्टधर आचार्य न होकर किसी शाखा के अनुवर्ती आचार्य हों। लेखांक १९२- सम्वत् १७०८ (?) का लेख सम्वतानुक्रम में स्थान पा गया है। वस्तुत: यह विक्रम सम्वत् न होकर शक सम्वत् है। इस लेख के अन्त में सन् १९०१ (?) दिया है। वह भी शक सम्वत् से मेल नहीं खाता है। आभार इस पुस्तक के लिए मेरे हार्दिक अभिलाषा थी कि इस पुस्तक का प्राक्कथन किसी पुरातत्त्व और इतिहास के मूर्धन्य विद्वान से लिखवाई जाए। प्रो० श्री रमेशचन्द्रजी शर्मा से मैंने पत्र व्यवहार किया और उन्होंने प्राक्कथन लिखने की सहज भाव से स्वीकृति प्रदान की। वे वर्तमान में ज्ञान-प्रवाह सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र, वाराणसी के मानद निर्देशक/आचार्य हैं। पूर्व में राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान, नई दिल्ली (xiii) For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के महा-निर्देशक/कुलपति रह चुके हैं। स्थापत्य-मूर्ति-चित्रकला और पुरातत्त्व के विशिष्ट विद्वान हैं। इन्होंने ही इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखकर मुझे अनुग्रहीत किया है, अतः मैं इनका हृदय से आभार स्वीकार करता हूँ। मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि प्राकृत भारती के संस्थापक श्री डी०आर० मेहता ने इसकी उपयोगिता समझ कर प्राकृत भारती की प्रकाशन योजना में इसका प्रकाशन स्वीकार किया। एम०एस०पी०एस० जी० चेरिटेबल ट्रस्ट, जयपुर के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री मंजुल जैन ने प्राकृत भारती के साथ संयुक्त प्रकाशन हेतु उदारता प्रदर्शित की। अतः इन दोनों संस्थानों के प्रति मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। मेरे लेखन, संशोधन, सम्पादन आदि कार्यों में आयुष्मान मंजुल जैन और उसकी धर्मपत्नी अखण्ड सौभाग्यवती नीलम जैन एवं समस्त परिवार का अविच्छिन्न रूप से सहयोग रहा है। अतः इन सब के प्रति मेरी हार्दिक शुभाशीष। अन्त में मेरे परमाराध्य खरतरगच्छ दिवाकर पूज्य आचार्यदेव स्वर्गीय श्री जिन मणिसागरसूरि जी महाराज की दिव्याशीष का ही यह सुफल है कि इस पुस्तक का कार्य सम्पन्न हो सका। - म० विनयसागर For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राक्कथन कुछ वर्ष पूर्व मुझे जयपुर स्थित प्राकृत भारती अकादमी को देखने का सुअवसर मिला था। सतत सारस्वत साधना और उसके पुंजीभूत की प्रतिमूर्ति है यह संस्था । विस्मय, आश्चर्य और हर्ष का त्रिभुज बनाने का श्रेय है महोपाध्याय श्री विनय सागरजी को, जो विद्वत्ता, अथक परिश्रम और विनय के अथाह सागर हैं। प्राकृत भारती अकादमी स्वयं ही शोधार्थियों के लिए तीर्थ है। प्रतिष्ठा लेख संग्रह के द्वितीय भाग का प्राक्कथन मुझसे लिखाने की उनकी इच्छा मेरे लिए बड़े संकोच का प्रसंग है । अवश्य ही मेरी प्राचीन लेखों में पठन-पाठन और शोध में अभिरुचि है और इस दिशा में कुछ प्रयास अभी तक वर्तमान संस्थान ज्ञान - प्रवाह में भी चल रहे हैं । किन्तु संकोच का मूल कारण था कि मान्य लेखक का प्रथम भाग ठीक पचास वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था और उसकी भूमिका मेरे पूज्य गुरु और सुप्रसिद्ध विद्वान् आचार्य वासुदेव शरण अग्रवाल ने काशी में विराजते हुए लिखी थी । उसके द्वितीय भाग का प्राक्कथन काशी से ही अर्द्धशताब्दी पश्चात् उनके शिष्य द्वारा लिखा जाना विचित्र और गौरवानुभूति है । पुस्तक का द्वितीय खण्ड भी प्रथम खण्ड के साथ लगभग पूर्ण हो चुका था किन्तु कतिपय व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण प्रकाशन अवरुद्ध हुआ। इस बीच प्राकृत भारती अकादमी ने शतशः ग्रन्थ प्रकाशित कर विशिष्ट कीर्ति अर्जित की। प्रस्तुत भाग के अध्ययन के समय स्व० प्रो० अग्रवालजी की प्रथम भाग के लिए लिखी भूमिका और लेखक की अपनी बात में निबद्ध सुखद और कटु अनुभव दोनों आज भी मननीय हैं। वस्तुतः द्वितीय भाग प्रथम भाग का ही वितान है । इस दृष्टि से मेरे लिए प्राक्कथन लिखना कालिदास के शब्दों में सरल हो गया है For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथवा कृत वाग्द्वारे वंशेऽस्मिन् पूर्वसूरिभिः। किसी मूर्ति की प्रतिष्ठा की पृष्ठभूमि में आस्था और भावना मुख्य कारण होते हैं। किन्तु प्रतिष्ठा के अनन्तर उसके आयामों में वृद्धि होती है और वह निरन्तर होती रहती है। यह सब दृष्टि पर निर्भर होता है। कला, इतिहास, संस्कृति, भाषा-विज्ञान, मूर्ति-विज्ञान, प्रस्तर व धातु-विज्ञान, अभिलेख, लिपि-शास्त्र आदि अनेक क्षितिज खुलते हैं और अपने-अपने दृष्टिकोण से उनका अनुशीलन किया जा सकता है। इन सब में आवश्यक और विशेष महत्वपूर्ण हैं, उत्कीर्ण लेख का वाचन और छापें तैयार करना । यह बहुत दुरूह और उबाऊ कार्य है। इसमें बुद्धि के साथ सूक्ष्म-दृष्टि, धैर्य और परिश्रम अपेक्षित है। महोपाध्याय विनयसागरजी ने जिस यत्न से मूर्तिलेखों का वाचन कर हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है वह बड़ा स्तुत्य है क्योंकि इससे इतिहास तो सुरक्षित हुआ ही, भावी शोधकर्ताओं को नूतन दिशाएं भी मिली हैं। विक्रम संवत् १०१४ से लगभग एक हजार वर्ष के अन्तराल में प्रतिष्ठापित ७५७ मूर्तियों के इस संकलन में अनेक उपयोगी सूचनाएँ गुम्फित हैं। जैन समाज गठन, कुल, गोत्र, शाखा आदि जो झलक मथुरा के प्राक् कुषाण व कुषाण-युगीन मूर्ति अभिलेखों में मिलती है, लगभग वही चित्र समीक्षाधीन पुस्तक के लेखों में है। धार्मिक आस्था का स्रोत भी अविकल और अविच्छिन्न रूप से प्रवाहित है। तीर्थंकरों की मूर्तियों की प्रतिष्ठा तो स्वाभाविक थी ही किन्तु मूर्तियाँ मुनियों, आचार्यों, उपाध्यायों व परिवारीजनों की भी हैं। लक्ष्मीनारायण (सं० ४३), गणेश (सं०६०९-६१०) आदि देवताओं की मूर्तियों की प्रतिष्ठा धार्मिक सामंजस्य के उदाहरण हैं। पद्मावती यंत्र (सं० ४२८) व अनेक सिद्ध यंत्रों की प्रतिष्ठा से संकेत मिलता है कि आध्यात्मिक या पारलौकिक सिद्धि के साथ ऐहिक कल्याण भी समाज में For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वरेण्य रहा है। जिनदत्तसूरि, जिनकुशलसूरि, जिनचन्द्रसूरि को युगप्रधान के . रूप में समादृत किया है। (सं० २४७, २४८ आदि) ___ मूर्तियों के अतिरिक्त चरण-पादुकाओं को भी प्रतिष्ठित किया गया जो तीर्थंकरों से लेकर सामान्य कुलजनों तक की हैं। कुछ लेख स्तम्भ, शिलापट्ट व ताम्रपटों पर भी हैं। सम्मेतशिखर पट्ट से पवित्र स्थान विशेष की पूजा परम्परा पर प्रकाश पड़ता है (सं० ४५७ एवं सं०५३१)। इसकी तुलना प्रस्तर शिलाओं पर उत्कीर्ण वाराणसी या प्रयाग पटों पर चित्रों से की जा सकती है। एक स्तम्भ लेख (सं० ३०२) में लेखक व पाठक दोनों की मंगलकामना की गई है। कहीं यह सद्भाव आचार्य, उपाध्याय या परिवारीजनों को जाता है। ताम्रलेख (सं० ४३८) में कारीगर उमेदराज का नाम आता है जिसने लेख उत्कीर्ण किया है। संयोग से इसमें तीन उमेदों का मिलन है अर्थात् उमेदसिंह, उम्मेदपुरा और उमेदराज। इस सन्दर्भ में मथुरा से प्राप्त कार्तिकेय की कुषाणकालीन उस प्रस्तुत मूर्ति का स्मरण होता है जिसमें सभी नाम विश्व से आरम्भ होते हैं (मथुरा संग्रहालय सं० ४२.२९४९)। पिता का नाम था विश्विल जिसके चार पुत्रों ने मूर्ति की प्रतिष्ठा की। इनके नाम हैं- विश्वदेव, विश्वसोम, विश्वभव और विश्ववस्तु। मूर्ति का प्राप्ति स्थान प्रसिद्ध कंकाली या जैन टीला है जहाँ से सैकड़ों की संख्या में जैन मूर्तियां मिलीं। प्रस्तुत पुस्तक की मूर्ति सं० २२८ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसे सम्राट अकबर के अल्लाइ संवत् ४२ वर्ष में प्रतिष्ठित बताया है। सिंहासन के नीचे संवत् १६५३ भी दिया है। अकबर की उदार धार्मिक व प्रशासनिक नीति और विशेष रूप से जैन धर्म के प्रति उसकी अभिरुचि का यह ज्वलन्त प्रमाण है। उसके द्वारा प्रचलित इलाही या अल्लाइ संवत् का प्रचलन नाम मात्र का रहा किन्तु आदिनाथ की इस मूर्ति में उसे स्थान मिलना एक असाधारण बात है और इस दृष्टि से मूर्ति का महत्व बढ जाता है। For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषा की दृष्टि से ये मूर्ति लेख संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी (मारवाड़ी), गुजराती, हिन्दी, संस्कृत मिश्रित हिन्दी में हैं। क्षेत्रीय भाषाई अध्ययन और मूर्तियों के प्राप्ति स्थान के अनुशीलन स्रोत इन प्रतिष्ठा लेखों से फूटता है। दुर्भाग्यवश पिछली अर्द्धशती में इन मूर्तियों की स्थिति अस्तव्यस्त हुई है और कुछ लुप्त भी हो गई हैं। इसलिए इस पुस्तक का महत्व और भी अधिक है। लेखक ने पुस्तक के आरम्भ में अपने स्वकथ्य में लेखों के वैशिष्ट्य में प्रमुख मूर्तियों का उल्लेख पृथक् से किया जो पठनीय है। इसी प्रकार अन्त में दिए परिशिष्टों से ग्रन्थ के महत्व में बहुत वृद्धि हुई है। महोपाध्याय श्री विनय सागरजी प्राच्य-विद्या के अध्येताओं के लिए वस्तुतः अभिनन्दनीय हैं जिनके अथक परिश्रम, गवेषणात्मक बुद्धि एवं मन्थन से मूर्तिलेखों का नवनीत हमें सहज ही प्राप्त हो गया। आशा है विद्वत्समाज में इस पुस्तक का गौरवास्पद स्वागत होगा और उन्हें अनन्त कीर्ति उपलब्ध होगी। वाराणसी ०१/०८/२००३ प्रो० रमेश चन्द्र शर्मा मानद निदेशक/आचार्य ज्ञान-प्रवाह सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र, वाराणसी एवं पूर्व महानिदेशक/कुलपति राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान, नई दिल्ली For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमः श्रीमज्जिनमणिसागरसूरिपादपद्मभ्यः। प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१) आदिनाथ-मूर्तिः सपिरकरः ९. देव श्री ऋषभनाथ सा० साढा पुत्री सा० महाधर पत्नी महाश्री सा० ममु पुत्र आल्हण कारापितेयं सं० १०१४ ज्येष्ठ सुदि ९ सोम (२) शिलापट्टः ९. ॐ नमः सिद्धेभ्यः॥ आसीनिर्वृतकान्वयैकतिलक: श्रीविष्णुसूयासनो, श्रीमत्काम्यकगच्छतारकपथश्वेतांशुभाद्विश्वनः। श्रीमान्सूरिमहेश्वरः प्रथमतः श्वेताम्बर ग्रामणी बोजो श्री विजया नृपतिः (?) श्रीश्रीपथायां पुरिः। ततश्च ॥ नाशं यादुशतं सत्र सहितं संवत्सराणां कृतो गण्यं मारुद्रे पदः सरुद्रपदवीं सा सेहउ। तासौ वच्छ यमे तु सो.........सुद कृष्णा द्वितीया तिथिः पञ्च श्रीपरमिष्टहदयः प्राप्रांदिभ्रूयं व सः। वा। कीर्तिदिकारिकात्तदत्तमुशो प्रालासा क्रम। क्वारिका पि हिमाद्रि मुमहि सोत्प्रासहासस्थितिम्। क्वाणे वा नागपाग जवित साहतु वंदि हुपं। रांति रुवनवयं व्रीपपग्रीवाद्यापि न भुंगादे॥ सं० ११०० रुद्रे वदि २ चन्द्रे कल्याणकारि प्रशस्तिरिदं सावुसवेदनोत्कार्षिब्धि। (३) सीमन्धरस्वामी: । संवत् ११५५ उ १। म ट दा.......... (४) पार्श्वनाथ: ९. संवत् ११५५ माह वदि ५ श्रीदेवसेन संघ गुरु स० १० दीमोगा वोना......... १. कोटा आदिनाथ मंदिर (गढ़) २. अजमेर म्युजियम (मेग्जिन) ३. वरखेड़ा (जयपुर) ऋषभदेव मंदिर ४. किसनगढ़ जिनरंगसूरि शाखोपाश्रय For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ९.॥ सं० ११९६ जेठ सुदि १३ शुक्रे नाभड श्रेयोर्थ चालधि कारापिता (६) चतुर्विंशतिपट्टः उव्वाद प्रणमति॥ (७) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ९. सं० १२११ वैशाख वद २ बुधे भालिज्ये श्रे० छाडा श्रेयोर्थं राजपालेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारयामास ॥ शुभंकरोति ९. श्री ऊकेशीयगच्छे श्रीककुदाचार्यैः प्रतिष्ठिता (८) पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १२६५ व० चैत्र..........सा० कील्हा पु लीपाई कर्मसीह पाससिंह हरिसिंह लूणा करदा मलयसिंह निजपित्रोः श्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनेश्वरसूरि प० श्रीवर्धमानसूरिभिः॥ ___(९) पञ्चतीर्थीः ०० ल प कर्म मूलंदेवत कारिता (१०) पार्श्वनाथ-पञ्चती : ९. सं० १२९३ वैशाख सु० १० पारसनाथ प्रतिमा श्रीनन्दीतटसंघे साधु नागदेव प्रणमंति। (११) पञ्चतीर्थीः सं० १२९३ वैशाख सु० ९ रागिलाचार्य सूत्रः जगा श्री कुंगा जसरागिका ५. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर ६. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर ७. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर कोटा आदिनाथ मंदिर ९. जयपुर विजयगच्छीय मंदिर १०. नागोर चौसठिया जी का मंदिर ११. जयपुर विजयगच्छीय मंदिर For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१२) पार्श्वनाथः पण्डित श्री मेरुकीतैः। प्रतिमाकारितः श्री॥ (१३) महावीर-पञ्चतीर्थीः सं० १३०४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ७ सोमे श्रीकोरंटकीयगच्छे पिता सहुदेव श्रेयोर्थं सं० नाणचन्द्र.......... श्रीमहावीरबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसर्वदेवसूरिभिः (१४) चतुर्विंशतिपट्टः संवत् १३११ वर्षे चैत्र वदि ६..........श्रे० अभयकुमार श्रेयोर्थं श्रे० सीहा सुत ठ० सीवाकेन श्रीचतुर्विंशतिपट्टकः कारितः (१५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १३१३ ज्येष्ठ वदि ९ शुक्रे प्राग्वाट ज्ञातीय ठ० धरणीधर सुत ठ० कर्णसीहेन पितृव्य महं० आसधर स्वश्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथबिं कारितम्॥ (१६) नवगुरुमूर्तिः (१) सं० १३३२ ज्ये० शुदि १३ बुधे श्रीभद्रेश्वरसूरि श्रीजयसिंघसूरि श्रीहेमहर्षसूरि (२) श्रीभुवनचन्द्रसूरि श्रीदेवचन्द्रसूरि श्रीजिनेश्वरसूरि श्रीजिनदेवसूरि श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीशान्तिप्रभसूरि अमीषां मूर्तिः पं० नरचन्द्रगणिना (३) कारिता प्रतिष्ठिता श्रीवर्धमानसूरिभिः॥ शुभंभवतु (१७) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ९. संवत् १३३५ वर्षे माघ सुदि १३ शुक्रे पितृ कुमरसीह श्रेयो) रिणसीहेन श्रीशान्तिनाथकारितः प्रतिष्ठितः। श्रीवीरसूरिभिः॥ (१८) महावीर-पञ्चतीर्थीः सं० १३४५ चैत्र वदि ४ भौम ऊ० ज्ञातीय श्रे० कुसवीर सुत १२. कुसतला पार्श्वनाथ मंदिर १३. उजैन अजितनाथ मंदिर १४. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १५. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १६. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर १७. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः महादेवेन पितुः तथा मातृ वील्हणदेव्याः श्रेयसे श्रीमहावीरबिंबं कारितं। प्रति० श्रीभावदेवसूरिभिः॥ छ। (१९) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १३५० वर्षे वैशा० सुदि ११ श। रोसिंघ उम्रतीय श्रे० पूना सुत श्रे० धरणाकेन श्रीशान्तिनाथ.........रातिकेवासे (?) कारितं। . (२०) अवन्ती-पार्श्वनाथमूलनायकः (१) संवत् १३५० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ रवौ श्रीपुर सु-घ वाघणपाल (२) तापेश्वर पु० वीरसेन भार्या पूनी यो पुत्र लक्ष्मीदत्त पुत्र जयसिंघ भार्या महासिरि पुत्र पाल्ह । (३) वील्है: श्रीपार्श्वनाथमूर्तिः कारितं ॥ छ॥ शुभंभवतु ॥ छ॥ . (२१) पञ्चतीर्थी: सं० १३५० द्वि० ज्ये० सु० ११ हुंबडज्ञातीय सा सांगण सुता बा० जाणिकि आत्मश्रेयो) बिंबं कारितं (२२) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ९ सं० १३५२ वर्षे वैशाख वदि ११ शुक्रे देवश्री आदिनाथ श्रीमूलसंघे श्रीधर्मकीर्ति गुरु उ० व्यव०-तसीह श्रेयोर्थं सुत लूणा करापितं (२३) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १३७३ वर्षे पौष वदि ५ सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ लाखा मातृ लालि श्रेयसे सुत जयतसीहेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं पीपलगच्छे श्रीधर्मचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ छ॥ ठ॥ (२४) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १३७५ माघ सुदि ४ शुक्रे श्रे० अहमाप्तजलतयोः पुण्यार्थं पुत्र १८. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १९. कोटा आदिनाथ मंदिर २०. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर २१. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर २२. कोटा आदिनाथ मंदिर २३. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर २४. दिणाव For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः रणसिंहेण श्रीरिषभदेवबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीशालिभद्रसूरि - शिष्य श्रीदेवेन्द्रसूरिभिः रत्नपुरीये (२५) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी: ॥ ६० ॥ सं० १३८१ माघ वदि १ चन्द्रे दुसाझवंशे बीहड सुत जाजनकेन पितुः श्रेयसे श्रीशान्तिनाथ प्रतिष्ठितं श्री श्रीतिलकसूरिभिः । (२६) पार्श्वनाथ पञ्चतीर्थी: संवत् १३८३ वर्षे फागुण वदि २ रवौ । सूराणावंशे उपकेशज्ञातीय सा० सोमदेव सुत ईसर सुत वीरम पुत्र धरणिग पितु ( : ) श्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारितं श्रीधर्मघोषगच्छे प्रति० श्रीरत्नाकर सूरिशिष्यैः प्र० श्रीधर्मदेवसूरिभिः ॥ झांझणदे. (२७) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १३८९ ज्येष्ठ वदि २ भौमे श्री श्रीमालज्ञाती पितृ झांझण भा० . श्रीपार्श्वनाथ कारितं पिप्पल । भट्टा । श्रीरत्नप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं (२८) महावीर - पञ्चतीर्थी: श्रीमहावीरबिं० प्र० श्रीशान्तिसूरिभिः सं० १३९४.... ५ सं० १३.. कारितं श्रीपदमचंदसूरि प० श्रीवीरप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं (३०) शान्तिनाथ - पञ्चतीर्थी : (२९) महावीर - पञ्चतीर्थी : .. सुत रासल भार्या राजसिरि श्रेयसे श्रीमहावीरबिंबं सं० १४०१ प्राग्वाटज्ञा० सा० मोना- सिवाभ्यां मोना पिता सा० राणू भा० आभा श्रेयोर्थं श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसोमतिलकसूरिभिः धनज पार्श्वनाथ देसासर २५. २६. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर २७. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर २८. सांगानेर महावीर मंदिर २९. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ३०. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (३१) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४१७ ज्येष्ठ शु० ९ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय पितृ ठ० लाखा मातृ जावलदेवि श्रेयसे सुत भावा जावड छाडादिभिः पुत्रैः श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं थारापद्रीयगच्छे श्रीपूर्णभद्रसूरिभिः।। (३२) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १४२२ वर्षे वैशाख शुदि ११ प्राग्वाटज्ञा० पट्ट० सेंगा भा० गांगी श्रेयोर्थं सुत वीराकेन श्रीशान्तिनाथबिंबं का० नागेन्द्रग० प्र० श्रीरत्नाकरसूरिभिः (३३) गणधरयन्त्रम् ए द० ॥ स्वस्तिश्रीनृपविक्रमकालातीत संवत् १४३१ वर्षे कार्तिग सुदि १५ अर्कदिने श्रीगोपाचलदुर्गे तूंवरवंशे राजाश्रीवीरमदेवराज्यप्रवर्त्तमाने श्रीमूलसंघे आचार्यश्रीपद्मनंदिदेवा जैसवालान्वये ठा० राजऊ भार्या हरसिरि तत्पुत्राः ठाकुर विजैसिंह तथा हरिपाल महिपाल। विजैसिंह भार्या वीना। जैसिरि खेतो पुत्र। लखे मकुंद परिसराम बाहुबलि भरत संसारचन्द्र लखे भार्या गले पुत्र विश्वनाथ। ठा० विजयसिंहेन निजकर्मक्षयार्थं इदं गणधरवलययन्त्रं प्रतिष्ठापितं ॥ १ जइसवाल पंडित रामपुत्र पंडित लक्ष्मीधरेण प्रतिष्ठितं॥ ' (३४) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १४३४ वर्षे वैशाख सु० २ सुचिंतीगोत्रे सा० खेमपाल पुत्र सा० नाल्हाकेन स्व श्रेयसे श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० श्रीधर्मघोषगच्छे श्रीवीरभद्रसूरिः (३५) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४३८ वर्षे आषाढ सुदि ५ शुक्रे भावसार पांचा भा० ऊमा मो.......... सा श्रीपञ्चतीर्थीय श्रीआदिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ३१. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर ३२. उज्जैन अजितनाथ मंदिर ३३. उज्जैन अजितनाथ मंदिर ३४. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ३५. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभाग: ( ३६ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १४४० वर्षे ... ...गोत्रे सा.......... .......... पित्रो ( : ) श्रेयसे श्रीशान्तिनाथबिं० का० प्र० श्रीपासचन्द्रसूरिभिः ॥ श्रीः (३७) पार्श्वनाथ पञ्चतीर्थीः संवत् १४४१ वर्षे वैशाख वदि १२ दिने नाहटवंशालंकारेण ना० घडसिंह पुत्रेण भ्रातृ सा० सरवणादि सा० सलकेन युतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिभिः ॥ श्रीखरतरगच्छेशैः । (३८) शान्तिनाथ - चतुर्विंशतपट्टः ॥ संवत् १४५२ वर्षे वैशाख वदि १ सो० श्री श्रीमालज्ञा० भा० जाल्हा भा० जाल्हणदे सुत वीकम भा० पूनणि सु० सांडु भा० पूंजी तथा पितृव्य चांगा भा० चाहणदे भां० भाचांकेन श्री शान्तिनाथ । मुख्य चतुर्विंशतिपट्टकारितः श्रीपू० हरिषेणसूरिपट्टे श्रीरत्नप्रभसूरीणामुपदेशेन प्र० श्रीसूरिभिः ॥ (३९) महावीर - पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १४५५ वर्षे डीसावालज्ञातीय ब्रह्मागोत्रे श्रे० लाडा प्र० मंडलिक भा० मूल्ही पु० विरूपाकेन पित्रो ( : ) निमित्तं श्रीमहावीरबिंबं कारितं ॥ (४०) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १४५९ वर्षे माघ सुदि ११ स० हापसिंह पुत्रि सरवदेकेन पुत्र पुंजा काजा युतेन पितृश्रेयोर्थं श्री आदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरिभिः (४१) पद्मप्रभ - चतुर्विंशतिपट्टः सं० १४६१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्रे उपकेशज्ञा० श्रे० लक्ष्मीधर धांध कुंरसी राणउ भा० राणादे पु० आसपाल पूनउ लालउ भा० लखमादे ३६. जयपुर घाट पद्मप्रभ मंदिर ३७. जोधपुर मुनिसुव्रत मंदिर ३८. कारंजा आदिनाथ मंदिर ३९. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर ४०. जोधपुर महावीर मंदिर जालना चन्द्रप्रभ मंदिर ४१. For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः पु० वियरउ भा० वउलदे पु० चांपाकेन पित्रोः श्रे० चतुर्विंशतिपट्ट(:) का० श्रीपद्मप्रभबिंबं श्रीसागरतिलकसूरीणामुपदेशेन प्र० श्रीसूरिभिः॥ (४२) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४७२ वर्षे फागुण सुदि ९ श्री उपकेशगच्छे श्रेष्ठिगोत्रे सा० सांगा भा० सिंगारदे पु० हरपाल मातापितापितृभ्रा० श्रे० आत्मश्रे० श्रीआदिनाथबिंबं कारा० प्र० कुक० श्रीदेवगुप्तसूरिभिः॥ श्री (४३) लक्ष्मीनारायणधातुमूर्तिः सं० १४७४ वर्षे माघ सुदि १० गुरु श्रीभाविसरगोत्रे। हुंबडज्ञातीय श्रे० धांधा भा० जाउति पुत्र रणमल्लेन श्रीलक्ष्मीनारायणमूर्तिकारितं ॥ हापा मां० हाउ (४४) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४७४ वर्षे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठि ल.........पे लीलूदे तयोः श्रेयोर्थं सुत कर्मण कारापिता। श्रीशान्तिनाथबिंबं श्राआगमगच्छे श्रीअमरसिंहसूरिभिः। विधिप्रतिष्ठाः॥ (४५) आदिनाथः सं० १४७७ आषाढ सुदि २..........फेरु पुत्र नरसिंहेन भा.......... (४६) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ए द० स्वस्ति सं० १४७९ पौषवदि ५ शुक्रे श्रीवीसलनगरवास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० षोषा भार्या प्रीमन श्रीआदिनाथ जीव(वि)तस्वामिप्रतिमाबिं आत्मश्रेयो) मडाहडगच्छे श्रीउदयप्रभसूरि ॥ प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः। श्रीऋद्धिवृद्धिरस्तु॥ (४७) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४८० वर्षे माह वदि ५ गुरौ श्रीमूलसंधे नंदिसंघे बलात्कारगणे ४२. कोटा आदिनाथ मंदिर ४३. पापड़दा शान्तिनाथ मंदिर ४४. उज्जैन अजितनाथ मंदिर ४५. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ४६. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ४७. औरंगाद धर्मनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः सरस्वतीगच्छे भट्टारक पद्मनंदि तत्पट्टे शुभचन्द्रदेवोपदेशात् श्री हुम्बटान्वये श्रे० पाल्हा भार्या पाल्हणदे तयोः सुत सोमसी भार्या नामलदे तयोः सुत विरूआ भार्या वांऊ श्रीशान्तिनाथप्रतिमा कारपिता श्रा० सरवण भा० सदे..........पुत्र भाइया भा० वारू ठा० सांगा भा० धरणू ठा० कामा कामलदे (४८) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १४८६ वर्षे वैशाख सुदि ५ सोमे प्राग्वाटज्ञा० म० धर्मसिंह भा० मरगदि पु० पचाकेन कुंपा सहितेन पितृभ्रातृआत्मश्रेयसे श्रीसंभवनाथबिंब कारितं प्र०ऊ० सिद्धाचार्यसन्ताने भ० श्रीदेवगुप्तसूरि (४९) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १४८६ वर्षे वै० शु० ११ उ० ज्ञा० पीलप्राडेचा (?) गो० सा० हरिचंद पु० तेजा भा० सालू पु० धनाकेन आत्मश्रेयोर्थं श्री आदिनाथबिंब का० प्र० श्रीसंडेरगच्छे श्रीशान्तिसूरि॥ (५०) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४८७ वर्षे वैशाख सुदि ३ भूमे श्रीमाल० श्रेष्ठ० साजण सुत रूपिणि सुत अर्जुन नामा भा० माई सु० बाल्हा भार्या मनी सुत जाल्हा गोल्हा मातृपितृश्रेयसे श्रीविमलनाथबिंबं कारितं उकेसगच्छे श्रीरत्नप्रभसूरि सपरि० वा० श्रीशुभशेखर ॥ (५६) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४८७ माघ सु. ३ नाहरगोत्रे सं० आसं. सुत सं० देवाकेन स्वभ्रातृ हरिचन्द भार्या खेत.ही श्रेयो निमित्तं श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्र० तपागच्छे श्रीपूर्णचन्द्रसूरिपट्टे प्रीहेमहंससूरिभिः शुभंभवतु श्री (५२) आदिनाथः सं० १४८७ फागुण सुदि.....बुधे.....श्रीऋषभजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ ? ४८. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर ४९. कोटा आदिनाथ मंदिर ५०. कोटा माणिकसागर मंदिर ५१. उज्जैन अजितनाथ मंदिर ५२. अजमेर संभवनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५३) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १४८९ वर्षे माघ वदि २ शुक्रे प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० महणसी भा० माल्हणदे पु० टोलाकेन बाई वील्हणदे न (नि) मित्तं श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्गच्छीय श्रीलल(लित)प्रभसूरिभिः॥ १ (५४) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १४९२ वर्षे वैशाख सु० ५ कछारा गोत्रे सा० सोना पु० वीसल भा० वील्हणदे पु० धणसीहेन भा० देऊ स० पितृव्य त्रिभुणा पुण्यार्थं श्रीशीतलबिंबं का० प्र० श्रीसंडेरगच्छे श्रीशान्तिसूरिभिः। . (५५) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः . ॥ सं० १४९३ वैशा० सुदि ३ गुरु श्रीकोरंटकीयगच्छे उ० ज्ञातीय पोसालिया गोत्रे सा० भाला भा० वारी पु० लोला मातृपितृश्रेयसे श्रीश्रेयांसबिंबं लोलाकेन कारा० प्र० श्रीसावदेवसूरिभिः॥ (५६) अजितनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १४९३ वर्षे आषाढ सुदि १० गुरौ श्रीउपकेशज्ञातीय सा० कर्मसी भार्या धाई चांई सुताः नागपाल थिरा तेजा सा० शिवा सा० सहिसा भार्या बाई वारू आत्मश्रेयसे श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीशान्तिसूरिभिः भावगुरुः श्रीजयशेखरसूरिः॥ (५७) वासुपूज्यः ॥ सं० १४९३ प्राग्वाटज्ञातीय सा० माहुणेन भा० भाऊ पुत्र देवराजादिकुटुम्बयुतेन स्वपुत्रश्रेयसे श्रीश्रीश्रीवासुपूज्यबिंब का० प्र० श्रीतपागच्छे श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः (५८) वासुपूज्यः ___ सं० १४९३ प्राग्वाटज्ञातीय सा० माहुणेन भा० भाऊ पुत्र देवराजादि '५३. जालना चन्दप्रभ मंदिर ५४. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर ५५. कोटा माणिकसागर मंदिर ५६. राजादेवलगाम (बरार) ५७. कोटा बिमलनाथ मंदिर ५८. कोटा बिमलनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः कुटुम्बयुतेन स्वपुत्रश्रेयसे श्रीश्रीश्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः (५९) वासुपूज्यः सं० १४९३ प्राग्वाटज्ञातीय सा० माहुणेन भा० भाऊ पुत्र देवराजादिकुटुम्बयुतेन स्वपुत्रश्रेयसे श्रीश्रीश्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः (६०) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १४९५ वर्षे ज्येष्ठ शु० १ बुधे उ० ज्ञा० पूर्णिमापक्षे काश्यपगो० सा० ऊदा भा० काऊं पु० कूपाकेन भा० रूपिणि भ्रातृपु० भोजा सहितेन मातृपुण्यार्थं स्वश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० प्र० श्रीसर्वसूरिभिः॥ शुभं॥ (६१) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः संवत् १४९५ फागुण वदि ९ रविवारे ऊके० वंशे पावेचा गोत्रे सा० नींबा भा० कपूरदे पु० जगमालेन भा० मानू पु० चांपादि युतेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्र० बृहद्गच्छे श्रीहेमचन्द्रसूरि (६२) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १४९६ श्रीअर्बुदवासि प्राग्वाट व्य० काका भार्या मधूं सुत व्य० खीदाकेन भार्या चाई सुत धरणादि युतेन (मुनि) सुव्रतबिंबं कारितं प्रति। तपा श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः॥ श्री . (६३) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १४९७ वर्षे माघ शु० ५ शु० श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० कुंपा भा० रांभू सु० मांडणकेन भ्रा० आल्हा श्रे० श्रीसुमतिना० बिंबं का० प्र० पूर्णि० प० श्रीनरशेखरसूरीणां पट्टे गुणनिधानैः श्रीगुणसुन्दरसूरिभिः॥ श्री ५९. कोटा विमलनाथ मंदिर ६०. कारंजा आदिनाथ मंदिर ६१. कारंजा आदिनाथ मंदिर ६२. उज्जैन अजितनाथ मंदिर ६३. उजैन धर्मनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ (६४) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५०१ वर्षे जे० सुदि १० उपकेश जा (ज्ञा) तीय सा० माला भार्या कसमीरदे पुत्र सांडा भार्या सिरादे निमित्तं श्री आ० कारापितं उपकेशगच्छे श्रीसिद्धाचार्यसन्ताने प्र० श्रीकक्कसूरिभिः प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः (६५) शान्तिनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः सं० १५०१ वर्षे फागुण सुदि १३ गुरौ सूराणा गोत्रे सा० भीमा भा० भरमादे पुत्र सा० सांगाकेन पिता भीमा भ्रातृ सोढा भूरा निमित्तं स्वश्रेयसे श्रीशान्तिनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्र० श्रीधर्मघोषगच्छे भ० श्रीपद्मशेखरसूरिपट्टे भ० श्रीविजयचन्द्रसूरिभिः ॥ (६६) आदिनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः ॥ सं० १५०२ वर्षे वैशाख सुदि १० श्रीउपकेशज्ञातौ सूराणागोत्रे सं० श्रीपाल भा० वीरू पुत्र सं० मूलाकेन भा० सं० रूपाई पुत्र सं० दशरथ । सीहा । दोदा फंमण नरसिंघ । सहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीआदिनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितः । श्रीधर्मघोषगच्छे श्रीपद्माणंदसूरिपट्टे श्रीनंदिवर्धनसूरिभिः श्री बेरोजपुरवास्तव्य ॥ (६७) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५०३ वर्षे । ज्येष्ठ सुदि ११ शुक्रे उ० ज्ञा० व्य० डूडा भा० भरमादे सु० पीऊ भा० पूनादे पु० सोमा सहितेन आत्मश्रे० श्री श्रीशीतलनाथ बिंबं का० प्र० ब्रह्माणीयगच्छे भ० श्रीउदयप्रभसूरिभिः ॥ (६८) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थीः ९ सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ शुक्रवारे सूराणा गोत्रे सं० देल्हा भा० चांपश्री पु० सं० जोध भा० जइतलदे आत्मपुण्यार्थ श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारापितं प्र० श्रीधर्मघोषगच्छे भ० श्रीविजयचंदसूरिभिः ॥ ६४. राजादेवल गाम ( बरार ) ६५. ६६. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ६७. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर ६८. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (६९) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०३ वर्षे दोसी धर्माकस्य पुण्यार्थं दो० वच्छा पुत्र संग्राम श्रावकेण कारितं श्री श्रेयांसबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतरगच्छे। (७०) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५०४ वै० शुदि ७ प्रा० सा० बाहड भा० मचू पुत्र सा० समरा पदमा भ्रातृ सा० जइताकेन भा० पोमी देमति पुत्र सधा केल्हादि कुटुम्बयुतेन स्वभ्रातृ सा० अजा धर्मा श्रेयसे श्री धर्मनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं तपा० श्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्य श्रीजयचन्द्रसूरिभिः॥ (७१) संभवनाथ-चतुर्विंशतिपट्टः संवत् १५०४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १ शनौ श्रीमालज्ञातीय श्रे० सिंघा भार्या मलू सुत श्रे० लखमा भार्या चांपू सुत देवा प्रमुखकुटुम्बसहितेन श्रे० नयनाकेन पितुः श्रेयसे श्री शं(सं)भवनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रति० ब्रह्माणगच्छे श्रीमुनिचन्द्रसूरिभिः॥ छ॥ (७२) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५०४ वर्षे फा० शु० ११ प्राग्वाट सा० लींबा भार्या साल्ही सुत जाटाकेन निज भ्रातृ वइराश्रेयोर्थं श्रीशान्तिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं तपापक्षे श्रीजयचन्द्रसूरिभिः। (७३) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५०५ वर्षे वै० शु० ३ शनी मंडपदुर्गवासि श्रीमालज्ञातीय मं० सांडा भा० माऊँ सुत मं० चाम्पाकेन भा० चांपलदे चांपू बृ० भ्रातृ मं० धर्मसील भ्रातृ काला मुकुंद भगिनी बह्न प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयो) श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छेश श्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्य श्रीजयचन्द्रसूरिपादैः॥ श्रीः ६९. जोधपुर संभवनाथ मंदिर ७०. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर ७१. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ७२. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर ७३. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ (७४) अरनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १५०५ वर्षे माघ वदि ७ गुरु ॥ श्रीमालवंशे पागणी गोत्रे सा० डूंगर सा । हेमराज भार्या गांगी श्रीअरनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः (७५) संभवनाथ पञ्चतीर्थी: सं० १५०६ वैशाख सुदि शुदि ८ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञा० श्रे० सोमा भा० चांपू सुत वाछाकेन भा० गोमति सुत देवादिकुटुम्बयुतेन श्रीसंभवनाथबिंबं का० प्र० तपा श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ (७६) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : सं० १५०६ व० का० सु० ९ हथडीया गोत्रे सा० रता भा० रतादे पु० गोसल भा० मनदे पु० छाजू भा० छाहिणिदे श्रीसुमतिनाथबिंबं का० श्रीअंचलगच्छे प्रति० श्रीजयशेखरसूरिभिः ॥ छ॥ (७७) अभिनन्दन - चतुर्विंशतिपट्टः ९. संवत् १५०६ वर्षे माघ वदि ७ श्री श्रीमालज्ञातीय सा० राजा भार्या धीरू सुत सा० नाथा भार्या लाखू श्रेयसे सुता हंसाई नाम्या श्रीअभिनन्दननाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्रीवृद्धतपापक्षे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः (७८) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५०६ वर्षे फागुण वदि ३ बुधे श्रीनागेन्द्रगच्छे उप० सा० मोल्हा सु० भोजा भा० देई पुत्र अमराकेन श्रीशान्तिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीनागेन्द्रगच्छे श्रीपद्माणंदसूरि पट्टे श्रीविनयप्रभसूरिभिः ॥ छ (७९) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५०७ चैत्र व० २ प्र० ज्ञा० वरसी भा० रामादे पु.........वयजलदे युतेन श्रीआदिनाथ का० प्र० तपा श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ७४. उज्जैन अजितनाथ मंदिर ७५. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर ७६. उज्जैन अजितनाथ मंदिर ७७. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर ७८. कोटा विमलनाथ मंदिर ७९ कोटा आदिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः (८०) अनन्तनाथ- पञ्चतीर्थी: ९. सं० १५०७ वर्षे वैशाख व० ६ गुरौ श्रीऊकेशज्ञातीय व्य० सा० जयसिंह भार्या गांगी सुत व्य० साजणेन भार्या फदू स ( सुं) त तेजा पोपट संघपति प्रमुखकुट (टुं ) ब युतेन मातृपितृ - श्रेयसे श्री अनन्तनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीकक्कसूरिभिः ॥ (८१) कुन्थुनाथ - पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५०९ वै० शु० १३ गुरौ श्री श्रीवंशे श्रे० नरसिंह भा० लटकू पुत्र श्रे० गिना सुश्रावकेण भार्या गोमति सहितेन वृद्धभ्रातृ देवदत्त श्रेयसे श्री अञ्चलगच्छेश श्रीजयशेखरसूरीणामुपदेशेन श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन (८२) पद्मप्रभ - चतुर्विंशतिपट्टः ९. सं० १५०९ वर्षे आषाढ सुदि ११ शुक्रे बालीसाणवास्तव्य श्री श्रीमालज्ञातीय मं० मांडण भार्या माणिकदे सुत सं० महिपतिना सुत चांपा धनादि कुटुम्बयुतेन सं० गांगा सु० सं० कूंरा भा० कपूरी तस्यै स्वभगिन्यै श्रेयसे श्रीपद्मप्रभस्वामिचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्र० श्रीवृद्धतपापक्षे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः (८३) सुमतिनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः ॥ ६० ॥ संवत् १५०९ वर्षे मागसिर सुदि ६ श्रीमालवंशे माथालगोत्रे सा० रणसीसंताने सा० नानिग भार्या संपूरी पुत्र सा० श्रीमेघराजेन भ्रातृ श्रीखीमराज युतेन भा० हंसाई श्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथप्रमुखचतुर्विंशतिजिनपट्टः कारितः । प्रतिष्ठितः श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टालंकार श्रीजिनभद्रसूरियुगप्रधानशिरोमणिभिः ॥ शुभं भवतु ॥ (८४) अभिनन्दन - चतुर्विंशतिपट्टः सं० १५०९ वर्षे माघ शु० ५ श्रीदेवगिरिवास्तव्य ऊकेशज्ञाति सा० नाल्हा सुत सा० मालू भार्या बोई पुत्र सा० नरसीहेन भार्या हरषाई स्वभ्रातृ ८०. औरंगाबाद महावीर मंदिर ८१. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ८२. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर ८३. ८४. उज्जैन धर्मनाथ मंदिर १५ औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः नांदू नागराजादि कुटुम्बयुतेन श्रीअभिनन्दनचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितस्तपा श्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्य-श्रीरत्नशेखरसूरिभिः॥ (८५) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः सं० १५०९ प्रा० ज्ञा० मेघा भा० लाछू सुत काला हेमाकेन श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारापितं माघ वदि ५ दिने प्रतिष्ठितं श्रीसोमचन्द्रसूरिभिः (८६) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ गुरौ श्रीउएसवंशे मं० कोहा भा० लखमादे पु० उदाकेन भा० लीलादे पु० सारंग सदा सहितेन श्रीअञ्चलगच्छनायक श्रीजयकेशरीसूरीणामुपदेशेन निजश्रेयो) श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन (८७) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ दिने ऊ सा० गिरराज भा० श्रा० हर्पू पुत्रेण सा० जयसिंघेन विजपाल-पुत्रसहितेन स्वमातृपितृपुण्यार्थं श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः शुभंभवतु (८८) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः सं० १५१० ज्ये० सु० ३ वीरमग्रामीय प्रा० मं० कडुआ भा० मटकू मं० भेला माणिक भ्रातृ बुहकरेण भा० नांऊ युतेन श्रीमुनिसुव्रतबिंब का० प्र० तपागच्छे श्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्य श्रीरत्नशेखरसूरिभिः (८९) महावीर-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१० वर्षे ज्येष्ठ सु० ३ गुरु पुष्य ओकेशज्ञातीय व्य० सांगा भा० सिंगारदे पुत्र सवणेन भा० संसारदे पुत्र रत्ना तोला चांपा कुटुम्बयुतेन श्रीमहावीरबिंबं स्वश्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठितं ॥ ८५. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर ८६. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ८७. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ८८. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर ८९. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (९०) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१० वर्षे मार्गशर सु० १० प्राग्वाटज्ञा० व्य० आंबा भा० रमादे सुत मेलाकेन भा० भली पुत्र तिला राणा गला पांचादि कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्र० तपाश्रीरत्नशेखरसूरिभिः साबोसणवास्तव्यः॥ (९१) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ९. संवत् १५१२ वर्षे वैशाख सुदि ३ गुरौ प्राग्वाटज्ञातीय सा० दला भार्या देल्हणदे तयोः सुत सा० गेला भार्या झमकू तयोः पुत्राः सा० मना भीमा जागा एतैः आत्मश्रेयोर्थं श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपापक्षे भ० श्रीजयशेखरसूरिपट्टे भट्टा० श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (९२) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः ॥ संव० १५१२ वर्षे आषाढ सुदि २ दि० श्रीऊकेशवंशे झाबकगोत्रे सा० जगमाल पु० सा० जेठा सा० चउंडाभ्यां पुण्यार्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरिपट्टे। श्रीजिनभद्रसूरिभिः __ (९३) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१२ वर्षे माघ वदि ८ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० मेघा भार्या मेघलदे सुत नरपाल भार्या अमकू युतेन पितृमातृभ्रातृ पेसा देवा पितृव्य भ्रातृ गोइया संग्राम धना लाडा एतेषां श्रेयसे श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीनागेन्द्रगच्छे॥ श्रीसूरिभिः॥ छ (९४) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१२ फागुण वदि ५ नगणावालजा० सा० रासा। धूधल पुत्रेण। सा० नरदेवेन नीतणदे पुत्रसहितेन श्रीशान्तिनाथप्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता। तपा भट्टारक श्रीपूर्णचन्द्रसूरिपट्टे श्रीहेमहंससूरिभिः॥ ९०. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर ९१. औरंगाबाद महावीर मंदिर ९२. धनज पार्श्वनाथ मंदिर ९३. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर ९४. कोटा चन्द्रप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभाग: (१५) महावीरः ॥ सं० १५१२ फागुण सुदि ५ श्रीमहावीरः (९६) सुमतिनाथ - पञ्चतीर्थी : संवत् १५१३ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ धंधूकावास्तव्य श्री श्रीमालज्ञातीय मं० आसा भा० माणिकि सुत नगराज नरपति सहित आगमगच्छे श्रीहेमरत्नसूरीणमुपदेशेन जीवितस्वामि- श्रीसुमतिनाथादि - पञ्चतीर्थी कारिता प्रतिष्ठिता चं ॥ श्री (९७) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी : संवत् १५१३ वर्षे वैशाखमासे उकेश० सं० लूणा भा० सोमलदे सुत सं० डाहाकेन भा० महिगलदे पुत्र गहिदा दादू देदा वील्हादि कुटुम्बयुतेन श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्र० तपाश्रीसोमसुन्दरसूरिपट्टे श्रीमुनिसुन्दरसूरिशिष्य श्रीरत्नशेखरसूरिभिः श्री ॥ श्रीः ॥ (१८) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी: सं० १५१३ वर्षे वैशाखमासे उएसज्ञा० हाथउंडीया गोत्रे सा० कालू भा० कामलदे पु० पोपाकेन भा० पाल्हणदे स० श्रीअञ्चलगच्छेश श्रीजयकेशरिसूरिवाचा पितृश्रेयसे श्रीसुविधिबिंबं का० प्र० श्रीसंघेन ॥ श्रीः ॥ (९९) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थीः सं० १५१२ वै० व० ५ गिरिपुरवासि प्राग्वाट सा० खेमाकेन भा० रूपिणि सुत सिरिपाल भादादि कुटुम्बयुतेन स्वभ्रातृ जइता श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपाश्रीसोमसुन्दरसूरि शिष्य श्रीरत्नशेखरसूरिभिः (१००) आदिनाथ: ॥ सं० १५१५ वैशाख सुदि ३ श्रीऋषभबिंबं शुभम् ९५. ९६. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर ९७. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर जयपुर नथमलजी का कटला गृहदेरासर ९८. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर ९९. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १००. जयपुर नथमलजी का कटला गृहदेरासर For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१०१) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५१५ वर्षे मागसिर वदि ११ श्रीसंडेरगच्छे उप० काठडगोत्रे सा० गोवल भा० कली पु० तिहुणा भगनी गुरी पुण्यार्थं श्री सुविध(धि)नाथबिंबं का० प्रतिष्ठित श्रीईसरसूरिभिः (१०२) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१६ वैशाख व० ८-तृ रातडुत सा० खेता भा० देऊ पु० कान्हा भा० मानू भा० पदमश्रि पितृश्रेयसे नमिनाथ बिं० का० प्र० संडेरगच्छे भ० श्रीईश्वरसूरिभिः॥ श्रीः॥ (१०३) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१६ वै० सु० ५ प्राग्वाटज्ञातीय व्य० मोखसी टमकू पु० जाणा हरखु पु० पुंजा रणसी पाहु पु० जिनदत्तयुतेन श्री संभवबिं० कारितं प्र० श्री तपा रत्नशेखरसूरिभिः। (१०४) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५१६ वर्षे आषाढ सुदि ९ शुक्रे उपकेशज्ञा० वरहडीया गोत्रे कुंरसी भा० कपूरदे पु० रेडा-टीलाभ्यां स्वपित्रो(:) श्रेयसे श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्र० श्रीबृहद्गच्छे श्रीमेरुप्रभसूरिभिः॥ ___ (१०५) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ९ सं० १५१६ वर्षे माघ शु० ५ ओसवालज्ञातीय सा० वाछा भा० मूजीरदे सुत नाथा धना भ्रा० वयरादिकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीकुन्थुनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं बृहत्तपापक्षे श्रीसोमसुन्दरसूरिसन्ताने श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः। श्रीईसरसूरि उपदेशात् सारंग भा० सुहागदे पु० (१०६) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः । ॥ संव० १५१६ वर्षे शाके १३८२ प्र० चैत्र वदि ४ गुरौ १०१. उज्जैन अजितनाथ मंदिर १०२. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर १०३. जोधपुर चाणोद गुरांसा गृहदेरासर १०४. कोटा विमलनाथ मंदिर १०५. उज्जैन अजितनाथ मंदिर १०६. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः उपकेशज्ञातीय महा० माईया भा० माल्हणदे सुत जीवणकेन पित्रोः श्रेयसे चन्द्रप्रभबिंबं प्रतिष्ठितं चैत्रगच्छे भ० श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः। ___(१०७) संभवनाथ-चतुर्विंशतिपट्टः ॥ संवत् १५१७ वर्षे माघ शुदि ४ शुक्रे असाउलिवास्तव्य श्रीमालज्ञातीय सा० धना भार्या धनादे पुत्र सा० महिराजा भार्या चंगाई पुत्र नरपाल हरपाल तेजपाल स्वश्रेसे श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रति० श्रीवृद्धतपापक्षे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः॥ श्रीः॥ (१०८) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः __ संवत् १५१७ वर्षे माघ सुदि १० मण्डपदुर्गे। प्राग्वाट साह कूपा भार्या सूलेसरि पुत्र साह वरसाकेन भार्या रूपी पुत्र साह लाखा भार्या लहमाई प्रमुखयुतेन स्वपितृ श्रेयसे श्रीशंभवनाथबिंबं का०प्र० तपा श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे गच्छनायकश्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः । (१०९) शान्तिनाथः ___ सं० १५१७ वर्षे माघ सुदि १० सोमे चीडा गोत्रे देवराज विरराज..........सिद्धहेमसूरिभिः॥ (११०) श्रीजिनभद्रसूरिमूर्तिः संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने उपकेशवंशे व्य० कुशलाकेन सपरिवारेण श्रेयोर्थं श्रीजिनभद्रसूरीश्वराणां मूर्तिः कारिता प्रतिष्ठिता खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (१११) संभवनाथ-चतुर्विंशतिपट्टः ॥ संवत् १५१८ वर्षे ऊकेशज्ञातीय सं० वछराज भार्या झमकू पुत्र सहसराज भार्या पार्वती पुत्र सं० विद्याधरेण जयतपाल मूलनाम्ना भा० गोई प्रमुखकुटुम्बयुतेन श्रीसंभवनाथचतुर्विंशतिपट्ट : कारितः प्रतिष्ठित: श्रीतपागच्छनायक श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः॥ १०७. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर छोटा (राजीबाई धर्मशाला) १०८. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर १०९. गोविन्दगढ़ पार्श्वनाथ मंदिर ११०. नाकोड़ा शांतिनाथ मंदिर १११. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (११२) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५१८ वर्षे नागरज्ञातीय श्रेष्ठि बोडा भार्या सुहागिणि तयोः सुत श्रे० आसाकेन भार्या मचकू श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं वृद्धतपापक्ष भ० श्रीरत्नसिंघसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (११३) मुनिसुव्रत-चतुर्विंशतिपट्टः सं० १५१९ वर्षे वैशाख वदि ११ भृगुरेवत्यां महोडाग्रामवासि प्राग्वाटज्ञातीय को० कीका भा० झनू सुत को० भीला भा० टूमी सुत कडूआकेन भा० भोली द्वितीय भा० कामलदे सुत लांपा वृद्धभ्रातृ लुंभा राजादि बहुकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिचतुर्विंशति(प)ट्टः का० प्र० तपा श्रीश्रीश्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः॥ पं० पुण्यनंदनगणि उपदेशेन ॥ ___ (११४) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५१९ वैशाख वदि ११ शुक्रे श्रीऊकेशवंशे नाहटवंशे सा० साजण भा० लाछू पुत्र सा० सदा सुश्रावकेण भा० पूरी। भ्रातृ सा० सीराज सा० माणिक प्रमुखपरिवारयुतेन स्वश्रेयसे श्रीकुन्थुनाथबिंबं कारितं श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीखरतरैः॥ (११५) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५१९ वर्षे ज्ये० शु० ६ प्रा० ज्ञातीय मं० नाथा भा० परचू सुत समधरेण भा० रंगाई युतेन स्वपितृश्रेयसे श्रीकुंथुनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छनायक श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः॥ स्तम्भतीर्थे । (११६) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५१९ वर्षे आषाढ वदि ९ प्राग्वाट सा० चउहत्थ भा० सारू पुत्र सा० समराकेन भा० गोमति पुत्र सा० नरसिंह धाविला माधव देवराज प्रमुखकुटुम्बयुतेन श्रीआदिनाथबिंब का० प्र० तपा श्रीसोमसुन्दरसूरिसन्ताने श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ११२. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर ११३. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर ११४. उज्जैन अजितनाथ मंदिर ११५. उज्जैन अजितनाथ मंदिर ११६. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ (११७) चन्द्रप्रभ- चतुर्विंशतिपट्टः सं० १५२१ वर्षे ज्ये० शु० ४ प्राग्वाटज्ञातीय सं० अर्जुन भा० झबकू सुत सं० वस्ता भा० रामी सुत सं० चांदा भा० जीविणि सुत लाछा आका प्रमुखकुटुम्बयुतेन ७२ चतुर्विंशतिपट्टान् कारयित्वा स्वश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभस्वामिचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः (११८) पार्श्वनाथ चतुर्विंशतिपट्टः ॥ सं० १५२१ वर्षे ज्ये० शु० ४ प्राग्वाटज्ञाति सं० अर्जुन भा० झबकू सुत सं० वस्ता भा० रामी सुत सं० चांदाकेन भा० जीविणि सुत सं० लींबा आकादि कुटुम्बयुतेन ७२ चतुर्विंशतिपट्टान् कारयित्वा स्वश्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ च० प० का० प्र० श्रीतपागच्छे। श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः (११९) वासुपूज्य - चतुर्विंशतिपट्टः ॥ सं० १५२२ वर्षे कार्तिक वदि ४ गुरौ श्री श्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठि मना भार्या पानू सुत मातर भार्या खिमी सुत माइया सहिते पितृमातृपुण्यार्थं आत्मश्रेयसे श्रीचतुर्विंशतिपट्टकारितः तत्र मूलनायक श्रीवासुपूज्यबिंबं का० श्रीपिप्पलगच्छे भट्टारक श्रीगुणदेवसूरिपट्टे श्रीचन्द्रप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं वलभीवास्तव्य श्री (१२० ) अभिनन्दन - पञ्चतीर्थी: ९ संवत् १५२२ वर्षे माघ सुदि २ गुरौ ओकेशज्ञातीय छोहरियागोत्रे सा० लूणा पुत्रेण सा० ठाकुर पु० कालू केल्हण भरहु युतेन भ्रातृ पारसपुण्यार्थं स्वश्रेयोर्थं श्रीअभिनन्दनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपाभट्टारक हेमहंससूरिपट्टे हेमसमुद्रसूरिभिः ॥ ( १२१ ) शान्तिनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः सं० १५२२ वर्षे माघ सु० १३ दिने मांडवदुर्गवासी प्राग्वाट सा० सांटा भा० रूपु पु० सं० गंगा भा० गंगादे सुत सं० हाजा भा० हांसी भ्रा० सं० ११७. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर ११८. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर ( राजीबाई धर्मशाला) ११९. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर १२०. धामनगाँव सुमतिनाथ मंदिर १२१. कोटा चन्द्रप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः हीरा भा० लखमाई नाम्ना निजश्रेयसे श्रीशान्तिनाथ-मूलनायकालंकृतः श्रीचतुर्विंशतिपट्टः का० प्रति० तपागच्छे श्रीसोमसुन्दरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ॥ (१२२ ) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५२३ वर्षे वैशाख सुदि ११ बुधे श्रीवीरवंशे श्रे० तेजा भा० वानूं पुत्र श्रे० मणोर सुश्रावकेण भार्या टबकू पु० श्रे० धवा वूना सहितेन निजश्रेयोर्थं श्रीअंचलगच्छेश श्रीजयकेशरिसूरीणामुपदेशेन वासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन सालवापुरे ॥ (१२३) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: संवत् १५२४ वर्षे चैत्र वदि ५ शनौ श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमालज्ञातीय। महं गोला । भा० हरषू पु० जावड भावड | जागा । एतैः पितृमातृ-श्रेयोर्थं श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं । श्रीवीरसूरिभिः ॥ अछीआणा वास्तव्यः (१२४) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थी: सं० १५२४ वैशाख वदि ५ बुधे । श्रीमालज्ञातीय । पितृ माईआ भा० काली सु० लींबा सहिसा एतैः श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारितं । श्रीपूर्णिमापक्षीय श्रीसाधुरत्नसूरिपट्टे श्रीसाधुसुन्दरसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना । श्रीसंघेन ।.... २३ .वास्तव्य (१२५) अजितनाथ: सं० १५२४ वर्षे वैशाख वदि ६ ऊकेशवंशे सा० श्रीवंतेन अजित: (१२६) नेमिनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५२४ वर्षे मार्ग व० ४ रवौ श्रीश्रीमालीज्ञा० देवगिरीय सा० सारंग भा० रूपाई सुत कालूकेन बंधु सिंघराज चांपसी भा० वल्हाई प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेसे श्रीनेमिनाथबिंबं का० प्र० तपागच्छनायक श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ॥ १२२. राजा देवलगाम ( बरार ) १२३. सिरपुर अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ मंदिर १२४. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १२५. जयपुर पञ्चायती मंदिर १२६. औरंगाबाद महावीर मंदिर For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१२७) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५२४ वर्षे मार्ग शुदि १० शुक्रे श्रीछाजहडगोत्रे। सं० केशव भा० करमी पुत्र सं० वस्तुपालेन मातृपुण्यार्थं श्रीचन्द्रप्रभबिंबं का० प्र० श्रीपल्लकीयगच्छे श्रीनन्नसूरिभिः श्रीभवतुः (१२८) सुमतिनाथः संवत् १५२४ वर्षे फा० व० १ दिने प्राग्वा० ज्ञा० साह देसल भा० माणिकदे सुत सा० महिराजेन भा० नाथी सुत तोला भ्रातृ मेहादिकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीसुमतिबिंब का० प्र० श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः॥ मालवदेशे सींदूरसी ग्रामे। (१२९) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॥ द०॥ श्रीसर्वज्ञाय नमः॥ राज्यं यत्र जगत्त्रयस्य सावरछत्रत्रयाच्चामर-श्रेणीसूचितमभ्यताग्रजगणाभ्याश्चिरं चक्रिरे (1) तेप्यानत्ययुजो जिना विदधयस्यैकं दोशं प्रदं, वंदे तं परमं पदं प्रतिपदं श्रीसम्पदामास्पदं ॥ १ श्रीशान्तिः स तनोतु शाश्वतसुखं यद्द्वादशाब्दिसमारब्धात् यद्गतसार्वभौमपदवीं राज्याभिषेकोत्सवे। वीक्ष्य श्रीमुख..........रं गजपुरं भोगावतीव्रीडया स्वगंगादमरावती च गगने प्रोड्डीय किं लाघवान् ॥ २ स्वस्ति श्रीपदसुंदरं प्रतिपदप्रासादविद्याकर प्रौढा राजपुरप्रकाममुदितग्रामाभिरामच्छविः। पुंरत्नस्यु.........कगदिविभवैर्वज्राकरख्यातिमानिक्षुक्षेत्रपवित्रभूर्विजयते नीवृद्धरो वागडः॥ ३ तत्र श्रीनगरं सरंगमनिशं ज्ञेयाच्च चैत्यावली दुर्गाकारगिरिश्रिया गिरिपुरेत्याख्यां दधद्दीव्यकं । ज्ञेयत्पुरतोलकापालकवल्लंकाकलंकाश्रितादुर्गोनर्गतगर्वमुद्गतगुणा भोगावभोगावता ॥ ४ राज्यं तत्र चिरं चकार चतुरश्चन्द्रानना चातुरीं चञ्चुच्चित्तचकोरपारणगणश्रीरूपचद्राह्वयः दन्ति खिसुं धराधववधवैधव्यदीक्षागुरु-र्देवः श्रीगजपालनामनृपतिः सर्वार्थिनां पालयन्॥ ५ गर्जद्गर्जपटोत्कटोर्मिविकटं श्रीगुर्जराधीश्वरात् सर्पत्सैन्यमपारमर्णवमिव व्यालोकतः सर्वतः। संजग्राह समग्रसारकमलां वीराधिवीरः स तद् गोपीताघतया प्रसिद्धिमभजद् व्रीव्येगडा स्वं मनः॥ ६ गजपालक्षमापालपट १२७. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर १२८. कोटा माणिकसागर मंदिर १२९. आंतरी शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः लक्ष्मीविलासभूः (1) लोकं मृण-गुणस्तोमे सोमे सोममहीपतिः॥ ७ यप्रातिकूल्ये खलु दुःखमग्नं यदानुकूल्ये-दे समग्रं (1) ते मौक्तिकं भाति यदेष सोमः सर्वत्र तत्सोमबलं विलोक्यम्॥ ८ देदीप्यमानमुकुटावकुठारवीरकोटीरवृन्दमही---सोमनाथः। यापि प्रजामसुरराजगजान्तकारी गौरीवरः सकलराजकलासनाथः॥ ९ राजः श्रीगजपालराज्यकमलावल्लीवसन्तोत्सवः प्रे...........दीक्षिमुख्यसुवचः श्रीभूभचस्यांगजः। पातुः कुक्षिसमुद्रवत् समभवच्छ्रीसाल्हराजः सभा शोभाकार्युपकेशवंशतिलकः संकल्पकल्पद्रुमः॥ १० अन्यायपत्रवल्लीभैलीमुख्यस्वमिल्लभृतपत्नीः। जित्वायोनिः शल्पीचकाराव वागडदेशः॥ ११ जीरकेयेंबरघणपुना ईहे पुरो पातयः। सार्थितवानूर्जस्वलदोर्दंडकसुण्डकविशेषान् ॥ १२ लोको लुण्टनलालसातरिपुरग्रामादिकोडासनाश्विः संखदाश्वनिरंकुशान्तयमनः शल्यान्यलं नाहलान्। खड्गाखड्गिविधेय युद्धमवपी द्रूयः सांग्रणीर्जग्राहीत निकारीधानविषमग्राम गरियाघमः॥ १३ कारित वा भुजिव काशी काशीसदृशीकृते... मंत्रीशः। श्रीशान्ति..........दं प्रकटं पुण्यं प्रसादमिव ॥ १४ कलापकं ॥ अन्तर्या मेदपुर्या च स एवोत्तमसत्तमः। कारया..........लक्ष्मीकान्तनिहितनं ॥ १५ शरनन्दाब्धिशुभंकर १४९५ मित वर्षे सावुसने राजसा। सत्रागारममायत जगतीजनजजीवातुः॥ १६ श्रीशान्तिनाथमुख्याय प्रतिमा-त पित्तलप्रतिमाः बहीखोभरदासोप चेली पुण्यपाथोधिः॥ १७ श्रीसामराज सासे बंधव एते वदान्य मूर्धन्याः वीवा भोगी वोवी वरनरनामनदुमावराः॥ १८ जाया कर्मदेवी निर्माप्य साबाह्यामयदपूर्वीय प्रौढपञ्चपञ्चाशदंगुलानुसित्तपित्तलप्रतिमां ॥ १९ सामसुतौ.........देवी कुक्षिसमुद्भवौ। माला साहा नधा भानः सूर्याचन्द्रमसाविव ॥ २० मालापत्नी मुक्तादेवी देवी दिव्यरूपवती। पुत्रो सांगा चाम्पाभिधो सदाशुद्धबुद्धिनिधिः॥ २१ श्रीसोमभूमीपतिसर्वराज्यन्यापारमुद्रासुभगं भविष्णुः। राजांगभवः प्रधानवर्गाग्रणीर्जाग्रति साल्ह साधुः॥ २२ स्मेराक्षीज....पेयविलसत्सौभाग्यभंगीभरः कलिकाललालि.......... लप्रध्वंसनप्रत्यलः। श्रीदेवीरमणः प्रणेमु जनताभीष्टार्थग स्वर्मणिः........ पुरुषोत्तमो विजयते सच्चक्रजाग्रद्यशः॥ २३ छिन्नांगं स्रवदश्रुधार.......... विलोक्याकुलं कोपी..........भनुकोसी दौम्ब्यसुभटः कस्मादवस्थेदृशी। श्रीसाल्हाभिध साधुना स्वविषया नि:क्रुध्य निष्कासितो यामृतदीय वैरिसदनेप्येषा मुदे धन्यवाग् ॥ २४ दीनोद्धारपरोपकारभगवत्प्रासादयात्रामहत् सत्रागारगरिष्ठबिम्बसुबहु श्रीसंघभक्त्यादिभिः। संवादं सचिवाधिराज For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः विमल-श्रीवस्तुपालादिक-प्राचा प्रौढनृणां करोति......सुसाल्हसाधुः सुधिः॥ २५ यश्चण्डकुडवाटके वार्यादिबलिष्ठशबरकटकभरान्। जित्वा स्ववनौ........ द्धारकरो त्रिकंटकंकटरिदेशं ॥ २६ अंबड बाहड जाहड जगमु जगसिंह पेथड मुखान् यः। स्मारयति पूर्वपुरुषान् देवगुर्वैकभक्ताद्यैः ॥ २७ शशिनयनशरसुधा १५२१ प्रत्यहं विवेकाद्यः। द्विसहस्रामितमनुजानभाकुयदानगुणभोजः॥ २८ स श्रीमान् प्रतिवत्सरात्र चतुरः श्रीसंघवात्सल्यकृत् लक्षग्रन्थविशेषलेखनपरः संप्रा.........। श्रीसाल्हाभिध साधुरेष सचिवो हंसश्चतुरबुद्धिमान् चैत्योद्धारप्रकारयन् गिरिपुरे श्रीपार्श्वनाथः प्रभोः॥ २९ महाप्राणेशा साल्हराजस्य श्रीदेवी दीप्यतेतरां। शीलात् सीतारतिसूरात् लक्ष्मीः साक्षाद्यः सद्मनि ॥ ३० इन्द्रे कुटुम्ब तव किमिति जगो स्वर्लता नाथनावः स्वर्गो मे बान्धवाश्च त्रिदशतरुगणो दक्षिणावर्तशंखः। ज्योतिर्मे जैनवर्णाधिगतनममनिर्मर्त्यलोकं पुनीति हुं श्रीदेवी सदैषा सुखमयति गृहं वल्लभा साल्हसाधोः॥ ३१ रथनाष्ठकेन याचकजनदानशासनात्र निकृत्। देवगुरुचरणभक्ता श्रीदेवी जयति यु......* ॥ ३२ कोडिगदेवी नाम्नी कान्ताद्वितीयकान्तस्य। अनुपमदेवी देवीसमा तृतीया च तत्यत्र ॥ ३३ साल्हसाधुपुत्रौ श्रीदेवीकुक्षिकमलहंसौ। सिंहासीहाह्वानौ सस्नेहौ रामलक्ष्मणसमः॥ ३४ हर्यक्षयुग्मं न भवेद-यामे कडुऊपि मृषेयमुक्तिः। परस्परप्रीतिधरौ सुपुत्रौ सिंहावुचो साल्हगृहे-तः॥ ३५ श्रीसाल्हस्य विनीतस्तृतीयपुत्रोऽस्ति नाम नरदेवः। पुत्री रूपाइरिति कोडिमदेवी तयोर्माता ॥ ३६ सिंघा पत्नी नरषार्द्वितीयकाः नामतश्चरं। मोहणसिंघपुत्री सुहवदेवी पुत्रीव हर्षाईः॥ ३७ इत्याद्यात्मकुटुम्बव सखः स्वज्ञाति..........षः सदा साह्लादः सदपारसारविभवः श्रीसाल्ह उल्लासकृत्। भास्वद्भद्रविदारदेवकुलिकामन्मंडणाद्यं सृजन् थासादन्तरिकापुरी प्रणविनी श्रीसाम्भसंस्थापिते ॥ ३८ हस्तिस्कन्धनिषण्णचारुचरितः श्रीमारुदेवीमहान्मार्त्तस्फूर्तिमतीमतीवगणभृद् श्रीपुण्डरीकद्वयं श्रीयक्षेशकपर्दिनं तरुवरं राजादनी स्थापयन् श्रीशजुंजयतीर्थमेष सचिवो यस्मिन्न वाती मरुन्॥ ३९ कल्याणत्रितयावतारसुभगः श्रीनेमिराजीमती मूर्ति श्रीरथनेमिसिद्धगणयः श्रीअम्बिकादेवताः। प्रद्युम्नेन स..........मखिलं कुण्डादिकं कारयन् श्रीमदैवततीर्थमेष सचिवौ यस्मिन्न वाती मरुत् ॥ ४० जीरापल्ल्यावतारप्रासादपार्श्वनाथप्रतिमां। दादाख्यमूर्तिमपवी निरमापयत् स्मृतयः॥ ४१ चतुर्भिः कलापकं ॥ इत्याद्यगण्यपुण्यान्यनुदिनमद्भूतनमान्ययं प्रथयन् । राजसभाशृंगारः श्रीमान् साल्हश्चिरं जयतात्॥ ४१॥ लोकानंतक्तमुयः समीर For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः २७ लहरी..........क्तावान् मागंष्वांगुलिसंज्ञया सुरपुरीरक्तं न तु ज्ञापयन्। शुभ्राभ्रंकषशेखराभशिखरः कैलाशशैलाकृतिः श्रीशान्तिशविठारपषवसुधा हारश्चिरं नन्दनात् ॥ ४२ पाण्डुक्ष्मापसुताक्षिमलाधशरश्वेतांशुसंख्या १५२५ मिते..........विक्रमवत्सरे जनमनो विस्मापकैरुत्सवैः। प्रासादः किल साल्हसाधुपतिनाध्यास्त प्रशंसे दिने श्रीमत्सोमजयाह्वसूरिमुकुटैः सिद्धिं प्रतिष्ठापितः॥ ४३ श्रीमत्तपागणमहार्णवपूर्णसोमः श्रीसोमसुन्दरगुरुरभवद्गणीन्द्रः। पट्टे च तस्य मुनिसुन्दरसूरिरासीद् विज्ञावधिश्च गणभृज्जयचन्द्रसूरिः॥ ४४ तत्पट्टे प्रकटारयांचलशिरः शृङ्गारसूर्यप्रभः सूरिः श्रीप्रभुरत्नशेखरगुरुर्जज्ञे गुणज्ञावधिः। अत्यन्ताद्भुतमागधपवसपट्ट..........लक्ष्मीपतिर्लक्ष्मीसागरगच्छनायकगुरुः संप्रत्ययं गर्जति ॥ ४५ विज्ञानन्दन भाग्यनंदन सुरक्ष्मात् सुधानंदनः श्रीमान् सोमजयाख्यसूरिविजय श्रीशंकरः सूरिराट् । सूरिः श्रीजिनसोमनामसुगुरु..........केन्द्रादयो विश्वस्य प्रतिबोधनं विदधते यस्याः शिखा सूर्यवत् ॥ ४६ श्रीमल्लक्ष्मीसागरसूरयस्तस्योपदेशतः प्रौढः। संपन्नः श्रीप्रासादोयं.........विजयतात् ॥ ४७ श्रीसोमसुन्दरगणेश्वरशिष्यमुख्य श्रीहेमहंसगणिवाचकपुंगवानां। शिष्याणुरत्नमतिलब्धसमुद्रपानां किंचित् प्रशस्तिमकरोत्स्वगुरुप्रसादात् ॥ ४८ श्रीजिनहर्षबुधाधिपशिष्यवरः साधुविजय- गणिरेषा। श्रीसाल्हसुकृतराशिप्रशस्तिमस्ति लिखयति ॥ ४९ इति श्रीचक्रेश्वरी- गोत्रे ऊकेशवंशे सा० राणसुत सा० खीमसिंह सुत सा० साल्हाकारिते श्रीआंतरीग्राममंडन श्रीशान्तिप्रासादे तत्पुत्र सा० नाला सीहा कारितेन.......... त्रयमंडपदेवकुलिका मण्डपतोरणपित्तलमयमूलनायकसमलंकृते प्रशस्तिरियं श्रीसोमदासविजयराज्ये सं० १५२५ वर्षे वै० व० १० तिथौ श्रीगुरुवारे लिलिखेत ॥ भट्टारकश्रीसोमजयसूरिपुरंदरशिष्य श्रीअमरनन्दिगणिना॥ कारितेन सुत प्रासादकर्तृसूत्रधारशिरोमणि बाघाकेन॥ श्रीरस्तु श्रीसंघस्य ॥ श्रीः॥ स्वस्तिप्रजाभ्यः॥ छः॥ श्री (१३०) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ____सं० १५२५ वर्षे मार्गशिर सुदि २ शुक्रे ऊकेश पाल्हाउतगोत्रे सा० साह भा० सुहागसिरि पुत्र सा० नगराज भा० पदमसी सा..........भार्या कुसुमदे.........वाल सहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीमुनिसुव्रतनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमलधारगच्छे श्रीगुणसुन्दरसूरिभिः १३०. वृजनगर महावीर मंदिर For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१३१) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५२८ वर्षे वैशाख वदि ओसवालज्ञातीय कालापरमारगोत्रीय वीरमपुरवास्तव्य सा० रामा भा० रमादे सुत साह सूराकेन भा० सूरमदे सहितेन श्रीकुन्थुनाथबिंबं का० प्र० श्रीकोरंटगच्छे श्रीनन्नाचार्यसन्ताने भट्टा० श्रीकक्कसूरिपट्टे श्रीसावदेवसूरिभिः॥ (१३२) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५२८ वर्षे वैशाख वदि ६ दिने सोमे ऊकेशवंश कुर्कुटशाखायां व्य० तोला भार्या खेतलदे पुत्र सहसमल्लेन तोल्हादि-पुत्रपौत्रादियुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (१३३) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५२८ वर्षे वैशाख व० ६ सोमे। श्रीउपकेशज्ञातौ । वलहिगोत्रे। रांका शा० सा० सहजा भा० सहजलदे पु० नाल्हा भा० अमरी पु० सा० चाहड भा० बहरा आ० श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० प्र० श्री उ० श्रीकुकदाचा० श्रीदेवगुप्तसूरिभिः (१३४) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १५२८ वर्षे ज्येष्ठ वदि १ प्रा० मं० तेजा भा० टमकू सुत मं० कर्मण भा० रामति पुत्र ऊदा गंगदासाभ्यां पितृश्रेयसे श्रीश्रीश्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः वीरमग्रामे ॥ श्री॥ (१३५) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः ९. सं० १५२८ माह वदि ५ बुधे श्रीकोरंटगच्छे श्रीनन्नाचार्यसन्ताने श्रीओसवंशे चड्डाउलागोत्रे सा० धेऊ भार्या गावित्रि पुत्र चांपा धन्ना सा० चांपा भा० सहजू पु० पूंजादि एतैः श्रीचन्द्रप्रभबिंबं श्रेयसे का० श्रीकक्कसूरिपट्टे श्रीसावदेवसूरिभिः १३१. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर १३२. जोधपुर केशरियानाथ मंदिर १३३. उज्जैन अजितनाथ मंदिर १३४. औरंगाबाद महावीर मंदिर १३५. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः (१३६) सुविधिनाथ- पञ्चतीर्थी: ९. सं० १५२९ वर्षे वैशाख वदि ४ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञा० ० चांपा भा० चाहणदे सु० भावडकेन भ्रा० सुहिसा सांगा सहिजा सह पितृमातृ श्रेयोर्थं आत्मश्रेयसे श्रीसुविधिनाथबिंबं कारापि० प्र० श्रीनागेन्द्रगच्छे श्रीगुणसमुद्रसूरिपट्टे श्रीगुणदेवसूरिभिः सणपुरवास्तव्य (१३७) अजितनाथ - पञ्चतीर्थी: सं० १५२९ वर्षे द्वितीय ज्येष्ठ.....७ शनौ उ० ज्ञातीय श्रे० पाला भा० हची सुत कुंवर...राजा माधवादिकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयोर्थं श्री अजितनाथबिंबं का० प्र० श्रीतपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः शुभं (१३८ ) संभवनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः संवत् १५२९ वर्षे फा० सु० ३ दिने प्राग्वाटज्ञातीय सा० तिहुणा भा० वाछू पु० सा० वाल्हा भा० नागू जासू पुत्र सा० डूंगर भा० लाछी द्वि० देवसी भा० देल्हणदे त्रि० कोका प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीसंभवनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्रीतपाग० श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ॥ मालवदेशे सीदसी ग्रामे ॥ २९ (१३९) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५२९ व० फागु० सुदि ६ बुधे प्राग्वाट आससीह ० केल्हाकेन पितुः श्रेयसे आदिनाथबिंबं कारितं श्रीगुणप्रभसूरीणामुपदेशेन ( १४० ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५३० वर्षे माघ व० २ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञा० दो० देवा भा० कस्मीरदे पु० तेजा भार्या अधिकू पु० पहिराज नरबद सहस किरण लहूआ सहितेन पु० नारद श्रेयसे श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्र० पूर्णिमापक्षे चतुर्थशाखायां श्रीधर्मशेखरसूरिपट्टे श्रीविशालराजसूरीणामुपदेशेन विधिना । श्रीलाडलिवास्तव्य ॥ १३६. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १३७. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर १३८. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर १३९. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर १४०. धामनगाँव सुमतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१४१) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३० वर्षे फागुण सुदि ७ भूमदिने उसवालन्याति गोठीवंसे सा० जयता भार्या वीरणि पु० सा० सूपा भार्या नयणू पु० सा० सरवण भ्रा० सा० सधारण समस्त-पुण्यार्थं श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीसंडेरगच्छे श्रीसालिभद्रसूरिभिः (१४२) अभिनन्दन-चतुर्विंशतिपट्टः । ॥ सं० १५३१ वर्षे वैशाख वदि ११ सोमे श्रीश्रीमालज्ञा० सा० गोआ भा० भाऊ स० सा० साजण भा० मंदोअरि स० सा० लटकण भा० सारू सु० सा० श्रीराज-सोम-पासा-सहसाख्यैः स्वपितृमातृ श्रेयसे श्रीअभिनन्दनचतुर्विंशतिपट्टः पूर्णिमापक्षभूषण श्रीपुण्यरत्नसूरीणामुप० कारितः प्रति० विधिना ॥ श्रीअहम्मदावादपुरे (१४३) सुपार्श्वनाथ-चतुर्विंशतिपट्टः सं० १५३१ वै० शु० ३ स्तम्भतीर्थासन्न सुरवाणपुरवासि श्रीश्रीमाली सा० भोजा भा० सांतू शेयो) णरणायद-विणायगाभ्यां श्रीश्रीश्रीसुपार्श्व २४ पट्टः का० प्र० श्रीतपागच्छे श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः॥ (१४४) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५३१ वर्षे माग २ सा० राजा भा० वील्हु सु० कर्मण भा० केली प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीनमिनाथबिंबं का० प्र० तपा श्रीरत्नशेखरसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः महेन्द्रपुरनगरे॥ श्री॥ (१४५) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३२ वर्षे वैशाख सुदि १३ सोमे उ० ज्ञातीय दातागोत्रे बुहरा व्यव० सा० श्रावण भा० संसारदे पु० सा० नाथ भा० नारंगदे पु० अमर कर्मसी सहितेन आत्मश्रेयसे श्रीश्रेयांसनाथबिंबं का० प्रति० श्रीचैत्रगच्छे भ० श्रीसोमकीर्तिसूरिपट्टे आ० श्रीवीरचन्द्रसूरिभिः॥ १४१. लोणार मुनिसुव्रत मंदिर १४२. उज्जैन अजितनाथ मंदिर १४३. औरंगाबाद महावीर मंदिर १४४. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर (राजीबाई धर्मशाला) १४५. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१. प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१४६) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १५३२ वर्षे प्रा० ज्ञा० जेठा सु० सं० पद्माई भ्रा० सा० कान्हाकेन भा० चगाई युतेन स्व श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० श्रीसोमसूरिपट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः (१४७) चतुष्देवीप्रतिमा । श्री स्वस्ति श्री संवत् १५३३ वर्षे वैशाख वदि ८ भोमे अथ श्रीस्तम्भतीर्थे श्रीश्रीगौडज्ञातीय जाकड जा० नामण पति..........देव्या कारापिता स..........शुभंभवतु (१४८) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० सोमे ओस० ज्ञा० मं० वीसल भा० गोई सु..........लापा भा० अभू सु० नाथू डीडा भा० माल्ही सु० मेघा मेरा मेहा युतेन दोपकर (?) निमित्तं श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्र० महूकरगच्छे प्रतिष्ठितं धनप्रभसूरिभिः जीराउलि वा० (१४९) संभवनाथ पञ्चतीर्थीः सं० १५३४ वर्षे मार्गशिरमासे कृष्णपक्षे नवम्यां तिथौ रविदिने गूजरज्ञातीय श्री श्रीमालवंशे सामूगोत्रे सा० महणा भा० राणी पु० हरिचंद पु० वस्ता स्वहिते श्रीसंभवनाथबिंबं स्वश्रेयसे कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसागरसूरिभिः (१५०) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३४ पोर वदि ९ शन (नि) श्रीश्रीमाल० श्रे० मुधा भा० टीबू सुत श्रे० नगाकेन भा० लखमाई स्वभ्रातृ श्रे० ऊदा पुत्र व (वि)द्याधर जीवादिकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारि० प्र० तपागच्छे श्रीउदयसागरसूरिभिः॥ अहम्मदावाद सारंगपुरे ॥ १४६. कोटा माणिकसागर मंदिर १४७. सवाई माधोपुर विमलनाथ मंदिर १४८. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर १४९. मंडोर पार्श्वनाथ मंदिर १५०. औरंगाबाद महावीर मंदिर For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ __ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१५१) धर्मनाथ पञ्चतीर्थीः संवत् १५३४ वर्षे आषाढ सु० ११ गुरौ उकेसवंशे छाजुहडगोत्रे सा० उगम पुत्र सा० खरहथेन भा० जीवीणी पु० माला वाला पासड सहितेन धर्मनाथबिंब निजश्रेयोर्थं श्रीखतरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । ___(१५२) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १५३४ वर्षे फागुण सुदि ३ गुरु नागरज्ञा० श्रे० शिवा भा० राणी पु० आणंदेन भा० मेघू सहितेन आत्मश्रेयोर्थं श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० वृद्धतपापक्षे भट्टारक श्रीजिनरत्नसूरिभिः। माणसावास्तव्य ॥ ____(१५३) शान्तिनाथ-चतुर्विंशतिपट्टः ॥ संवत् १५३५ वर्षे आषाढ सुदि ६ शुक्रे वडनगरवास्तव्य उकेशज्ञातीय सा० साजण भार्या तारू पुत्र सा० लाखाकेन भार्या लीलादे प्रमुखकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे॥ श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छनायक श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः॥ पं० पुण्यनन्दनगणिनामुपदेशेन। (१५४) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३५ वर्षे पौष वदि ६ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० सोमा भा० मरगदि सु० हांसाकेन भ्रातृ काला देवदास प्रमुखकुटुम्बयुतेन श्रीअजितनाथबिंबं का० श्रीवृद्धतपापक्षे श्रीरत्नशं(सिं)हसूरि श्रीज्ञानसागरतत्पट्टे श्रीउदयसागरसूरिप्रतिष्ठितं (१५५) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३५ वर्षे मा० शु० ५ गु० डीसा० ज्ञाती० श्रे० झूठा भा० झमकू सुत श्रे० भोजाकेन भ्रा० वडूजा स्वभार्या मचकू सु० नाथा कुटुम्बश्रेयोर्थं श्रीनमिनाथः बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः॥ १५१. नागोर बड़ा मंदिर १५२. उज्जैन अजितनाथ मंदिर १५३. अजमेर दादाबाड़ी गौडी पार्श्वनाथ मंदिर १५४. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १५५. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१५६) श्रेयांसनाथ-पञ्चतीर्थीः ___ सं० १५३६ वर्षे वै० शु० १० बुधे पाडावास्तव्य हुंबडज्ञातीय फडीआ धर्मा भार्या धर्मादे सु० फ० नाथाकेन भार्या कली युतेन श्रीश्रेयांसबिंबं का० पितुश्रेयसे प्र० श्रीवृद्धतपापक्षे भट्टा० श्रीउदयसागरसूरिभिः॥ (१५७) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३६ वर्षे माघ ४ बुध उ० मटलागो० सा० भूमा भा० भामिणि पु० राजा भा० रोहिणी पुत्र सा० वस्ता तोली मातृपुत्रस्व श्रेयसे श्रीकुन्थुनाथबिंबं कासडागच्छे भ० श्रीसिद्धसूरिपट्टे श्रीअम(र)चन्द्रसूरि प्रतिष्ठितं॥ (१५८) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ० ॥ सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्रीऊकेशवंशे भंडारीगोत्रे सा० घडसी भार्या मउणदे तत्पुत्र सा० शिखा श्रावकेण भा० सहजलदे पु० शिव राजा काजा पुंजादि परिवारयुतेन स्वश्रेयसे श्रीकुन्थुाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ श्रीः॥ (१५९) धर्मनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ० ॥ संवत् १५३६ वर्षे फा० सु० ३ रवौ ऊकेशवंशे दोसीगोत्रे सा० सीरग भार्या लाखणदे पुत्र सा० भूराकेन भाया दाडिमदे पुत्र चीता तेजादि परिवारयुतेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं श्रेयसे प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपदे श्रीजिनचन्द्रसूरि श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः श्रीपद्मप्रभबिंबं॥ (१६०) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३६ फा० सु० ३ दिने ऊकेशवंशे पडिहारगोत्रे सा० बलसी भा० बालहदे पुत्र पासडेन भार्या सरखू पुत्र रतना नाथादि परिवारयुतेन श्रीआदिनाथबिंबं का० प्र० खर० श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ १५६. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १५७. कोटा आदिनाथ मंदिर १५८. जोधपुर गुरांसा जुहारमलजी के उपाश्रय में १५९. जोधपुर मुनिसुव्रत मंदिर १६०. राजनांदगाँव पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१६१) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५३६ वर्षे फा० शु० ८ प्राग्वाट दो० राजा भा० सूडी पुत्र्या श्रे० वेला भार्यया श्रा० मांजूनाम्न्या स्वश्रेयसे श्रीसुमतिनाथबिंबं का० प्र० श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः श्रीतपागच्छे श्रीः। (१६२) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५३७ वर्षे वैशाख सुदि १० सोमे श्रीश्रीमालज्ञातीय वृद्धशाखीय सोनी सालिग भार्या सुहडादे सुत सोनी भोजा भ्रातृ सोनी वयरसिंह सुत सोनी वयजा भार्या नाकू सुत सोनी काला श्रेयसे श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः॥ शुभंभवतु ॥ (१६३) अजितनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १५३७ वर्षे वैशा० सुदि..........ऊकेशज्ञातीय माल्हूगोत्रे सा० हापू भा० हीरादे सुत सा० हीराकेन भा० साल्ही मचकू भ्रातृव्य सा० नगराज पुत्र नर्बदादि कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीअजितनाथबिंबं का० प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः॥ (१६४) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५३७ वर्षे फा० सु० ३ दिने ओसवालज्ञातीय सा० वरजा भा० गदू पु० सा० मोकल सा० सालिगेन भा० हेमी प्रमुख कुटुम्बयुतेन श्रीकुंथुनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः॥ सीवलीआनगरे॥ (१६५) शीतलनाथ-चतुर्विंशतिपट्टः ॥ सं० १५३९ वर्षे फागु० सुदि १३ बुधे श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्य श्रीश्रीमालज्ञातीय सो० हरसी सुत सो० वछराज सुत सो० वरसिंग सुत सो० सालिग भा० सुहडादे सुत सो० श्रीवयजाकेन भा० भाकू हीराई युतेन स्व श्रेयसे पञ्चम्युद्यापने श्रीशीतलनाथचतुर्विंशतिपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्रीसूरिभिः। श्रीः १६१. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर १६२. कोटा चन्द्रप्रभ मंदिर १६३. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर १६४. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १६५. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१६६) अभिनन्दन-पञ्चतीर्थीः ९. संवत् १५३९ वर्षे फागुण सुदि १३ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय से० पांचा भा० मटकू सुत से० नागा भा० नीनादे पु० भोजा सहितेन आत्मश्रेयो) श्रीअभिनंदनबिं० का० प्र० वृद्धतपापक्षे श्रीउदयसागरसूरिभिः॥ (१६७) पार्श्वनाथ: (१) ॥ द० ॥ स्वस्ति ॥ १५४१ वर्षे वैशाख शुक्ल ५ तिथौ गुरुवासरे श्रीमालज्ञातीय घुगयलगोत्रे। उडक पहालिया संघ० पोला (२) संताने सा० हरगण पुत्र १ हेमदे। पुत्र सं० राणा भार्या । धरणा भार्या खेडी पुत्र पदमसी। सं० सहणा (३) भा० भानु। द्वितीय भार्या लडो पुत्र संग्रामसी आत्मपुण्यार्थं । श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं। (४) प्रतिष्ठितं श्रीधर्मघोषगच्छे भट्टारक श्री.......साधुरत्नसूरिभिः॥ कल्याणं भूयात् ॥ __ (१६८) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५४२ वर्षे वैशाख सु० १३ रवौ। गूजरज्ञातीय। माधलपुरागोत्रे। सा। भाषर। सु। भादा भा० नारिंगदे। सु। जीवा। जीणा। विद्याधर। एतैः॥ निजपितुः श्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंबं कारापितं । नागुरीतपागच्छे श्रीहेमरत्नसूरिभिः प्र० ___(१६९) शीतलनाथ-चतुर्विंशतिपट्टः ॥ संवत् १५४३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ शनौ प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० गोगंन भार्या लीबी। सु० श्रे० पहिराज भार्या डाही भ्रातृ श्रे० पाता भार्या हीरू भ्रातृ श्रे० खेता भार्या मानी प्रमुखकुटुम्बयुतेन। श्रीशत्रुञ्जयादितीर्थमयं श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं। आँचलगच्छे श्रीसिद्धान्तसागरसूरिभिः प्र० श्रीमहीशसनुवास्तव्य स्वश्रेयसे। (इस मूर्ति में रायणबृक्ष, ऋषभदेव पादुका, अंबिका, पञ्च पाण्डव मूर्तियाँ भी अंकित हैं।) १६६. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर १६७. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर १६८. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर १६९. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ (१७०) मुनिसुव्रत- पञ्चतीर्थी : ९. सं० १५४४ वर्षे वैशा० सु० २ रवौ हुम्बडज्ञा० ० श्रीमाल भा० ऊषू पु० श्रेष्ठि कडुआकेन भा० २ मानूं पु० मांकड द्वि० भा० रंगी पु० नरसिंग मांकड भा० अमी प्रभृतिसुकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतबिंबं का० प्र० ऊएसगच्छे श्रीसिद्धाचार्यसं० पूज्य भ० श्रीधर्मसुन्दरसिद्धसूरि त० श्रीकक्कसूरिभिः ॥ मुडहटीग्रामे प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः (१७१) मुनिसुव्रत - पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५४५ वर्षे आषाढ सुदि १२ बुधे उपकेश० सा० केल्हा पुत्र सोना भार्या सारू । पुत्र सा० कान्हा भार्या रूडी पु० होडा रणधीर भ्रातृ हीरा भार्या वानू पुत्र रामा नेता सहितेन श्रीमुनिसुव्रतस्वामिबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ शुभं ॥ १ (१७२) सुमतिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५४६ वर्षे आषाढ वदि १ शनौ गहीलडागोत्रे सा० बाहड भा० देल्हू पु० समदा भा० सुगणादे पु० हीरा जूठा युतेन सा० होलाकर मणि पुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्र० मलधारगच्छे श्रीगुणसागरसूरिभिः ॥ ( १७३ ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५४७ वर्षे वैशाख वदि १३ गुरौ । श्री श्रीवंशे मं० वीरा भा० नांइ पुत्र मं० नगराज सुश्रावकेण भा० पाती सुत मं० कीका भा० सांपू सुत मं० पासवीरसहितेन सुविहित श्रीगुरूणामुपदेशेन स्वपत्नी श्रा० पाती श्रेयोर्थं श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं सर्वसूरिभिः । श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्यः॥ (१७४) शान्तिनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः सं० १५४७ वर्षे माघ सुदि १३ रवौ उपके० ज्ञा० मं० मंडीआ भा० जीविणि पु० अरणाकस्य भ्रा० भोजाकेन भा० रंगाई पु० हीरा वस्तादयः हीरा भा० हीरादे प्रमुखनिजकु० सहितेन स्वम्रातृ-पितृ श्रेयसे श्रीशान्तिनाथ १७०. मांगरोलपीर (बरार) वासुपूज्य गृहदेरासर १७१. कोटा आदिनाथ मंदिर १७२. सिरपुर अंतरीक्ष पार्श्वनाथ मंदिर १७३. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर १७४. उज्जैन अजितनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ३७ प्रभृतिचतुर्विंशतिजिनानां पट्टः का० ऊ० गच्छे श्रीसिद्धाचार्यसन्ताने प्र० श्रीकक्कसूरिभिः॥ आछाभार्या अछवादे पुत्र हाथी मांका कुंरादि सहितेन च॥ पु० रत्नाश्रेयसे पूर्वजानां पुण्यार्थं (१७५) श्रेयांसनाथ:-पञ्चतीर्थी: सं० १५४८ वर्षे पोष सुदि १३ सोम दिने उस० फूलपगरगोत्रे सा० डूंगर भा० लीलू पु० नरसिंघ भा० कूप पु० चोली सहितेन पुण्यार्थं कारापितं श्रीश्रेयांसबिंबं। प्र० बृहद्गच्छे श्रीवीरचन्द्रसूरिपट्टे। श्रीधनप्रभसूरिभिः श्रेयो) (१७६) श्रेयांसनाथ-पञ्चती : ॥ सं० १५४९ वर्षे वैशाख वदि ९ बुध (धे) शुद्ध श्रीमालगोत्रे सं० रामा भार्या रत्नादे पु० २ सा० अमरा सहसा श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारितं उ० गच्छे कुकदाचार्यसन्ताने प्रतिष्ठितं श्रीदेवगुप्तसूरिभिः। ___(१७७) पार्श्वनाथ-चतुर्विंशतिपट्टः ॥ संवत् १५४९ वर्षे अहम्मदावादवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय मं० अर्जन भा० सुहासिणि सुत मं० गांगा भा० गंगादे भ्रा० राणा भा० रंगादे भ्रा० गोपा भार्या वाली भ्रा० गोईया भा० कामी प्र० कुटुम्बयुतेन चतुर्विंशतिपट्टे श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं कारापितं तपागच्छे श्रीसोमसुन्दर सूरिसन्ताने श्रीइन्द्रनन्दिसूरिभिः प्रतिष्ठितं पं० सुमतिधीरगणिनामुपदेशे निजश्रेयोर्थं ॥ श्री। मं० गांगादि सुत सोमा रवा आग्निक वजा प्रमुखेन श्रीहेमविमलसूरिभिः॥ श्रीसुरताणपुरवा० (१७८) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५५१ वर्षे पोष शुदि १३ शुक्रे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० होका भा० कुंअरि सुत दो० मेहा जल भा० २ पुतलि देमाई पु० भा० सु० दो० कुंअरपाल भा० कमलादे नाम्न्या पुत्र धर्मदासादिसहितया स्वश्रेयोर्थं श्रीश्रीश्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः॥ १७५. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर १७६. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर १७७. उज्जैन अजितनाथ मंदिर १७८. राजनांदगाँव पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१७९) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५५२ वर्षे माघ शुदि १३ श्रीऊकेशवंशे बहुरागोत्रे सा० कुंरा भा० लटू पुत्र सा० वच्छा सा० पासाकेन भा० रूपाई युतेन पितृव्य सा० सदा पुण्यार्थं श्रीसंभवनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः गुरुपुष्ययोगे रवियोगे। (१८०) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ९. संवत् १५५५ वर्षे वैशाख शु० ३ शनौ प्रा० श्रे० सामल भार्या गौरी सुत लालाकेन भार्या तलतू भ्रा० साजण सुत हर्षादि कुटुम्बयुतेन श्रेयोर्थं श्रीशान्तिनाथबिंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीसुमतिसाधुसूरिपट्टे श्रीहेमविमलसूरिभिः मालसणावास्तव्यः (१८१) पद्मप्रभ-पञ्चतीर्थीः ९. सं० १५५५ वर्षे वै० शु० ६ बुधे प्राग्वाटज्ञातीय सा० मेघा भा० गौरी पु० मांडण राजा भोजा भा० पदमाई सा० राजा भा० खीमाई भोजा भा० लखमाई पु० नरधीरकुटुम्बयुतेन स्वमातृश्रेयोर्थं श्रीपद्मप्रभबिंबं कारितं प्र० तपागच्छे श्रीसोमसुन्दरसं० श्रीहेमविमलसूरिभिः (१८२) कुन्थुनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ र्द० ॥ संवत् १५५५ वर्षे माघ वदि १० सोमे श्रीश्रीवंशे सा० गांगा भार्या कचू सुत साह श्रीपाल भार्या सिरियादे सुश्राविकया स्व श्रेयोर्थं । श्रीअंचलगच्छेश श्रीसिद्धान्तसागरसूरीणामुपदेशेन श्रीकुन्थुनाथबिंबं का० प्रतिष्ठि० श्रीसंघेन (१८३) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १५५५ वर्षे फाग० स(सु)दि २ से (सो) मे लाटापल्लीवास्तव्य ऊकेशवंशीय मं० भोजा भा० सारू पुत्र मं० पोपट भा० प्रीमलदे पुत्र कुंरा खीमा भ्रातृ मं० कान्हा मं० मांकादि समस्तकुटुम्बयुतेन १७९. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर १८०. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर (राजीबाई धर्मशाला) १८१. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर १८२. उज्जैन अजितनाथ मंदिर १८३. सिरपुर अंतरीक्ष पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः स्व श्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं । श्रीतपागच्छाधिराज श्रीहेमविमलसूरिभिः ॥ श्रीरस्तुः ॥ ( १८४) श्रीकीर्तिरत्नसूरि मूर्तिः ५ श्रीकीर्त्तिरत्नसूरिगुरुभ्यो नमः संवत् १५५६ वर्षे सा० जेठा पुत्री रोहिणी प्रणमति । (१८५) पार्श्वनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः संवत् १५५८ वर्षे फागुण सुदि ११ दिने गुरुवा० उपकेशज्ञातीय सूराणा गोत्रे । सं । वस्ता भार्या मानू पुत्र सं० मांडणेन भा० हरषमदे पु० ईसर जयवंत नरपति युतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्र० धर्मघोषगच्छे । भ० श्रीपद्माणंदसूरिपट्टे । भ० श्रीनंदिवर्द्धनसूरिभिः ॥ श्रेयोर्थं शुभंभवतं ॥ श्री ३९ (१८६) शीतलनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५५९ वर्षे आषाढ सुदि १० दिने सूराणा गोत्रे सं० श्रीपाल पु० सं० देवदत्त भार्या देल्हणदे पु० सा० सांडा भार्या सलखणदे पु० नाऊ नरपाल युतेन श्रीशीतलनाथबिंबं कारापितं सद्रू निमित्तेन प्रतिष्ठितं श्रीधर्मघोषगच्छे भ० श्रीपद्मानन्दसूरिपट्टे श्री श्री श्रीनन्दिवर्धनसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ (१८७) सुपार्श्वनाथ पञ्चतीर्थी: सं० १५५९ वर्षे मा० व० ४ गुरौ प्रा० वीरम भा० सूरम पु० ती ल्हाकेन भा० नीतादे पुत्र ताना भ्रातृ वील्हा जसवीर युतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीसुपार्श्वबिंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीहेमविमलसूरिभिः (१८८) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: ९. संवत् १५६१ वर्षे ज्येष्ठ शु० ..........सोमे श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रति० श्रीसूरिभिः कारितं प्रा० ज्ञातीय श्रे० नगा भार्या खीमाई सुत भीमाकेन स्वश्रेयोर्थम्॥ १८४. नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंदिर १८५. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १८६. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर १८७. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर १८८. धामनगाँव सुमतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१८९) सुविधिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५६३ वर्षे माघ सुदि १५ दिने श्रीऊकेशवंशे संखवालेचा गोत्रे सा० माला भार्या वीझू पुत्र सा० भांडा सुश्रावकेण भार्या भावलदे पुत्र सा० पासवीर सहसवीर पासवीर भार्या जयतू पुत्र वीरम प्रमुख-परिवारसहितेन श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीसमुद्रसूरिपट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ प्रतिष्ठितं। श्री। शुभंभवतु॥ श्री। (१९०) संभवनाथः सं० १५६३ प्राग्वाटज्ञातीय..........श्रीश्रीश्रीसंभवजिनबिंबं कारितं प्र० श्रीतपागच्छे श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः॥ (१९१) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ ॥ सं० १५६४ वर्षे वैशाख वदि ८ श्रीमालज्ञातौ घेउरियागोत्रे सा० देपा पुत्र सा० महिमा पुत्र सा० करणा भार्या श्रा० कपूरी पुत्र सा० जीजा भार्यया सा० मेघा पुत्रिकया देवगुरुभक्तया रत्नाई सुश्राविकया स्वभर्तृश्रेयो) श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं। प्रतिष्ठितं खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ (१९२) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः ९. सं० १५६४ वर्षे ज्येष्ठ शु० १२ शुक्रे प्राग्वाट ज्ञा० व्य० गदा भा० हिली सु० व्य० वडूआकेन भा० कंमली सु० देवदास भोला प्र० कुटुम्बयुतेन स्वश्रेयसे श्रीविमलनाथबिंबं का० प्र० श्रीवृद्धतपापक्षे श्रीलब्धिसागरसूरिभिः॥ वालीबग्रामे (१९३) चन्द्रप्रभ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५६५ वर्षे वैशाख व० ३ रवौ श्रीहुंबडज्ञातीय वृद्धशाखायां व्य। महिराज भा। हेमादे सु० व्य० मांगा। व्य० देवदास भा। हर्षादे कनाई प्रमुख स्वकुटुम्बश्रेयोर्थं श्रीचन्द्रप्रभस्वामिबिंब कारितं । प्र। श्रीवृद्धतपापक्षे। भ० श्रीधर्मरत्नसूरिभिः॥ १८९. जोधपुर कुंथुनाथ मंदिर १९०. नागोर हीरावाड़ी मंदिर १९१. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर १९२. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर १९३. सिरपुर अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः ( १९४) कुन्थुनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५६५ वर्षे वैशाख वदि १० रवौ श्रीउसवालज्ञातीय सा० जगसी भा० जीवी सुत सा । धीरा भा० सुहवदे स्वभर्तारनिमित्तं श्रीकुंथ (थु) नाथबिंबं कारापितं । प्रतिष्ठितं साध ( धु) पूनमिया श्रीउदयचंदसूरिभिः ( १९५ ) शान्तिनाथ (१) सं० १५६८ वर्षे श्रीमूलसंघे भ० श्रीज्ञानभूषणस्त० भ० श्रीविजय (२) सुनन्दिगुरोपदेशात् बाई श्रीगौतमश्री बाई श्रीविनयश्री पल्ल (३) .. तनमित श्रीशान्तिनाथ ॥ ४१ (१९६) आदिनाथ- पञ्चतीर्थी : सं० १५६९ वर्षे वैशाख वदि ११ रवौ श्रीमूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्रीकुंदकुदाचार्यान्वये भ० श्रीज्ञानभूषणदेवास्त० भ० श्रीविजयकीर्तिगुरूपदेशात् हूं० मुहडासीआ जेसा भा० जसमादे सु० हीरा भा० देमी द्वितीय मानाई भ्रा० धीरा भार्या अथकू सुत नबा भा० नागरंगदे भ्रा० नारद भ्रा० वर्धमान भ्रा० भीम एते श्रीआदिनाथं नित्यं प्रणमति ॥ ( १९७) सुमतिनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः ॥ संवत् १५७१ वर्षे माघ वदि १ सोमे वीसलनगरवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय व्य० चहिता भा० लाली पुत्र देवदत्तेन भार्या गांगी पुत्ररत्न जूठा भार्या जसमा भ्रातृ हंसराजादिकुटुम्बयुतेन स्वश्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्टितं तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागर सूरि श्री सुमतिसाधुसूरिपट्टे परमगुरुगच्छनायक श्री श्री श्री हेमविमलसूरिभिः ॥ श्रीः ॥ ( १९८ ) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १५७३ वर्षे फाल्गुन शुदि २ रवौ श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रेष्ठ पोपट भार्या खीमाई सुता पदमाई तया स्वश्रेयोऽर्थं श्रीविमलनाथबिंबं कारितं श्री आगमगच्छे श्रीविवेकरत्नसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीपत्तननगरवास्तव्य ॥ १९४. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर १९५. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर १९६. रतलाम चन्द्रप्रभ मंदिर १९७. जालना चन्द्रप्रभ मंदिर १९८. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (१९९) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५७३ वैशाख शुदि ५ सोमे उपकेशज्ञातीय श्रे० जना भा० झाली सुत हर्षा सलखा हर्षा भा० रमाई सुत अर्जन। मणोर। मांका स्वमातृपितृश्रेयसे। श्रीआदिनाथबिंबं कारितं साधुपूर्णिमापक्षे श्रीउदयचन्द्रसूरिभिः त० श्रीमुनिराजसूरिभिः प्रतिष्ठितं विधिना करीग्राम वा० (२००) नमिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १५७५ वर्षे फागु० व० ४ गुरौ प्रा० ज्ञा० सा० पेथा भा० प्रेमलदे पुत्र खेताकेन भा० खेतलदे सहितेन आत्मपुण्यार्थं श्रीनमिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीश्रीपूर्णिमापक्षे कछोलीवालद्वितीयशाखा भ० श्रीविद्यासागरसूरीणामुपदेशेन आ० श्रीलक्ष्मीतिलकसूरीणां क्रोडाग्रामे ॥ (२०१) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः श्री सं० १५७७ वीसा सोनाकेन श्रीपार्श्वबिंबं का० प्र० । ___ (२०२) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५७९ वर्षे वैशाख सुदि ६ सोमे श्रीविद्यापुरे श्रीश्रीमालज्ञा० हासा भार्या हेमादे सु० कामा भार्या कमलादे नाम्न्या सु० नाना साडा प्रमुखकुटुम्बयुतया श्रीवासुपूज्यबिंबं कारापितं पीपलगच्छे प्र० श्रीसूरिभिः (२०३) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः __ संवत् १५८७ वर्षे वैशाख वदि ७ सोमे श्रीवृद्धतपापक्षे । श्रीश्रीमालज्ञातीय सा० रूपा भा० इंदु सु० वस्ता वीरपालेन भ्रातृ वच्छासहितेन श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्र० धर्मगुरु-श्रीजिनमाणिक्यसूरीणां पट्टे श्रीजयमाणिक्यसूरिभिः पत्तनवास्तव्यः (२०४) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १५८७ वर्षे वैशाख वदि १० गुरौ श्रीश्रीमालज्ञातीय। वृ० सो० । सोमा भा। वाल्हीनाम्न्या पुत्र सोनी अमीया सो। गोईंया सो। कान्हा १९९. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर २००. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर २०१. सवाई माधोपुर विमलनाथ मंदिर २०२. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर २०३. मांगरोलपीर वासुपूज्य गृह देरासर २०४. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः ४३ प्रमुखकुटुम्बयतुया श्रीसंभवनाथबिंबं । श्रीपूर्णिमापक्षे श्रीपुण्यरत्नसूरि पट्टे श्रीसुमतिरत्नसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं श्रेयोर्थं कारापितं श्रीरस्तु । (२०५) सुविधिनाथ - चतुर्विंशतिपट्टः ९. संवत् १५८८ वर्षे फागुण शुदि ८ बुधे श्रीश्रीमालज्ञातीय श्रे० चांगा भा० राणी पु० वीरा मांडण हरदास नासण सहिते नासण भा० नागलदे सु० हरषा हाथीकेन भा० लाछी सु० रीडा युतेन श्री स (सु) विधनाथ बिंबं कारितं श्रीआगमगच्छे श्रीसोमरत्नसूरिपट्टे श्रीशिवि (व) कुमारसूरिभिः । प्रतिष्ठितं बोरजा ग्रामे वास्तव्य शुभं भवतु (२०६) पार्श्वनाथ - एकतीर्थी : सं० १५९१ आषाढ वदि १ सा० पालचंद श्रीपार्श्वनाथबिंबं । ( २०७ ) शान्तिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १५९८ वर्षे वै० शु० ५ गुरौ श्रीऊकेशवंशे लोढागोत्रे । सा० डाहा भार्या नानूं । पुत्र भवानीदास भार्या भरमादे श्राविकया । श्री शान्तिनाथ । बिंबं । का० प्र० श्रीविजयदानसूरिभिः श्रीरस्तु । श्री (२०८) आदिनाथ -पञ्चतीर्थी: ॥ संवत् १५९८ वर्षे वैशाख सु० ५ बुधे श्रीऊकेशवंशे । लोढागोत्रे । सा० डाहा भार्या नानूं पुत्र सा० भवानीदास । भार्या भरमादे श्राविकया श्रीआदिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीविजयदानसूरिभिः । श्रीरस्तु । कल्याणमस्तु। (२०९) धर्मनाथ- पञ्चतीर्थी: ॥ सं० १५९८ वर्षे वैशाख सु० ५ गुरौ श्रीउपकेशवंशे । लोढागोत्रे । सा० डाहा भार्या नानूं पुत्र सा० भवानीदास । भार्या भरमादे । श्राविकया श्रीधर्मनाथबिंबं का० प्र० श्रीविजयदानसूरिभिः । श्रीरस्तु । कल्याणमस्तु । २०५. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर २०६. जयपुर श्रीमालों का मंदिर २०७. लोणार मुनिसुव्रत मंदिर २०८. लोणार मुनिसुव्रत मंदिर २०९. सिरपुर अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२१०) पार्श्वनाथ-मूलनायकः ___ सं० १५९८ पोष वद १ सोम मुनिचन्द्रसूरिपट्टे भ० श्रीविनयचन्द्रसूरि उपदेशात् (२११) शान्तिनाथः ॐ ह्रीं अहँ असि आउसा श्रीशान्तिनाथाय नमः। (२१२) पार्श्वनाथः प्रणम्य श्रीपार्श्वप्रतिमा कारिता प्रति० । (२१३) नमिनाथ-एकतीर्थीः श्रीनमिनाथः श्रीकीका का० प्र० सूरिभिः ___ (२१४) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ..........शान्तिनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं संडेरगच्छे श्रीशान्तिसूरिभिः (२१५) .......पञ्चतीर्थीः ...........पुत्र वील्हाकेन पूर्वजनि.........का० प्र० श्री देवगुप्तसूरिभिः॥ (२१६) सुमतिनाथः ॥ सं। १५.....वर्षे आषाढ वदि ५ दिने श्रीमालज्ञाती० जालगोत्रे सा० देवदेवेन प्रमोद पुत्र..........सुमतिबिंबं का। प्र। तपा श्रीमुनिसुन्दरसूरिभिः॥ (२१७) मुनिसुव्रत-चतुर्विंशतिपट्टः (परिकररहित) ..........सो० श्रीनिधिनामानः॥ तन्मध्य सो० श्रीनिधिराजेन भार्या कुं यरि भार्या ललितादे प्रमुखसमस्तकुटुम्बसहितेन। आत्मश्रेयसे । श्रीमुनिसुव्रतस्वामिचतुर्विंशतिपट्टः कारितः। प्रतिष्ठितः श्रीवृद्धतपापक्षे श्रीज्ञानसागरसूरिपट्टे श्रीउदयसागरसूरिभिः॥ कल्याणमस्तु॥ श्रीः २१०. राजनांदगाँव पार्श्वनाथ मंदिर २११. अजमेर मेग्जिन २१२. अजमेर मेग्जिन २१३. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर २१४. सांभर पार्श्वनाथ मंदिर २१५. हिण्डोन श्रेयांसनाथ मंदिर २१६. जयपुर पञ्चायती मंदिर २१७. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२१८) ....... संवत् १६०१ वर्षे जिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं। श्रीजेसलमेरौ वा० कुशलधीरस्य प्रसन्ना भव। (२१९) पार्श्वचन्द्रसूरिपादुका श्रीनागपुरीय तपागच्छीय श्रीपार्श्वचन्द्रेभ्यो नमः। सं० १६१३ वैशाख सुद.........श्रीनागपुरी तपागच्छी श्रीपार्श्वचन्द्रपादुकेभ्यो नमः (२२०) शिलापट्ट-प्रशस्तिः संवत् १६१४ वर्षे श्रीवीरमपुरे श्रीशान्तिनाथचैत्ये मार्गशीर्षमासे प्रथम द्वितीयादिने श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराये। सश्रीकवीरमपुरावधि चैत्यराजे, प्रोत्तुगरंगशिखरे नुत देवराजे। सौवर्णवर्णवपुष सुविशुद्धपक्षे श्रीशान्तितीर्थप्रतिमाकृतशुद्धपक्षे॥ १॥ अर्हन्तमीशमनघं परया सुसूक्त्या, श्रीशान्तिनाथममलं नमतातिभक्त्या। श्रीविश्वसेनतनुजन्मजुषं स्वशक्त्या, सारंगलक्षणजिनं स्मरताभियुक्त्या ॥ २॥ यस्यातीतभवेप्यमुष्यम- हतीशक्र स्तवैर्गविणा, श्येनाकारभृता कपोततनुभृद्रक्षापरीक्षा कृता। भोक्ता यौगिकयोगचक्रिपदवीसाम्राज्यराज्यश्रियः, स श्रीशान्तिजिनः सुधार्मिकनृणां दातात्मसंपच्छ्रियः॥ ४॥ श्रीशान्तिदेवोऽवतु देवदेवो, धर्मोपदेष्टा मुददायिसेवः। नतत्रिलोकीजनसेव्यमानः, सपञ्चमः चक्रिवरो महीयान् ॥ ५॥ श्रीधनराजोपाध्यायानामुपदेश पं० मुनिमेरु लिखितं सूत्रधार जोदा रंगा गदा नरसिंहकेन उत्कीरितानि काव्यानि चतुष्किका मूलपट्टके राउल श्रीमेघराजविजयराज्ये, श्रीशान्तिनाथनाभिमण्डपो निष्पन्नः॥ (२२१) चिन्तामणि पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः __सं० १६२४ वर्षे आ०शु० ३ श्रीवंत श्रीचंद चिन्तामणि पार्श्वनाथ नाणव. (२२२) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थी: __ संवत् १६२४ वर्षे पो० सु० ३ रवौ वृद्धश्रीमालज्ञातीय से० रतनपाल भार्या पूनी सुत से० पूंजा भार्या जीवाई सुत टोकर भगिनी बाई वाल्ही २१८. मेड़ता सिटी धर्मनाथ मंदिर २१९. नागोर पार्श्वचन्द्र दादाबाड़ी २२०. नाकोड़ा शांतिनाथ मंदिर (नाभिमंडप के बारसाख के पाट पर) २२१. किसनगढ़ शांतिनाथ मंदिर २२२. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः सयुतेन प्रतिष्ठापितं श्रीश्रीसुमतिनाथबिंबं तपागच्छेश श्री ६ श्रीहीरविजयसूरिभिः प्रतिष्ठितं परिवारसहितेन स्वश्रेयोर्थं श्रीः ॥ ( २२३) विमलनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १६२६ वरषे फागण सुदि ७ दिने तपागच्छभट्टारिक श्रीहीरविजयसूरि हस्तप्रतिष्ठितं श्रीविमलनाथबिंबं बा० सोला कारापितं प्र० वीरा पोरुआडज्ञाती० पत्तनवास्तव्य ॥ (२२४) पार्श्वनाथ - एकतीर्थी: सं० १६२६ फा० सु० ८ सो० श्रीहीरविजयसूरिभिः पत्र ... काकी आबीरा ( २२५ ) पार्श्वनाथ: श्रीपारसनाथाय नमः। संवत् १६५२ वर्षे आषाढमासे शुदि पक्षे ५ बमसनवारे महाराज पू० राजश्री जगनाथजी विजै राज्ये (२२६) विमलनाथ - एकतीर्थी : सं० १६५२ सा० ठाकुरसी का० प्र० विजयसेनसूर विमल ( २२७ ) शीतलनाथ: सं० १६५३ व० वै० शु० ४ बु० शीतलनाथ सा० रायसिंघ भा० सोभागदे पु० व० ४ का० प्र० श्रीतपा श्रीविजयसेनसूरिभिः पं० विनयसुन्दरगणिः प्रणमतिः ॥ (२२८) आदिनाथः परिकरसहितं ॥ र्द०॥ स्वस्ति श्री अल्लाइ ४२ वर्षे माघ मासे शुक्ल दशमी दिने । श्रीअहम्मदावादमहानगरे । प्रगटप्रभाव - प्रौढप्रताप प्राग्भार-प्रसाधितनिखिलप्रबलप्रतिस्पर्द्धकपरमपार्थिवपटल ॥ यावज्जीवषाण्मासिजीवामारिप्रवर्तनकुशल विशेषविहितसकलगोरक्षणं समस्तजिनसम्मतसंततसुकृत २२३. राजा देवलगाम २२४. नागोर बड़ा मंदिर २२५. टोडरायसिंह २२६. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर २२७. मेड़ता सिटी स्मसान २२८. अहमदाबाद शिवा सोमजी का मंदिर For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः सारहारसंगत श्रीशत्रुञ्जयमहातीर्थकरमोचन वरविचक्षणसकलस्वदेशपरदेशशुल्क -जीजियाकरमोचन विधिसमुत्पादितजगज्जीवसमाधान परबलदलन प्रत्यलनिरशुलनिर्मलप्रबलस्वीकृत - सकलभूमंडललक्ष्मीलीलाविलाससावधान । करुणारसनिधान। प्रभूतयवनप्रधानसंप्रति-दिल्लीपतिसुरत्राण श्रीअकब्बरसाहिविजयराज्ये ॥ श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिप श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टप्रभाकर स्वधर्मदेशनाद्यनेकप्रगुणगणरंजित श्रीमदकब्बरसाहिप्रदत्त-युगप्रधानपद । श्रीस्तम्भतीर्थसमीपांभोधिजलचरजीवामारिप्रसृतामरयशोनाद सदाषाढीयाष्टाह्निकासकलजीवाभयदानदायक गणनायक युगप्रधानगुरु श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः मन्त्रिवरकर्मचन्द्रकृतनन्दीमहोत्सवैर्लाभपुरे साहिशुभादरेण शाहि सनाखत स्वहस्तसंस्थापितश्रीजिनसिंहसूरि-प्रमुखोपाध्याय - वाचनाचार्य - साधुसंघयुतैः ॥ अहम्मदावादवास्तव्य प्राग्वाटज्ञातीय सा० साइया पुत्र सा० जोगी भार्या जसमादेवीकुक्षिसुक्तिमौक्तिकेन । श्रीखरतरगच्छसमाचारीवासितान्त:करणेन स्वदेयसाधर्मिकप्रतिगृहरजताद्धलं भनिकाविधायकेन । स्वगच्छपरगच्छीय संघसपरिकरनिजगुरुराजादिसार्धेन विहितश्रीशत्रुञ्जायमहातीर्थयात्रासुकृतेन । कृतानेकजैनप्रतिमाप्रासादप्रतिष्ठादिधर्ममहोत्सवेन । साधर्मिकवात्सल्यादिधर्मकरणरसिकेन संघवी सोमजीकेन भ्रातृ सिवा युतेन । पुत्र सं० रतनजी सं० रूपजी सं० खीमजी। पौत्र सं० सुंदरदास प्रमुखपुत्रपौत्रादिपरिवारशोभितेन महाद्रव्य-व्ययोत्सवपूर्वकनिष्पादितसमहामहं प्रतिष्ठापितं च सपञ्चतीर्थीपरिकरं श्रीऋषभबिंबं॥ पूज्यमानं च चिरं नंद्यात् यावच्चन्द्रदिवाकरौ गुरुगोत्रदेवीप्रसादात् शुभम् श्रीसमयराजोपाध्यायैः प्रशस्तिरियं कारिताः॥ ४७ सिंहासन के नीचे ॥ ६० ॥ संवत् १६५३ अलाइ ४२ वर्षे पातिसाहि श्री अकबरविजईराज्ये महासुदि १० सोमे प्राग्वाटज्ञातीय श्री अहम्मदावादनगरवास्तव्य सा० साइया भार्या नाकू पुत्र सं० जोगी भार्या जसमादे कुक्षे संघपति सोमजीकेन भ्रातृ शिवा पुत्ररत्न सं० रतनजी सं० रूपजी सं० खीमजी पौत्र सुंदरदास प्रमुखपरिवारसहितेन श्री आदिनाथबिंबं सपरिकरं कारितं प्रतिष्ठितं च ॥ दिल्लीपति श्री अकब्बरपातिसाहिप्रदत्तयुगंप्रधानविरुदधारक श्रीबृहत्खरतरगच्छाधिप श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टा -लंकारयुगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि श्रीरत्ननिधानो - पाध्यायप्रमुखपरिवारसहितं ॥ For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ___ मूर्ति के नीचे श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिपट्टालंकार दिल्लीपतिपातिसाहि श्रीअकब्बरप्रदत्तयुगप्रधानविरुदधारक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ आचार्य श्रीजिनसिंहसूरिप्रमुखपरिवारयुतैः॥ श्रेयोस्तु॥ सूत्रधार गल्ला मुकुंद कारितं । (२२९) शान्तिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १६५४ वर्षे माह वदि ९ मूलार्क श्रीमाल श्रे० पचा भा० खीमाई सुत श्रे० लक्ष्मीदास भा० सूदा सु० श्रे० लालजीनाम्ना श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं सूरिभिः (२३०) तीर्थावतार-पट्टः (*) ॥ सं० १६५६ व० का० सुदि १३ रवौ। महीसाणावास्तव्य श्रीसंघेन तीर्थावतारपट्टः कारितः प्रतिष्ठितः। तपागच्छे भट्टारकपुरंदर श्रीविजयसेनसूरीशराज्ये सकलवाचकचक्रवर्ति महोपाध्याय श्रीविमलहर्षगणिभिः साहि श्री अकब्बरराजे । (२३१) चन्द्रप्रभः ॥ सं० १६५८ वर्षे माघ सु० ५ सोमे श्रा० वीरा नाम्न्या श्री चन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च। श्रीतपागच्छे श्रीविजयसेनसूरीश्वराणामादेशात (२३२) चन्द्रप्रभः ॥ सं० १६५८ वर्षे माघ सु० ५ सोमे श्रा० वीरा नाम्न्या श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीतपागच्छे श्रीविजयसेनसूरीश्वराणामादेशात उ० श्रीमुनिविजयगणिशिष्य उ० देवविजय (२३३) पद्मप्रभमूलनायकः ॥ संवत् १६५९ आषाढ वदि ५ गुरुवार..........जसवंत भार्या जसवंतदे सुहागदे देव्या.......... २२९. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर २३०. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर *समवसरण, सिद्धशिला, सम्मेतशिखर, शत्रुञ्जय, नवग्रह, गुरुस्थापना युक्त २३१. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर २३२. उज्जैन शांतिनाथ मंदिर २३३. जयपुर पद्मप्रभ मंदिर घाट For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४९ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२३४) जिनकुशलसूरिस्तूपः ॥ सं० १६६३ वर्षे वैशाख सुदि नवमी दिने शनिवारे ओसवंशे बाफणागोत्रे खरतरगच्छे सा० समरसिंह तत्पुत्र पत्तननगरे राज्ञास्थापितवरश्रेष्ठिपदयुक्त सा॥ भरथ तत्पुत्र सुरजण भाया सूहवदे तत्पुत्र सा० हेमराज तत्भार्या हांसलदे तया पुत्ररत्नौ प्रसूतौ ज्येष्ठः चांपसी इत्याख्यस्य लघुभ्राता पुंजाख्य अस्य भार्या जीवादे चांपसी भार्या चांपलदे तत्पुत्र सा० योगीदास जयमल्ल जीवा कान्हजी पञ्चायणादि परिवारयुतैः। श्रीजिनकुशलसूरिगुरोः स्तूपकारितः प्रतिष्ठापितं च। युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये तत्पट्टे श्रीजिनसिंहसूरिविद्यमाने प्रतिष्ठितं च श्रीयश:कुशल-गणिभिः श्रेयोस्तु कल्याणमस्तु परिवारवृद्धिरस्तु राजाधिराज शत्रुसल्ल जाम राज्ये कल्याणमस्तु॥ (२३५) भूमिगृहस्थ पट्टोपरि शिलालेख: संवत् १६६६ वर्षे भाद्रपदशुक्लपक्षे श्रीद्वितीया दिने शुक्रवारे श्रीवीरमपुरवरे श्रीशान्तिनाथप्रासादे भूमिगृहे श्रीखरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिविजये आचार्यश्रीजिनसिंहसूरियौवराज्ये श्रीराठौर श्रीतेजसिंहजी विजयीराज्ये कारितं श्रीसंघेन वा० श्रीगुणरत्नगणिना विनेयेन रत्नविशालगणिना सूत्रधार मोरा पुत्र स्त्री जोधादे युता पुत्र मन्त्री धन्नो वीरजागेन कृतं शोभा कल्याण कला मेधा श्रीरस्तु। (२३६) चन्द्रप्रभः ॥ सं० १६६७ वर्षे माघसिते ६ गुरौ असवालज्ञातीय०.......... श्रीचन्द्रप्रभबिंबं..........मुपदेशात् कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छाधिराज.. श्रीविजयदेवसूरिभिः..........आगरानगरवास्तव्य संघपति श्रीचंडपालेन प्रतिमा कारिता। (२३७) मुनिसुव्रतः ॥ र्द० ॥ सिद्धिः श्रीसंवत् १६६७ वर्षे माह.........सं० चंडपालेन भ्रातृ सं० नोपति सं०.........सं० लीषा..........सहितेन मुनिसुव्रतबिंबं कारापितं २३४. जामनगर दादाबाड़ी २३५. नाकोड़ा शांतिनाथ मंदिर २३६. सांगानेर महावीर मंदिर २३७. सांगानेर महावीर मंदिर For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः कीर्तिसूरि आचार्य श्रीअमरकीर्तिसूरिभिः शुभंभवतु ॥ आगरानगरवास्तव्य संघपतिश्रीचण्डपालेन प्रतिमा कारिता ॥ (२३८) गौडीपार्श्वनाथ-मूलनायकः संवत् १६७१ वर्षे वैशाख शुक्ल ३ शनौ ओसवालज्ञातीय लोढागोत्रे गां वं सेंसकरण पु० सोनपालाभ्यां सं० सोनपाल पुत्र तुलसीदास पुण्यार्थं श्रीविजयसेन०..........। (२३९) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः सं० १६७१ मा० सु०..........केशव सा० गणपति सुपसि०.......... नाम्नः स० मुनिसुव्रतबिं० का०प्र० श्रीविजयदेवसूरिभिः तपागच्छे कल्याण.....। (२४०) महिमरंगगणिपादुके ॥ द० ॥ ॐ नमः॥ संवत् १६७४ वैशाख सुदि......श्रीयोधपुर श्रीबृहद्..........ख्यं वाच० श्रीलक्ष्मीविमलगणि बृहच्छिष्य वा० महिमरंगगणि पादुके प्र.........श्रीक्षेमसिंहसूरिभिः॥ कारिते पं० क्षेमक.........कादिभिः॥ (२४१).........नाथ: ॥ संवत् १६७४ वर्षे माह वदि १ दिने गुरुपुष्ययोगे ओशवाल उंवितलादू (?) गोत्रे चो० देवकरण भ्रा० जयचंद..........देवकरण हेतवे..........॥ ___(२४२) महावीरः सं० १६७४ व० मा० व० १ दिने सं० सुरताण भार्या सोभागदे०.......... मुक्तया श्रीवीरबिंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीविजयदेवसूरिभिः॥ (२४३) अभिनन्दनः सं० १६७७ वै० शु० ३ दि..........अभिनंदनबिंबं का० प्र० तपा श्रीविजयदेवसूरिभिः॥ २३८. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर २३९. नागोर बड़ा मंदिर २४०. जोधपुर शांतिनाथ मंदिर गुंदी मोहल्ला २४१. नागोर बड़ा मंदिर २४२. मेड़ता सिटी उपकेशगच्छीय शांतिनाथ मंदिर २४३. मेड़ता सिटी उपकेशगच्छीय शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२४४) कुन्थुनाथः सं० १६७७ वै० शु० ३ उ० जा० सा.........कुन्थुनाथबिंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीविजयदेवसूरिभिः॥ (२४५) संभवनाथ-मूलनायकः ॥ सं० १६७७ ज्येष्ठ वदि ५ गुरौ सं० अमर भा० अमरादे पु० सं० आसकरण अमीपाल कपूरचन्द्रेण श्रीसंभवनाथ बिंबं कारितं स्व.........श्रेयो) प्र० बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनराजसूरिभिः॥ (२४६) उ० भोजसागरपादुका ॥ सं० १६७७ वर्षे ॥ संवत् १८१० (?) वर्षे मिति भाद्रपदसितातपञ्चम्यां अर्कवारे उपाध्यायजी श्रीपूज्य श्रीभोजसागरजी देवलोक गया तिणरी पादुका कराई श्रीभोजसागरजी रा पादुका छ। (२४७) युगप्रधान जिनदत्तसूरि-प्रतिमा ॥ ० ॥ सं० १६७९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ गुरौ श्रीअहम्मदावादवास्तव्य ओसवालज्ञाती श्रीब्राह्मेचा गोत्रे । सा० कम्मा सुत अरजुन तत्सुत हीरा तत्पुत्र सा० गोरा तद्भार्या गोरादे तत्पुत्र सा० लक्ष्मीदास लघुभ्रातृ राइसिंघयुताभ्यां श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनवल्लभसूरिपट्टे श्रीयुगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरीणां प्रतिमा कारिता प्रति० युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टप्रभाकरवादिगजसिंहभट्टारक श्रीजिनराजसूरिभिः॥ प्रणमति वा० हर्षवल्लभ॥ (२४८) युगप्रधान जिनकुशलसूरि-प्रतिमा ॥ ० ॥ सं० १६७९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ गुरौ श्रीअहम्मदावादवास्तव्य श्रीओसवालज्ञाती ब्राह्मचागोत्रे सा० कम्मा सुत अरजुन पु० हीरा तत्पुत्र सा० गोरा भार्या गोरादे तत्पुत्र लखमीदास लघुभ्रातृ राइसिंघयुताभ्यां॥ श्रीबृहत्खरतर- गच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरीणां पट्टे श्रीजिनकुशलसूरीणां प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनसिंहसूरिपट्टे श्रीजिनराजसूरिभिः॥ वा० हर्षवल्लभ २४४. मेड़ता सिटी उपकेशगच्छीय शांतिनाथ मंदिर २४५. अजमेर संभवनाथ मंदिर २४६. मेड़ता सिटी जैन श्मसान २४७. अहमदाबाद दादासाहबनी पोल शांतिनाथ मंदिर २४८. अहमदाबाद दादासाहबनी पोल शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२४९) शीतलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १६८४ वर्षे आषाढ वदि ४ बुधे सं० मनभकावंतं भा० सं० मनरंगदे तत्सुत सा० रायसिंघ छाजू श्रीशीतलनाथबिंबं कारितं प्र० तपागच्छे भ० श्रीविजयदेवसूरिभिः सपरिकरैः। (२५०) कुन्थुनाथ-मूलनायकः संवत् १६८४ वर्षे माघ सुदि १० सोमे संघवी जेसल भार्या सोभागदे त० पु० सं० जोगतनाम्ना.......... । (२५१) पार्श्वनाथः सं० १६८४ मा० सु० १० श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीतपागच्छ सा० श्रीअकबरप्रदत्त श्रीजगद्गुरुविरुदधारक भट्टारक श्री ५ श्रीहीरविजयसूरितत्पट्टालंकार भ० श्रीविजयसेनसूरिपट्टालंकार जहाँगीरप्रदत्तमहातपाविरुदधारक भ० श्रीविजयदेवसूरिभिः। जयविजयगणि प्रणमति (२५२) शान्तिनाथः ॥ ० ॥ संवत् १६८६ वर्षे वै० शु० ८ उपकेशज्ञातीय०... कचरा भा..........श्रीविजयदेवसूरिभिः॥ (२५३) चन्द्रप्रभः ॥ ० ॥ संवत् १६८६ वै० शु० ८ पालीवास्तव्य उ० ज्ञा० रुघनाथ भा० मिरघादे पुत्र पदमाकेन भा० पा.......... (२५४) पार्श्वनाथ-अष्टदलकम लमूर्तिः संवत् १६८७ वर्षे ज्येष्ठ शुदि १३ गुरौ लपगरगोत्रे केकिंदवास्तव्य सा० कचराभार्या अमरादे पुत्र..........उदाकेन श्री..........॥ २४९. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर २५०. मेड़ता सिटी कुंथुनाथ मंदिर २५१. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर २५२. गागरडु आदिनाथ मंदिर २५३. जयपुर मोहनबाड़ी २५४. जड़ाउ यति श्री हीराचन्द्रजी का उपाश्रय For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ५३ (२५५) अनन्तनाथ: सं० १६८७ वर्षे फाल्गुन कृष्णपक्षे ५ तिथौ गुरुवासरे अवन्तीवास्तव्य उकेशवंशे नाहारुशाखायां सा। पञ्चायण सुत सा। देपा भार्या सोभा सुत सा। मांडण भार्या मडा सुत सा०। काहनजी सा। वुला प्रमुख कुटुम्बयुतेन। श्रीअनन्तनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपगच्छ भट्टारक श्रीविजयदेवसूरीश्वरनिर्देशात् (२५६) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः सं० १६८९ व० माघ व० ५ रवौ प्रा० ज्ञा० सा० कपूरचंद पु० सोना भजी नाम्नी श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० श्रीविजयदेवसूरिभिः (२५७) वासुपूज्य-मूलनायकः । सं० १६८..........पुत्र सं० इसरदासेन श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छे भ० श्रीविजयदेवसूरिभिः भ० आचार्य श्रीविजयसिंहसूरियुतैः॥ (२५८) चन्द्रप्रभः (१) ॥ ० ॥ संवत् १६९३ वर्षे माघ मासे शुक्लपक्षे सप्तमीतिथौ रविवासरे श्रीकोटानगरे श्रीमाधवसिंघजी विजयराज्ये ओसवालज्ञाती (२) रुणाहलिया गोत्रे सा० साणा भार्या खेती पु० सुराजा राजा.........पुत्र नेमिदास भा..........पुत्र अभयसिंह (३) भा० सिणगारदे पुत्र वादीसिंह पुत्र सुधीर..........चन्द्रप्रभबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीविजयगच्छे भट्टारक श्रीगुण(४) सागरसूरिभिः आचार्य श्रीकल्याणसागरसूरिभिः॥ (२५९) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १६९७ व० का० शु० २ गु० द० त्रलेश सं० वढा ठा० अलंनाथ श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० भ..........। २५५. उज्जैन अजितनाथ मंदिर २५६. अमरावती पार्श्वनाथ मंदिर २५७. मेड़ता सिटी वासुपूज्य मंदिर २५८. कोटा आदिनाथ मंदिर २५९. कुचेरा पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२६०) आदिनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १६९७ फा० सु० ५ गुरौ उकेशज्ञातीय वृद्धशाखीय सा० देवजीनाम्ना श्रा० चतुरानाम्न्या श्रीआदिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं च तपागणेशया(ज)हांगीरमहातपाविरुदधारिभट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः श्रीरस्तु। (२६१) पार्श्वनाथ-एकतीर्थी: समदड़ीया तेजा का० प्र० श्रीजिनराजसूरिभिः (२६२ ) संभवनाथ-एकतीर्थी: सम् ४२ (?) माह व० ९ रवौ श्रीअंचलगच्छे श्रीधर्ममूर्तिसू० दो० जीवराज भा० संसारदे श्रीसंभवनाथबिंबं प्रतिष्ठितं। (२६३) अभिनन्दन-एकतीर्थी: सा० श्रीपालकेन श्रीअभिनंदनबिं० का० प्र० भ० श्रीविजयदेवसूरिभिः (२६४) महावीर-पञ्चतीर्थीः श्रीमहावीरबिंबं कारितं भ० श्रीचैत्र न०..........श्रीरविप्रभसूरिभिः ___(२६५) आदिनाथः ॥ ० सं० १६९.........वर्षे माघ सुदि ५ मंत्रीदलीयवंशे काणागोत्रे ठ० लालू भा० धर्मिणी पु० श्रीविमलदासेन ठ० उग्रसेनादि पु०..........लं युतेन स्वपुण्यार्थं श्रीपट्टणपद्म (?) न श्री.......... (२६६) युगप्रधानजिनदत्तसूरिपादुका ___... संवत् १६..........शुदि ६ तिथौ..........युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरिजी०......... २६०. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर २६१. किसनगढ़ चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर २६२. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर २६३. नागोर बड़ा मंदिर २६४. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २६५. जयपुर नया मंदिर २६६. किसनगढ़ दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२६७) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १७०१ चैत्रासितष्टामी बुधे। पत्तनवास्तव्य श्रीवृद्धप्राग्वाटज्ञातीय सा० वीरजी भार्या बाई केतकी पुत्र सा० देवचंदनाम्ना-निजभ्रातृ सा० रागजी लखमीदास युतेन स्वभ्रातृव्य कपूरचन्द्रादि सकलपरिकरितेन श्रीविमलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठापितं स्वप्रतिष्ठायां प्रतिष्ठितं च तपागच्छाधिराज भ० श्रीविजयसेनसूरिपट्टालंकार पातसाही श्रीजिहाँगीरप्रदत्त महातपाविरुदधारी भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः॥ (२६८) सुमतिनाथ-पञ्चतीर्थीः सं० १७०१ व० माग व० ११ दिने श्रीश्रीमालज्ञा० वृ० सं० नानजी भार्या बा० गूजरदे सं० हीराणंद भा० मनरंगदे आत्मश्रे० सुमतिबिं० का० प्र० तपा श्रीविजयसिंहसूरिभिः। तपागच्छे आगरा वा० . (२६९) श्रीजिनोदयसूरिपादुका ॥ ० ॥ संवत् १७०१ वर्षे माघ सित-पञ्चम्यां०.........भट्टारकजिनोदयसूरिपादुका.......... (२७०) संभवनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १७०१ वर्षे मार्गशीर्ष सित ६ सोमे श्रीबीजापुर वास्तव्य वृद्धशाखीय उकेशज्ञातीय सा० देवसी भार्या श्रीचतुरां पुत्र सा० ऋषभ भार्या वेलबाई नाम्न्या श्रीसंभवनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं जहाँगीरमहातपाविरुदधारी भ० श्रीविजयदेवसूरिभिः॥ (२७१) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः ॥ सं० १७०१ वर्षे वीरं दहे आकाचन श्रीपासबिंबं प्र० तपागच्छे। आचार्य श्रीविजयसिंहसूरिभिः २६७. मसूदा पार्श्वनाथ मंदिर २६८. जोबनेर चन्द्रप्रभ मंदिर २६९. जोधपुर गुरांसा जुहारमलजी का उपासरा २७०. मेड़ता सिटी उप.ग. शांतिनाथ मंदिर २७१. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only ' Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२७२) मुनिसुव्रत-पञ्चतीर्थीः कृष्णगढनगरे रायचंदमुहणोतप्रतिष्ठायां ॥ सं० १७०३ वर्षे मार्गशीर्ष सित २ दिने मेडतानगरवास्तव्य संखवालेचा गोत्रे सा० डूंगर पुत्र सा० माइदासकेन श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छाधिराज सुविहितभट्टारक श्रीविजयदेवसूरिपट्टे श्रीविजयसिंहसूरिभिः॥ (२७३) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ सं० १७०३ व० माग० सु० २ दि० मुहणोतगोत्रीय मु० रोहितास भा० अमरादे मु० रायचंदनाम्ना श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० प्र० तपाश्रीविजयदेवसूरिपट्टे श्रीविजयसिंहसूरिभिः॥ कृष्णदुर्गे स्वप्रतिष्ठायां प्रतिष्ठापितं (२७४) पार्श्वनाथ-सपरिकरः ॥ सं० १७०३ व० कृष्णदुर्गाधिपति राठौर रूपसिंहजी प्रधान मोहनोत रायचन्द्रेन स्वप्रतिष्ठायां पार्श्वनाथबिं० का० प्र० तपागच्छीय भ० श्रीविजयदेवसूरिपट्टे आचार्य श्रीविजयसिंहसूरिभिः॥ (२७५) वासुपूज्यः सं० १७०३ व० माघ सु० २ शनौ कृष्णगढवास्तव्यौकेशज्ञा० मोहनोत रोहितास भार्या अमरादेकेन श्रीवासुपूज्यबिंबं का० प्र० तपा विजयदेवसूरिपट्टे आ० विजयसिंहसूरिभिः॥ (२७६ ) नमिनाथः सं० १७०३ व० माघ सु० २ शनौ रायचंद सुत नरहरदास सुत कल्याणचंद का० नमिनाथ बिं० प्र० तपागच्छे श्रीविजयसिंहसूरिभिः॥ (२७७) धर्मनाथः ॥ सं० १७०३ व० मा० शु० २..........शनौ श्रीकृष्णगढनगरवास्तव्य ...श्रीधर्मनाथसेवक मो० खेता सुत..........का० प्र० तपा श्रीविजयसिंहसूरिभिः॥ २७२. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर २७३. मेड़ता सिटी उप.ग. शांतिनाथ मंदिर २७४. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २७५. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २७६. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २७७. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५७ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२७८) विमलनाथः सं० १७०३ वर्षे माघ २ शनौ कृष्णगढवास्तव्यौकेशज्ञा० मोहनोत . रायचंद सुत नरहरदासेन विमलनाथबिंबं का० प्र० तपागच्छे भ० श्रीविजयदेवसूरिपट्टे आचार्यश्रीविजयसिंहसूरिभिः॥ (२७९) पार्श्वनाथ-सपरिकरः सं० १७०३ व० माघ सु० २ शनौ मो० रायचंदेन श्रीपार्श्वनाथबिं० का० प्र० तपागच्छे भ० श्रीविजयदेवसूरि पट्टे आचार्यश्रीविजयसिंहसूरिभिः॥ (२८०) शीतलनाथः सं० १७०३ व मो० वीरपाल पुत्र मो० रायपाल का० प्र० तपा श्रीविजयसिंहसूरिभिः शीतलनाथबिंबं __ (२८१) मुनिसुव्रतः ___सं० १७०३ मुनिसुव्रत आसोपनासोदे..........तपा विजयसिंहसूरिभिः..........। (२८२) श्रेयांसनाथः सं० १७०३ श्रेयांस मो० समरथ का० प्र० श्रीविजयसिंहसूरिभिः (२८३) सुपार्श्वनाथः सं० १७०३ सुपासबिं० मो० रायचंद पुत्री लांबा का० प्र० तपा विजयसिंहसूरिभिः॥ (२८४) पार्श्वनाथ-एकतीर्थी: सं० १७०३ व० पार्श्वबिं० का० अचलाबा० प्र० श्रीविजयसिंहसूरिभिः २७८. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २७९. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २८०. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २८१. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २८२. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २८३. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २८४. जयपुर पञ्जायती मंदिर For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२८५) वासुपूज्य-पञ्चतीर्थीः सं० १७०५ व० वै० व० २ हि (ही)रावतनगरवास्तव्य श्रीमालिज्ञा० सा० वच्छा पुत्र सा० ऋषभदास नाम्ना श्रीवासुपूज्यबिं० कारि० प्रति० तपागच्छे श्रीविजयदेवसूरिभिः श्रीविजयसिंहसूरिपरिवृतैः ____ (२८६) विमलनाथ-पञ्चतीर्थीः ॥ संवत् १७०५ वर्षे वैशाख सुदि..........श्रीगंधारवास्तव्य श्रीश्रीमालज्ञातीय सा० ठाकर भार्या बाई रतनादे सुत सा० वेलजी भार्या दाडमदे पुत्र बाई फडकू नाम्न्या स्वश्रेयोर्थं श्रीविमलनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः श्रीरस्तु शुभंभवतु कल्याणमस्तु (२८७) महावीर-एकतीर्थीः संवत् १७०५ माघ सुदि ५ श्रीविजयसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीमहावीरस्थापितं ॥ (२८८) चन्द्रप्रभः ॥ ० ॥ संवत् १७०७ वर्षे माघ मासे कृष्णपक्षे त्रयोदशी गुरुवासरे चंदलाई ग्रामे उसवंशीय नावेडा गोत्रे सा० टीला भा० गौरी तत्पु..........मही तत्पु० गोपाल भार्या चतुरा गोरादे नामलदे प्रतापदे..........प्रमुखकुटुम्बयुतेन श्रीचन्द्रप्रभबिंब कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीपूज्यश्रीकल्याणसागरसूरिभिः आचार्य श्रीसुमतिसागरसूरिभिः॥ (२८९) पार्श्वनाथ: ॥र्द० ॥ संवत् १७०७ वर्षे माघ मासे कृष्णपक्षे त्रयोदशी गुरुवासरे चंदलाई ग्रामे उसवंशीय नावेडा गोत्रे सा० टीला भा० गौरी तत्पु.........मही तत्पु० गोपाल..........चतुरा गोरादे नामलदे प्रतापदे..........प्रमुखकुटुम्बयुतेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीपूज्यश्रीकल्याणसागरसूरिभिः आचार्यश्रीसुमतिसागरसूरिभिः॥ २८५. वहियल पार्श्वनाथ मंदिर २८६. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर २८७. मेड़ता सिटी महावीर मंदिर २८८. चंदलाई शांतिनाथ मंदिर २८९. चंदलाई शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (२९०) शान्तिनाथ-मूलनायकः ॥ संवत् १७०७ वर्षे माघ मासे कृष्णपक्षे त्रयोदशीतिथौ गुरुवासरे चंदलाईग्रामे उसवंशीय नावेडागोत्रे सा० टीला तद्भा० गौरी तत्पु० लगऊ भा० दमही तत्पुत्र । गोपाल वाजु पातु चतुरा तद्भार्या गोरादे खीवलदे प्रतापदे चतुरंगदे गोपाल पुत्र। पेमा धना। उलुजपुत वेणा। विहारी। वीरु विमलदास प्रमुख कुटुम्बयुतेन श्रीशान्तिनाथ-विमल-पञ्चबिंबं कारापितं . श्रीविजयगच्छे कल्याणसागरसूरिभिः श्रीसुमतिसागरसूरिभिः॥ (२९१) सुमतिनाथ-मूलनायकः ॥ संवत् १७०८ वर्षे वैशाख सुदि ७ गुरौ। श्रीउसवाल भणसालीगोत्रे..........पुत्र भणसाली मगन भार्या लाली पुत्र भ० बंधू भा० कपूरा भ० रूपचन्द्रादि०..........भा० हवा कुटुम्बपरिवारयुतेन श्रीसुमतिनाथजिनबिंबं कारापितं ॥ प्रतिष्ठितं श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ __(२९२) चरणपादुका ॥ ० ॥ सकल पंडित शिरोमणि पं.........। श्रीचारित्रसागरपरमगुरुभ्यो नमः॥ संवत् १७०८ (?) वर्षे तत्सीष्य पं० १००८ श्रीकल्याणसागरजी तत्सीष्य श्री १०८ श्री अगमसागरजी तत्सीष्य पं० श्री १०८ श्रीमोहनसागरजी तत्सीष्य पं० श्री १०८ मनरूपसागरजी तत्सीष्य पं० श्री १०८ श्रीकान्तिसागरजी तत्सीष्य पं० श्री १०८ श्रीसोभाग्यसागरजी तत्सीष्य पं० श्री १०८ श्रीरंगरूपसागरजी तत्सीष्य पं० श्री १०८ श्रीश्रीगजेन्द्रसागर जी साहिबा चरणपादुकेभ्यो नमः। सं० १९०१ (?) व० मा० सु० ७ रविवार। _ (२९३) युगप्रधान-जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ स्वस्ति श्रीः॥ संवत् १७०९ वर्षे ज्येष्ठ शुदि तृतीया दिने पुष्यार्के श्रीबृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनरत्नसूरिविजयराज्ये भट्टारक युगप्रधान श्रीजिनकुशलसूरि-पादुके उसवालज्ञातीय बाफणा गोत्रीय साह हेमराज साह खेमा साह पदमसी सपरिकरैः कारिते प्रतिष्ठिते उ० सुमतिसिंधुरगणि। श्रीरस्तु।। २९०. चंदलाई शांतिनाथ मंदिर २९१. रतलाम सुमतिनाथ मंदिर २९२. भिनाय पार्श्वनाथ मंदिर २९३. टोडारायसिंह दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० (२९४) विजयसिंहसूरि- पादुका ॥ ० ॥ सं० १७१० वर्षे वैशाख शुक्ल ६ तिथौ श्रीकृष्णगढनगरवास्तव्य श्रीसंघेन श्रीतपागच्छनायक श्रीविजयदेवसूरि पट्टालंकार आचार्य श्रीविजयसिंहसूरीश्वराणां पादुका कारिता प्रतिष्ठिताश्च श्रीराजसुन्दरगणिभिः शुभंभूयात् प्रतिष्ठितं । प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः (२९५) चन्द्रप्रभ - एकतीर्थी: सं० । १७१० जेठ सुदि ६ । सा० कपूरचंद | चन्द्रप्रभ। तपागच्छे (२९६) शिलापट्ट - प्रशस्तिः ॥ र्द० ॥ सं० १७१० वर्षे पोषमासादितृतीया पुष्यार्के श्रीसुमतिनाथ ...शिष्योपसिद्धे शिष्ये श्रीभिणाय नगरे साधु साध्वी श्रावक श्राविकाय .. गच्छे यु० तेषां यात्रा सदा सफला भवतु । राजि श्री उदयभानजी ......री श्रीम० सुवधीरतनसी० पोलिसमारी, सुमतेः लभते सुमति, सुमतिः सुमती शान्ति । विमल प्रशमति पापात् सुमतेः भृत्यः श्रियं च ...... क्षमासागरपद्यात्रा, पद्मसूरस्तत्पदे । गुणसागरपट्टेशः सूरिः कल्याणसागरः॥ २॥ (२९७) सुविधिनाथ: ॥ १॥ ॥ स्वस्ति श्री ॥ संवत् १७१२ वर्षे फागुण वदि ८ गुरौ लोढा गोत्रे सं० वीरधवल भार्यया पूनमदेवी नाम्न्या श्रीसुविधिनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च..........श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ श्रीरस्तु ॥ ( २९८ ) महातीर्थ - समवसरणपट्टः (*) ॥ र्द०॥ संवत् १७१३ वर्षे शाके १५७८ वर्षे प्रवर्तमाने फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे द्वादशीतिथौ पतंगवारे पुष्यनक्षत्रे सौभाग्ययोगे तालिन शुभदिवसे श्रीतपागच्छे श्रीविजयप्रभसूरीश्वरराज्ये पट्टं कारापितः संघेन । पून्या अर्थ २९४. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर २९५. जयपुर नया मंदिर २९६. भिनाय सुमतिनाथ मंदिर २९७. मेड़ता सिटी उप. ग. शांतिनाथ मंदिर २९८. औरंगाबाद धर्मनाथ मंदिर (*) इस पट्ट के मध्य में समवसरण, आदीश्वरमूर्ति, सिद्धशिला, शत्रुंजय, सम्मेतशिखर, गौडी-अन्तरिक्ष-फलवर्धि-शंखेश्वरपार्श्वनाथ, नवपद, नवग्रह, ऊँकार, ह्रींकार २४ जिन, गिरनार रचना युक्त For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः वलयाकारस्थ लेख: ॥ ६० ॥ संवत् १७१३ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे अक्षयतृतीया - . दिने सोमवारे सुभवातीवेला विजयमहूर्ते दक्षणदेशे श्रीअवरंगाबादनगरे श्रीजिनशासने श्रीवीरपरंपरा सुद्धसुविहित । श्रीतपागच्छाधिराज भट्टारक श्रीहीरविजयसूरीस्वर तत्पट्टे श्रीविजयसेनसूरीश्वर तत्पट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिपट्टालंकार संप्रतिविजयमान भट्टारक श्रीविजयप्रभसूरीश्वरविजयराज्ये श्रीअवरंगाबादनगरवास्तव्य सकल श्रीसंघेन महातीर्थपट्टः कारापितः । प्रतिष्ठापितञ्च श्रीतपागच्छाधिराजभट्टारक श्री ५ श्रीविजयप्रभसूरिभिः पं० श्रीधीरविजयगणिना शिष्य पं० श्रीलाभविजयगणि उपदेशात् पट्टः कारापितम् । श्री संघेन ॥ श्रीरस्तुः (२९९) महावीर - पञ्चतीर्थी : ॥ सं० १७१३ मागशिर शुदि ५ गुरौ । प्राग्वाटज्ञा० लफ० भंडारी लाभचंद। सुत जगुकेन । श्रीमहावीरबिंबं कारापितं कमलकलशगच्छे। प्रतिष्ठितं भट्टा० श्रीदेवरत्नसूरिभिः ॥ १ ॥ ६१ (३००) पार्श्वनाथ: संवत् १७१४ वर्षे वैशाख सुदि पञ्चम्यां बुधे महाराजाधिराज महाराजा श्री जसवंतसिंहजी विजयि राज्ये भं० ताराचंद भार्यया कल्याणदेव्या श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीआद्यपक्षीय भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ शुभंभूयात् । (३०१ ) पार्श्वनाथ: ॥ संवत् १७१४ वर्षे वैशाख सुदि पञ्चम्यां बुधे महाराजाधिराज महाराज श्रीजसवंतसिंहजी विजयि राज्ये भं० ताराचन्द द्वितीय भार्यया संतोषदेव्या श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीआद्यपक्षीय भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ शुभंभूयात् । (३०२ ) स्तम्भोपरिलेखः ॥ संवत् १७१४ वर्षे आषाढ मासे कृष्णपक्षे एकादशी गुर्वोः श्रीमद्विजयगच्छेश। भट्टारक। श्रीकल्याणसागरसूरयस्तत्पट्टे श्रीसुमति २९९. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ३००. मंडोर पार्श्वनाथ मंदिर ३०१. मंडोर पार्श्वनाथ मंदिर ३०२. भिनाय पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः सूरयस्तद्गुरुभ्रातृ-महेसमुनिना भानुसमीरणेन श्रीउदयभानु तेजसा भार्या भाटी श्रीमाधवजी सहायेन श्रीसंघयुतेन च धर्मशाला कारापिता लेखक पाठकयोः शुभंभवतु..........श्रीश्रीश्री॥ (३०३) पार्श्वनाथः संवत् १७१४ वर्षे माघ मासे कृष्णपक्षे चतुर्थीतिथौ बुधवारे महाराजाश्री जसवंतसिंहजी कुमरश्री पृथ्वीसिंहजी विजयराज्ये उपकेशज्ञातीय साहुसुखागोत्रीय साह कम्मा भार्या कर्मादे पुत्र वीरा भार्या विमलादे पुत्ररत्न मनोहर भार्या प्रेमादे भ्रातृ आसा भार्या अजाइबदे युताभ्यां श्रीवासुपूज्यबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छेश श्रीश्रीश्रीश्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ ___ (३०४) युगप्रधान-जिनकुशलसूरि-पादुका ऐं। सं० १७१५ (? १७६५) वर्षे आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदि तिथौ शुक्रवारे चोपड़ागोत्रे को० धर्मसीकेन सु० गुणराजयुतेन श्रीजिनकुशलसूरिपादुके कारिते प्रतिष्ठिते श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसुखसूरिभिः। (३०५) आदिनाथादि-पादुका ॥ संवत् १७१९ वर्षे माघ शुदि २ शुक्रे वृद्धोपकेशशाखीय वोघाणा बाफणागोत्रे सं। सामीदास मेघराज भा० नगिनी कुसली तथा सांमीदास पुत्र कुशलसिंघ..........भ्यां श्रीआदिनाथश्रीगौतमस्वामिनौ। श्रीतपागच्छे भ० । श्रीहीरविजयसूरीश्वरतत्पट्टे भ० श्रीविजयसेनसूरीश्वरतत्पट्टे भ० श्रीविजयदेवसूरीणां पादुका पट्टः कारितः प्रतिष्ठितं च भ० श्रीविजयदेवसूरीश्वरपट्टोदयाचलसहस्रकिरण भ० श्रीविजयप्रभसूरिभिः॥ सांगानेर नगरे॥ श्री: श्रीः श्रीः॥ श्रीरस्तु (३०६) धर्मनाथ-एकतीर्थीः सं० १७२१ वर्षे ज्ये। सुदि ३ रवौ। श्रा। जीवीनाम्ना श्रीधर्मनाथबिंब का। प्र। भ। श्रीविजयराजसूरिभिः तपागच्छे ३०३. मंडोर पार्श्वनाथ मंदिर ३०४. जोधपुर भैरोबाग दादाबाड़ी ३०५. सांगानेर महावीर मंदिर ३०६. जयपुर प्रतापमल ढला गृहदेरासर For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (३०७) पद्मप्रभः सं० १७२३ वर्षे माघ वदि ८ दिने सोमे भं० ताराचंदेन पद्मप्रभनाथबिंबं कारितं। प्रतिष्ठितं श्रीउपाध्याय श्रीकीर्तिवर्द्धनगणिभिः खरतरगच्छ आदिपक्षीयः॥ (३०८) अनन्तनाथः सं० १७२३ वर्षे माघ वदि ८ सोमे भं० आसकरणेन श्रीअनन्तनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं। श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (३०९) पार्श्वनाथ: संवत् १७२३ वर्षे माघ वदि ८ सोमवारे महाराजाधि० श्रीजसवंतसिंहजी कुमर पृथिसिंह मेघराज विजयराज्ये ओसवालज्ञातौ भंडारी भानाजी पुत्र नारायण तत्पुत्र भं० ताराचन्देन पुत्रपौत्रादियुतेन श्रीपार्श्वनाथबिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे आद्यपक्षे श्रीजिनदेवसूरि श्रीजिनसिंहसूरि श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे श्रीजिनहर्षसूरिभिः आ० लब्धिकुशलसूरीणामादेशात् कीर्तिवर्द्धनोपाध्यायः॥ (३१०) धर्मनाथः सं० १७२३ वर्षे माघ वदि ८ दिने सोमवारे डागा जित पुत्र वच्छाकेन धर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे.......... उपाध्याय श्रीकीर्ति-वर्धनगणिभिः॥ (३११) चन्द्रप्रभः संवत् १७२३ वर्षे माघ वदि ८ सोमवारे भंडारी पीथा पुत्र भं० भारिमलेन सगतिसिंह मेघराज पुत्र सहितेन श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे..........उपाध्याय श्रीकीर्तिवर्द्धनगणिभिः॥ ३०७. मंडोर पार्श्वनाथ मंदिर ३०८. मंडोर पार्श्वनाथ मंदिर ३०९. मंडोर पार्श्वनाथ मंदिर ३१०. मंडोर पार्श्वनाथ मंदिर ३११. मंडोर पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः - (३१२) नंदर्षि-पादुका ॥ ० ॥ संवत् १७२४ वर्षे वैशाख मासे कृष्णपक्षे तृतीयायां सोमे श्रीपासचंदसूरिगच्छे ऋषि श्री ठाकुरसी शिष्य मुनिश्रीऋषिनंदपादुके। छ। (३१३) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थीः संवत् १७२५ वर्षे पोष वदि ५ गुरौ श्रीवंत भा० रूपा श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छे भ। श्रीविजयप्रभसूरिनिर्देशात् उपाध्याय श्रीविनयविजयगणि० लि० (३१४) शान्तिनाथ-एकतीर्थीः सं० १७२५ माघ सु। १३ सा० हरदासजी चेणजी सा० अखयराजकेन श्रीशान्तिनाथबिंबं कारितं। प्रतिष्ठितं च। भ० श्रीविजयप्रभसूरिभिः (३१५) पार्श्वनाथ-पञ्चतीर्थी: संवत् १७२८ वर्षे माघ शुदि ५ गुरुदिने श्रीकाष्ठासंघे नंदीतटगच्छे विद्यागणे भ० श्रीरामसेनान्वये त० भ० श्रीभुवनकीर्ति त० भ० श्रीविश्वसेन प्रतिष्ठितं हुंबडज्ञातीय वृद्धशाखायां एंषेश्वरगोत्रे सोमा भार्या भणनाम्नी तस सूत सो० कल्याणदास भार्या कल्याणदे तस सुत रतनजी भा० दसरा नित्यं प्र० सागवाडा स्थाने श्रीपार्श्वनाथ चैत्यालये। १।। (३१६) शिलापट्ट-प्रशस्तिः । चरिते श्रीऋद्धिवृद्धिजयमङ्गलाभ्युदयश्च। संवत् १७३३ वर्षे शाके १५७८ प्रवर्तमाने फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे २ तिथौ शुक्रवारे उत्तराफाल्गुनीनक्षत्रे १२ घड़ी उपरांत विजयमुहूर्ते चन्द्रयोगे श्रीदीवाण भावसिंघजी विजयराज्ये श्रीतपागच्छाधिपति श्रीरत्नविजयसूरि तत्शिष्य आनन्दविजय चतुर्मासीस्थितेन। नगरबूंदीमध्ये। ओसवालज्ञातीय। चोपडागोत्रे। सा० श्री रामपालजी पुत्र सा। अमरसी आसकर्ण कल्याणचंद रायपालरौ भक्त्या। विक्रमपुरवास्तव्य बृहत्खरतरभट्टारकगच्छे। तीर्थयात्रां स्वद्रव्ये कृत प्रासाद करापितां॥ नगरबूंदीमध्ये॥ श्रीः॥ ३१२. मालपुरा मुनिसुव्रत मंदिर ३१३. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर ३१४. जयपुर नया मंदिर ३१५. रतलाम मोतीसा मंदिर ३१६. बूंदी पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (३१७) पार्श्वनाथ-मूलनायकः संवत् १७३५ प्रवर्तमाने वैशाख सुदि १ शनौ तद्दिने श्रीमनमोहन पार्श्वनाथस्वामि प्रतिष्ठितं। (३१८) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः ॥ संवत् १७४४ वर्षे फागुणसुदि १ तिथौ बुधवासरे तपागच्छाधिराज भ० श्रीविजयप्रभसूरिनिर्देशात् श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं पं० मुक्तिचन्द्रगणिभिः कारितं पं०..........केन (३१९) वासुपूज्य-एकतीर्थी: ॥ सं० १७४५ पोष वदि ७ बुधे श्रा० अमरादेकया श्रीवासुपूज्य बिंबं का० प्र० श्रीविजयभावसूरि (३२०) चतुर्मुखः संव० १७४६ माघ सुद २..........श्रीनगर की० त० सं० श्रावक नथमल मं० सोमदास (३२१) मुनिसुव्रत-एकती ः ॥ सं० १७६१ वै० शु० ७ गुरौ सा० कुकल भा० कागताइकेन मुनिसुव्रत बिं०। प्र। भ। श्रीज्ञानरीमनुसूरि (?) (३२२) अजितनाथः ॥ संवत् १७६१ रा वर्षे माघ सुदि ५ गुरु श्रीमालज्ञातीय गुलाबचंद पुत्र धनदेव सहित श्रीअजितबिं० प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः । ___ (३२३) आदिनाथ-पञ्चतीर्थी: सं० १७६५ वरषे चैत्र वदि ९ सोमे अराईनगरे वडहरागोत्रे कोठारी दीपचंद सपरिवारेण श्रीरीषभदेवजी श्रीपार्श्वनाथबिंबं॥ तपागच्छे भट्टारक .....श्रीविजय......सूरिनिर्देशात् श्रीअजितसागरगणिभ्यः प्रतिष्ठापितम् ३१७. धनज पार्श्वनाथ मंदिर ३१८. जयपुर पञ्चायती मंदिर ३१९. बूंदी पार्श्वनाथ मंदिर ३२०. जयपुर पञ्चायती मंदिर ३२१. जयपुर श्रीमालों का मंदिर ३२२. कोटा चन्द्रप्रभ मंदिर ३२३. उज्जैन अवन्ति पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ (३२४) पार्श्वनाथ- पञ्चतीर्थी: संवत् १७६६ वर्षे मिती वैशाख सुदि ७ दिने संघ० मुण० भंडारीजी श्रीतारामलजी तत्पुत्र भं० श्रीरूपचंदजी श्रीपार्श्वबिंबं कारापितं भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः................ ॥ (३२५) पादुका - चतुष्क ॥ संवत् १७७१ व० ज्येष्ठ शुदि २ शनौ ॥ पं० श्रीचारित्रसागरजी पादुका ॥ पं० श्रीकल्याणसागरजी पादुका ॥ पं० श्रीसुजाणसागरजी पादुका ॥ पं० श्रीखेमसागरजी पादुका ॥ प्रतिष्ठा - लेख -संग्रह : द्वितीयो विभागः (३२६) मुनिसुव्रत - एकतीर्थी: ॥ सं० १७७३ व० माघ सु० ६ सोमे । सा० लाधा । सा । अयरामकेन । श्रीमुनिसुव्रतबिंबं कारी । प्रति० - ईसरसूरि - ॥ २० (३२७) सुमतिनाथ - एकतीर्थी : सं० १७७४ माघ तिन २३२ वासा गुलालचंद श्रीसुमतिनाथबिंबं कारितं । (३२८ ) शिलापट्टः ॥ ॐ नमः॥ सकलकुशलवल्ली पुष्करावर्तमेघो । दुरिततिमिरभानुः कल्पवृक्षोपमानः। भवजलनिधिपोत : सर्वसम्पत्तिहेतुः । स भवतु सततां वः सश्रिये पार्श्वनाथदेवः ॥ १ ॥ अथ प्रस्तुतलिख्यते ॥ स्वस्ति श्रीनृपविक्रमार्कसमयातीतः। संवत् १७७४ वर्षे । शाके १६३९ प्रवर्तमाने । उतरायनगते श्रीसूर्ये । महामांगल्यप्रदे। मासोत्तम मासे । शुभकारि । माघ मासे । शुक्ल पक्षे । त्रयोदशी तिथौ। रविवासरे। श्रीमन्मालवदेशे । काठलमंडल । राणा श्रीहमीरवंशविभूषण | महाराजाधिराज । महारावल श्रीप्रथीसिंघजी विजयराज्ये । श्रीमद्देवगढ़नगरवास्तव्य । हुंबडज्ञातीय। लघुशाखायां । मात्रेश्वरगोत्रे । साह श्रीरामा । भार्या रंगा | सुत साह कूपा । भार्या कनकादे । तयो पुत्र द्वे । सा० भोला । सा० पर्वत । ३२४. जोधपुर संभवनाथ मंदिर ३२५. मालपुरा ऋषभदेव मंदिर ३२६. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर ३२७. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर ३२८. देवगढ़ पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः ६७ भा० पदमां । सु० सा० धर्मसी । सुत सा० कडुआकेन । श्रीसागवाडानगर । श्रीपार्श्वनाथचैत्यालये। दक्षिणविभागे । भद्रप्रासादकरापितां । द्वितीय भ्राता सा० घान । श्रीसागवाडानगर पौषधशाला विहिता । साह भोला । भा० गलाली । सुत साह लालु । सा० लखमु । भार्या लक्ष्मी । सुत साह अणंदु । भा० अमरी । सुत २ । सा० धनराज । सा० राजपाल । भा० रायमती । सुत सा० जीवू । सुत सा० अमराज । सुत सा० अभयराज । सुतत्रय । सा० सवजी । साह नाथू । साह संकरजी । मध्यभ्रातृ । सा० नाथाकेन वेदिलोपरि । पाषाणमय । श्री ऋषभदेवबिंबं करापितं । - साह धनराज । भार्या धनादे । सुत त्रय । सा० वच्छराज। सा० लहुऊ । सा० चांपू । भा० चकू । सुत सा० सुरताण । सुत सा० लालजी । सुत च्यार । सा० अवचल । सा० आसकर्ण । सा० कसनजी । डूंगरसी जयति सा० वच्छराज । भा० वीरमदे । सुत त्रय । सा० जयराज । सा० जसवंत । भा० वर्षा । सुत सा० वर्द्धमानादि ५. सा० जयराज । सुत सा० वेणीदास । सुत सा० रतनजी । सुत सा० जीवणदास । सा० नाथूजी । सा० जशवंत सुत ५ । सा० मानजी । सा० रूपजी । केसवदास । प्रेमजी । इन्द्रजी । सा० मानजी सुत सा० नामा । सा० वलमजी । सा० रूपजी । सुत सा० मनोहरदास। सुत सा० जादवजी । सा प्रेमजी । सुत सा० गोकलजी । सा० सुरजी । साह साहसवइ । संघमोक्ष । साह केसवदास । भार्या उभयकुलानंददायिनी मेघांबाई । सुत द्वे । अमात्यपदधारि । साह श्री चहिआ । भार्या सह । लघु भ्राता । साह श्रीजीवराज । भार्या अणदु । पुत्री मयनावती । तथा कृष्णावती। इत्यादि सकलकुटुम्बयुतेन । श्रीमद्देवगढ़नगरे । मूलनायक श्रीविघ्नहरपार्श्वनाथाद्यबिंबस्थापितं । श्रीमत्त बृहत्तपापक्षे । श्रीतेजरत्नसूरि अन्वये । भ० लब्धिचन्द्रसूरि । तत्पट्टे भ० श्रीविनयचन्द्रसूरि । तत्पट्टे भ० लक्ष्मीसुंदरसूरि । भ० धीररत्नसूरि तत्पट्टे द्वे । भट्टारक श्रीउदयरत्नसूरि । भट्टारक श्रीभावरत्नसूरि आदेशात् । भ० तेजरत्नसूरिशिष्य । पन्यास लावण्यरत्न । तत्शिष्य । पन्यास नयरत्न । तत्शिष्य पं० जयरत्न । तत्शिष्य । उपाध्याय श्रीरत्नसुन्दरं तत्शिष्य । पन्यास श्रीविवेकसुंदर । तत्शिष्य । खुमाणनृपदत्तं । नरसिंहविरुदधारि महोपाध्याय श्रीसिहजसुन्दरेण प्रतिष्ठितं ॥ शुभं भवतु ॥ पन्यास कान्तिसुन्दरेण लिपीकृतम् । सू० देवो । सु० कानु ॥ उ० सिहजसुंदर द्वितीयभ्राता । पं० सुखसुंदरयुतेन । पीत्तलमय श्रीपार्श्वनाथबिंबं करापितं ॥ For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः । (३२९) पादुका ॥ संवत् १७७५ वर्षे वैशाख सुदि १३ श्रीविजयगच्छे मालपुरनगरे उदयसागरस्य..........तत्शिष्य ऋषि करमा..........ाणां च पादुके प्रतिष्ठितं॥ (३३०) अजितनाथ-एकतीर्थीः ॥ संवत् १७७८ वर्षे माह शुदि १३ शुक्रे अजितनाथबिंबं कारितं गुलालचंद प्रतिष्ठितं तपागणे (३३१) धर्मनाथः । सं० १७७८ व। श्रीमाल सा० सं० ताराचंद भा० बा० जीवादे ..श्रीधर्मना० बिं० का० प्र० श्रीसर्व्वसूरिभिः॥ (३३२) ठाकुरसीजी पादुका ॥ संवत् १७७९ वर्षे मिति ज्येष्ठ सुदि ७ शुभे दिने महोपाध्याय श्रीकाशीदासजी शिष्य वा० श्रीठाकुरसीजी गणि उसये (?) पादुका कारिते। सिलावट खेतावत श्रीरस्तु॥ (३३३) चतुरसागरजी पादुका ॥ संवत् १७८० वर्षे आषाढ वदि १४ वा। शनि। सागरगच्छे पंडितश्री ५ श्रीधृतसागरगणिशिष्य पण्डित श्री ५ श्री चतुरसागरगणि रां पगलां पधरायां छे बहियलग्रामे॥ (३३४) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः सं० १७८१ चैत्र सुदि १५ श्रीपार्श्वनाथबिंबं जीव सं० लालचंद प्रभु० प्रति० (३३५) श्रेयांसनाथ-एकतीर्थीः ॥ सं० १७८२ वर्षे वैशाख वु। २ शनौ श्राविका वचीबाई का० श्रीश्रेयांसनाथबिंबं कारितं ३२९. मालपुरा ऋषभदेव मंदिर ३३०. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर ३३१. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर ३३२. मेड़ता सिटी दादाबाड़ी ३३३. बहियल पार्श्वनाथ मंदिर ३३४. मेड़ता सिटी धर्मनाथ मंदिर ३३५. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६९ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (३३६ ) .......एकतीर्थीः सं० १७८३ वैशाख वदि ८ प्रतिष्ठितं पं० वखराम नित्यं प्रणमति। ___(३३७) नेमिनाथ-मूलनायकः ॥ सं० १७८३ वैशाख वदि ८ मीनलग्ने चित्रानक्षत्रे.........श्रीमालवंशे........धणसिंघ श्रीहृदयरामजी........नि मातुंगा का देहरा की। (३३८ ) सम्मेतशिखरपट्टस्थ पार्श्वनाथः संवत् १७८५ माघ वदि ५ सा। ताराचंद भार्या लाखेश श्रीपार्श्वनाथ ॥ (३३९) पार्श्वनाथः सं० १७८..........वर्षे श्रीपार्श्वनाथबिंबं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (३४०) पार्श्वनाथः ॥ सं० १७८..........वर्षे श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (३४१) शिलापट्ट-लेख: ॥ श्रीजिनाय नमः॥ संवत् १७९३ मिती वैशाख सुदी ३ शनिसरवारे वासनागरनगरे पल्लीवालवंशे नौलाठिया गोत्रे सा० श्रीलखमीदास तस्य भार्या धोकनी तत्पुत्र सा० देवीदास हिण्डोननगरे श्रीजिनप्रसादप्रतिष्ठितं श्रीविजैगच्छे श्रीपूज्यश्रीतिलकसागरसूरिजी श्रीविजयगच्छे श्रीऋषभदेवजी बिंबं प्रतिष्ठितं हिण्डोन नगरे श्रीजिनमन्दिरं स्थापितं ॥ (३४२) नमिनाथः सं० १७९४ श्रीमाल सा० वीसल भा० रेणा पु० सा० महासीह नयचन्द्र..........नमिनाथबिंबं कारितं प्र० श्री सोमरत्नसूरिभिः॥ ३३६. नागोर बड़ा मंदिर ३३७. भांडारेज नेमिनाथ मंदिर ३३८. खोह चंद्रप्रभ मंदिर ३३९. अजमेर संभवनाथ मंदिर ३४०. अजमेर संभवनाथ मंदिर ३४१. हिंडौन श्रेयांसनाथ मंदिर ३४२. जयपुर विजयगच्छ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (३४३) सुविधिनाथः संवत् १७९६ वर्षे फागुण सुदि ७ शुक्रे..........द्वितीय साह देवीदास बिंबं प्रतिष्ठापितं श्रीपूज्यजीश्री तिलकसागरसूरिजी श्रीविजैगच्छे । (३४४) पार्श्वनाथः संवत् १७९६ फागुण सुदि ७ भट्टार्का(रक) श्रीपूज्यजी तिलकसागर -सूरिभिः..........पार्श्वनाथ प्रतिष्ठितं श्रीमाल० श्रीपूज्य विजैगच्छे । (३४५) पार्श्वनाथ: ॥ संवत् १७९६ वर्षे फागुण सुदि ७ शुक्रवार डाणग्रामे पल्लीवालज्ञातौ नौलाठियागोत्रे साह श्री लखमीदास तस्य भारज्या धोकनी तस्य पुत्र साह श्रीदेवीदासजी श्रीपूज्यजी श्रीतिलकसागरसूरिजी श्री विजैगच्छे श्रीपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं नगडावासि॥ (३४६) महावीरः ॥ सं० १७९७ वर्षे माघ सुदि ५ दिने श्रीनागपुर श्रीसंघेन श्रीमहावीर स्वामिजिनबिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं भ। भंडारी श्री कल्याणदासजी पु..........प्रभोर्समोवि श्रेयांसि श्रेयांसि शं वो भवतु ॥ श्रीः॥ (३४७) राजहरजी पादुका संवत् १७९९ वर्षे मिति वैशाख सुदि ३ सोमवारे श्रीविजैगच्छे ऋषिश्रीराजहरजीकानां पादुके प्रतिष्ठिते श्रीपूज्यजी श्रीरत्नसागरसूरिजी आचार्यजीश्रीभावसागरजी मालपुरनगरे प्रतिष्ठितं शिष्य अमर ऋ० कृपाराजाभ्यां प्रतिष्ठा कारापिता (३४८) अम्बिकामूर्तिः शके १५८८ हिलंबी नाम संवत्सरे फाल्गुन सु० १० श्रीमूलसंघे पुष्करगच्छे सेनगणे भ० श्रीजिनसेनोपदेशात् वघेरवाल ज्ञातोय चंवरियागोत्रे मं० माणिक सा तस्य सुत संघवी सोम राजा नित्यं प्रणमतिः॥ श्रीरस्तु॥ ३४३. हिण्डौन श्रेयांसनाथ मंदिर ३४४. हिंडौन श्रेयांसनाथ मंदिर ३४५. हिंडौन श्रेयांसनाथ मंदिर ३४६. नागोर बड़ा मंदिर ३४७. मालपुरा ऋषभदेव मंदिर ३४८. अजमेर जौहरी धनरूपमलजी गृह देहासर For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः (३४९) हमीरसागरगणि पादुका सं० १८११ वर्षे आषाढ वदि प्रतिपदा तिथौ पं० हमीरसागरगणि पादुका प्रतिष्ठितं अंतेवासि श्रीसागर कारापितं ॥ श्रीऋषभदेवजी री पादुका छे ॥ ( ३५० ) पार्श्वनाथ: ॥ संवत् १८१५ वर्षे शा० १६८० प्र० भ० श्रीविजयधर्मसूरिभिः । ( ३५१ ) ........एकतीर्थी: दोशी वीरजी जीवणदास सं० १८२० माघ सुदि ५ सोमे । ( ३५२ ) पद्मावती: संवत् १८२२ वर्षे द्वितीय चैत्र सुदि ७ बुध दिने श्रीमूलसंघे सरसतीगणे बलात्कारगणे भट्टारक श्रीप्रभकीर्ति उपदेशात् सा० खुसाल वेलजी इदं पद्मावती नित्यं प्रणमति ॥ (३५३) आदिनाथ - एकतीर्थी: । सं० १८२२ ना वर्षे शाके १६८७ प्रवर्तमाने उ० महीया मोकलदे कस्य भ्रा० रामकरेण ऋषभबिंबं (३५४) नेमिनाथ - एकतीर्थी: सं० १८२६ वैशाख सुदि ६ श्री. नंदलालेन सा.. 1 सं० १८२६ वैशाख सुदि ६ श्रीसुरेन्द्रकीर्ति उपदेशात् सं० नंदलालेन (३५५) महावीर - एकतीर्थी: ३४९. मेड़ता सिटी श्मसान ३५०. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर ३५१. अजमेर संभवनाथ मंदिर ३५२. नागोर बड़ा मंदिर ७१ ३५३. जयपुर प्रतापमल ढढ्ढा गृहदेरासर ३५४. मंडावर चन्द्रप्रभ मंदिर ३५५. बालाहेड़ी आदिनाथ मंदिर ..न० भ० सुरेन्द्रकीर्ति सा० माधवपुर श्रीमूलसंघे भ० For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ (३५६) आदिनाथ - एकतीर्थी: ॥ धाई । सा० हरसेन । श्री । ऋषभनाथबिंबं । भ । श्रीतपागच्छे। सं० १८२७ वर्षे (३५७ ) सतीमूर्तिः ॥ ० ॥ ओं नमः सिद्धी ॥ ॥ श्री महागणाधिपतेः नमः ॥ श्रीमहालक्ष्मीमहामायाः श्रीसिचीयायजी ॥ ॥ श्री अन्नपूर्णाजी श्रीपद्मावतीजी ॥ संवत् १८२८ वर्षे मागसरमासे कृष्णपक्षे तिथौ अमावस्या शुक्रवारे मेहताजी श्रीबखतसिंहजी माताजी श्रीसुजानदे । गढ चीत्तोडमध्ये वर्ष ४ राज कीधो गढ बीबड़ोदमध्ये रामशरण हुआ समाजी श्री सुजानदे सत ........ (३५८ ) पार्श्वनाथ: ॥ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः सं० १८२९ ज्येष्ठ सुदि ३ मङ्गलवासरे ताराचंद हर्षचन्द्राग्रहेण हेमचन्द्रसूरिणा प्रतिष्ठिता ॥ शुभम् ॥ (३५९) आदिनाथ- पादुका । संवत् १८२९ शाके १६१४ मिति ज्येष्ट सुदि ३... श्री ऋषभदेवजी को मन्दिर में पादुका प्रतिष्ठिता ऋषिजी श्री २७ देवरतजी तत्शिष्य रिसि.. . महाराजाधिराज पृथ्वीसिंहजी राज्यात् ॥ (३६०) पञ्चपरमेष्ठिपट्टः ॥ ॐ संवत् १८२९ वर्षे मिगसरमासे शुक्लपक्षे तिथौ १० गुरु । भ० श्रीविजयधर्मसूरिभिः श्रीपञ्चपरमेष्ठी ॥ (३६१) पादुका - युग्म श्रीगुरुभ्यो नमः । संवत् १८३० वर्षे शाके १६९५ प्रवर्तमाने कार्तिक सुदि १२ बुधे श्रीऋषभदेवजी पादुका श्रीरत्नसागरजित्काभ्यां पादुका स्थापिता पं० सत्यसागरेण पं० ऋषभदेवजी पादुका पं० श्रीसत्यसागरजी पादुका छे । ३५६. जयपुर नया मंदिर ३५७. बीवडोद ऋषभदेव मंदिर ३५८. जयपुर मोहनबाड़ी ३५९. सवाई माधोपुर विमलनाथ मंदिर ३६०. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर ३६१. मेड़ता सिटी जैन श्मसान For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख -संग्रहः द्वितीयो विभागः (३६२) ...एकतीर्थी : ॥ सं० १८३० वर्षे माघ सुदि ५ सोमे श्रीमत्तपागच्छे वैद्यगोत्रे मोहकर्माभिध भार्या कारापितं ॥ (३६३) आदिनाथ - एकतीर्थी : सं० १८३१ वर्षे मार्गशिर वदि १ शनौ रोहिणीनक्षत्रे भ० श्रीविजयधर्मसूरीश्वरराज्ये उ० श्रीऋद्धिविजय गणि प्रतिष्ठितं पं० विद्याविजयगणि श्रीवृषभनाथबिंबं कारापितं स्वश्रेयसे । (३६४) अजितनाथः ॥ संवत् १८३५ वर्षे शाके १७०० प्रवर्तमाने फागुण वदि १४ शनौ श्रीअवरंगाबादनगरे श्रीतपागच्छे भ० श्रीविजयधर्मसूरीश्वरराज्ये श्रीसमस्तसंघेन श्रीअजितनाथबिंबं कारापितं भ० श्री विजयउदयसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री शुभं भवतु । ७३ (३६५) जीवचंद पादुका सं० १८३६ वर्षे मिति चैत्र वदि ३ दिने श्रीजीवचन्दजीकानां पादुका चै... 1 (३६६) सिद्धचक्र यन्त्रम् संवत् १८३६ वर्षे वैशाख वदि १२ गुरु श्रीमालज्ञातीय वृद्धशाखीय भा० लेखमिउर भार्या रामाकेन सिद्धचक्रकरापितं वराणपुर वास्तव्य श्रीरस्तु कल्याणमस्तु । (३६७) श्रीजिनकुशलसूरि- पादुका संवत् १८३७ वर्षे शाके १७०२ मासोत्तममासे शुभे शुक्लपक्षे तिथौ १३ बुधवासरे ओशवंशे सांडेचा गोत्रे धर्भमूरति सा । ही० रायमलजी तत्बृहद्पुत्र सा० ही० देवचंद ......... रामगोपाल सकलपरिवारसंयुतेन ३६२. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ३६३. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर ३६४. औरंगाबाद पार्श्वनाथ मंदिर ३६५. नागोर पायचंदग. दादाबाड़ी ३६६. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ३६७. जयपुर मोहनबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः जंगमयुगप्रधान खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनकुशलसूरि दादादेवचरणपादुका कारितं प्र० श्रीमन्महेन्द्रसूरिभिः........। (३६८) ऋषभदेव पादुका-मूलनायकः संवत् १८३७ वर्षे शाके १७०२ मासोत्तममासे आश्विनमासे शुभे शुक्लपक्षे तिथौ १३ बुधवासरे ओशवंशे सांडेचा गोत्रे धर्ममूरति सा० ही० रायमलजी तत् बृहद् पुत्र सा० ही० देवचंद तत्भ्रातृ पुण्यमूरति सा० ही० दीवान जीवराज पुत्र चीरंजीव मोहनराम रामगोपाल सकलपरिवारसंयुतेन श्रीभगवद्भक्तिवशात् श्रीऋषभदेवजी पादुका कारापितं प्र० श्रीमद्विजैगच्छे भट्टार्क श्रीपूज्यजी श्री १०८ श्रीमन्महेन्द्रसागरसूरिभिः प्रतिष्ठा कारापितं ॥ शुभंभवतु। मङ्गलं भूयात् ॥ श्रीरस्तु॥ श्रीः॥ (३७०) सिद्धचक्र-यन्त्रम् ॥ सं० १८३९ आश्विन शुक्ल १५ दिने कोटिकगण चन्द्रकुलाधिराज श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीसिद्धचक्रयन्त्रं कारापितं सुराणा अभयचन्द्रेण स्वश्रेयसे वा। श्रीलावण्यकमलगणिनामुपदेशात्॥ (३७१) सिद्धचक्रयन्त्रम् । ॥ सं० १८३९ कार्तिक शुक्ल ११ दिने कौटिकगणचन्द्रकुलाधिराजः श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं सिद्धचक्रयन्त्रमिदं कारापितं। लू। घासीराम। उत्तमचन्द्रादि सपरिकरैः स्वश्रेयसे। वा। लावण्यकमलगणिनामुपदेशात् ।। (३७२) शान्तिनाथः ॥ सं० १८४० वैशाख कृष्ण ७ बुधे तपागच्छे भ। श्रीविजयधर्मसूरि -राज्ये गागरडुनगरे सुचिंतीगोत्रे साहजी सांवतसिंहजी तत्पुत्र चोधरी दोलतरामजी..........। (३७३) पार्श्वनाथः ॥ सं० १८४० वर्षे शा० १७०५ प्र० मा० वैशाखमा० शुक्लपक्षे तिथौ ३ रविवा० ओशवंशे वृद्ध० सं० रायमल तत् सं० देवीचंद त० भ्रा० ३६९. जयपुर मोहनबाड़ी ३७०. जयपुर विजयगच्छीय मंदिर ३७१. जयपुर पञ्चायती मंदिर ३७२. गागरडु आदीश्वर मंदिर ३७३. जयपुर पञ्चायती मंदिर For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः आंबरदेशाधिप्रदत्त दीवाणपदस्तेन धर्ममूर्ति सं० जीवराज त० जिवणादे त० मोहनराम रामगोपाल कमलापति सपरिवारयुतेन जैन धर्म सुमहिमाकृता तत्समये खोहनगरे देवस्थलस्थापनार्थे श्रीपार्श्वनाथबिंबं संघ सं० फतेहचंद तत्सुत..........कारापितं राजपुरवरे राजा हम्मीरसिंघराज्ये श्रीमद्विजयगच्छे वृद्धशाखायां.........प्रतिष्ठितं भ० श्रीपूज्यमहेन्द्रसागरसूरिभिः॥ __ (३७४) ........यन्त्र . सं० १८४० भादौ मासे सुकलपछे पञ्चमी ५ सोमवारे ता दिन श्रीअष्टान्हिका व्रत उद्यापन करेसि..........। (३७५) आदिनाथ-मूलनायकः श्रीआदिजिनख्खिंबं। ॥ संवत् १८४० वर्षे शाके १७०५ प्रवर्तमाने मिति फागुणसुदि ७ तिथौ भृगुवासरे श्रीविजयधर्मसूरिजी..........उपदेशात् अजयचंद कारितं च प्रतिष्ठापिता करापितं श्रीगागरडुग्रामे वीशा नौतिघसिंघजी रा। (३७६) चतुष्कपादुका ॥०॥ संवत् १८४२ वर्षे शाके १७०७ प्रवर्तमाने मासानां मासोत्तममासे वैशाख मासे शुभे कृष्णपक्षे तिथौ पञ्चम्यां भृगुवासरे पादुका प्रतिष्ठितं। ॥ श्रीआदिनाथपादुका स्थितं। ॥ पं० श्रीसुवधीसागरजी पादुकाः॥ पं० श्रीप्रतापसागरजी पादुकाः॥ पं० श्रीजिनरंगसागरजी पादुकाः॥ पं० श्रीनित्यसागरजी पादुका प्रतिष्ठितं ॥ शुभंभवतुः कल्याणमस्तुः द्रव्यपुरनगरमध्ये प्रतिष्ठितः॥ श्री॥ (३७७) सिद्धचक्रयन्त्रम् सं। १८४२ मिति माघ कृष्ण ११ गुरुवासरे कौटिकगण चन्द्रकुला- वतंस खरतरभट्टारक। जं। श्रीजिनचन्द्रसुरीणामुपदेशात् कारापितं स्वश्रेयसे लूणिया उत्तमचन्द्रेण सिद्धचक्रयंत्रप्रतिष्ठितं । वाचक। लावण्यकमलगणिना ३७४. जयपुर पञ्चायती मंदिर ३७५. गागरडु आदिनाथ मंदिर ३७६. मालपुरा ऋषभदेव मंदिर ३७७. सांगानेर महावीर For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (३७८) आदिनाथ: सं० १८४३ वर्षे वैशाख कृष्ण ७ बुधे। तपागच्छे। भ। प्र० श्रीविजयधर्मसूरिराज्ये। गागरडुनगरे। संचेतीगोत्रे। साहजी साह वृद्धिसिंहजी तत्पुत्र चांदजी दोलतरामकेन श्री आदिनाथबिंबं कारापितं। प्रतिष्ठितं पं। मयासागरगणिना ठाकुर श्रीनौतिघसिंहजी॥ (३७९) पादुका-युगल ॥ सं० १९१३ वर्षे शाके १७७८ मिगसर शुक्लपक्षे १० म्यां तिथौ रविवासरे श्रीअजमेरनगरे श्रीआदिनाथस्य गौडीपार्श्वजिनस्य पादुका श्रीसकल श्रीसंघेन श्रेयोर्थं स्थापितं ॥ श्रीरस्तु॥ (३८०) पादुकात्रयम् ॥ संवत् १८४५ शाके १७१० प्रवर्तमाने फाल्गुन शुक्लपक्षे द्वितीयायां तिथौ शुक्रवासरे। पं। श्रीरत्नसूक्त। पं। श्री पू० श्रीसत्यसागरगणिनां पादुके स्थापिते प्रतिष्ठिते च॥ श्रीऋषभदेवजी री पादुका छ। पं० श्रीरत्नसागरजी रा पादुका छे ॥ पं० श्रीसत्यसागरजी रा पादुका छ॥ (३८१) आदिनाथः ॥ संवत् १८४७ का मिति आषाढ सुद ३। भा। श्रीमाल मादसदरामजी तत्पुत्र चंदभाणजी श्री रिखबनाथबिंबं प्रतिष्ठितं । (३८२) जिनलाभसूरिपादुका ॥ संवत् १८४७ मिते माघ सुदि द्वितीयायां शनौ श्रीबृहत्खरतरगच्छे। भ। जं। यु। भट्टारक श्रीजिनलाभसूरिपादुके प्रतिष्ठिते च। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। कारिते च। ग्यानसारिणा॥ (३८३) सिद्धचक्र-यन्त्रम् संवत् १८४८ आश्विन शुक्ल १५ दिने तपागच्छाधिराज श्रीविजैजिनेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं सिद्धचक्रयंत्रमिदं कारापितं पटणी बाहादुरसिंहेन स्वश्रेयसे पं० पुन्यविजै गणीनामुपदेशात्॥ ३७८. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर ३७९. अजमेर दादाबाड़ी गौड़ी पार्श्वनाथ मंदिर ३८०. मेड़ता सिटी पार्श्वनाथ मंदिर, बगीची ३८१. जूनिया जैन मंदिर ३८२. सांगानेर दादाबाड़ी ३८३. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ভও प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (३८४)..........पादुका ॥ संवत् १८५० वर्षे मिति ज्येष्ठ शुदि दशम्यां १० बुधवासरे पं। प्र। श्रीहितसेदबजित्कस्य (?) पादुके कारापिते। पं। दीपचन्द्रेण प्रतिष्ठिते च भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः रत्नवत्यां श्रीरस्तु॥ (३८५) अमृतोदय-पादुका ॥ संवत् १८५० रा मिति ज्येष्ठ सुदि दशम्यां बुधवासरे। पं। श्रीअमृतोदयजित्कस्य पादुके कारापिते पं। हेतोदयेन प्रतिष्ठिते च भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः रत्नवत्यां श्रीस्तात्। (३८६) अमृतोदय-पादुका ॥ संवत् १८५० रा मिति ज्येष्ठ सुदि दशम्यां बुधवासरे। पं। प्र। श्रीअमृतोदयजित्कस्य पादुके कारापिते पं। हेतोदयेन प्रतिष्ठिते च भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः रत्नवत्यां श्रीस्तात्।। (३८७) शिलापट्ट-लेख: ॥ ॐ ह्रीं श्रीं जिनाय नमः॥ श्रीतीर्थंकर राजविश्वसुखकृच्चिन्तामणिर्मुक्तिरो..........भूतलविश्वदेतय उपाध्याय चिजिरोत्तमः......... पाटसदोरुहाणि विधिवत् प्रातिष्ठिवत्वैत्ययोश्चैत्ये चित्तहरं पुण्यविजय सत्कृत्यसंघं मुदा ॥ १॥ अब्दे रामशरद्विपात्रप्रमिते माघस्य शुक्ले तिथौ। पञ्चम्यां गुरुवासरे विजययुग् जैनेन्द्रसूरीश्वरे। भूलोके जयति प्रतापनृपते राज्ये बुधैरन्विते रम्ये दुर्गशिरोमणौ पृथुहरे श्रीकृष्णदुर्गे शुभे॥ २॥ श्रीमाणभद्र भैरवाय यहाँ स्थापितं॥ (३८८) पार्श्वचन्द्रसूरि-पादुका । श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिपादुके ॥ सं० १८५२ ज्येष्ठ सुदि ५ सोमवारे भट्टारक श्री १०८ श्री कनकचन्द्रसूरीश्वरजी तच्छिष्य श्री पं। श्रीलाखणचन्द्रगणि.. त्य..........प्रतिष्ठितं। ..... ३८४. रतलाम अमृतसागर दादाबाड़ी ३८५. रतलाम अमृतसागर दादाबाड़ी ३८६. रतलाम श्मसान ३८७. किसनगढ़ हीरविजयसूरि बगीची ३८८. नागोर पायचंद गच्छ दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (३८९) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५२ पोष सुदि ४ दिने बृहस्पतिवासरे। श्रीसिद्धचक्रयन्त्र -मिदं प्रतिष्ठितं। वा। लालचन्द्र गणिना। कारितं। सवाईजयनगरवास्तव्य। सेठ। वखतमल। तत्पुत्र सुखलालेन श्रेयोर्थं ॥ छ॥ (३९०) सिद्धचक्रयन्त्रम् ___ संवत् १८५२ पोष सुदि। ४ दिने। बृहस्पतिवासरे। श्रीसिद्धचक्रयन्त्रमिदं। प्रतिष्ठितं। सवाई जैनगरमध्ये वा। लालचन्द्रगणिना। बृहत्खरतरगच्छे। कारितं। बीकानेर वास्तव्य कोठारी जैठमल्लेन श्रेयोर्थं ॥ श्री॥ (३९१) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५२ वर्षे पोष सुदि ४ दिने सिद्धचक्रयन्त्रमिदं प्रतिष्ठितं। वा। लालचन्द्रगणिना कारिता सवाई जयनगरमध्ये समस्त श्रीसंघेन। बृहत्खरतरगच्छे। शुभमस्तु ॥ (३९२) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५२ पोष सुदि ४ दिने। बृहस्पतिवासरे। श्रीसिद्धचक्रयन्त्र -मिदं। प्रतिष्ठितं। वा। लालचन्द्र गणिना बृहत्खरतरगच्छे। कारितं सवाई जैनगरवास्तव्य। श्रीमाल। रतनचंद। टोडरमल्लेन। श्रेयोर्थम्॥ श्री श्री॥ (३९३) पार्श्वनाथ-पादुका ॥ संवत् १८५२ वर्षे माघ शुक्ल पञ्चम्यां गुरुवारे श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथ पादुकस्यापि कारितं पुण्यविजय उपदेशात् श्रीसंघेन कारापिता ॥ श्रीरस्तु॥ ___(३९४) सिद्धचक्रयन्त्रम् संवत् १८५३ वर्षे वैशाख मासे। शुक्लपक्षे तिथौ। ४ श्रीसिद्धचक्रयन्त्र प्रतिष्ठितं। वा। लालचन्द्र गणिना। कारितं जेसलमेरुवास्तव्य। बोहरा गोत्रे । बाई। मङ्गली। सुश्राविकया। श्रेयोर्थं । शुभंभवतुः॥ ३८९. जयपुर पञ्चायती मंदिर ३९०. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर ३९१. जयपुर नया मंदिर ३९२. जयपुर मोहनबाड़ी ३९३. किसनगढ़ हीरविजयसूरि बगीची ३९४. जयपुर पञ्चायती मंदिर For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभाग: ७९ (३९५) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५३ केषु। वैशाखमासे। शुक्लपक्षे। तिथौ। ४। श्रीसिद्धचक्रयन्त्रं प्रतिष्ठितं। वा। लालचन्द्रगणिना। कारितं। सोज्झित नगर वास्तव्य। उसवालज्ञातीय। बलाही गोत्रे। ओटामल श्रेयोर्थम् ॥ श्रीः॥ (३९६) दादा-पादुके ॥ सं० १८५३ वर्षे आश्विन सुदि विजयदशम्यां श्रीजिनदत्तसूरि । जिनकुशलसूरिपादुके कारापिते श्रीमरुदेशवास्तव्य श्रीसंघेन प्रतिष्ठिते च श्रीखरतराचार्यगच्छीय जं० यु० प्र० । श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयि राज्ये पं। सिद्धिसेनेन मुनिना शुभंभवतु॥ श्रीउज्जैनी पुर्यां सराफा मध्ये धर्मशालायाम्॥ श्री॥ (३९७) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५३ वर्षे । आसु सुदि। १५ । दिने। रविवासरे। श्रीसिद्धचक्रयंत्रं । कारितं। बीकानेरवास्तव्य। बाघचार। नथमल। सावंतसिंहेन । प्रति। श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिभिः। तपागच्छे। श्रीसवाई ॥ जैनगरमध्ये ॥ श्री (३९८) आदिनाथ-मूलनायकः ॥ संवत्१८५४ वर्षे वैशाख शुदि ३ सोमे श्री.. .........महणसिरीति पुत्रा........श्रीमुणिविशाल की.........। (३९९) वासुपूज्य-एकतीर्थीः सं० १८५४ माघ वदि ५ चन्द्रे वा० ६ फुलवर्द्धि श्रीवासुपूज्यबिंबं का। श्री सामलानी पोल (४००) सिद्धचक्रयन्त्रम् । संवत् १८५५ प्रमिते। आश्विन शुक्ल पौर्णिमास्यां बुधवासरे। मरोटी। तनसुखराय तत् भार्या बिजू श्राविकया। श्रीसिद्धचक्रयन्त्रमकारि। प्रतिष्ठितं च। वाचक। लावण्यकमल गणिभिः॥ श्रीग्वालेर मध्ये। श्रेयोर्थम्ः॥ ३९५. जयपुर पञ्चायती मंदिर ३९६. उज्जैन दादाबाड़ी सर्राफा ३९७. जयपुर पद्मप्रभ मंदिर घाट ३९८. बसवा यतिजी का मंदिर ३९९. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर ४००. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४०१) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५५ प्रमिते मिती आश्विन शुक्ल पूनिम तिथौ बुधवासरे श्रीबीकानेर स्थित सूराणा विनयचंदजी तत्पुत्र धर्मदासेन श्रीसिद्धचक्रयन्त्रमकारि॥ प्रतिष्ठितं च। वा। लावण्यकमलगणिना। श्रेयोर्थं ॥ श्रीः। श्रीः॥ (४०२) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५५ प्रमिते। आश्विन शुक्ल पौर्णिमास्यां बुधवासरे। श्रीबीकानेरस्थित। सू० विनयचंद। तत्पुत्र। अभयराजेन श्रीसिद्धचक्रयन्त्रं कारितं। प्रतिष्ठितं च वा। लावण्यकमलगणिना। श्रीग्वालेर मध्ये॥ श्रीः॥ ___(४०३) सिद्धचक्रयन्त्रम् । संवत् १८५६ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे तिथौ ३ बुधे श्रीसिद्धचक्रयन्त्रं प्रतिष्ठितं श्रीमद्धृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः जयनगरवास्तव्य श्रीमालान्वये महिमवालगोत्रीय खूबचंद त० फतेचंद सपरि० कारितं स्वश्रेयोर्थम् ॥ (४०४) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॥ संवत् १८५६ रा शाके १७२१ प्रवर्तमाने मासोत्तम मार्गशीर्ष सुदि ५ रवौ उपकेशगच्छे पूज्य भ। श्री १०८ श्रीसिद्धसूरिभिः प्र। श्रीसमस्त श्रीसंघसहिते श्रेष्ठि गोत्रे वैद्यशाखायां श्रीसरूपचन्द्र तत्पुत्र नयचन्द्रेण श्रीशान्तिनाथदेवालयं प्रतिष्ठापितं कवलागच्छे श्रीरस्तु॥ (४०५) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ सं० १८५६ माघ मासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ गुरौ श्रीसिद्धचक्रयन्त्रं प्रतिष्ठितं श्रीमबृहत्खरतरगच्छे भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः जयनगरवास्तव्य श्रीमालान्वये फोफलीया गोत्रीय आनंदराम त० खूबचंद पुत्र बहादुरसिंघ सपरिवारेण कारितं स्वश्रेयोर्थम् ॥ ४०१. जयपुर लीलाधरजी का उपाश्रय ४०२. खोह चन्द्रप्रभ मंदिर ४०३. वरखेड़ा ऋषभदेव मंदिर ४०४. मेड़ता सिटी उप.ग. शांतिनाथ मंदिर ४०५. जयपुर पञ्चायती मंदिर For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ८१ (४०६) सिद्धचक्रयन्त्रम् ॥ संवत् १८५६ वर्षे माघ मासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ गुरौ श्रीसिद्धचक्र यन्त्रं प्रतिष्ठितं श्रीमद्धृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः जयनगरवास्तव्य श्रीमालान्वये खारडगोत्रीय गूजरमल त० छीतर केवल सपरिवारेण कारितं स्वश्रेयोर्थम् ॥ (४०७) पार्श्वनाथ-एकतीर्थी रौप्यमयः ॥ सं० १८५६ शाके १७२१ प्र० माघ सुदि ५ गुरौ। के....... दीपचंद पुत्र सा। अमरचंदजी श्रीपार्श्वबिंबं करापितं। जं। यु। भ। श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (४०८) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ सं० १८५६ वर्षे माघ मासे शुक्लपक्षे तिथौ ५ गुरौ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं श्रीमबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः जयनगरवास्तव्य श्रीमालान्वये झरगड़गोत्रीय रोसनराय पृथ्वीचंद खुस्यालचंद सपरिवारेण कारितं स्वश्रेयोर्थम्॥ (४०९) जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥ संवत् १८५६ मिते फाल्गुन सुदि सप्तम्यां रवौ श्रीबृहत्खरतरगच्छे । जं। यु। भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरीणां पादुके। प्रतिष्ठिते च। श्रीजिनहर्षसूरिभिः कारिते वा। ग्यानसारिणा। (४१०) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ संवत् १८५७ नामा वर्षे श्रावण सुदि ७ दिने श्रीमालज्ञाति सा० कपूरचंद पुत्र निहालचंद भार्या दीवाली करापितं पं० चैनसागर गणि तत्शिष्य पं० त्रिलोकसागर गणि प्रतिष्ठितं श्रीबरहामपुरनगर ॥ (४११) पुण्यविजय-पादुका ॥ संवत् १८५७ वर्षे मिते माघ कृष्ण..........पं० श्रीपुण्यविजयजी गणि चरणपादुका स्थापिता पं० प्रतापविजयजी जीवनविजयेन कारितम्॥ ४०६. जयपुर पञ्चायती मंदिर ४०७. जयपुर पञ्चायती मंदिर ४०८. सांगानेर महावीर मंदिर ४०९. सांगानेर दादाबाड़ी ४१०. किसनगढ़ आदीश्वर मंदिर ४११. किसनगढ़ हीरविजयसूरि बगीची For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४१२) नवचरण-पादुका संवत् १८५८ माघ शुक्ल ५ गुरुवारे भट्टारक श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिविजयराज्ये उ० श्रीऋद्धिविजय जी गणि पादुका स्थापितं हरिदुर्गे राठौरवंश .....................विजयगणि पं० प्रतापविजय पं० जीवनविजय कारिता प्रतिष्ठिता च श्रीसंघेन पं० रामविजय उपदेशात्। भट्टारक श्री हीरविजयजी उ० श्रीरिद्धि- विजय जी उ० श्रीसोमविजय जी गणि उ० श्री चारित्रविजयजी गणि पं० रविविजय जी पं। श्री धर्मविजयजी पं० प्रमोदविजयजी पं० मुक्तिविजयजी पं० भीमविजयजी॥ (४१३) शान्तिनाथ-मूलनायकः ॥ सं० १८६० रा। मि। वै। सु। ७ श्रीशान्तिनाथजिनबिंब का० प्र० श्रीजिनहर्षसूरिभिः सा। परमाणंद देवीकोटमध्ये। (४१४) युगप्रधान-जिनकुशलसूरि-पादुका ऐं० । १८६० वर्षे शाके १७२५ प्र। माघमासे शुक्लपक्षे ७ तिथौ गुरुवासरे कृष्णगढ़नगरवास्तव्य सकल श्रीसंघेन श्रीजिनकुशलसूरिपादुका जीर्णोद्धार करापितं। प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छीय भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। वा। श्रीविजयादिसप्तपरिकरैः महाराजाधिराज महाराज श्रीकल्याणसिंहजी विजयराज्ये। शुभंभूयात्। चिरंनंद्यात् ॥ श्रीकल्याणमस्तु॥ (४१५) पुण्यप्रिय-पादुका ॥ सं० १८६१ मिते चैत्र ३ चन्द्रे वा० पुण्यप्रियगणिना पादुका प्रतिष्ठितं भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (४१६) युगप्रधान-जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १८६२ आषाढ़ सुदि १० तिथौ श्रीजयनगरे धर्मशालायां। वा। लावण्यकमलवचनात् श्रीसंघेन श्रीबृहत्खरतरगच्छेश। भ। श्रीजिनकुशलसूरीणां पादन्यासः कारितः प्रतिष्ठितश्च श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ श्री रस्तु ४१२. किसनगढ़ हीरविजयसूरि बगीची ४१३. मंडार दफ्तरियों का मंदिर ४१४. किसनगढ़ दादाबाड़ी ४१५. किसनगढ़ यति स्वरूपचंदजी का उपाश्रय ४१६. जयपुर इमली वाली धर्मशाला For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४१७) दादापादुकायुगलम् संवत् १८६२ मिते माघ सुदि पञ्चम्यां श्रीजयनगराभ्यणे। श्रीबृहत्खरतरगच्छीय युगप्रधान भ। श्रीजिनदत्तसूरीणां। भ। श्रीजिनकुशलसूरीणां पादन्यासैः। श्रीजिनहर्षसूरिविजयि राज्ये। पं। ज्ञानसारमुनिना कारापिता प्रतिष्ठापितौ च। तथामेव पूज्यानामुपदेशात् ॥ (४१८) जिनलाभ-जिनचन्द्र-पादुकायुगल ॥ सं० १८६२ मिते माघ सुदि पञ्चम्यां श्रीजयनगराभ्यणे। श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश। यु। भ। श्रीजिनलाभसूरीणां। श्रीजिनचन्द्रसूरीणां पादन्यासैः श्रीजिनहर्षसूरिविजयिराज्ये। पं। ज्ञानसारमुनिना कारितौ प्रतिष्ठापितौ च॥ (४१९) रत्नराजगणि-पादुका संवत् १८६२ मिते माघ सुदि पञ्चम्यां श्रीजयनगराभ्यणे। श्रीबृहत्खरतरगच्छेश। भ। श्रीजिनलाभसूरिशिष्य पंडितप्रवर श्रीरत्नराजगणिना पादन्यासः। श्रीजिनहर्षसूरिविजयि राज्ये। पं। ज्ञानसारमुनिना कारितः प्रतिष्ठापितश्च ॥ (४२०) ज्ञानसार-पादुका सं० १८६२ मिते माघ शुदि पञ्चम्यां। श्रीजिनहर्षसूरिविजयिराज्ये। विद्वद्वर्य श्रीरत्नराजगणि शिष्य प्राज्ञ ज्ञानसार मुने (:) विद्यमानस्य। पादन्यासः। शिष्यवर्गेण कारिता प्रतिष्ठापितश्च। (४२१) चन्द्रप्रभ-मूलनायकः ___ सं० १८६२ वर्षे फा.........कांकरीया गोत्रे चन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्र० खरतरगच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीशिवचन्द्रयुतैः॥ (४२२) सर्वतोभद्रयन्त्रम् ॥ श्रीसर्वतोभद्रनामयन्त्रमिदं ॥ सं। १८६३ मिते आश्विन सुदि २ माघ वदि १० दिने प्रतिष्ठितं। उ। श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः। ४१७. जयपुर मोहनबाड़ी ४१८. जयपुर मोहनबाड़ी ४१९. जयपुर मोहनबाड़ी ४२०. जयपुर मोहनबाड़ी ४२१. खोह चन्द्रप्रभ मंदिर ४२२. जयपुर पञ्चायती मंदिर For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४२३) चन्द्रप्रभः । सं० १८६३ शा० १७२८ श्रीचन्द्रप्रभुबिंबं विजैगच्छे श्रीभट्टारक श्रीपूज्य श्रीआनन्दसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं। श्रीमन्महाराजाधिराज श्रीसवाई जगसिंहजी राज्ये बैंतड़िया मेडीगहडागोत्रे-तृ श्री सा० हरजी सुत० बहमजी रामवाला प्रतिष्ठा करापितं। (४२४) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ सं० १८६४ आसोज सुदि १५ शुक्ले श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं श्रीजिनेन्द्रसूरिभिः मेडतानगर वास्तव्य वैद्य सचिव गोत्रीय सु० श्री बीका उम्मेदा कारितं॥ (४२५) ऋषिमण्डलयन्त्रपट्टः ॥ सं० १८६४ मिते फाल्गुन शुदि २ श्रीजयनगरे श्रीऋषिमण्डलयन्त्रमिदं प्रतिष्ठितं । उ। श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः। कारितं कोठारी जेठमल्लेन श्रेयोर्थं ॥ श्रीः (४२६) शिलालेखः ___ संवत् १८६५ वर्षे फागुण वदि १३ रविवारे श्रीबृहत्खरतरगच्छे जंगम युगप्रधान सकलभट्टारिक शिरोमणि भट्टारिक श्रीश्री १०८ श्री श्रीजिनचन्द्रसूरिजी सूरीश्वरेण सकलश्रीसंघसहितेन नालमंडपं नूतनं कारापितं चैत्यसर्वेपि जीर्णोद्धार कारापिता। लिखितं जैराज सूत्रधार रायभद्रजी पुत्र ढालजी कृतं वास जोधपुर श्रीरस्तु कल्याणमस्तु। (४२७) सिद्धचक़यंत्रम् ॥ संवत् १८६६ मिते मार्गशीर्ष वदि ५ सोमे। श्री जयनगरे । बुहरा कस्तूरचंद वृद्धभार्या अब्बूबाई। नाम्न्या श्रीसिद्धचक्रयंत्रं कारितं। प्रतिष्ठितं च। उ। श्रीक्षपाकल्याणगणिभिः। सर्वेषां भऊजन्तूनां श्रेयसे भवतु ॥ श्री: ४२३. बैंतेड विमलनाथ मंदिर ४२४. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर ४२५. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर ४२६. नाकोड़ा ऋषभदेव मंदिर मुख्य मंडप के पास ४२७. जयपुर पञ्चायती मंदिर For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४२८) पद्मावतीयन्त्रम् सं० १८६७ कार्तिक मासे दीपोत्सवतिथौ श्रीमालान्वये सांगीयानगोत्रे मनसुखरायेन कारितं पद्मावतीयंत्रं प्रतिष्ठितं च। भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः स्वश्रेयोर्थम् श्रीः (४२९) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ सं० १८६९ चैत्र सुदि १५ शुक्रे श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिभिः कारापितं च किसनगढ़ वास्तव्य सिंखली मगनीराम श्रेयोर्थं ॥ (४३०) यु० जिनकुशलसूरि-पादुका । सं० १८६९ शाके १७३४ दादाजी श्रीजिनकुशलजी का चरण वैशाख वदि ५......... (४३१) यु० जिनकुशलसूरिपादुका रौप्यमयी । सं० १८६९ फा० शुदि ३ शुक्रे श्रीजिनकुशलसूरिपादुका भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (४३२) सप्तसप्ततिगुरुपादुकापट्टः ।संवत् १८६९ वर्षे शाके १७३४ प्र। फाल्गुन मासे शुक्लपक्षे ३ तिथौ शुक्रे श्रीमहावीरप्रभृति-सप्तसप्ततिपादुकाचक्रं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीजयनगरवास्तव्यः सर्वश्रीसंघेन श्रेयोर्थं महाराजाधिराज श्रीसवाई जगतसिंहविजयराज्ये सर्वपौरजन-लोकानां शुभं भूयात् पादुकाराधकभव्यानां सदा वृद्धितरां भूयात् ॥ (४३३) यु० जिनकुशलसूरिपादुका ॥ संवत् १८६९ वर्षे शाके १७३४ प्रवर्तमाने फाल्गुनमासे शुक्लपक्षे ३ तिथौ शुक्रवासरे श्रीजिनकुशलसूरिपादुका प्रतिष्ठितं श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। शुभं भूयात्। ४२८. जयपुर पञ्चायती मंदिर ४२९. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर ४३०. जयपुर मोहनबाड़ी ४३१. जयपुर पञ्चायती मंदिर ४३२. जयपुर श्रीमालों का मंदिर ४३३. किसनगढ़ खरतरगच्छ उपाश्रय For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४३४) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ सं० १८७० मिते आषाढ सुदि ८ दिने मेडतावास्तव्य महिमिया गोत्रीय साह रौडमल्लेन श्रीसिद्धचक्रं कारितं प्रतिष्ठितं च वाचनाचार्य श्रीअमृतधर्मगणिशिष्य पाठक श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः॥ (४३५) अनोपचंद महमिया पादुका ॥ दादाजी श्री अनोपचंदजी महमइयाजी का रा पगल्या का मिति मिगसर वद ९ अदीतवारे सं। १८७१ का अजमेलगा आऊको संपूरण कीनो॥ (४३६) विजयधर्मरलसूरि-मूर्तिः ॥ संवत् १८७२ शाके १७३७ प्रवर्तमाने द्वितीय चैत्र सुदि १३ शुक्रे दिने सकलभट्टारकपुरंदर भट्टारक श्री १०८ श्रीविजयक्षमासूरीश्वर तत्पट्टे भट्टारक श्री १०८ श्रीविजयदयासूरिजी तत्पट्टे भट्टारकजी श्री १०८ श्रीविजयधर्मरत्नसूरीश्वराणां बिंबं निर्मापितं भट्टारकजी श्री १०८ श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठिता तपागच्छे मेडतानगरे शुभंभवतु ॥ (४३७) सागरचन्द्र-पादुका ॥ स्वस्ति श्री ॥ संवत् १८७२ शाके १७३७ तत्र वैशाख सुदि ६ षष्ठी तिथौ रविवासरे पुष्यनक्षत्रे पं। प्र। पं। श्री १०८ श्रीसागरचन्द्रजिन्महर्षिणां चरणौ प्रतिष्ठितौ। (४३८) ताम्रपत्र-लेखः ओम्॥ श्रीगणेशाय नमः॥ संवत् १८७२ वर्षे शाके १७३७ आषाढ़ सुदी ६ बुधवासरे। इष्टघटि ६। ३३ तत्समये लग्नप्रवर्तमानसमये श्रीवर्द्धमानजिनस्य मंदिरं प्रतिष्ठितं महाराव जी महाराज श्री श्री ५ श्री उम्मेदसिंहजी विजयराज्ये ॥ राजश्री श्री जालिमसिंहजी वचनात् मन्दिर कारितम् उम्मेदपुर छावनीमध्ये सकलसंघस्ये कोपे भयात् (?) सकलसंघेन कारितम्॥ कारीगर उम्मेदराजेन लिखितम्॥ ४३४. अजमेर संभवनाथ मंदिर ४३५. अजमेर दादाबाड़ी ४३६. मेड़ता सिटी पार्श्वनाथ मंदिर बगीची ४३७. अजमेर दादाबाड़ी ४३८. वृजनगर (झालावाड़) महावीर मंदिर For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४३९) मुनिसुव्रतः सं० १८७६ व। मा। सावण सुदि १ चतुर्विधसंघेन श्रीमुनिसुव्रतबिंब करापितं प्र। भ। श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिभिः (४४०) यु. जिनचन्द्रसूरिपादुका ॥ संवत् १८७७ का मिति चेत वदि १० यु० श्रीदादाजिनचंदसूरजि संचेती ध० हरखचंदजी (४४१) शिलालेखः । १॥ त्रिलोकप्रभुः श्रीचन्द्रप्रभस्वामिजिनेन्द्राणामयं प्रासादश्चिरं विजयताम्॥ सम्वत् १८७७ प्रमिते। शाके १७४२ प्रवर्तमाने। मासोत्तम द्वितीय ज्येष्ठ मासे वलक्षपक्षे पूर्णिमा तिथौ। यामिनीनाथवासरे। राजराजेश्वर श्रीमन्महाराजाधिराज श्रीसवाई जयसिंहजितां विजयमाने साम्राज्ये। बृहत्खरतर-गच्छेश जं। यु। भ। श्रीजिनहर्षसरिजितां धर्मराज्ये विद्यमाने। श्री आम्बेर नगरे। श्रीसवाई जयनगरादिवास्तव्य समस्तश्रीसंघेनासौ कारितः॥ श्रीक्षेमकीर्ति-शाखोद्भव महोपाध्याय श्रीरूपचन्द्रजिद्गणिगजेन्द्राणां शिष्य मुख्यवाचक श्रीपुण्यशीलजिद्गणीनां पौत्र विनेय महोपाध्याय श्रीशिवचन्द्रगणिना प्रासादोयं प्रतिष्ठितश्च। श्रीरस्तु (४४२) यु० जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ संवत् १८७७ मिति माघ सुद ५ शनिः श्रीजिनकुशलसूरिपादुका कारापितं पुन्यार्थेन प्र० श्रीजिनचन्द्रसू० (४४३) शान्तिनाथः संवत् १८७७ वर्षे माघ सुदि..........यदेतीयस श्रीशान्तिनाथबिंब कारितं चारित्रउदयउपदेशात् श्रीमद्धृहद्भट्टारकखरतरगच्छे। जं। यु। श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थ.........श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः वृद्धितरा भूयात् ।। ४३९. उज्जैन अवंति पार्श्वनाथ मंदिर ४४०. जयपुर लीलाधरजी का उपाश्रय ४४१. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर ४४२. जयपुर लीलाधरजी का उपाश्रय ४४३. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४४४) पार्श्वनाथ-एकती ः । सं०। १८७७ माघ शुक्ल पूनम बुधे श्रीपार्श्वनाथजिनबिंब करितं । प्र। बृ। भ। ख। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः (४४५) नेमिनाथः ॥ संवत् १८७८ (व)र्षे आषाढ़ सुदि नवम्यां रवौ चोपड़ा श्रीरूपचंदजी श्रीनेमिनाथबिंबं कारितं भ० श्रीजिनअक्षयसूरिभिः (?) प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे॥ (४४६) यु० श्रीजिनदत्तसूरिपादुका ॥ संवत् १८७८ वर्षे फागुण सुदि ३ रवौ जं। यु। भ। १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजी चरणं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छे पं० पद्महंसेन श्रीअजमेर दुर्गे.........। (४४७) दादा-पादुका-युगल ॥ संवत् १८७८ वर्षे शाके १७४३ प्रमिते फागुण सुदि ३ सूर्यवारे जं। यु। प्र। भट्टारक श्रीजिनदत्तसूरिजी चरणकमलं। जं। यु। भ० श्रीजिनकुशलसूरिजी चरणकमल खरतरगच्छे सकल श्रीसंघेन सत्कः.......... नि स्थापितं प्रतिष्ठितं च अजमेर मध्ये॥ (४४८) हीरसागरपादुका ९. ॥ श्रीहीरसागरजी चरणांरि प्रतिष्ठा ज्ञानसागर कराई मालपुरा मध्ये मिगसर सुद ५ बृहस्पतवार सं० १८८० (४४९) दयासागर-पादुका ॥ श्री दयासागरजी चरणांरि प्रतिष्ठा ज्ञानसागर..........हीसगर (?) मालपुरा मध्ये मिगसर सुद ५. सं० १८८० बृहस्पतवार ४४४. जयपुर श्रीमालों का मंदिर ४४५. जयपुर पञ्चायती मंदिर ४४६. किसनगढ़ खरतरगच्छ उपाश्रय ४४७. अजमेर दादाबाड़ी ४४८. मालपुरा ऋषभदेव मंदिर ४४९. मालपुरा ऋषभदेव मंदिर For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख -संग्रह : द्वितीयो विभागः ( ४५० ) पादुकात्रयम् श्री ऋषभदेव जी रा पादुका छे संवत् १८८० रा शाके १७४५ रा प्रवर्तमाने मासोत्तममासे आसोजमासे कृष्णपक्षे १४ तिथौ साध्वीजी श्री १०८ श्रीरत्न श्रीजी धाम प्राप्त हुए, तिणोरा पादुका पधराया । सं० १८८३ रा माघ सुदि १० भौमवारे प्रतिष्ठितं ॥ सा० चन्द्र श्री कारापितं ॥ श्रीतपागच्छे । श्रीमाणिक श्रीजी पादुका छे । श्रीरत्न श्रीजी पादुका छे 11 ( ४५१) जीर्णोद्धार - प्रशस्तिः ॥ संवत् १८८२ शाके १७४७ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे द्वितीय श्रावणमासे शुक्लपक्षे १२ तिथौ गुरुवासरे खरतरभट्टारकगच्छे श्री जिनसुखसूरिशाखायां । पं । प्र । श्रीकीर्तिवर्द्धनजी गणि । पं । प्र । श्रीइलाधर्मजी गणि। पं । प्र । श्रीविनीतसुंदरजी गणि । तच्छिष्य । पं । गजानन्द मुनि उपदेशात् श्रीखरतरसंघेन दादाजी श्रीश्रीश्री जिनकुशलसूरीणां छत्तरिकाणां जीर्णोद्धारकरापितं ॥ ८९ (४५२) आदिनाथ- पादुका संवत् १८८३ का सा वैशाख सुदि ३ श्री आदिनाथ - चरणारविंदप्रतिष्ठितं । (४५३) सर्वतोभद्रयन्त्रम् ॥ श्रीसर्वतोभद्रनामयन्त्रमिदम् ॥ संवत् १८८३ मिति मिगसर वदि २ दिने । प्रतिष्ठितं पं । प्र । श्रीक्षान्तिरत्नगणिभिः ॥ जैपुरमध्ये ॥ (४५४) सर्वतोभद्रयन्त्रम् ॥ श्री सर्वतोभद्रनामयन्त्रमिदं ॥ संवत् १८८३ मिति मिगसर वदि २ दिने प्रतिष्ठितं । पं । प्र । श्रीक्षान्तिरत्नगणिभिः ॥ जैपुरमध्ये | ( ४५५ ) पार्श्वनाथ - एकतीर्थी : सं० १८८३ माघ वदि ५ गुरौ पार्श्वनाथबिंबं प्र० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ४५०. मेड़ता सिटी श्मसान ४५१. नागोर दादाबाड़ी ४५२. जोबनेर चन्द्रप्रभ मंदिर ४५३. अजमेर संभवनाथ मंदिर ४५४. अजमेर संभवनाथ मंदिर ४५५. मेड़ता सिटी धर्मनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० (४५६) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १८८४ मिते ज्येष्ठ वदि ७ दिने छाजेड़ । साह बलदेवेन श्रीसिद्धचक्रयंत्रं कारितं प्रतिष्ठितं च पं । चारित्रसागरगणिभिः श्रीअजमेरनगरे ॥ (४५७) सम्मेतशिखरपट्टः प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः ॥ स्वस्ति श्रीपार्श्वदेवेशो, विघ्ननात्तनिशंसकः । संघस्य मङ्गलं कुर्यादश्वसेननरेन्द्रभूः॥ १ ॥ संव्वति १८८७ मिते शाके च १७५२ प्रवर्तमाने आषाढ-शुद्धदशम्यां श्रीसम्मेतशिखरः पाषाणमयः पट्टः जं । यु । भ। श्रीजिनहर्षसूरिजी विजयि धर्मराज्ये जयपुरवास्तव्य श्रीसंघेन प्रतिष्ठा कारिता वा। रामचन्द्रगणेरुपदेशात् शुभम्भूयात् ॥ श्रीः ॥ (४५८ ) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ संवत् १८८७ ना वर्षे आश्विनमासे शुक्लपक्षे दशम्यां तिथौ वृद्धशाखायां उसवालवंशे भणसालि सा० माणकचंद सुत अनुपचंदेन कारापितं । श्रीसिद्धचक्रमिदं तपागच्छे पं । शुभसत्क। पं । वीरविजयगणिभिः प्रतिष्ठितं ॥ (४५९ ) राजाराम गडिया पादुका ॥ स्वस्ति श्री संवत् १८८ शाके १७४६ ( ? ) तत्र वैशाख सुदि ११ एकादश्यां रविवारे हस्तनक्षत्रे ओशवंशे गो... .. सेठजी श्रीराजारामजी गडिया छत्री पादुका प्रतिष्ठितं सिंहतातै ॥ (४६०) दौलतविजय - पादुका ॥ संव्वति १८८८ प्रमिताब्दे द्वितीयवैशाखशुक्लमासे तिथौ पञ्चम्यां ५ चन्द्रवासरे पं० प्र० श्रीजिणदासजी तत्शिष्य श्रीलालचंदजी तत्शिष्य श्रीप्रेमचंदजी तत्शिष्य दौलतविजयजी तत्पादुका कारितं तत्शिष्य रूपचंद मुनिना जं० यु० प्र० बृहद्भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये ॥ ४५६. अजमेर संभवनाथ मंदिर ४५७. खोह चन्द्रप्रभ मंदिर ४५८. मंडावर चन्द्रप्रभ मंदिर ४५९. अजमेर दादाबाड़ी ४६०. किसनगढ़ दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४६१) प्रेमधीर-पादुका ॥ संव्वति १८८८ प्रमिताब्दे द्वितीय वैशाख शुक्लपक्षे तिथौ पञ्चम्यां ५ चन्द्रवासरे पं० प्र० श्रीजिणदासजी तत्शिष्य श्रीलालचंद तत्शिष्य श्रीप्रेमधीरजी तत्पादुका कारितं तत् सता०..........पं० रूपचन्द्रमुनिना जं० यु० प्र० बृहत्भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयिराज्ये॥ (४६२) पार्श्वनाथ-पादुका ॥ संव्वति १८८८ प्रमिताब्दे द्वितीय वैशाख शुक्लमासे तिथौ पञ्चम्यां ५ चन्द्रवासरे कारितं हरिदुर्गवास्तव्य श्रीसंघेन श्रीपार्श्वनाथपादुका प्रतिष्ठितं सकलकोविदोत्तमांगशेखरैः। जं। यु। श्रीबृहद्भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिणा कृतप्रयत्न मुनि रूपचन्द्रोपदेशात् ॥ श्रीकल्याणसिंहजी विजयराज्ये श्रेयोऽस्तु॥ (४६३) मल्लिनाथ: ॥ सं० १८८८ माघ शु० ५ सोमे ओशवंशे कोठारी गुलाबचंद तद्भार्या बिंदो श्रीमल्लिजिनबिंबं कारितं प्र। च बृ। ग। खर। ग। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। तत्श्रेयोर्थं। (४६४) महावीरः ॥ सं० १८८८ माघ शुदि ५ सोमे श्रीमहावीरजिनबिंबं कारितं ओशवंशे कांकरियागोत्रे माणिकचन्द्र पुत्र ताराचन्द्रेण प्र। बृ। भट्टारक खरतरग। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थितैः॥ स्वश्रेयोर्थं । (४६५) तिलोकचंद लूणिया पादुका ॥ सं० १८८८ रा मिति माहा सुदि ५ दिने सोमवारे सिंघवी लणिया सेठजी श्रीतिलोकचंदजी कस्य इदं पादुका तत्पुत्र सा० हिम्मतरामजी सपरिवारेण प्रतिष्ठापितं ॥ शुभंभूयात् ॥ (४६६) मुनिसुव्रतः ॥ संवत् १८८८। मा। शु। ५ सोमे श्रीमुनिसुव्रतबिंब का। श्रीमा० माणिकचन्द्र पुत्र ताराचन्द्रेण प्र। बृ। भ। खरतर ॥ श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः॥ ४६१. किसनगढ़ दादाबाड़ी पार्श्वनाथ मंदिर ४६२. किसनगढ़ दादाबाड़ी पार्श्वनाथ मंदिर ४६३. जयपुर श्रीमालों का मंदिर ४६४. जयपुर श्रीमालों का मंदिर ४६५. अजमेर दादाबाड़ी ४६६. जयपुर श्रीमालों का मंदिर For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४६७) सुपार्श्वनाथः __ सं० १८८८। मा। श्री। ओशवंशे डागागोत्रे। सा० गोकलचन्द्रेण श्रीसुपार्श्वजिनबिंबं कारितं प्र। बृ। भ। खरतरग। श्रीजिनाक्षयपत्कजचंचरीक श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः स्व श्रेयोर्थं ॥ (४६८) सिद्धचक्र-यंत्रम् ॥ सं० १८८९ मिति आषाढ सुदि १० श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्र। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा। कारितं। वैद कल्याणचंदेन श्रेयोर्थम्। (४६९) जिनकुशलसूरि-पादुका सं० १८९० व। शा १७५५ प्र। ज्येष्ठ शुक्ला १२ गुरौ पचेवरवास्तव्य सं० श्रीसिंहेन श्रीजिनकुशलसूरिपादुका कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छीय भ० श्रीजिनचन्द्रसूरीणां तत्शिष्य पद्मभाग्य उपदेशात्। (४७०) जिनकुशलसूरि-पादुका ___ सं० १८९० में संघ के स्थापित श्रीजिनकुशलसूरिजी के चरण पादुकायै.......... (४७१) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १८९३ मा० माघ शुक्ल १० बुधे राजनगरे उसवाल ज्ञातीय वृद्धशा० मनसुखभाई स्वश्रेयो) सिद्धचक्रपट्टिका कारापितं प्रतिष्ठितं सागरगच्छे भ० शान्तिसूरिभिः (४७२) सुमतिनाथः ॥ सं० १८९३ रा मिति माघ सुदि १० बुधवासरे श्रीसुमतिजिनबिंब प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः श्रीबृहत्तपागच्छे। ४६७. जयपुर पञ्चायती मंदिर ४६८. अजमेर संभवनाथ मंदिर ४६९. पचेवर चन्द्रप्रभ मंदिर ४७०. जोधपुर मुनिसुव्रत मंदिर ४७१. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ४७२. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ___ (४७३) महावीरः ॥ सं० १८९३ वर्षे मि। फागुण सुदि ३ प्रतिष्ठितं श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः तपागच्छे श्रीमहावीरबिंबं। (४७४) आदिनाथः ॥ सं० १८९३ मिति फागुण सुदि ३ श्रीऋषभदेवजी बिंबं भट्टारक श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्तपागच्छे। (४७५) कुन्थुनाथः ॥ सं। १८९३ वर्षे शाके १७५८ फागुण सुदि ३ बुधे श्रीकुंथुजिनबिंब प्रतिष्ठितं। भ। श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः श्रीबृहत्तपागच्छे ___(४७६) सीमन्धरः ॥ सं० १८९३ वर्षे शाके १८५८ प्र० फाल्गुन शुक्ल ३ बुधे श्रीमंधरजिनबिंबं श्रीसंघेन कारापितं श्रीतपागच्छे भ० श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः प्रति। (४७७) पार्श्वनाथः सं० १८९३ मिति फागुण सुदि ३ बुधे श्रीपार्श्वनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भट्टा० श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिराजो..........। (४७८) कुन्थुनाथः ॥ सं। १८९३ वर्षे शाके १७५८ फागुण सुदि ३ बुधे श्रीकुंथुजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ। श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः श्रीबृहत्तपागच्छे । (४७९) आदिनाथः सं० १८९३ मिति फागुण सुदि ३ बुधे श्री आदिनाथजिनबिंब प्रतिष्ठितं भ० श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः तपागच्छे ।। ४७३. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ४७४. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ४७५. अजमेर संभवनाथ मंदिर ४७६. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ४७७. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ४७८. अजमेर संभवनाथ मंदिर ४७९. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४८०) आदिनाथः ॥ संवत् १८९३ रा फागुण सुदि ३ तिथौ श्रीऋषभजिनबिंब प्रतिष्ठितं भ। श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः तपागच्छे । (४८१) पार्श्वनाथः संवत् १८९३ रा वर्षे फागुण सुदि ३ ने श्रीपार्श्वनाथबिंबं का० भट्टारक श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं..........। (४८२) शान्तिनाथः ॥ सं० १८९३ मिति फागुण सुदि ३ बुधे श्रीशान्तिनाथजिनबिंब प्रतिष्ठितं भ० श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः तपागच्छे।। (४८३) सुविधिनाथः ॥ सं० १८९३ रा वर्षे मिति फागुण सुदि ३ ने श्रीसुविधिनाथबिंब श्रीभट्टारक श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः श्रीबृहत्तपागच्छे । (४८४) आदिनाथ: ॥ ० ॥ संवत् १८९३। शा। १७५८ मिती फागुण सुदि ५ गुरु श्रीऋषभजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं भ। श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिविजयराज्ये। श्रीतपागच्छे॥ (४८५) चन्द्रप्रभः ॥ सं॥ १८९३ शा। १७५८ मिती फागुण सुदि ५ गुरु श्रीचन्द्रप्रभजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं भ। श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिराज्ये॥ श्री तपागच्छे । (४८६) जिनचन्द्रसूरि-पादुका । सं। १८९५ वर्षे वैशाख मासे शुक्लपक्षे तिथौ शुक्रे ६ बृहद्भट्टारक खरतरगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिपादुके चारित्रउदय उपदेशेन कारितं जयनगरवास्तव्य सकल श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्रीजिननंदीवर्धनसूरिभिः। ४८०. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ४८१. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ४८२. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ४८३. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ४८४. मेड़ता रोड पार्श्वनाथ मंदिर ४८५. मेड़ता रोड पार्श्वनाथ मंदिर ४८६. सांगानेर दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४८७) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ संवत् १८९५ मिति ज्येष्ठ शुक्ल १० शनिवासरे भट्टारक श्री श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरीश्वरजी उपदेशात् श्रीमालगोत्रे खारडगो। प्रसिंहरायजी तत्पुत्र सा० चैनसिंहजी श्रीसिद्धचक्रयंत्रकरापितं श्रीखरतरगच्छाधीश भट्टारक श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरीश्वरजी प्रतिष्ठितं। श्रीलक्ष्मणपुर। (४८८) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ संवत् १८९६ चैत सुदि १० दिने रविवारे श्रीसिद्धचक्रयंत्रमिदं । प्रतिष्ठितं सवाई जैपुरनगरमध्ये। पं। यशविजयगणिना। कारितं बीकानेर वास्तव्य बांठीया शार्दूलसीकेन श्रेयोर्थम्॥ (४८९) आदिनाथः ॥ संवत् १८९६ रा शा० १७६१ वर्षे वैशाख सुदि ८ दिने प्रतिष्ठितं। जं। यु। प्र। भट्टारक श्रीजिनकीर्तिसूरिभिः। करापितं मुहणोत पेमचंदजी श्री.........खरतरबृहत्आचार्य गच्छे। श्रीऋषभदेवजीबिंबं । (४९०) चन्द्रप्रभः सं० १८९६ शा० १७६१ वर्षे वैशाख सुदि ८ दिने श्रीचन्द्रप्रभुजी बिंबं प्रतिष्ठितं। जं। यु। प्रधान भट्टारक श्रीजिनकीर्तिसूरिभिः श्रीखरतरबृहत्आचार्यगच्छे करापितं..........। (४९१) गौडी पार्श्वनाथ-पादुका सं। १८९६ रा ज्ये। सु। १३ श्रीगवडीपार्श्वजितां पादुके करापिते श्रीआणंदरत्न गणिना प्रतिष्ठित अपरनाम्ना उदयचन्द्रेण । (४९२) धनविजय-पादुका ॥ र्द० ॥ संवत् १८९६ वर्षे शाके १७६१ प्रवर्तमाने माघ मासे कृष्णपक्षे पञ्चम्यां तिथौ शनिवासरे पूज्य पं। श्रीश्रीधनविजयजित्कस्य पादुकेयं। श्रीसंघेन स्थापितं ॥ शुभंभवतु ॥ ४८७. जयपुर पञ्चायती मंदिर ४८८. दांतरी ऋषभदेव मंदिर ४८९. रतलाम सुमतिनाथ मंदिर ४९०. रतलाम सुमतिनाथ मंदिर ४९१. मंडोर दफ्तरियों का मंदिर ४९२. मेड़ता सिटी श्मसान For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (४९३) चतुर्मुख-मूलनायकः सं० १८९६ वर्षे मिति फागुण सुदि ३ दिने प्रतिष्ठितं श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठापितं..........समस्त श्रीसंघेन । (४९४) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः - सं० १८९७ का० शु० ५ पार्श्वबिंबं। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिणा। वसपालेन॥ का। (४९५) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः सुरपुर सा० गिरधरलाल जी म० जसु पञ्चम उजवल सं० १८९७ माह सुदी ७ (४९६) माणिक्यसागर-पादुका ॥ सं० १८९८ व। शाके १७६३ प्र० मिति पोष शुक्ल ७ बुधवारे पाछली रात्रि घटी ७। रहीयां पं० श्री १०८ श्रीकृपासागरजी तच्छिष्य पं० श्री १०८ श्रीमाणिक्यसागरजी देवलोक प्राप्ति तेहना पादुका श्रीसमस्त संघे महामहोच्छवेन प्रतिष्ठितं श्रीमेडतामध्ये। सं० १८९९ शा० १७६४ प्र० आषाढ शुक्ल ९ शनौ श्रीतपागणे शि। पं० रूपेन्द्रसागरेण प्रतिष्ठितं ।। (४९७) कृपासागर-पादुका ॥ सकलपंडितशिरोमणि पंडितजी श्री १०८ पं० श्रीप्रतापसागरजी तत्शिष्य पं० श्री अचलसागरजी तत्शिष्य पं० १०८ श्रीकृपासागरजी ना पादुका स्थापिता संवत् १८९९ वर्षे शाके १७६४ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे आषाढ शुक्ल ९ तिथौ शनिवासरे श्रीबृहत्तपागच्छे श्रीमेडतानगरे स्थाप्यं ॥ (४९८) आदिनाथः संवत् १९०० आषाढ मासे सितपक्षे ५ रवौ..........गोत्रीय.. चारित्रउदय उपदेशेन श्रीमबृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय..........श्रीजिननन्दीवर्द्धनसूरिभिः॥ ४९३. मेड़ता रोड शांतिनाथ मंदिर ४९४. आमेर चन्द्रप्रभ मंदिर ४९५. जयपुर विजयगच्छीय मंदिर ४९६. मेड़ता सिटी पार्श्वनाथ मंदिर बगीची ४९७. मेड़ता सिटी पार्श्वनाथ मंदिर बगीची ४९८. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः (४९९ ) सपरिकर पार्श्वनाथ - मूलनायक : संवत् १९०० आषाढ सुद ५ रवौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमद्बृहद्भट्टारक खरतरगच्छे........... .श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः ॥ (५००) पार्श्वनाथ - मूलनायक : ॥ सं० १९०० वर्षे शाके १७६५ व० प्रमिते आषाढ सित ५ रवौ श्रीजयनगरवास्तव्य श्रीसंघेन श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं चारित्रउदय प्रतिष्ठितं श्रीमद्बृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थ श्रीजिनचन्द्रसूरिचरणमधुकरेण श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः पूजका समृद्धिः ॥ (५०१ ) नमिनाथ: नमिनाथबिंबं कारितं प्र । भ । श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥ (५०२) पञ्चचरणपादुका ॥ पं० श्री चतुरविजयजी । पं० श्री..........। पं० श्रीविद्याविजयजी । पं० श्रीभावविजयजी । पं० श्रीलक्ष्मीविजयजी । (५०३) पार्श्वनाथ - एकतीर्थी: श्रीपूज्यजी धर्मरत्नसूरि शिष्य विनयकीर्तिमुनि ९७ (५०४) षट्चरणपादुका श्रीसमर चन्द्रसूरि पादुका ॥ श्रीपूज्यश्री पासचंदसूरीश्वरजी ॥ श्रीरामचंदसूरीश्वरजी ॥ श्रीविमलचन्द्रसूरिगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीजयचन्द्रसूरिगुरुभ्यो नमः ॥ उपाध्याय श्रीपूर्णचन्द्रेभ्यो नमः ॥ (५०५ ) बहादुरमल बाफणा पादुका सं० १९०१ शाके १७६६ प्रवर्तमाने वैशाख मासे शुक्लपक्षे सप्तमीतिथौ गुरुवासरे बाफणा श्रीगुमानचंदजी तत्पुत्र संघवीजी श्रीबहादुरमलजी ४९९. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ५००. जयपुर श्रीमालों का मंदिर ५०१. जयपुर पञ्चायती मंदिर ५०२. किसनगढ़ हीरविजयसूरि बगीची ५०३. नागोर मुकनसुंदरजी का उपाश्रय ५०४. मेड़ता सिटी महावीर मंदिर ५०५. कोटा दानबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः वासी जेसलमेर का सुखवासक कोटा रामपुरा में तस्य चरणपादुके कारापितं तस्य पुत्र संघवि दानमल प्रतिष्ठिते भट्टारक १०८ श्री श्रीश्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठा स्थापितः श्रेयभवतु श्रीकल्याणमस्तु (५०६) नेमिनाथः ॥ स्वस्ति श्रीमजिनाधीशेभ्यो नमः॥ संवच्चन्द्रांबरनिधिवसुन्धरा १९०१ प्रमिते हायने श्रीमच्छालिवाहन भूभृद्विन्यस्तशस्तशके १७६६ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे पौषमासे शुभे वलक्षपक्षे राकायां १५ कर्मवाट्यां सुराचार्यवासरे पुष्यनक्षत्रे श्रीनेमिनाथजिनबिंबं कटारियागोत्रे जवेरचंदजी विजैचंदजी तस्य भार्या होली कारितं प्रतिष्ठितं च सकल श्रीसंघाग्रहूतप्रभूतसाम्राज्यभृच्छ्रीमद्बृहद्खरतरगच्छाधीश्वर जं० यु० भट्टारक पुरुहूतभट्टारक श्रीमज्जिनहर्षसूरीश्वरपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीमज्जिनमहेन्द्रसूरीश्वरैः सदुपाध्याय-वाचकायेकपञ्चाशत्साधुसत्परिकरसमन्वितैः श्रीरतलाममहापत्तने चतुर्मासी च विहिता. वंशोद्भव राजराजेश्वर श्रीबलवंतसिंहजिद्विजयिराज्ये॥ लि। पं। प्र। साहि (५०७) शान्तिनाथः ॥ सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रमिते पौष शुक्ल १५ तिथौ श्रीशान्तिजिनबिंबं बीकानेरवास्तव्य। ढढा कपूरचंदजिद्भार्या बाई अबुक्या कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगम युगप्रधानभट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्यां ॥ (५०८) अजितनाथः __ श्रीमज्जिनाधीशेभ्यो नमः॥ संवच्चन्द्राम्बरनिधिवसुन्धरा १९०१ प्रमिते हायने श्रीमच्छालिवाहनभूभृद्विन्यस्तशस्तशाके १७६६ प्रवर्तमाने मासोत्तम पौषमासे शुभे वलक्षपक्षे राकायां १५ कर्मवाट्यां सुराचार्यवासरे पुष्यनक्षत्रे श्रीअजितजिनबिंबं बाफणा संघवी मगनीरामजी बभूतसिंघजी प्रतिष्ठितं च। उक्केशवंशालङ्कार सद्गुरुचरणाम्बुजशिलीमुखोपधारक सकलश्रीसंघाग्रहूतप्रभूतसाम्राज्यभृच्छ्रीमबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरीश्वरपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरीशैः सदुपाध्याय ५०६. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५०७. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५०८. रतलाम बाबा सा. का मंदिर For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः ९९ वाचकाद्येकपञ्चाशत्साधुसपरिकरसमन्वितैः श्रीरतलाममहापत्तने चतुर्मासी च विहिता तत्र समुद्भूतप्रभूतविवेकातिरेक प्राज्ञप्रवर हीरतिलकमुनेः शिष्यमुख्य पंडितवर कल्याणविनयमुनेरुपदेशात् ॥ भद्रं भूयात् ॥ (५०९ ) अजितनाथ: ॥ सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रमिते पौषशुक्लपूर्णिमायां १५ गुरुपुष्ये श्री अजितजिनबिंबं वायडा मांणाजी वीरचन्द्राभ्यां कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर-जंगम - युगप्रधान भट्टारक- श्रीजिनहर्षसूरिपट्टालङ्कार श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः॥ (५१०) सुमतिनाथः ॥ सं० १९०१ वर्षे पौष शुक्ल १५ गुरुपुष्ये श्रीसुमतिजिनबिंबं पाटणी सा । खेमचंदजी कालुरामजी धरमचन्दैः कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर-जंगम - युगप्रधान - भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टालङ्कार श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्याम् ॥ (५११ ) विमलनाथ: ॥ सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्र । पौषशुक्लपूर्णिमायां १५ गुरुपुष्ययोगे विमलजिनबिंबं का । सा । खिंमराजि तेन कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर जं । यु । भ श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभावक जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्याम् ॥ ( ५१२ ) शान्तिनाथः ॥ सं० १९०१ वर्षे पौष शुदि १५ गुरुपुष्ये श्रीशान्तिजिनबिंबं वायडा। रायचंद जापयाचन्द्राभ्यां कारितं । प्रतिष्ठितं च । बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर । जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर भट्टार्क श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्याम् ॥ ( ५१३ ) विमलनाथ: ॥ सं० १९०१ पौ० शु० १५ श्रीविमलजिनबिंबं का। सिवजी सुधीराजाभ्यां..........जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः ॥ ५०९. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५१०. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५११. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५१२. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५१३. रतलाम बाबा सा. का मंदिर For Personal & Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५१४) मुनिसुव्रतः ॥ सं० १९०१ वर्षे शा। १७६६ प्रमिते पौष शुक्ल १५ गुरुपुष्ययोगे श्रीमुनिसुव्रतजिनबिंबं। वीरवाडन बाई झुमतिन कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्यां ॥ (५१५) संभवनाथ: सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रमिते पौष शुदि १५ गुरौ पुष्ये श्रीसंभवजिनबिंबं पोहकरणा नातीरुथानी (?) कस्य भार्या रतनबाई कया कारितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्यां ॥ (५१६) महावीरः सं० १९०१ पौष शुदि १५ गुरौ पुष्ये श्रीमहावीरजिनबिंबं सुराणा जयकरणजी लच्छीरामाभ्यां कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छे । जं। युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः (५१७) अजितनाथः सं० १९०१ वर्षे पौष शुक्ल १५ गुरुपुष्ये श्रीअजितजिनबिंबं कटारिया पूनिमचंदजित्तेन कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरि भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः (५१८) सुमतिनाथः ॥ सं० १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रमिते पौष शुदि १५ गुरौ श्रीसुमतिजिनबिंबं। भंडारी सा नेमिचंदजी तस्य भार्या छादूबाई कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिपट्टप्रभाकर भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः श्रीरत्नपुर्यां ॥ ५१४. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५१५. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५१६. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५१७ रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५१८. रतलाम बाबा सा. का मंदिर For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५१९) सप्तफणापार्श्वनाथः ॥ सं० १९०१ वर्षे शा० १७६६ प्रमिते पौष शुक्ला पूर्णिमायां १५ श्रीसप्तफणांकित श्रीपार्श्वजिनबिंबं विक्रमपुरवास्तव्य ढढा कपूरचंदजित्तस्य पुत्र पनालालजी श्रीचंदजी सुखलालजित्तेन कारितं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीहर्षसूरिपट्टप्रभाकर जं० यु० भ० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। रतनश्रीनगर्यां। (५२०) मल्लिनाथ: ॥ सं० १९०१ वर्षे पौष शु० १५ गुरौ श्रीमल्लिजिनबिंबं पोकरणा दुलाजी भार्या बाई रतनु कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः । (५२१) संभवनाथः ॥ संवत् १९०१ मासोत्तममासे पौषमासे शुक्लपक्षे तिथौ १५ गुरुवासरे गुगलिया संघवि तेजाजी भार्या..........बाई संभवजिनबिंब करापितं भट्टा० श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। (५२२) सिद्धचक्र-यंत्रम् सं। १९०२ वर्षे आश्विनमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमासितिथौ बुधे जयनगरवास्तव्य श्रीमालवंशे फोफलिया गोत्रीय चुन्नीलाल तत्पुत्र हीरालालेन श्रीसिद्धचक्रयंत्रं कारितं चारित्रउदयउपदेशात् प्र। बृ। भ। खरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः पूजकानां प्रपितरां भूयात्। (५२३) शिलापट्ट-प्रशस्तिः बृहत्भट्टारकखरतरगच्छे जंगम युगप्रधान श्रीश्री १०८ श्रीजिनरत्नसूरिशाखायां वाचनाचार्य श्री १०८ श्रीकर्मचन्द्रजी गणि तच्छिष्य पं। प्र। श्री १०८ श्रीअखेचन्द्रजी गणि तच्छिष्य पं। प्र। श्री १०८ श्रीरत्नचन्द्रमुनि पं। प्र। श्री १०८ श्री चैनसुखजी मुनि पं। प्र। श्री १०८ श्रीमोतीचंदजी तच्छिष्य पं। प्र। श्रीहीरानंदजी मुनि पं। प्र। श्रीकुशलचन्द्र मुनि तस्य बगीचा मध्ये ५१९. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५२०. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५२१. रतलाम बाबा सा. का मंदिर ५२२. जयपुर श्रीमालों का मंदिर ५२३. नागोर सुमतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः श्री १०८ श्री सुमतिनाथजी श्रीजिनमंदिर का सभामंडप श्रीसंघेन कारापितं पंडित रूपचन्द्र उपदेशात् संवत् १९०२ का मिति फागुन वदि ५ चन्द्रवासरे महाराज श्री १०८ श्रीतखतसिंघजी विजयि राज्ये शुभं भवतु । (५२४) जिनचन्द्र - पादुका ॥ स्वस्ति श्री ॥ संवत् १९०३ रा शाके १७६८ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे आषाढ शुक्ले ९ तिथौ भृगुवारे चित्रा नाम नक्षत्रे पं । प्र । श्री १०८ श्रीजिनचन्द्रजिच्चरणौ प्रतिष्ठितौ ॥ श्री रस्तु ॥ ( ५२५) नेमिनाथ- पञ्चतीर्थी : ॥ संवत् १९०३ शाके १७६८ प्रवर्तमाने माघ मासे कृष्णपक्षे ५ भृगुवासरे अहिमदाबादवास्तव्य ओसवालवृद्धशाखायां साह० ति० संघेन स्वश्रेयोर्थं श्रीनेमिनाथबिंबं भरापितं ॥ प्रतिष्ठितं भ० सा० । (५२६ ) षट्चरण-पादुका ॥ बृहद्भट्टारकखरतरगच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारकजी श्रीजिनरत्नसूरिजित्शिष्य वा । श्री १०८ श्री चौथजी गणि वा । श्रीदीपचंदजी गणि वा । श्री १०८ श्रीकर्मचन्द्रजित्कस्य चरणांहि पं । प्र । श्री अखेचंदजी जित्कस्य चरणांघ्रि पं । प्र । श्रीरत्नचन्द्र जित्कस्य चरणांघ्रि पं । प्र । श्रीकुलशचन्द्रजित्कस्य चरणांघ्रि पं । प्र । गुरांजी श्रीचैनसुखजित्कस्य चरणांघ्रि पं । प्र । श्री १०८ श्रीमोतीचन्द्रजित्कस्य चरणांघ्रि पं० हीरानंद । पं० रूपचंद पधराया स्वबगीचा मध्ये सं० १९०३ का० फा० सु० २ बुधवासरे महाराजाधिराज महाराजाजी श्रीतखतसिंघजी विजयराज्ये शुभं भवतुतराम् । (५२७) सिद्धचक्रयंत्रम् रौप्यमय ॥ सं० १९०४ रा मि । कार्तिक सुदि ५ । भ । श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं । कोठारी कुन्दनमल्लेन कारापितं ॥ श्री श्री ॥ ५२४. अजमेर दादाबाड़ी ५२५. अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मंदिर ५२६. नागोर सुमतिनाथ मंदिर ५२७. जयपुर श्रीमालों का मंदिर For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभाग: (५२८) दादा-पादुका -युग्म । सं० १९०४ वर्षे पौष शुक्ल १५ ति । श्रीजिनदत्तसूरिजी श्रीजिनकुशलसूरिजी पादुका श्रीसंघेन कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत् खर तर........... श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः ॥ (५२९) आदि - महावीर - पादुका - युग्मम् ॥ सं० १९०४ वर्षे पौष मासे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां तिथौ श्रीअजमेरनगरे श्रीआदिनाथस्य श्रीवर्द्धमानजिनस्य पादुका श्रीसंघेन श्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर जं । भ । श्रीसौभाग्यसूरिभिः ॥ श्रीविजयराज्ये ॥ १०३ (५३०) चतुर्विंशतिजिनमातृकापट्टः ॥ संवत् १९०४ वर्षे पौषमासे शुक्लपक्षे पूर्णिमायां तिथौ श्रीअजयमेरुदुर्गे श्रीचतुर्विंशतिजिनमातृका पट्ट । लूणिया गोत्रेण । साह पृथ्वी - राजेन कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः । विजयराजैः ॥ (५३१) सम्मेतशिखरपट्टः ॥ संवत् १९०४ वर्षे शाके १७६९ पोष शुक्ले पक्षे तिथौ पूर्णिमायां गुरुवारे अजमेरदुर्गे श्री सम्मेतशिखरस्य पट्टः महमहियागोत्रेण साह । धनरूपमल तत्पुत्र खदिर वाघमल्लेन कारितं प्रतिष्ठापितश्च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जं । भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः उपाध्यायजी श्रीक्षमाकल्याणजी गणीनां शिष्य पं० धर्मविशालमुनिना उपदेशात् इयं श्रीसम्मेतशिखरभावरचितः श्रेयोर्थम् । ( ५३२ ) पार्श्वनाथ: सं० १९०४ माघ सु० ११ बुधे अंतरिक्ष पार्श्वजिनबिंबं कंपिलपुरे प्रतिष्ठितं श्री । बृह । खरतरगच्छे श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिविनेय ५२८. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५२९. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५३०. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५३१. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५३२. लखनऊ दादाबाड़ी वासुपूज्य मंदिर For Personal & Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः कारितं च ओशवंशे जडियागोत्रे लाला गोकलचंदजी तत्पुत्र छोटेलाल तेनेदं प्रतिष्ठापितं स्वश्रेयोर्थं ॥ श्रीः॥ (५३३) जिनहर्षसूरि-पादुका संवत् १९०४ मिति माघ सुदि १२ श्रीमंडोवरनगरे श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर। जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनहर्षसूरिजित्सूरीश्वराणां पादुकेभ्यः। प्रतिष्ठितं च भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कारापितं च ॥ ___ (५३४) शान्तिनाथः सं० १९०४ माघ शुक्ल १२ बुधे श्रीशान्तिजिनबिंबं पञ्चालदेशे कंपिलपुरे प्रतिष्ठितं च श्रीमद्धृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिक्रमाब्जमधुकरोपम श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः कारितं च ओ। चोरडियागोत्रे लाला चुन्निलाल तत्पुत्र हर्षचन्द्र तद्भार्या बिवाश्रेयोर्थम्॥ (५३५) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १९०४ वर्षे शाके १७६९ प्र० माघमासे शुक्लपक्षे १२ तिथौ लक्ष्मणपुर वास्तव्य ओशवंशे वरडिया गोत्रे लाला छोटेमल दीपचन्द्रेण श्रीजिनकुशलसूरिचरणपादुके कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमद्धृहद् भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिक्रमाब्जमधुकरोपमविनेय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः महत्प्रमोदेन सकलपूजकानां श्रेयभूयात् । (५३६) शान्तिनाथ-मूलनायकः सं० १९०४ माघ शुक्ल १२ बुधे श्रीशान्तिनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं पञ्चालदेशे कंपिलपुरे श्रीमबृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिक्रमाब्जमधुकरोपमविनेय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः कारापितं च श्रीमालवंशे महमवालगोत्रे सा० लालाजी सदासुखजी तेन प्रतिष्ठापितं स्वश्रेयोर्थं पूजकानां कल्याणं भवतु। ५३३. मंडोर दफ्तरियों का मंदिर ५३४. लखनऊ दादाबाड़ी शांतिनाथ मंदिर ५३५. लखनऊ दादाबाड़ी ५३६. लखनऊ दादाबाड़ी शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५३७) चन्द्रप्रभः संवत् १९०५ वैशाख सुदि १५ बोरा सा० दलेलसिंघजी तत्भार्या इन्द्रादे श्रीचन्द्रप्रभस्य बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगणाधीश्वर। जं। यु। प्र। भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरि। (५३८) धर्मनाथः सं। १९०५ वैशाख सुदि १५ वा० सा० अमरसी भार्या पुनादे पुत्र स० की० जसलेण श्रीधर्मनाथस्य बिंबं कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधानभट्टारक श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः (५३९) आदिनाथः सं० १९०५ रा वर्षे मि० वैशाख शुक्ल १५ तिथौ गुरुवारे लू। सा।..........श्रीऋषभदेवबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (५४०) चन्द्रप्रभः सं० १९०५ वैशाख सुदि १५..........प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (५४१) शान्तिनाथः सं० १९०५ वर्षे वैशाख सुदि १५..........प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (५४२) अजितनाथः ॥ संवत् १९०५ वर्षे शाके १७७० प्रवर्तमाने वैशाख सुदि १५.......सा० जसराजजी.......प्र० श्री बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनरत्न- सूरिभिः ।। (५४३) गौडीपार्श्वनाथः । ॥ संवत् १९०५ मि० वैशाख शुदि १५ गुरौ..........चांदकुंवरबाई श्रीगौडीपार्श्वनाथ..........प्र० बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ ५३७. जोधपुर कुंथुनाथ मंदिर ५३८. किसनगढ़ चिंतामणि पार्श्वनाथ मंदिर ५३९. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५४०. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५४१. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५४२. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५४३. अजमेर संभवनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५४४) धर्मनाथः ॥ सं० १९०५ वर्षे मि० वैशाख शुक्ल १५ तिथौ गुरुवारे लूणिया सा० अमीराजजी तद्भार्या सिणगारदे श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (५४५) चन्द्रप्रभः सं० १९०५ मि० वैशाख सुदि १५ बाफणा सा० मलूकचंदजी पु० अ..........श्रीचन्द्रप्रभबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (५४६) पार्श्वनाथः सं० १९०५ मि० वैशाख सुदि १५ चो० सा० गुलाबचंद श्रीपार्श्वनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (५४७) आदिनाथः सं० १९०५ मि० वैशाख सुदि १५ दिने मोणोत सा० कीरतमलजी भार्या कृष्णादे पुत्र सा० देवराजेन श्री ऋषभदेवबिंबं कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ० श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ (५४८) विमलनाथ-मूलनायकः सं। १९०५ वर्षे वैशाख सुदि १५ गुरुवार श्रीविमलनाथस्य बिंब कारितं.........प्रतिष्ठापितं च श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिभिः। (५४९) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॥ श्रीजिनाय नमः॥ संवत् १९०६ रा वर्षे शाके १७७१ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे वैशाखमासे शुभे शुक्लपक्षे तिथौ सप्तम्यां रविवासरे घटि। १५। २ पुक्षनक्षत्रे घटि। ३७। ४० मूलयोगे १९ । ५७। वाणिज्य कर्णे एवं पञ्चांग-शुद्धं श्रीसूर्योदयात् इष्टघटि ७। १५ वृषभलग्नवहमाने श्रीमत्तपागच्छीय - ५४४. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५४५. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५४६. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५४७. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५४८. अजमेर विमलनाथ मंदिर केसरगंज ५४९. भिनाय पार्श्वनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १०७ जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री श्री १००८ श्रीश्रीश्रीविजयदेवेन्द्रसूरीश्वरजी राज्ये पं० प्रवर श्री १०८ श्रीगजेन्द्रसागरजी नरेन्द्रसागरजी श्रीजिनमंदिर उपाश्रय करापितं संमेगी। (५५०) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ सं० १९०६ रा मिति ज्येष्ठ सुदि १० गुरौ श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका जेसलमेरु वास्तव्य ओशवंशे बाफणागोत्रे। से। दानमल्लादि करापितं प्र। बृ। खरतरगच्छे श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः कोटानगरे (५५१) गौडीपार्श्वनाथ-पादुका ॥सं० १९०६ रा शा। १७७१ प्र। मि। ज्ये। श। १० गुरु श्रीगौडीपार्श्वनाथ पादुका जेसलमेरु वास्तव्य बाफणा संघवी दानमल्लादि सपरिवारेण कारापितं। प्र। बृ। खरतरगच्छाधीश श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। कोटाभिधाननगर्याम्॥ (५५२) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ सं० १९०६ मि। मिगसर सुदि ७ गुरु श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका रतलामवास्तव्य श्रीसंघप्रेरक से। खेमराजेन कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छीय भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः सप्तविंशतिसाधुपरिकरेण कोट्टानगर्याम्॥ (५५३) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १९०६ मि। मिगसर सुदि ७ गुरु श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुका रतलामवास्तव्य श्रीसंघप्रेरक से। खेमराजेन कारापितं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छीय भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः सप्तविंशतिसाधुपरिकरेण कोट्टानगर्याम्॥ (५५४) जिनकुशलसूरि-पादुका || सं० १९०६ वर्षे शाके १७७१ प्र। पौष कृष्णा ८ तिथौ शुचि चारित्रउदयउपदेशेन जयनगरवास्तव्य समस्तश्रीसंघेन श्रीजिनकुशलसूरिपादुके कारिते प्र। बृ। भ। श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ ५५०. बूंदी ऋषभदेव मंदिर ५५१. बूंदी ऋषभदेव मंदिर ५५२. सांगोदिया ऋषभदेव मंदिर ५५३. सांगोदिया ऋषभदेव मंदिर ५५४. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५५५) जिनकुशलसूरि-पादुका बृहत्भट्टारक खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिशाखायां वाचनाचार्य श्री १०८ श्रीकर्मचन्द्रजी गणि तच्छिष्य श्री १०८ श्रीअखेचंदजी गणि तच्छिष्य पं। प्र। श्रीरत्नचंदजी गणि श्रीचैनसुखजी श्रीमोतीचंदजी तच्छिष्य पं। प्र। श्रीहीरचंदजी। पं। प्र। श्रीकुशलचंदमुनि तेषां बगीचा मध्ये खरतरगच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री दादाजी श्री १०८ श्री जिनकुशलसूरिजी महाराज का चर्ण पादुका श्रीसंघेन कराया। पं० रूपचंद उपदेशात् सं० १९०७ का मिति आषाढ वदि ७ सोमवारे शुभ दुगड़िया में महाराजाजी श्रीतखतसिंघजी विजयराजे शुभंभवतु श्रीसंघस्य कारीगर माली पन्नो॥ (५५६) जीर्णोद्धार-प्रशस्तिः ॥ श्रीसर्वज्ञाय नमः। श्रीसच्चिकायकुलदेव्यै नमः॥ श्रीपार्श्वसंताने। श्रीमत्कमलगच्छे श्री जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री १००८ श्रीरत्नप्रभसूरीश्वर- गुरुभ्यो नमः उक्तं च-ओशवंशे वृको येन गच्छ नामेति स्थापितं । आदौ सूरिपदं प्राप्तं नमः सूरीश्वर नाम ते। तत्पट्टे भ० श्रीसिद्धसूरिजिच्छिष्य श्री ..........वीरसुंदर मतिसागरादयस्तच्छिष्य वा। श्रीउदय वा नगपति सं० १९०७ आषाढ शुक्ल २ गुरौ श्रीपौषधशालायां जीर्णोद्धारे..........चेत् ॥ (५५७) जिनदत्तसूरि पादुका बृहद्भट्टारकखरतरगच्छे जंगम युगप्रधान भ० दादाजी श्री १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज का चर्ण पादुका श्रीसंघ पधराया। पं। रूपचन्द उपदेशात् ॥ सं० १९०७ का मिति आषाढ सुदि ९ बुधवासरे महाराजाजी श्रीतखतसिंहजी विजयराज्ये शुभंभवतुतराम्। दादाजी श्री १०८ श्री अखेचंदजी तच्छिष्य श्रीरत्नचन्दजी श्रीचैनसुखजी श्रीमोतीचंदजी तच्छिष्य श्रीहीराचंदजी पं। श्रीकुशलचन्द्र मुनि तेषां बगीचा मध्ये॥ ५५५. नागोर सुमतिनाथ मंदिर ५५६. नागोर बड़ा मंदिर ५५७. नागोर सुमतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०९ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५५८) मनरूप जी-पादुका ॥ स्वस्ति श्री संवति १९०७ प्रमिते मासोत्तम मार्ग सित ५ पञ्चम्यां गुरौ। श्रीमद्धृहद्खरतरभट्टारकगच्छे श्रीकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं। प्र। पं। श्रीमनरूपजित्कानां चरणसरोरुहयुगलस्थापने ॥ (५५९) जिनकुशलसूरि-पादुका स्फटिकरत्न । संवत् १९०७ माघ सु। १२ सोमवारे दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी चरण..........नौतिः। (५६०) सुपार्श्वनाथ-मूलनायक । संवत् १९०७ रा वर्षे । मा। फागुण सुदि ३ गुरुवार श्रीसुपार्श्वजिनबिंबं। प्रति। भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः॥ (५६१) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॐ नमः॥ त्रिभुवनप्रभुश्रीमत्पद्मप्रभु-चन्द्रप्रभु-श्रीमद्गौडीपार्श्वप्रभुजिनेन्द्राणामयं प्रासादश्चिरं विजयताम् संव्वत् १९०७ प्रमिते शाके १७७२ प्रवर्तमाने मासोत्तम फाल्गुन मासे शुभेऽसित पक्षे पञ्चम्यां तिथौ गुरौ। ५ श्रीमन्महाराजाधिराज राजराजेन्द्र श्रीसवाई रामसिंहजित्कानां विजयमाने साम्राज्ये बृहत्तपागच्छेश जंगम युगप्रधान भट्टारकजिच्छ्रीविजयजिनेन्द्रसूरि-पट्टालङ्कार भ० जिच्छीविजयदेवेन्द्रसूरिजितां धर्मराज्ये विद्यमाने सवाई जयनगरे घाटमध्येयं । जयवंतसागरजित्कोपदेशादोशवालवंशे वृद्धशाखायां वैदमुहतागोत्रे सुश्रावक पुण्यप्रभावक देवगुरुभक्तिकारक मुहताजी श्रीकपूरचंदजी तत्सुत राजसीजी तत्पुत्र जगरामजी तत्पुत्र जैनधर्मोद्योतकारक आदर्शव्रतधारक श्रीअनन्तरामजित्केनासौ श्रीमत्प्रासादः प्रतिष्ठा च। कारापिता सकलपंडितशिरोमणि पं। प्रवर श्रीगुमानसागरजिद्वणिगजेन्द्राणां शिष्य पं। श्रीशिवसागरजित्पं । श्रीजयवंतसागरजिद्गणीनां शिष्यमुख्य पं। श्रीजयसागरगणिना प्रासादोयं प्रतिष्ठितः॥ श्रीरस्तु॥ ५५८. अजमेर दादाबाड़ी ५५९. जयपुर यति श्यामलालजी का उपासरा ५६०. पार्डी (नागपुर) सुपार्श्वनाथ मंदिर ५६१. जयपुर घाट पद्मप्रभ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५६२) सेठ धनरूपजी पादुका ॥ संवत् १९०९ मिति आषाढ वदि १२ सोमवार दिने सेठजी श्रीधनरूपजी का पगल्या कंवरजी श्री बागमलजी पधराया अजमेर नगरे कल्याणमस्तु॥ (५६३) द्वादश-पादुका ॥ संवत् १९०९ प्रमिते शाके १७७४ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे माघमासे शुभे शुक्लपक्षे १३ त्रयोदश्यां तिथौ यामिनीनाथवासरे पुष्यनक्षत्रे श्रीमबृहत्तपागच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारकजी श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिजितां धर्मराज्ये विद्यमाने श्रीविमलगिरिवरौ श्रीजिनेन्द्रट्रंकमध्ये पंजयसागर गणिना श्रीमच्चारित्रसागरादिस्वगुरूणां पट्टपरंपरापादुका सुमुहुर्तेन प्रतिष्ठिता सा शुभं कुर्वन्तु। ॥ पं। चारित्रसागरजी॥ ॥ पं। विचारसागरजी॥ ॥ पं। कल्याणसागरजी॥ ॥ पं। जयसागरजी॥ ॥ पं। जसवंतसागरजी॥ ॥ पं। मुक्तिसागरजी॥ ॥ पं। गजरूपसागरजी॥ ॥ पं। खुश्यालसागरजी॥ ॥ पं। जोधसागरजी॥ ॥ पं। गुमानसागरजी॥ | पं। जयवंतसागरजी॥ ॥ सर्वगुरूणां पादुकाः॥ (५६४) शिलालेख-प्रशस्तिः ॥ श्री जिनाय नमः॥ त्रैलोक्यप्रभु-श्रीशान्तिनाथाय स्वामिजिनेन्द्राणामयं प्रासाद(:) श्रीविजयताम्॥ श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्तिविधायिने त्रैलोक्यस्यामराधीश-मुकुटाभ्यर्चितांघ्रये॥ १॥ शान्ति शान्तिकरः श्रीमान् शांति दिशतु मे गुरुः शान्तिरेव सदा तेषां येषां शान्तिर्गृहे गृहे ॥ २॥ सं० १९०९ प्रमिते शाके १७७४ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे फाल्गुनमासे शुभे सितपक्षे पञ्चम्यां तिथौ रजनीनाथवासरे राजराजेश्वर श्रीमान् महाराजाधिराज पृथिवीसिंहजीनां विजयमाने साम्राज्ये श्रीबृहत्तपागच्छे जं। यु। भट्टा..........श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिजितां धर्मराज्ये विद्यमाने श्रीकृष्णगढनगरवास्तव्य ओसवाल मोहनोत गोत्रे। सा। श्रीअमरसिंहेन समस्तसंघसहितेनासौ कारितः। श्रीमद्गुमानसागरजिद्गणिगजेन्द्राणां शिष्य पं। श्रीजयवंतसागरजित् गणिना शिष्य पं० जयसागरगणिना प्रासादोऽयं शुभमुहूर्तेन प्रतिष्ठितं शुभंभवतु ॥ ५६२. अजमेर दादाबाड़ी ५६३. गागरडु आदिनाथ मंदिर ५६४. किसनगढ़ शांतिनाथ मंदिर For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५६५) शान्तिनाथ-मूलनायकः संवत् १९१० शाके १७७५ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे माधवमासे धवलपक्षे ५ तिथौ गुरुवासरे महाराजाधिराज महाराज श्रीतखतसिंहजी जसवंतसिंहजी विजयराज्ये श्रीपालीनगरे सकल श्रीसंघगादीमहोच्छवेनांजनशलाका कृतं जोधपुरनगरवास्तव्य श्रीओशवंशे मुताजी अखयचंदजी तत्पुत्र मुता श्रीलक्ष्मीचंदजी त० मु० श्रीमुकुंदचंदजी धर्मानुरागेण महोच्छव- कारापितं श्रीमहेवा परगने श्रीवीरमपुरनगरमध्ये शंखवालेचा मालाशा कारापितं श्रीजिनालये श्रीशान्तिनाथबिंबं प्रतिष्ठितं जगद्गुरुविरुदधारक श्रीखरतरभावहर्षगच्छेश भ० क्षमासूरिपट्टे भ० श्रीजिनपद्मसूरिभिः प्रतिष्ठितं सकलश्रेयोर्थं ॥ (५६६) शान्तिनाथ-मूलनायकः संवत् १९१० वर्षे मा। शुक्ल २ श्रीशान्तिनाथजिनबिंबं। श्रीजिनमहेन्द्रसूरिभिः। (५६७) महावीरः ॥ संवत् १९१० वर्षे शाके १७७५ प्र। फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे २ तिथौ सकद.....द गोत्रे रोसनराय तत्पुत्र कानजीमल त.......... श्रीवर्द्धमानजिनबिंबं चारित्रउदयउपदेशात् कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्भट्टा० खरतरग० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ (५६८) महावीर-सपरिकरः ॥ सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्र। फाल्गुनमासे कृ० २ तिथौ श्रीमालवंशे महमवालगोत्रीय खेमचंद तत्पुत्र विजयचंद तत्पुत्र.......... चारित्रउदयउपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहद्भट्टा० खरतरग० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ (५६९) महावीरः सं० १९१० फाल्गुनऽसिते २ बुधे महावीरजिनबिंबं पञ्चालदेशे कांपिल्यपुरे प्रतिष्ठितं श्रीमद् बृहद्भट्टारकखरतरगच्छे। श्रीजिननंदी- वर्द्धनसूरिभिः। ५६५. नाकोड़ा शांतिनाथ मंदिर ५६६. सिंहपुरी शांतिनाथ मंदिर ५६७. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ५६८. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ५६९. लखनऊ दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (५७०) शान्तिनाथः संवत् १९१० वर्षे फाल्गुन मासे कृष्णपक्षे २ तिथौ बुधे ओशवंशे पहलावतगोत्रीय गुलाबराय तस्य भार्या अमरकुंवरतया शान्तिनाथ-जिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीमद्धृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः पूजकानां वृद्धितरां भूयात्। (५७१) अजितनाथः ___सं० १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्तमाने फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे २ तिथौ बुधे ओशवंशे पहलावत गोत्रे गुलाबराय तत्पुत्र किसनचंदेन श्रीअजितजिनबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमबृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः पूजकानां वृद्धितरां भूयात्। (५७२ ) आदिनाथ-सपरिकरः ___ सं० १९१० फाल्गुनऽसिते २ बुधे श्रीआदिजिनपरिकरं कारितं पञ्चालदेशे कांपिल्यपुरे प्रतिष्ठितं। श्रीमबृहद्भट्टारकखरतरगच्छाधिराज श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थित श्रीजिनचन्द्रसूरिपदकजलयलीन विनेय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः ओशवंशे पहलावतगोत्रे लाला महाचंदजी तत्पुत्र श्री सदानंदजी तत्पुत्र लाला गुलाबरायजी तद्भार्या झुन्नुबीबी तेन कारितं। महता प्रमोदेन । (५७३) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ संवत् १९१० वर्षे शाके १७७५ प्रवर्तमाने फाल्गुन मासे कृष्णपक्षे ५ तिथौ जयनगरवास्तव्य समस्त श्रीसंघेन चारित्रउदय उपदेशेन श्रीजिनदत्तसूरिपादुके कारिते प्र। बृ। भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः । ___(५७४) जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥ संवत् १९१० फाल्गुन मासे कृष्णपक्षे ५ तिथौ बृहद्भट्टारकखरतरगच्छाधिराजश्री भ० श्रीजिनाक्षयसूरिपदस्थ श्रीजिनचन्द्रसूरिपादुके चारित्र उदय उपदेशेन जयनगरवास्तव्य समस्तश्रीसंघेन प्र। बृ। भ० श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः॥ ५७०. लखनऊ दादाबाड़ी ऋषभ मंदिर ५७१. लखनऊ दादाबाड़ी ऋषभ मंदिर ५७२. लखनऊ दादाबाड़ी ऋषभ मंदिर ५७३. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ५७४. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः सूरिभिः । (५७५) जिनदत्तसरिर-पादुका रौप्यमयी श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका लु । पदमश्रीकारापितं प्र । श्रीजिनमहेन्द्र ९००० मिते सं० बादुरेन प्र । सर्व्वसूरि बंगदेशे (५७६) सिद्धचक्र-यंत्रम् १९११ माघ शु० १० का । राजा । धनपतसिंह ११३ (५७७) उदयराज - गणि-पादुका ॥ ॐ संवत् १९१३ रा शाके १७७८ प्र । मासोत्तममासे माधवमासे शुक्लपक्षे अक्षयतृतीयायां तिथौ बुधवासरे खरतरगच्छे पं । उ । शिवचन्द्रजीगणेः पौत्रशिष्य पं । प्र । उदयराजजिच्चरणाब्जन्यासकृतं प्रतिष्ठापितं च । शि । तिलोकचन्द्र - नेमिचन्द्रेण कारापितं ॥ (५७८) सिद्धचक्र-यंत्रम् ॥ सं० १९९२ जेठ सुदि ५ सोमवारे ममइया । सा । बागमलजी ने प्रतिष्ठापितं सर्वसूरिभिः श्री अजमेरमध्ये ॥ (५७९) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ संवत् १९१२ पोष वदि १० वार शुक्र बाई हरकुंवरबाई करापितं ॥ (५८०) आर्या - पादुका- युगल ॥ श्रीः॥ सं० १९१२ का वर्षे मिति माघ सुदि० १० दिने शुक्रवारे श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिगच्छे आर्या श्री १०५ श्रीकेशरजी तच्छिष्याणी श्रीलिछमाजी चरणकमलौ प्रतिष्ठितौ श्रेयोर्थी ॥ ५७५. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर ५७६. जयपुर सुमतिनाथ मंदिर ५७७. जयपुर मोहनबाड़ी ५७८. अजमेर संभवनाथ मंदिर ५७९. हिंडोन श्रेयांसनाथ मंदिर ५८०. नागोर पायचंद गच्छ दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ( ५८१ ) ॥ संवत् १९१२ वर्षे फाल्गुन शुक्ल ..... . श्रीमालवंशे ढोरगोत्रे जीवनलाल तद्भार्या....चारित्र उदयउपदेशेन श्रीमदृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः ॥ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः (५८२) आदिनाथ - सपरिकरः ॥ सं० १९१२ शाके १७७७ फाल्गुन मासे शुक्लपक्षे २ तिथौ श्रीमालवंशे फोफलीया गोत्रीय खूबचंद तत्पुत्र बहादुरसिंह चारित्र उदय उपदेशेन .... . श्री आदिनाथजिनबिंबं कारितं प्रति० श्रीमद्बृहद्भट्टारकखरतरगच्छे श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः ॥ ( ५८३ ) आदिनाथ: ॥ सं० १९१२ वर्षे शाके १७७७ फाल्गुन मासे सु० २ तिथौ श्रीमालवंशे फोफलीयागोत्रे बहादुरसिंहेन आदिजिनबिंबं का० चारित्रउदय उपदेशेन श्रीमद्बृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिननंदीवर्द्धनसूरिभिः (५८४) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १९१५ ना श्रावण सुदि ७ शुक्रे शाह जयसिंहस्य भार्या सूरज ओसवालवृद्धशाखायां सिद्धचक्र करापितं ॥ (५८५) सिद्धचक्रयंत्रम् संवत् १९१५ ना श्रावण सुदि ७ शुक्रे शाह । जयसिंहस्य भार्या सूरज ओसवालवृद्धशाखायां सिद्धचक्र करापितं ॥ (५८६) मुनिसुव्रतः ॥ सं ॥ १९१६ वै० सुदि ६ गुरौ श्री स०माधोपुर महाराजाधिराज श्रीस० पृथ्वीसिंघजी विजयराज्ये श्रीमूलसंघेलींगा गोत्रे संघवी श्रीमुनिसुव्रतस्य बिंबं । ५८१. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ५८२. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ५८३. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ५८४. मेड़ता सिटी वासुपूज्य मन्दिर ५८५. मेड़ता सिटी वासुपूज्य मन्दिर ५८६. जयपुर विजयगच्छीय मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ११५ (५८७) भित्तिकालेखः संवत् १९१६ माधवमासे शुक्लपक्षे सप्तम्यां चन्द्रवासरे श्रीऋषभजिनप्रसादं ओशवालवंशे पहलावत गोत्रीय लाला सदानंदजी तदात्मज लाला गुलाबरायेन कारापितं प्रतिष्ठितं च बृहद्भट्टारकखरतरगच्छीय श्रीजिनकल्याणसूरिभिः श्रीजिनजयशेखरसूरिपदस्थितैः श्रीरस्तु। कल्याणमस्तु । (५८८) शेठ बागमल-पादुका ॥ श्रीकेसरिनाथजी साहाय॥ संवत् १९१६ का मिति फागुण वदि ८ मंगलवार दिने शेठ जी श्रीबागमलजी का पगला वच्छरायकुंवरजी श्रीराजमलजी अजमेर नगरे कल्याणमस्तु॥ (५८९) जिनकुशलसूरिपादुका-रौप्यमयी ॥ सं०। १९१६ ॥ श्रीजिनकुशलसूरीणां ॥ (५९०) वीशस्थानकयंत्र-रौप्यमय सं० १९१७ माघमासिक शुक्ल ५ वण्णमिदं श्रीसंघेन प्रतिष्ठापितं ॥ (५९१) जिनकुशलसूरिपादुका रौप्यमय ॥ सं। १९१८ माघ शु। ५ चं। श्रीजिनकुशलसूरिसद्गुरूणां चरणकमल उशवंशोद्भव। चोपड़ा हुकमचन्द्रेण कारापितं प्रतिष्ठितं च बृ। भ। श्रीजिनकल्याणसूरिभिः (५९२) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ संवत् १९१९ शाके १७८४ माघमासे कृष्णपक्षे १३ शनिवारे। पं। प्रवर गुरांसाहिब श्री १०८ श्रीश्रीअमृतविजयजी तच्छिष्य मुनि मानविजयगणि प्रतिष्ठितं ॥ ५८७. लखनऊ ऋषभदेव मन्दिर ५८८. अजमेर दादावाड़ी ५८९. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ५९०. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ५९१. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ५९२. मेड़ता सिटी युगादीश्वर मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११६ (५९३) आदिनाथ - मूलनायक : ॥ सं० १९१९ का शाके १७८४ प्रवर्तमाने फाल्गुनमासे शुभे शुक्लपक्षे ३ भृगुवासरे श्रीऋषभजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ । श्रीविजयधरणेन्द्रसूरीणां विजयराज्ये पं। जयसागरेण । जयनगरवास्तव्य सुश्रावक कोचरमुहता चुनीलाल सुत सुखलालकेन कारापितं ॥ श्रीतपागच्छे श्रीदांतरीनगरे ॥ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः (५९४ ) पद्मप्रभः ॥ सं० १९१९ का शाके १७८४ प्र । फा। सु० ३ शुक्रे श्रीपद्मप्रभुजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ । श्रीविजयधरणेन्द्रसूरिणा श्रीतपागच्छे। ....... (५९५ ) महावीर : ॥ सं० १९१९ का शा । १७८४ प्र । फाल्गुण सुदि ३ शुक्रवासरे श्रीमहावीरजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ। श्रीविजयधरणेन्द्रसूरिणा । (५९६ ) शीतलनाथः ॥ सं० १९१९ का शा । १७८४ प्र । फा० सु । ३ शुक्रे श्रीशीतलनाथबिंबं प्रतिष्ठितं । श्रीविजयधरणेन्द्रसूरिणा (५९७ ) अजितनाथ: ॥ सं० १९१९ का शाके १७८४ प्र० फाल्गुण शुक्ल ३ भृगौ श्रीअजितजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ । श्री विजयधरणेन्द्रसूरिणा श्रीतपागच्छे | (५९८) सुखलाल - कोचर-मूर्तिः || श्रीमंदिर बणायो सुखलालजी कोचर मिति फागुण सुदि ३ संवत् १९१९ का। (५९९) गौतमस्वामी - मूर्तिः ॥ सं० १९१९ शा। १७८४ वर्षे मिति फागुण सुदि ३ शुक्रे । श्रीइन्द्रभूति गौतमगणधरस्य बिंबं प्रतिष्ठितं । भ । श्रीविजयधरणेन्द्रसूरिभिः श्रीः । (६०० ) जिनकुशलसूरि - पादुका रौप्यमय सं० १९२० वै। शु। ५ गु । चौपड़ा कोठारी गोत्रीय हुकमचंद तत्पुत्र लक्ष्मीचंद तेन श्रीजिनकुशलसूरीणां चरणपंकज कारितं प्र । श्रीजिनकल्याणसूरि ५९३.५९८. दांतरी ऋषभदेव मन्दिर ५९९. अजमेर गौड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर ६००. जयपुर पञ्चायती मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ११७ (६०१) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॥ श्रीजैनेन्द्रदेवो विजयते॥ ॥ स्वस्ति श्रीऋषभादिवर्धमानान्ताः जिनाः शान्ताः शान्तिकराः भवन्तु, श्रीऋद्धिवृद्धिमङ्गलाभ्युदयश्च। श्रीवृन्दावत्यां नगर्यां श्रीदीवाण राजराजेश्वर महाराजाधिराज रावराजाजी श्रीरामसिंहजी महाराजकुमार श्रीभीमसिंहजी विजयराज्ये श्रीमन्नृपतिविक्रमादित्य समयात् संवत्सरे खंनयनांकेन्दुमिते प्रवर्तमाने शाके ज्ञानसिद्धिमुनिचन्द्रप्रमिते मासोत्तममासे माघमासे शुभे शुक्लपक्षे गुणेन्दुमितायां कर्मवाट्यां शनिवारे शुभमुहूर्ते श्रीऋषभाननजिनेन्द्रप्रासाद, श्रीबृहखरतरभट्टारकगच्छे जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्रीजिनहर्षसूरिजित्सूरीश्वराणां पट्टे सहस्रकिरणावतार भट्टारक श्रीजिनमहेन्द्रसूरिगुरुराजानां पट्टालङ्कार जंगम युगप्रधान वर्तमानभट्टारक श्रीजिनमुक्तिसूरिवरैः प्रतिष्ठितं कारापितं, ओसवालज्ञातीय बहुफणागोत्रे संघवी श्रीबाहदरमल्लजी तत्पुत्र दानमल्ल हमीरमल्ल राजमल्लेन श्रेयोर्थं स्वद्रव्येण श्रीजिनप्रासादं कारापितं श्रीगुरु उपदेशात्॥ श्रीः॥ (६०२) चतुरकुंवर पादुका ॥ संव्वत् १९२० शाके १७८५ वर्षे माघ शुक्ल १३ कर्मवाट्यां प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः सुश्राविका बाई चतुरकुंवरपादुकाः कारापितं। बा। सं। श्रीदानमल्ल हम्मीरमल्लेन श्रीवृन्दावत्यां नगर्यां स्वश्रेयोर्थम्। (६०३) पार्श्वनाथ: ॥ संव्वत् १९२० वर्षे माघ मासे शुभे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्रतिष्ठितं भ। श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः॥ का। समस्तश्रीसंघेन श्रीखरतरभट्टारक। __ (६०४) आदिनाथः ॥ संव्वत् १९२० शाके १७८५ माघ मासे शुक्लपक्षे १३ श्रीऋषभजिनबिंबं प्रतिष्ठितं बृहद्खरतरगच्छाधीश श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं पीस्सांगणस्य समस्तश्रीसंघेन श्रीबूंदीनगरे रावराजा महाराजाधिराज श्रीरामसिंहजी विजयराज्ये॥ ६०१. बूंदी सेठजी का मन्दिर ६०२. बूंदी सेठजी का मन्दिर ६०३. बूंदी सेठजी का मन्दिर ६०४. बूंदी सेठजी का मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (६०५) महावीरः ॥ संव्वत् १९२० वर्षे माघ मासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ श्रीवर्द्धमानजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्री जिनमुक्तिसूरिभिः कारितं श्रीसंघेन श्रीवृन्दावत्यां नगर्यां ॥ बृ। खरतरगच्छे । (६०६) पार्श्वनाथ एकतीर्थीः रौप्यमय ॥ सं। १९२० मि। मा। सु। १३ । प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। का। सं। श्रीबाहादरमल्ल दानमल्लेन ॥ (६०७) आदिनाथ-मूलनायकः ॥ संवत् १९२० शाके १७८५ प्र। वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ श्रीऋषभजिनस्वामिबिंब कारितं। श्रीसंघेन। प्रतिष्ठितं। खरतरबृहद्भट्टारकगच्छे श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। बाफणा संघवी बहादुरमल्ल दानमल्लेन स्वकारितचैत्ये श्री..........वृन्दावत्यां नगर्यां कारापिते। (६०८) सीमंधर-पादुका ॥ संव्वत् १९२० शाके १७८५ मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां कर्मवाट्यां श्रीसीमंधरजिनचरणयुगं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छेश श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। कारितं । सं। बा। श्रीदानमल्ल हम्मीरमल्ल राजमल्लादिभिः श्रीबूंदीनगरे रावराजा महाराजाधिराज श्रीरामसिंघजी विजयराज्ये। श्रीरस्तु। (३०९) गणेशमूर्तिः ॥ संवत् १९२० शाके १७७५ मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां कर्मवाट्यां श्रीगणाधिपमूर्ति प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छेश श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं। सं। बा। श्रीदानमल्ल हमीरमल्ल राजमल्ल स्वश्रेयोर्थं । श्रीबूंदीनगरे। (३१०) सं० बहादुरमल्ल-पादुका ॥ संव्वत् १९२० शाके १७८५ मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां कर्मवाट्यां। सं। बाफणा श्रीबाहादुरमल्लजितश्चरणयुगं कारापितं । ६०५. बूंदी सेठजी का मन्दिर ६०६. कोटा सेठजी का गृहदेरासर ६०७. बूंदी सेठजी का मन्दिर ६०८.-६१०. बूंदी सेठजी का मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः सं। बा। श्रीदानमल्ल हमीरमल्ल राजमल्लादिभिः प्रतिष्ठितं बृहत्खरतरगच्छेश श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः सकलसाधुवर्गसमन्वितं । रावराजा महाराजाधिराज श्रीरामसिंहजी विजयराज्ये श्रीरस्तु ॥ (६११) जिनमहेन्द्रसूरि-पादुका ॥ संव्वत् १९२० शाके १७८५ प्रमिते माघ शुक्ल त्रयोदश्यां शनौ श्रीबृहत्खरतर भट्टारकेन्द्र श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजित्पादयुगं प्र । बृ । भ । श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः का । बा । सं । श्रीदानमल्लेन स्वश्रेयोर्थं ॥ (६१२) पूर्वज - पादुका ॥ संवत् १९२० मि । मा । सु । १३ । सं। बा। दानमल्ल हम्मीरमल्लेन कारापितं । प्र । बृहत्खरतरगच्छाधीश्वर श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीवृन्दावत्यां ॥ (६१३) सीमंधर- स्वर्णपादुका श्रीसीमंधरस्वामिपादुकामिदं ॥ बाफणा श्रीबाहादरमल्लजी तत्पुत्र संघवी दानमल्ल कारापितं श्रेयोर्थं प्रतिष्ठितं । पं । प्र । हर्षकल्याण (६१४) ताम्रयंत्रम् ॥ सं। १९२० माघ शुद्ध प्र० भट्टारक जिनमुक्तिसूरिभिः । का। बाफणा संघवी दानमल्ल हमीरमल्ल राजमल्लेन शुभम् । ११९ (६१५) पट्टोपरि तामयंत्रम् ॥ संव्वत् १९२० रा । मि । माघ शुक्ल १३ प्रतिष्ठितं बृ । खरतर भट्टारकगच्छे श्रीजिनमुक्तिसूरीश्वरैः। का। सं। बा दानमल्लेन स्वश्रेयोर्थं श्रीरस्तु | सूरिभिः । (६१६ ) आदिनाथ: ॥ सं। १९२० । मा। शु। १३ श्रीऋषभजिनबिं० प्र० श्रीजिनमुक्ति ६११. - ६१३. कोटा सेठजी का गृह देरासर ६१४. कोटा सेठजी का गृहदेरासर ६१५. कोटा सेठजी का गृहदेरासर ६१६. बूंदी सेठजी का मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ( ६१७ ) चन्द्राननः ॥ सं । १९२० । मा । शु । १३ । श्रीचन्द्राननजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः । प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः (६१८ ) पार्श्वनाथ: ॥ संव्वत् १९२० वर्षे माघमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ पार्श्वजिनबिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीवृन्दावत्यां नगर्याम् ॥ (६१९) जिनदत्तसूरि- पादुका विक्रमात् संवत् १९२१ शाके १७८६ प्रवर्तमाने ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे द्वादश्यां बुधे लखनेउ पुरोपकंठे ओशवंशे कांकरिया गोत्रे लाला रत्नचन्द्रजी तत्पुत्र इन्द्रचन्द्र तत्सुत गोपीचन्द्र लक्ष्मीचन्द्र क्षेमचन्द्र सहितैः जं । यु । प्र । भट्टारक श्रीजिनदत्तसूरिपादुका कारिता प्रतिष्ठिता च मलधारि पूनिमिया बृहद्विजयगच्छीय श्रीजिनचन्द्रसागरसूरिपट्टोदयाद्रि भास्कर श्रीपूज्य श्रीशान्तिसागरसूरिभिः । ( ६२० ) यंत्र - रौप्यमय संवत् १९२१ वर्षे ज्येष्ठ दशम्यां शनिवार ॥ सं । बा । दानमलेन का । प्र । भ । श्रीशान्तिसागरसूरि । अत्र गृहे संपश्रियार्थे शुभं भवतु । ( ६२१ ) ... पादुका ॥ संवत् १९२१ वर्षे श्रावण सुदि ३ शुभवारे श्रीजयचंदजी तच्छिष्य ऋषिश्रीमूलचंद्रस्य पट्टे व..........श्रीकरण श्रेयोर्थं.. || (६२२ ) अजितनाथ: । सं० १९२१ शा १७८६ प्र । माघ । सु । ७ गु० वा । अंचलगच्छे। कच्छदेशे नलिनपुरवा | उसवं । लघुशाखायां विशरिया मोहोतागोत्रे सा० श्रीमांडण गोवंदजी भा । गणबाईणा ६ क्षेत्रे श्री अजितनाथबिंबं कारापितं गच्छना। भ । श्रीरत्नसागरसूरीश्वरजी प्रतिष्ठितं । ६१७. बूंदी सेठजी का मन्दिर ६१८. बूंदी सेठजी का मन्दिर ६१९. लखनऊ पार्श्वनाथ मन्दिर ६२०. कोटा सेठजी का गृह देरासर ६२१. नागोर पायचंदग० दादाबाड़ी ६२२. जयपुर नया मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः (६२३) अजितनाथः । सं० १९२१ शा १७८६ प्र । माघ । सु । ७ गुरु । अंचलगच्छे । कच्छदेशे । नलिनपुरवा । उश। ल । शा । विशरीया मोहोतागोत्रे । सा । श्रीतेजसी जेठा भा० मानबाई पुत्र सा० श्रीगोवंदजी श्रीसिद्धक्षेत्रे श्री अजितनाथबिंबं भरायो । ग । ना। भ । श्रीरत्नसागरसूरिजी प्रतिष्ठितं । (६२४) सुमतिनाथः ॥ सं० १९२१ शा १७८६ प्र । माघ । सु । ७ । गु। वा। अंचलगच्छे। कच्छदेशे । नलिनपुर वा । ओशवं । ल । शा । बागडा गो। सा । श्रीहरपार पासकीर भा । कमलबाई पुत्र सा० मेघजी पादलिप्तन । सिद्ध क्षे । श्रीसुमतिनाथबिंबं भरापितं ग । ना । भ । श्रीरत्नसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं । १२१ (६२५ ) नमिनाथ: ॥ सं० १९२१ शा १७८६ प्र । माघ । शु। ७ गु। वा। श्री अंचलगच्छे। कच्छदेशे । कोठारा न । वास्तव्य । उशवं । ल । शा । गांधीमोहोता गो । शा श्रीनायक मणसी । गृ । भा । हीरबाई कुक्षिरत्न शा । श्रीकेसवजी श्रीसिद्धक्षेत्रे श्रीनमिनाथजिनबिंबं भरापितं ग । ना। भ । श्री ७ रत्नसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं। (६२६ ) अरनाथ: ॥ सं० १९२१ शा १७८६ प्र । मा । माघमासे शु। ७ । गु । वा । अंचलगच्छे कच्छदेशे कोठारानगरे वास्तव्य उसवंशे लघुशाखायां गांधीमोहोतागोत्रे सा श्रीकेसवजी नायकेन श्रीपादलिप्तनगरे श्रीसिद्धक्षेत्रे श्रीअरनाथबिंबं भरापितं भट्टारकजी गच्छनायक श्रीरत्नसागरसूरीश्वर प्रतिष्ठितं ॥ (६२७) चन्द्रप्रभपादुका (धातु) संवत् १९२२ का० भाद्रपद शुक्लपक्षे तृतीयायां तिथौ गुरुवारे ॥ श्रीमत् जिनचन्द्रप्रभो ( : ) पादुका प्रतिष्ठितं ६२३. जयपुर नया मन्दिर ६२४. जयपुर नया मन्दिर ६२५. जयपुर नया मन्दिर ६२६. जयपुर नया मन्दिर ६२७. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (६२८) पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः ॥ सं० १९२४ माघे शुक्ले १३ गुरौ श्रीपार्श्वबिंबं ऋ। दुलीचंद शिष्य रूपचन्द्र गोरधन श्रेयोर्थं कारितं विजयगच्छे । श्रीपूज्यजी शान्तिसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं। श्रीपूनमियागच्छे। (६२९) शिलापट्ट-प्रशस्तिः संवत् १९२७ वर्षे शाके १७९२ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे वैशाखमासे शुक्लपक्षे अष्टमी तिथौ भृगुवारे इष्ट ५ पल ३७ तत्समये वृषभसेवकमुनि श्रीचिन्तामणि पार्श्वनाथजी पाटमहोत्सव स्थापितं श्रीबृहत्तपागच्छे श्रीश्रीश्री१०८ श्रीविजयधरणीन्द्रसूरीश्वरजी राज्ये उपदेशात् पंडित श्रीउत्तमविजयजी पं० होमसात् धरण पं० पुण्यविजयजी उपदेशात् श्रीदेवसूरिशाखायां सकल पंडितशिरोमणि पंडित श्रीराजेन्द्रविजयजी तत्शिष्य पंडित श्रीगुलाबविजयजी ते का नातधरण पंडित संतोकविजयजी ने भवन प्रतिष्ठा करी। समस्त श्रीसंघ बृहत्तपागच्छे पट्टाभिषेक सिंघवी घेवरचंदजी सकलस्य स्थापितं नाहर छगनमलजी जगरूपजी बोहरा देवीचंदजी। (६३०) ऋषभाननः ॥ संवत् १९२९ वैशाख शुक्ला षष्ठी ६ तिथौ श्रीऋषभाननबिंबं। जयपुरनगरे मोहनवाटिकायां भूम्यान्तर..........श्रीसंघेन प्रेषितं श्रीमुमुक्षाबाद अजीमगंज.......... || (६३१) वर्द्धमानः ॥ संवत् १९२९ वैशाख शुक्ला षष्ठी ६ तिथौ चन्द्रवासरे श्रीवर्द्धमान- बिंबं श्रीसंघेन प्रतिष्ठा करापितं..........। (६३२) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १९३३ वर्षे मासोत्तममासे माघमासे शुक्लपक्षे तीज तिथौ श्रीखरतरगच्छे। सिणगारहार जंगम युगप्रधान चारीत्रचूडामणीजी बृहत्भट्टारकगच्छे भट्टारक दादाजी श्रीश्री जिनकुशलसूरीणां श्रीपादुका प्रतिष्ठितं । ६२८. केकड़ी चन्द्रप्रभ मन्दिर ६२९. कुचेरा चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर ६३०. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ६३१. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ६३२. जोधपुर संभवनाथ मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२३ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (६३३) सिद्धचक्रयंत्रम् ९००० बिंबं सं० १९३३ माघ शु० १० कारा० सा० धनपतिसिंह बहादुरेण प्र० सर्वसूरि..........गच्छे श्री॥ (६३४) जिनकुशलसूरि-पादुका संवत् १९३५ दादाजी श्री १०८ श्रीजिनकुशलसूरिजी का चरणपादुका श्रीसंघेन कारापितं पं।.........। __ (६३५) अष्टमङ्गलीकः सं। १९३५ नी साल सा० धरमचंद पूजाण कुण स..........। __ (३३६) आदिनाथ-पादुका । ॥ संवत् १९३६ वर्षे शाके १८०१ प्रवर्तमाने मासोत्तममासे वैशाखमासे शुक्लपक्षे ७ तिथौ चन्द्रवासरे श्रीऋषभदेवजी री पादुका श्रीसमस्त संघ स्थापित श्रीनागोरनगरे शुभं भूयात् ॥ (६३७) दानमल्ल-पादुका ॥ श्रीऋषभाननजैनेन्द्रप्रसादे बाफणा संघवी। सेठजी श्रीदानमल्लस्य चरणपादुका कारापिता तत्पुत्रेण बा। सं। से० हमीरमल राजमल्लेन स्थापितः श्रीबूंदीनगरे॥ रसाग्न्यंकभूवर्षे शुक्ल ज्ञानमिते कर्मवाट्यां श्रीमच्छीजिनमुक्तिसूरीणामुपदेशात् उपाध्याय श्रीहर्षकल्याणगणिभिः स्थापितं ॥ श्री भूयात्॥ (६३८) आदिनाथ: ॥ संवत् १९४१ का ज्येष्ठ सुदि ५ गुरौ श्रीआदीश्वरजिनबिंबं गुजराती पारखगोत्री रतनचंद तद्भार्या कंकुतया कारापितं मलधार श्रीपूनमियाविजयगच्छे भट्टारक श्रीपूज्य श्रीजिनशान्तिसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीकोटा रामपुरा मध्ये। श्रेयसे। ६३३. किसनगढ़ चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर ६३४. नागोर सुमतिनाथ मन्दिर ६३५. हिंडोन श्रेयांसनाथ मन्दिर ६३६. नागोर न्यात की बगीची ६३७. बूंदी सेठजी का मन्दिर ६३८. कोटा माणकसागरजी का मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (६३९) शान्तिनाथः सं० १९४३ का मि। वै। शु। ७। चं। वा। श्रीशान्तिजिनबिंबं । का। गोलवछा हर्षचन्द्र इन्द्रचन्द्राभ्यां प्रति। बृहत्ख। ग। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। (६४०) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॥ श्रीजिनेन्द्रं प्रथमं प्रणम्य स्वस्तिप्रदातैः सकलं च संघं सूर्या ऋषभमस्तु कीर्तनादि प्रशस्तिरेषा लिखिता शुभंयुः॥ १॥ स्वस्ति श्री संवत् १९४३ शाके १८०८ फाल्गुन शुक्ल तृतीयायां ३ शुक्रवासरे वृषलग्ने वृषनवांसमध्ये श्रीश्री श्री १००८ श्रीआदिनाथस्वामिजिनेन्द्रप्रतिमायाः श्रीसवाई जयपुरनगरमध्ये सोगा ए पास भाजे मदी (?) भ० श्रीपूज्यजी महाराज श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः पार्श्वचन्द्रगच्छाधिकारिभिः श्रीपूज्यजी महाराज खरतरगच्छ भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः बांठियागोत्रे सेठजि सा० श्रीगंभीरमलजी वासी बीकानेर का हालवासी आगरा का तत्पुत्री बाई जवारकुंवर तत्पुत्री बाई राजकंवर तया श्रीआदिजिनेन्द्रभवनं कारयित्वा प्रतिष्ठा कारापिता। मारफत कन्हियालालजी डागा पुजाणीगोत्रे। शुभंभूयात्। उसता-जहेदीलाल ॥ श्री १ (६४१) सिद्धचक्रयंत्रम् श्रीसिद्धचक्रो लिखितो मया वै, भट्टारकीयेन सुयंत्रराजः। श्रीसुन्दराणां किल शिष्यकेण, सरूपचन्द्रेण सदार्थसिद्ध्यै ॥ १॥ श्रीमन्नागपुरे रम्ये, चंद्रवेदांकभूमिते (१९४१)। अब्दे वैशाखमासस्य तृतीयायां सिते दले॥ २॥ (६४२) शान्तिनाथः ॥ संवत् १९४७ वैशाख वदि १५ शनि शान्तिनाथबिंबं का० भरावी जैपुरवा० जीविचंदजी होसरावी श्रीमान् विजयानन्दसूरीश्वरजी प्रतिष्ठितं करापितं। ६३९. जोधपुर कोलड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर ६४०. जयपुर नया मन्दिर ६४१. जोधपुर केशरियानाथ मन्दिर ६४२. जयपुर स्टेशन मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः (६४३ ) पार्श्वनाथः स्फटिकरल ६ इंच ॥ संवत् १९४९ माघ सुदि १३ श्रीपार्श्वनाथजी श्रीबिंबं प्रतिष्ठा राजकंवारबाई श्रीमोहनलालजीमुनि । (६४४) जिनकुशलसूरि- पादुका ॥ सं । १९५० आषाढ शुक्ला ८ अष्टम्यां शुक्रवासरे उ । श्री तिलकधीरगणिना श्रीजिनकुशलसूरीणां चरणं श्रीसंघकारापितं प्रतिष्ठितं भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ॥ १२५ (६४५) जिनकुशलसूरि- पादुका संवत् १९५० के स्थापित जिनकुशलसूरि चरण हैं । (६४६ ) जयसागर - पादुका ॥ श्री ॥ संवत् १९५१ का वर्षे मिति वैशाख सुदि २ शुक्रवासरे गुरां मानराज श्री श्री १०८ श्री श्री रुघनाथसागरजी तत्शिष्य जगसागर.. पादुके श्रीरस्तु । (६४७) दादा - पादुका - युगल ॥ पगलीया श्री दादा जिनदत्तसूरजी जिनकुशलसूरजी संवत् १९५१ रामिति सावण सुद ५ वार सोमवार ( ६४८ ) पार्श्वनाथ: ॥ सं० १९५१ रा माघ सु० पंचम्यां श्रीपारसनाथजी बिंबं प्रतिष्ठा भट्टारक श्रीविजयराजसूरिमत्तपागच्छे श्री ........... | (६४९ ) जिनकुशलसूरि- पादुका ॥ संवत् १९५२ का मिति माघ शुक्ला ३ तिथौ गुरुवासरे जं० यु० प्रधान खरतरभट्टारक दादाजी महाराज १०८ श्रीजिनकुशलसूरीजी महाराज रा ६४३. कोटा सेठजी का गृह देरासर ६४४. जयपुर स्टेशन मन्दिर ६४५. जोधपुर कुंथुनाथ मन्दिर ६४६. मालपुरा मुनिसुव्रत मन्दिर ६४७. बूंदी सेठजी का मन्दिर ६४८. मेड़ता रोड शान्तिनाथ मन्दिर ६४९. जयपुर नया मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः चरण कमल प्रतिष्ठापितं जंगम युगप्रधान बृ। ख। भ। श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं.........श्रेयो).........कारितं बाई राजकुंआरि श्रेयोर्थं ॥ (६५०) मणिधारी जिनचन्द्रसूरि-पादुका ॥ सं। १९५२ माघ सुदि ५ तिथौ जं। यु। प्र। खरतरभट्टारक दादाजी महाराज श्रीजिनचन्द्रसूरिजी मणिवालों के चरण कमल प्रतिष्ठापितं । जं। यु। प्र। बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीरतलामनगरे कारितं। जयपुरस्य श्रीसंघेन स्वश्रेयोर्थं ॥ गुरुवारे। (६५१) चन्द्रप्रभः __सं० १९५३ वैशाख शुक्ले १५ श्रीचंदाप्रभुजिनबिंबं प्रेमचंद नेमचंद श्रा० झरगड जैपुरवाला भरावी श्रीमद्विज (या) नंदसूरीश्वरजी पञ्जाब सनखतरा नगरे प्रतिष्ठितं ॥ (६५२ ) मुनिसुव्रतः ॥ सं० १९५३ थे। सुदि १५ श्रीमुनिसर(सुव्र)तबिं० का.......... भट्टारक श्रीआनन्दसूरिः प्रतिष्ठितं। (६५३) शान्तिनाथः सं। १९५३ वै। सुदि १५ श्री शान्तिनाथबिंबं कारितं..........श्रावक मंगलचंद हौ..........पुण्यार्थं श्रीविजयानन्दसूरि प्रतिष्ठितं ॥ (६५४) शान्तिनाथ मूलनायकः सं० १९५५ का मिति फा। कृ। ५ गु। शान्तिबिंबं प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः आहोरनगरे अंजनशिला..........। (६५५) पार्श्वनाथः ॥ सं० १९५५ का फा० व ५ श्रीपार्श्वनाथबिंबं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः आहोर नगरे ६५०. सांगानेर दादाबाड़ी ६५१. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ६५२. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ६५३. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ६५४. चाकसू शान्तिनाथ मन्दिर ६५५. जयपुर स्टेशन मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १२७ (६५६) पद्मप्रभः ॥ सं० १९५५ फा० व० ५ श्रीपद्मप्रभजिनबिंबं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः आहोरनगरे। (६५७) अरनाथ: ॥ सं। १९५५ फा० व० ५ गु। श्रीअर नाथजिनबिंबं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः आहोरनगरे। स्थापितं। जैपुर ॥ (६५८) शान्तिनाथः ॥ संवत् १९५५ का मि० फागुण वदि ५ दिने श्रीशान्तिजिनबिंबं ख० भट्टा० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः प्रतिष्ठितं आहोरनगरे। (६५९) परमेष्ठीयन्त्रम् ॥ सं० १९५५ फा० कृष्ण ५ गुरौ श्रीपञ्चपरमेष्ठी यंत्रं ॥ बृहत्खरतरगच्छे जं। यु। भ। श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः॥ श्रीः॥ ___ (६६०) शान्तिनाथः संवत् १९५५ फागुण वदि ५ श्री शान्तिनाथबिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः॥ (६६१) शान्तिनाथ-मूलनायकः संवत् १९५५ फा० कृ० ५ गुरौ श्रीशान्तिनाथजिनबिंबं प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। श्रीसंघ प्र० आहोरनगरे कारापितं प्रतमा भारूंदा नगरे॥ (६६२) शान्तिनाथः संवत् १९५५ का मिति फा० वदि ५ गुरुवासरे श्रीशान्तिनाथबिंबं ख० भट्टा० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः प्र० आहोरनगरे शुभंभव० ६५६. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ६५७. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ६५८. जोबनेर चन्द्रप्रभ मन्दिर ६५९. जयपुर गुलाबचंद ढवा गृह देरासर ६६०. जयपुर पायचंद ग० उपाश्रय ६६१. भारूंदा शान्तिनाथ मन्दिर ६६२. गोविंदगढ़ पार्श्वनाथ मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (६६३) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ संवत् १९५६ वैशाख मासे शुक्ल पक्षे तिथौ ३ श्रीसिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः जयनगरवास्तव्य श्रीमालान्वये झरगड़गोत्रीय सुश्रावक खूबचन्द तत्पुत्र रोसनराम वृद्धिचन्द्र सपरिकरेण कारितं स्वश्रेयोर्थं ॥ सदा अक्षयमस्तु॥ श्रीः॥ (६६४) चक्रेश्वरीमूर्तिः ॥ सं। १९५६ मिते ज्येष्ठ शुक्ल ३ रवौ इदं चक्रेश्वरी प्रतिष्ठितं जं। यु। भ० श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ श्रेयोस्तु। (६६५) सिद्धचक्रयंत्रम् ॥ श्री संवत् १९५६ मिति कुंवार शुदि १५ बोहरागोत्रे कस्तूरचंदजी तद्भार्या मोहिनी बीबी कारापितं सिद्धचक्रयंत्रं प्रतिष्ठितं बृहद्भट्टारक श्रीजिनरत्नसूरिभिः श्रीजिनचन्द्रसूरिपदस्थितैः श्रीरस्तुगेदं॥ (६६६) पार्श्वनाथः ॥ स्वस्ति श्रीविक्रम सं० १९५६ का० शाके १८२१ का माघ शुक्ल त्रयोदशी शुक्रवार जंडियालानगरे । बिंबं भराया श्रावक हीरालाल छगनलाल गोत्र टांक श्रीमाल वंशे संवेगधारक तपागच्छे मुनि श्री कमलविजयजी..........श्रीजयपुरवास्तव्यः॥ (६६७) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ संवत् १९५८ वर्षे आषाढ सु० ५ शुक्रे दादाश्रीजिनदत्तसूरि पादुके प्रतिष्ठितं श्रीजिनकीर्तिसूरिभिः।। (६६८) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ संवत् १९५८ वर्षे आषाढ सु० ५ शुक्रे दादाश्रीजिनकुशलसूरिपादुके प्रतिष्ठितं श्रीजिनकीर्तिसूरिभिः। कारितं श्रीसंघेन। ६६३. किसनगढ़ खरतरग० उपाश्रय ६६४. जयपुर श्रीमालों का मन्दिर ६६५. जयपुर श्रीमालों का मन्दिर ६६६. जयपुर श्रीमालों का मन्दिर ६६७. अमरावती पार्श्वनाथ मन्दिर ६६८. अमरावती पार्श्वनाथ मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः (६६९) उ० तिलकधीर - नेमिचंद पादुके ॥ संवत् १९५८ का मिति माघ सुदि १३ गुरुवासरे श्रीसवाई जयपुरनगरवास्तव्य बृहत्खरतरभट्टारक गच्छे उ । तिलकधीरगणि उ । नेमिचन्द्र इतिनामकौ तत्शिष्य पं । प्र । लक्ष्मीचन्द्रगणि पं । ज्ञानलाल पं । सुंदरलालेन गुरुचरणकमल प्रतिष्ठा कारापितं ॥ श्री ॥ जंगम यु । प्र । भट्टारक श्री १००८ श्री श्री श्री श्रीजिनकीर्तिसूरिविजयराज्ये ॥ जं । प्र । भट्टा । श्री १०८ श्री श्री श्री श्रीजिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठितं ॥ शुभं भवतु ॥ (६७०) शिलालेख प्रशस्तिः ॐ श्रीं यह मन्दिर श्री जैन श्वेताम्बराम्नाय का श्रीऋषभदेवजी महाराज का है। इसकी प्रतिष्ठा शुभ संवत् १९५८ शाके १८२३ माघ शुक्ला १२ बुधवार पुनर्वसुनक्षत्र मीनलग्न में खरतरगच्छाचार्य भट्टारक श्रीपूज्यजी महाराज श्री १०८ श्रीजिनसिद्धिसूरीजी बीकानेर वालों के करकमलों से हुई। यह मन्दिरजी जौहरी सेठ भूरालाल गोकलचंद पुंगलिया जयपुर निवासी ने अपने द्रव्य से करवाया शुभम्भवतु । १२९ (६७१) जड़ावश्री पादुका संवत् १९६३ ज्येष्ठ मासे कृष्णपक्षे दुतिया दिने । यति हीराचन्द्रेण वि । पूज्य श्री १०८ श्रीलई श्रीजी तच्चरणांबुजा चेलीजी श्रीजड़ाव श्रीजी का चरणपादुका प्रतिष्ठितं श्रीमत्तपागच्छे । (६७२) आत्मारामजी मूर्ति: ॥ न्यायाम्भोधि श्रीतपागच्छालङ्कारसार भट्टारक श्रीविजयानंदसूरीश्वराणां प्रसिद्ध नाम श्री १००८ श्रीमनात्मारामजी महाराज की मूर्ति श्रीसंघ जयपुर करापिता प्रतिष्ठिता मुनिमहाराज श्रीमोतीविजयेन मालपुरा नगरे विक्रम संवत् १९६४ ज्येष्ठ शुक्ला ११ शनिवार में । ६६९. जयपुर मोहनबाड़ी ६७०. जयपुर स्टेशन मन्दिर ६७१. कोटा माणिकसागर मन्दिर ६७२. जयपुर नया मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (६७३) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ संवत् १९६५ वर्षे वैशाख सुदि दशम्यां चन्द्रवारे दादा साहब श्रीजिनकुशलसूरिचरणपादुका स्थापिता श्रीराजनांदगांवनगरे समस्त संघेन प्रतिष्ठितं मुनि सुमतिसागर........। (६७४) पार्श्वनाथ-मूलनायकः । ॥ संवत् १९६५ ज्येष्ठ कृष्ण १० चन्द्रे श्रीपार्श्वजिनबिंबं प्रतिष्ठितं च श्रीरतलामनगरे ॥ तपागच्छाधिपतिः श्रीमत्सूरिर्विजयराजयः तत्पट्टे विजयरत्नसूरिः श्रीपदपूर्वक ॥ १॥ श्रीहीररत्नसूरिस्तद्रनस्तस्यपट्टशिष्योऽभूत्। तस्यानुक्रमश्रेण्यामधुना श्रीसुमतिरत्नसूरिर्यः॥ २॥ श्रीः॥ (६७५) शिलापट्टप्रशस्तिः ॥ श्री अर्हताय नमः॥ श्रीचौरासीगच्छ सिणगारहार जंगम युगप्रधान परउपगारी भट्टारक दादाजी श्रीश्री १०८ श्रीश्रीजिनदत्तसूरजी श्रीश्रीजिनकुशलसूरजी रो मिंदर भड़गतीया करणमलजी बेटा सांवतमलजी रा पोता सुरजमलजी रा मेड़ता वाला करायो तिणरी प्रतिष्ठा संवत् १९६५ जेठ सुद १२ कराय संवत् १९६५ रा आसोज वद १० ने श्रीसकल श्रीसंघने सुपरत कियो हस्ताक्षरः मिश्र पूर्णचंद गौड॥ (६७६) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ विक्रम सं० १९६५ शा० १८३० प्र० ज्येष्ठ मासे शुक्लपक्षे १२ द्वादश्यां गुरुवारे बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक जंगम युगप्रधान दादाजी महाराज श्रीश्रीश्री १०८ श्रीजिनदत्तसूरजी महाराज पादुका प्रतिष्ठितं भड़ग० श्रे० करणमल सावंतमल सुतः॥ प्रतिष्ठितं पं० लालविजयेन ॥ (६७७) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ विक्रम सं० १९६५ शा० १८३० प्र० ज्येष्ठ मासे शुक्लपक्षे १२ द्वादश्यां गुरुवारे बृहत्खरतरगच्छे भट्टारक जंगम युगप्रधान दादाजी महाराज ६७३. राजनांदगांव पार्श्वनाथ मन्दिर ६७४. रतलाम जगवल्लभ पार्श्वनाथ मन्दिर ६७५. मेड़ता रोड दादाबाड़ी ६७६. मेड़ता रोड दादाबाड़ी ६७७. मेड़ता रोड दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १३१ श्रीश्री १०८ श्रीकुशलसूरजी महाराज पादुका प्रतिष्ठितं भड़गतिया करणमल सावंतमल सुतः॥ प्रतिष्ठितं पं० लालविजयेन ॥ (६७८) दादा-पादुका-युग्म ॥ दादाजी जिनदत्तसूरि ॥ जिनकुशलसूरि ॥ सं० १९६७ मा० सु० ५ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः कारितं.........गोत्रीय। (६७९) सुधर्म-गौतमस्वामी-पादुके ॥ श्री सुधर्मास्वामी जी॥ श्री गौतमस्वामीजी॥ संवत् १९६७ रा माघ सुदि ५ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः हरिसचंद। (६८०) जिनदत्तसूरि-पादुका __ श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज चरणपादुकेभ्यो नमः वीर सं० २४४५ विक्रम सं० १९६९ पो० शु० ९ गुरु मेड़तवाल श्री श्रीमल नेमिचंद केकड़ी श्रीश्रीश्री १०८ महाभट्टारक बृहत्खरतरगच्छाधिपति। (६८१) पुण्यश्री-पादुका पूज्यपाद गुरुवर्या श्रीमती पुण्यश्रीजी महाराज साहब के चरणों की प्रतिष्ठा वीर संवत् २४४७ विक्रम संवत् १९७० के वैशाख शुक्ला ६ गुरुवार के रोज समस्त श्रीसंघने करवाई। (६८२) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ संवत् १९७१ शाके १८३६ वैशाख मासे शुभे कृष्णे १२. तिथौ बुधवासरे भडगतिया फतेमलजी कल्याणमलजी तत्पुत्र कस्तूरमलजी जेवंतमलजी तत्माता जवारबाई कारापितं प्रतिष्ठितं भ। ख। श्रीश्री १०८ श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः राज्ये प्रवर्तमाने पन्यास हर्षमुनि पं। प्र। प्रेमसुख मुनि वि..........श्रीजिनकुशलसूरिच० पादुका। ६७८. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ६७९. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ६८०. केकड़ी चन्द्रप्रभ मन्दिर ६८१. जयपुर मोहनबाड़ी ६८२. अजमेर भड़गतियों का आदीश्वर मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (६८३) विंशतिस्थानक-पट्टः ॥ संवत् १९७१ शाके १८३६ रा वैशाख मासे शुभे कृष्णपक्षे १२ तिथौ बुधवासरे भड़गतिया फतेमलजी कल्याणमलजी तत्पुत्र कस्तूरमलजी जेवंतमलजी तन्माता जवारबाई विंशतिस्थानपढें कारापितं प्रतिष्ठितं मुनिश्रीहर्षमुनि..........उ० प्रेमसुखमुनि। (६८४) जिनदत्तसूरि-पादुका ॥ संवत् १९७१ शाके १८३६ वैशाख मासे शुभे कृष्णे १२ तिथौ बुधवासरे भड़गतिया फतेमलजी कल्याणमलजी तत्पुत्र कस्तूरमलजी जेवंतमलजी तत्माता जवारबाई कारापितं प्रतिष्ठितं भ। ख। श्रीश्री १०८ श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः राज्ये प्रवर्तमाने पन्यास हर्षमुनि पं। उ० प्रेमसुखमुनि वि..........श्रीजिनदत्तसूरिच० पादु० . (६८५) मोहनमुनि-पादुका ॥ संवत् १९७१ शाके १८३६ वैशाख मासे शुभे कृष्णे १२ तिथौ बुधवासरे कस्तूरमलजी जेवंतमलजी भड़गतिया मोहनलाल मुनिना पादुका कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीहर्षमुनि..........प्रेमसुखमुनिः। (६८६) सुमतिनाथः ॥ संवत् १९७२ मि। मा। शुक्ल ९ नवम्यां शनिवासरे अयं सुमतिनाथस्य बिंबं कारितं श्रीमालवंशे महमवाल गोत्रे ला० जुवाहरमल तत्पुत्र मोतीलाल तद्भार्या चंदाबीबी स्व श्रेयोर्थं प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। रङ्गविजयगच्छीय भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिपदस्थित श्रीजिनरत्नसूरिभिः। श्रीरस्तु। (६८७) आदिनाथः संवत् १९७२ मि। मा। शुक्ल ९ नवम्यां शनिवासरे अयं ऋषभदेवस्य बिंबं कारितं श्रीमालवंशे महमवाल गोत्रे शा० जुवाहरमल तत्पुत्र मोतीलालेन स्वश्रेयोर्थं प्रतिष्ठितं जं। यु। प्र। रङ्गविजयगच्छीय भ। श्रीजिनचन्द्रसूरि पदस्थित श्रीजिनरत्नसूरिभिः। श्रीरस्तु। ६८३. अजमेर भड़गतियों का आदीश्वर मन्दिर ६८४. अजमेर भड़गतियों का आदीश्वर मन्दिर ६८५. अजमेर भड़गतियों का आदीश्वर मन्दिर ६८६. लखनऊ दादाबाड़ी ६८७. लखनऊ दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः ( ६८८ ) अजितनाथ: । सं । १९७२ मि । माघ सु० ९ शनि अजितनाथबिंबं का । भडगरागोत्रे सोभागचन्द्र तद्भार्या गुलाबदे प्र । भ । बृ । खर। ग । श्रीजिनरत्नसूरिभिः । ( ६८९ ) संभवनाथ: । सं० १९७२ मि । माघ शु । ९ शनि संभवनाथबिंबं का ।..........प्र । भ। खर। ग। श्रीजिनरत्नसूरिभिः॥ १३३ ( ६९० ) ॥ श्रीः ॥ सं० १९७३ मिति सावण सुदि ५ वार सुकरवार १ श्रीजी ने विराजमान किया मानबाई २ श्रीजी ने विराजमान किया हुलासबाई । ( ६९१ ) जिनकुशलसूरि-मूर्ति: ॥ ६० ॥ श्रीचतुरशीतिगच्छ - शृंगारहार जंगम युगप्रधान भट्टारक दादाजी श्री श्री श्री १००८ श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणामियं मूर्तिः श्रीगुरुणीजी श्रीपुण्यश्रीजी के उपदेश से उदयपुर की सुश्राविका कुंवरबाई ने प्रतिष्ठा करवाई। पं० प्र० श्रीकेसरमुनि जी गणि के पास । संवत् १९७३ मिति फागुण शुक्ल तृतीयायां शनिवासरे शुभं भवतु ॥ (६९२) जिनकुशलसूरि-मूर्ति: ॥ स्वस्ति श्री श्री श्री श्री श्री श्री १००८ श्री जं० यु० प्र० श्रीबृहत्खरतरगच्छ भट्टारक चौरासीगच्छ शृंगार दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी महाराज का बिंब स्थापना किया श्रीप्रवर्तिनी पुण्यश्रीजी के उपदेश से सुश्रावक तेजकरणजी ने ॥ संवत् १९७५ श्रीवैशाख शुक्ला ६ गुरुवासरे ॥ (६९३) जिनकुशलसूरिमूर्तिः ॥ वि० सं० १९७५ श्री वै० सु० ६ गु ॥ स्वस्ति श्री १००८ श्री श्री श्री श्री दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी का बिंब प्रतिष्ठा । ६८८. जयपुर श्रीमालों का मन्दिर ६८९. जयपुर श्रीमालों का मन्दिर ६९०. जयपुर सुमतिनाथ मन्दिर ६९१. जयपुर विजयगच्छीय मन्दिर ६९२. जयपुर नया मन्दिर ६९३. जयपुर इमली वाली धर्मशाला For Personal & Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (६९४) चांदमल-हुलासकुंवर-स्मारक ॐ श्री वीतरागाय नमः। विक्रम संवत् १९१७ मिति मिगसर वदि १४ को सेठ चांदमलजी साहब लूणिया का स्वर्गवास हुआ तथा उनकी धर्मपत्नी श्रीमती हुल्लासकुंवर का स्वर्गवास संवत् १९३६ मिति आसोज वदि १३ को हुआ। उनकी दाहभूमि पर यह स्मारक भवन संवत् १९७६ मिती वैशाख सुदि १३ सोमवार मिथुन लग्न में उनके सुपुत्र रायबहादुर राजाबहादुर श्रीयुत् सेठ थानमलजी लूणिया वर्तमान निवासी दक्षिण हैदराबाद रेजीडेन्सी बाजार वालों के करकमलों द्वारा शहर अजमेर स्थान दादाबाड़ी में प्र। १९७६ शुभम्। (६९५) जिनयश:सूरि-मूर्तिः परमसंवेगी महातपस्वी प्रशान्त श्रीमज्जिनयश:सूरिजी प्रसिद्धनाम पन्यास श्रीयशोमुनिजी गणि महाराजस्य मूर्तिरियं ज्ञानभांडागारसहिता स्थापिता श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं च शिष्य पंन्यास केशरमुनि गणिना सं० १९७५ माघ शु० ५। __ (६९६) सिद्धसेनदिवाकर-मूर्तिः ॥ १९७६ विक्रम संवत्सरे राधमासे पादपरिचर्यासक्तसुशिष्याभ्यां सामात्यविक्रमादित्यराजनवसंसेविता श्रीमन्मुनिमहाराज हंसविजयानां सदुपदेशात् घमंडसी जुहारमलनाम्ना प्रसिद्धापणनायकेन सेहेसकरणजित्सावणसुखागोत्रीयेण विक्रमराजसमक्षं स्तोत्रप्रभावात् शिवलिंगं विदार्य श्रीअवंतीपार्श्वनाथप्रतिमाप्रकटकारकाणां श्रीमत् सिद्धसेनदिवाकराचार्याणां मूर्तिरियं कारिता लिखितोयं लेख संपद्विजयगणिना। .. (६९७) जिनमहेन्द्रसूरियादुका ॥ श्रीनृपतिविक्रमार्कप्रवर्तित १९७८ मितेब्दवर्तमाने तत्र मार्गशीर्ष मासे कृष्णपक्षे शुभतिथौ त्रयोदश्यां रविवासरे। जं। यु। प्र। बृ। ख। भ। श्रीजिनमहेन्द्रसूरीश्वराणां चरणस्थापना श्रीजिनचन्द्रसूरीणामुपदेशेन जयपुरीय श्रीसंघेन कृता। ६९४. अजमेर दादाबाड़ी ६९५. जोधपुर जिनयशसूरि ज्ञान भंडार ६९६. उज्जैन अवंति पार्श्वनाथ मन्दिर ६९७. जयपुर मोहनबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः (६९८ ) जिनमुक्तिसूरि- पादुका श्रीनृपतिविक्रमार्कप्रवर्तित १९७८ मितेब्दवर्तमाने तत्र मार्गशीर्षमासे कृष्णपक्षे शुभतिथौ त्रयोदश्यां रविवासरे जं । यु । प्र । बृ । ख । भ । श्रीजिनमुक्तिसूरीश्वराणां चरणस्थापना श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराणामुपदेशात् । जयपुर श्रीसंघेन कृता । (६९९) आदिनाथ - मूलनायक : श्री आदीश्वरमूर्ति जैपुरवा. ढढ्ढा गो० ० कन्हैयालाल सत्कात् का० प्र मुनि श्री मग्नसागरैः सं० १९८० उखलाणा गां० श्रीरस्तु । (७००) पार्श्वनाथ - एकतीर्थी: रौप्यमय ॥ सं० १९८६ मि । जे । सु । ११ श्रीपार्श्वबिंबं का । श्रीमालवंशे ढोरगोत्रे घासीलाल तत्पुत्र पूनमचंदेन कारि । प्रति । भ । रत्नसूरिभिः ( ७०१ ) जिनचन्द्रसूरि - पादुका ॥ सं० १९८६ । मिति ज्येष्ठ शुक्ला ११ सोमे इयं । चरण पादुका जं । । । बृ । भ । श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वराणां कारापितं जैपुरवास्तव्य ढोरगोत्रे गोपीचंद तत्पुत्र मांगीलालेन प्रतिष्ठितं रङ्गविजयखरतरगणे श्री ॥ (७०२) जिनरङ्गसूरि - पादुका ॥ सं० १९८६ मिति ज्येष्ठ शुक्ला १९ सोमे इयं चरणपादुका जं । यु । प्र । बृ । भट्टारक श्रीजिनरङ्गसूरीश्वराणां कारापिता जैपुरवास्तव्य ढोरगोत्रे गोपीचन्द्र तत्पुत्र मांगीलालेन प्रतिष्ठितं रङ्गविजयखरतरमणे श्री । सूरिभिः । १३५ (७०३) आदिनाथ - एकतीर्थी : रौप्यमय सं० । १९८७ म । माघ सुदि ६ ऋषभजिनबिंबं प्र । भ । श्रीजिनरल - ६९८. जयपुर मोहनबाड़ी ६९९. उखलाना आदिनाथ मन्दिर ७००. जयपुर पूनमचंद ढोर गृह देरासर ७०१. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ७०२. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ७०३. जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी For Personal & Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (७०४) आदिनाथ-मूलनायकः सं० १९८९ फा० शु० २ उदयसूरि (७०५) चन्द्रप्रभ-मूलनायकः स्वस्ति श्री वि० सं० १९८९ फा० सु० १२ रवौ नागोर वास्तव्य वीसा श्रीमालज्ञातीय तपागच्छीय सा० भैंरुबगस सुतैः श्रे० सुखलालजी श्रे बादरमलजी श्रे० कानमलजी इत्येतैः स्वश्रेयो) कारितमिदं श्रीचन्द्रप्रभजिनबिंबं प्रतिष्ठितं सौराष्ट्रदेशे कदंबविहारप्रासादे तपागच्छीय भट्टारकाधिप श्रीविजयनेमि सूरिभिः॥ श्रीविजयोदयसूरिभिश्रीनंदनसूरिसहितेन। आलेखि मुनि श्रीगीर्वाणविजयेन ॥ (७०६) वीशस्थानकपट्टः संवत् १९९२ वर्षे वैशाख शुक्ला ७ गुरुवारे जयपुरवास्तव्येन ओशवालवंशीय बांठियागोत्रीय खेतसीदासात्मजेन हजारीमल्लेन तद्भार्या सौभाग्यवती फूलकुंवरपुत्राः सुगनचन्दप्रभृतिना स्वमातृतपउद्यापनार्थं श्रीविंशतिस्थानकः पट्टः कारितः प्रतिष्ठापितश्च खरतरगच्छीय यतिवर्य पं० श्यामलालेन पं० विजयलालेन यतिना। (७०७) नवपदपट्टः _____ॐ नमः वि० सं० १९९३ वैशाख शुक्ला ६ चन्द्रवासरे जयपुर नगरे ओशवंशे संचेती गोत्रीय श्रेष्ठि श्रीमत्फकीरचन्द्रात्मज श्रीयुत सागरमल सरदारमल्ल स्वतनुजेन सिरेमल्लेन श्रीनवपदतपोविहितं तदुद्यापनमहोत्सवे श्रीनवपदमण्डलपट्टः प्रकीर्तितः प्रतिष्ठितः खरतरगच्छाधीशैः श्रीमज्जिनहरिसागरसूरिभिः श्रेयसेऽस्तु ॥ वि० यतिवर्य पं० श्यामलालैश्च ॥ (७०८) वीशस्थानकपट्टः संवत् १९९३ वर्षे वैशाख शुक्ल पक्षे ६ षष्ठयां तिथौ सोमे ओशवंशीय पालेचा गोत्रीय तपागच्छीय विजयसिंह भार्यायाः पुत्रेण केसरिसिंहेन ७०४. कारंजा आदिनाथ मन्दिर ७०५. नागोर स्टेशन चन्द्रप्रभ मन्दिर ७०६. जयपुर विजयगच्छीय मन्दिर ७०७. जयपुर सुमतिनाथ मन्दिर ७०८. जयपुर सुमतिनाथ मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभाग: १३७ स्वमातृतपोद्यापनार्थे विंशतिस्थानकपट्टः कारितः प्रतिष्ठापितश्च यतिवर्य पं० प्र० श्यामलाल शिष्येण पं० विजयलालेन यतिना शुभं। (७०९) पार्श्वनाथ-पब्भासणे ॥ ॐ नमः॥ गोलेच्छा पूर्वगोत्रे विलसति रविवच्छीदुलीचन्द्र श्रेष्ठी, पुत्रो हम्मीरमल्लोहथकरि विधिको माघशुक्ले दशम्यां। श्रेयोर्थं पूज्यपादैः खरतरगणपैः श्रीहरेः सागरेशैश्चक्रे शक्राभिवंद्यां जयपुरनगरे पार्श्वनाथप्रतिष्ठां। इहासूद्यौ च राज्येपि, राजेव विबुधा श्रियः। श्रीमद्धरणीन्द्राचार्यो, शान्तिस्नात्रविधेः विधिः॥ (७१०) शिवजीराम-पादुका नागाब्जखेटाब्ज मिते सुवत्सरे सुमाधवे शुक्लरसाख्यतिथ्यां। पादाब्जन्यासः शिवराम-साधोः सुस्थापितो भक्तजनैः सुभक्त्या॥ १॥ (७११) शिलापट्ट-प्रशस्तिः ॥ ० ॥ श्रीमच्चन्द्रप्रभं प्रणम्य च मुनिरत्नप्रभाख्यं गुरुं, नागौरे जिनमन्दिरे व्यरचयन् श्रीनेमिसूर्याज्ञया। यच्छ्रीमत्सुखकानबादरपदैर्युङ्मल्लसत्यत्रयी, तदयन्ति समदादिगोत्रमहितं जीयात्सभा शाश्वतीः॥ १॥ श्रीमज्ज्ञानपदादिसुंदरगुरोरध्यक्षतायां शुभे, त्र्यंकांकेन्दुदिते हि विक्रमकृते संवत्सरे सोत्सवां । श्रीमच्चन्द्रप्रभूत्तममहा सद्य प्रतिष्ठा व्यधात्, श्रेष्ठि हर्षविधायिनी तनुभृतां श्रीफूलचन्द्राभिधः॥ २॥ मधुपाद्यव्याप्त। चैत्ये नवे नगर नागपुरेतिरम्येऽपूर्वोत्सवेन विधिना च प्रतिष्ठाप्यमानः । नानाभिधानविदितोर्जित- सत्प्रतापः, चन्द्रप्रभोर्दिशतु वो हरयेप्सितानि ॥ ३॥ शार्दूलविक्रीडितेनाह-गच्छे श्रीकमलाख्यनाम सुगुरोः प्रायाः प्रतिष्ठां परां, सच्चारिति समाजलब्ध- सुयशी: पाडित्यमुख्यैः गुणिः। श्रीज्ञानः खलु सुन्दरान्तविदितो विज्ञाय पाथोनिधि-भूयादेष मुनिश्चिरः सकुशलो भव्यात्मचेतो मुदे ॥ ४॥ श्रीरस्तु॥ (७१२ ) शिलापट्ट-प्रशस्ति ॐ ॥ श्रीमद्रत्नप्रभसूरीश्वरपादपद्मेभ्यो नमः॥ ॥ र्द० ॥ सं० २३९३ विक्रम सं० १९९३ फाल्गुन कृष्ण ७ गुरुवारे नागपुर (नागोर) नगरे ओशवाल ७०९. जयपुर मोहनबाड़ी ७१०. जयपुर मोहनाड़ी ७११. नागोर स्टेशन चन्द्रप्रभ मन्दिर ७१२. नागोर स्टेशन चन्द्रप्रभ मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः भद्रगोत्रीय समदड़ीया शाखायां सा० सुखलाल जी बादरमल जी कानमलजी ने श्रीमद् जैनाचार्य श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से स्टेशन पर भगवान चन्द्रप्रभ का भव्य मंदिर बनवाया। जिसकी शुभ प्रतिष्ठा श्रीमद् उपकेशगच्छीय इतिहासप्रेमी मुनिवर्य श्री ज्ञानसुंदरजी गुणसुंदर जी महाराज की अध्यक्षता में शुभ मुहुर्त व विधि विधान सहित बड़े समारोह पूर्वक हुई। इस शुभ अवसर पर श्री नंदीश्वरद्वीपादि ९६ जिनालयों की रचना हुई जिससे जैन धर्म की अच्छी प्रभावना हुई, प्रतिष्ठा की सब क्रिया सेठ फूलचंद खीमचंद श्रावक मु. वलाद (गुजरात) वालों ने करवाई। इस लेख को सोमपुरा कस्तूरचंद खनाजी मु. चाणोद वालों ने लिपिबद्ध किया शुभम्॥ (७१३) पार्श्वनाथ-पादुका श्रीपार्श्वनाथ भगवान के चरण पादुका वि० सं० १९९३ का० फाल्गुन कृष्णा ७ गुरुवार प्रतिष्ठा मुनि श्रीज्ञानसुंदरजी महाराज (७१४) रलप्रभसूरि-पादुका श्रीधर्मघोषसूरिसद्गुरुभ्यो नमः ओशवंश के आद्य संस्थापक जैनाचार्य श्रीरत्नप्रभसूरीश्वरजी महाराज के चरण पादुका वि० सं० १९९३ का फाल्गुन कृष्णा ७ गुरुवार प्रतिष्ठा मुनिश्री ज्ञानसुंदरजी महाराज कारापिता। (७१५) विनयविजय-पादुका ॥ संवत् १९४४ का ज्येष्ठ सुदि ३ बुधवासरे प्रतिष्ठा करापितं श्रीमेडतामध्ये ॥ श्रीमबृहत्तपागच्छे श्रीदेवाणीशाखायां ॥ श्रीमरुधरदेशे। श्रीराठौडीराज्ये ॥ श्रीसंघ स्थापितं। श्री। श्रीश्री ॥ ० ॥ पन्यासजी श्री १०८ श्री पं० प्रवर श्रीहुकम पं। प्रवर श्री १०८ श्रीविनयविजयजी कस्य पादुका स्थापितं ॥ पं। प्रवर श्री १०८ श्री हमीरविजयजी कस्य पादुका स्थापिता ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु॥ शुभंभवतु ॥ ७१३. नागोर स्टेशन चन्द्रप्रभ मन्दिर ७१४. नागोर ससवाणी माता का मन्दिर ७१५. मेड़ता सिटी श्मसान For Personal & Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १३९ (७१६) शिलापट्ट-प्रशस्ति । श्रीखरतरगणाधीश्वर श्रीमत्सुखसागरजी महाराज साहब के समुदाय के वर्तमान जं० यु० प्र० भ० श्रीमज्जिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज श्री की शिष्यारत्न आबालब्रह्मचारिणी प्रवर्तिनी श्रीपुण्यश्रीजी महाराज की शिष्या दीर्घतपस्विनी श्रीमती कनकश्रीजी महाराज का स्वर्गवास वि० सं० १९९४ भाद्रव वदि ५ गुरुवासरे नागोर में हुआ। उन्हीं की शिष्या श्रीरविश्रीजी तथा शान्तिश्रीजी के सदुपदेश से सेठ तेजकरण चांदमलजी फर्म आगरा के वर्तमानवासी के बाबू पूर्णचन्द्रजी और कपूरचंदजी की मासा श्रीमती मगाबाई बसंतीबाई ने अपने खर्च से संस्कारभूमि में कनक मन्दिर का निर्माण करवाया वि० सं० १९९४ के मिगसर वदि ५ सोमवार के दिन को समारोह से प्रतिष्ठा कराई। काम करने वाले निवेदक-इन्द्रचन्द्र खजान्ची (७१७) कनकधी-पादुका वि० सं० १९९४ भाद्र कृ० ५ गुरौ प्रातः खरतरगणाधीश्वर श्रीसुखसागरसुगुरुसमुदायाधिपति वर्तमान श्रीजिनहरिसागराज्ञानुयायिनी प्रवर्तिनी श्रीपुण्यश्रीणां शिष्या आबालब्रह्मचारिणी दीर्घतपस्विनी श्रीकनकश्री सा दिवंगताः। संस्कारभूमावत्र शान्तिश्री रविश्री सदुपदेशात् तच्चरणकमले प्रतिष्ठिते मार्ग० कृ० ५ चन्द्रे नागपुरे मरुधरे ॐ शान्तिः। .. (७१८) रत्नप्रभसूरि-पादुका ताम्रमयी वि० सं० १९९४ मार्गशीर्ष शुक्ल ४ ओशवंश-स्थापक जैनाचार्य श्रीरत्नप्रभसूरीश्वरजी के पादुका प्रतिष्ठाकर्ता मुनिश्री ज्ञानसुंदरजी महाराज। (७१९) हीरविजयसूरि-पादुका वि० सं० १९९५ शाके १८६० वर्षे फाल्गुनमासे शुक्लपक्षे बुधवासरे सम्राट अकब्बर पातिसाह प्रतिबोधक जंगम युगप्रधान जगद्गुरु दादा साहिब सकलभट्टारकपुरंदर तपोगच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीश्रीश्री १००८ श्रीहीरविजयसूरीश्वराणां चरणपादुका कारापिता तपागच्छीय श्रीसंघेन प्रतिष्ठापिता च ७१६. नागोर दादाबाड़ी कनक मन्दिर ७१७. नागोर दादाबाड़ी कनक मन्दिर ७१८. अजमेर वेदमुहता देवकरण गृह देरासर ७१९. जयपुर सुमतिनाथ मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः तपागच्छाचार्य जगद्गुरु भट्टारक श्रीपूज्य श्रीविजयमहेन्द्रसूरिभिः सुमति-जिनप्रासादे जयपुर-नगरे श्रीमन्महाराजाधिराज श्री सवाई मानसिंहजी राज्ये। (७२०) शिलापट्टः श्रीऋषभदेवजी का मन्दिर सं० १९९९ आषाढ शुक्ला २ (७२१) सुमतिनाथः ॥ स्वस्ति श्री वि० सं० १९९९ फाल्गुन शु० द्वितीया सोमे मरुदेशे बलदुठवा० वीशा पोरवाड तपा श्रे० शा० भावाजी धर्मपत्नीबाई जीवी श्रेयसे तत्पुत्रीबाई चुनी पुत्राभ्यां श्रे० फतेचन्द्र मूलचन्द्राभ्यां श्रीसुमतिनाथजिनबिंबं प्र० शासनसम्राट् तपागच्छाधिपति भट्टारकाचार्य श्रीविजयनेमिसूरीश्वरैः स्वपट्टधर श्रीउदयसूरि-तत्पट्टधर नंदनसूरिप्रभृतिसहितैः रोहीशालायां शत्रुजयातटैः श्रीऋषभविहारे। (७२२) धर्मनाथः ॥ स्वस्ति श्री वि० सं० १९९९ फाल्गुन शुक्ल द्वितीया सोमे मरुदेशे बलदुठपुरीय शिवगंज वा० वीशा पोरवाड़ लांब गोत्रीय तपा० श्रे० मोतीजी सु० श्रे० सं० गोमराज जी सुताभ्यां श्रे० फतेचन्द्र-मूलचन्द्राभ्यां स्वपुत्र जोरावरमलजी भीमराजजी सहितायां स्वमातृ चुनीबाई श्रेयसे का० श्रीधर्मनाथजिनबिंबं प्र० शासनसम्राट् तपागच्छाधिपति भट्टारकाचार्य श्रीविजयनेमिसूरीश्वरैः स्वपट्टधर श्रीउदयसूरि-तत्पट्टधर-नंदनसूरिप्रभृतिसहितैः रोहीशालायां शत्रुजयातटैः श्रीऋषभविहारे ॥ (७२३) मल्लिनाथः || स्वस्ति श्री वि० सं० १९९५ फाल्गुन शु० द्वितीया सोमे मरुदेशे बलदुठ वा० वीशा पोरवाड़ तपा श्रे० शा० भावाजी धर्मपत्नी बाई जीवी श्रेयसे तत्पुत्री बाई चुनी पुत्राभ्यां श्रे० फतेचन्द्र-मूलचन्द्राभ्यां का० श्रीमल्लिनाथजिनबिंबं प्र० शासनसम्राट तपागच्छाधिपति भट्टारकाचार्य श्रीविजयनेमिसूरीश्वरैः स्वपट्टधर-श्रीउदयसूरि-तत्पट्टधर-नंदनसूरिप्रभृतिसहितैः रोहीशालायां शत्रुजया..........श्रीऋषभविहारे । ७२०. जयपुर नथमलजी का कटला ७२१. हिंडोन श्रेयांसनाथ मन्दिर । ७२२. हिंडोन श्रेयांसनाथ मन्दिर ७२३. हिंडोन श्रेयांसनाथ मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (७२४) शिलापट्ट-प्रशस्तिः अहँ नमः। परमत्यागीश्वर तपगच्छाधिपति श्रीबुद्धिविजयजी गणि प्रसिद्धनाम बूटेरायजी महाराजकू शिष्य श्रीमुक्तिविजयजी गणि प्रसिद्ध नाम मूलचन्द्र जी महाराज के शिष्य श्रीविजयकमलसूरीश्वर के प्रशिष्य श्रीयशोविजय जी जैन गुरुकुल पालीताणा के संस्थापक मुनि महाराज चारित्रविजयजी कच्छी के शिष्य मुनि श्रीदर्शनविजयजी आदि के उपदेश से जवाहरलाल नाहटा ने श्रीअनंतनाथजी महाराज भात बाजार मुंबई के..........खर्च करके श्री १००८ श्री..........महाराज के जैन श्वेताम्बर मन्दिर खेडला राज्य जैपुर का जीर्णोद्धार कराया मिति..........वीर संवत् २४६९ विक्रम संवत् २००० द. ता..........१९४३ ई.।। (७२५) गौडीपार्श्वनाथ-पादुका ॥ श्रीगौडीपार्श्वनाथस्य। ह्रीं श्रीं जिनरत्नसूरिविजयराज्ये पं। प्र। श्रीअभयमूर्ति गणि खरतरगच्छे प्रतिष्ठितं । (७२६) शंखेश्वर पार्श्वनाथ-एकतीर्थीः श्रीशंखेश्वर माणिक्यसागर प्रणमति ___ (७२७) जिनकुशलसूरि-पादुका दादा भ० श्रीजिनकुशलसूरिजी पादुका प्र० श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः। __ (७२८) जिनदत्तसूरि-मूर्तिः १ दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी (७२९) जिनकुशलसूरि-मूर्तिः दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी। (७३०) जिनदत्तसूरि-पादुका श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका श्रे. ७२४. खेड़ला पार्श्वनाथ मन्दिर ७२५. नागोर न्यात की बगीची ७२६. कोटा चन्द्रप्रभ मन्दिर ७२७. सवाई माधोपुर विमलनाथ मन्दिर ७२८. अजमेर दादाबाड़ी ७२९. अजमेर दादाबाड़ी ७३०. जयपुर इमली वाली धर्मशाला For Personal & Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ (७३१) दादापादुका -युग्म भ० श्रीजिनदत्तसूरिः भ० श्रीजिनकुशलसूरि : प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः दादा साहिब श्रीजिनकुशलसूरिजी (७३२) जिनकुशलसूरि - पादुका रौप्यमय दादा साहिब श्रीजिनदत्तसूरिजी सिताबचंद से । (७३३) जिनदत्तसूरि - पादुका रौप्यमय (७३४) पादुका साहजी श्री जासवाभू श्रीसंघेन श्रीगुरुपादुका कारितं ॥ ( ७३५) सीमधंरः स्फटिकरन श्रीमिंदरस्वामी फिटीक रतन की प्रतिमा विराजमान करावी रामचंद .......... (७३६) जिनदत्तसूरि - पादुका रौप्यमय श्रीजिनदत्तसूरिजी का चरण श्रीदादाजी श्रीजनकुशलसूर (७३७) जिनकुशलसूरि - पादुका रौप्यमय (७३८) जिनदत्तसूरि - पादुका बृहद् भट्टारक जं० यु० प्र० भ० १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजी का चर्णपादुका श्रीसंघेन कारापितं । (७३९) जिनकुशलसूरि- पादुका जं । यु । भ श्रीजिनकुशलसूरिपादुके ॥ ७३१. जयपुर इमली वाली धर्मशाला ७३२. जयपुर पूनमचंद ढोर गृह देरासर ७३३. जयपुर पूनमचंद ढोर गृह देरासर ७३४. गागरडु आदिनाथ मन्दिर ७३५. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ७३६. जयपुर पञ्चायती मन्दिर ७३७. जयपुर यति श्यामलाल जी का उपाश्रय ७३८. नागोर सुमतिनाथ मन्दिर ७३९. जोधपुर केशरियानाथ मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १४३ (७४०) दादा-पादुका युग्म दादाजी श्रीजिनदत्तसूरिजी का चरण दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी का चरण। (७४१) हनुसागर-पादुका ..........र्थं ह० भट्टारक खरतरगच्छे वा। श्री १०८ श्रीरत्नरङ्गजी गणि तच्छिष्य पं। प्र। श्रीहनुसागर मुनिना चरण पादुका प्र० रत्नविनय.........। (७४२) विंशतिस्थानकपट्टः ॥ मुताजी साहिबरामजी कारापितं मुनि अमृतविजयजी प्रतिष्ठितं ॥ अजमेर नगरे। (७४३) सिद्धचक्रयंत्रम् श्रीसिद्धचक्रयंत्र वैद मुहता उमेदचंद पुत्र श्रीचंदेन कारितं प्रतिष्ठापितं च श्रेयो)। (७४४) सुखसागर-मूर्तिः पूज्यपाद खरतरगणाधीश्वर श्रीमान् सुखसागरजी महाराज सा० श्राद्धवर्य जतनलालजी डागा की धर्मपत्नी श्रीमती अनोपकुंवर बाई ने स्वकल्याणार्थ स्थापित की। दी० वि० भाद्रपद शु० ५ स्वर्ग वि० सं० १९४२ माघ कृष्णा ४ (७४५) हीरविजयसूरि-पादुका सम्राट अकबर प्रतिबोधक यु० प्र० भ० जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरि पादुका का० श्रीसंघेन तपागच्छ मंदिरे जयपुर (७४६) विजयानन्दसूरिमूर्तिः || न्यायांभोनिधि श्रीतपागच्छालङ्कारसारभट्टारक श्रीविजयानंदसूरीश्वराणां प्रसिद्धनाम श्रीमन्नात्मारामजी की प्रतिमा अर्पण करनार नाजिम ७४०. नागोर हीरावाड़ी मन्दिर ७४१. नागोर सुमतिनाथ मन्दिर ७४२. अजमेर संभवनाथ मन्दिर ७४३. अजमेर वैदमुहता देवकरण गृह देरासर ७४४. जयपुर इमली वाली धर्मशाला ७४५. जयपुर सुमतिनाथ मन्दिर ७४६. मालपुरा ऋषभदेव मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः गुलाबचंद ढढ्ढा कि मातुश्री श्राविका राजकुंवर बाई प्रतिष्ठा करनार मुनि श्रीमोतीविजयजी महाराज ज्येष्ठ शुक्ला .....॥ (७४७) शिलापट्ट - प्रशस्तिः ॥ श्रीः ॥ वि० सं० २००१ मिति प्रथम चैत्र कृष्णपक्ष १० दशम्यां शुक्रवासरे ॐ ह्रीं श्रीं पार्श्वयक्ष श्रीपद्मावतीदेवीमूर्तिप्रतिष्ठा श्रीमत्तपागच्छाधीश्वर जैनशासनसम्राट् सूरिचक्र चक्रवर्ति श्रीविजयने मिसूरीश्वर पट्टालङ्कार श्रीविज्ञानसूरीश्वरजी शिष्यरत्न मुनि श्रीमद्वल्लभविजयजी ने कुचेरा श्रीसंघ द्वारा शान्तिस्नात्र कारिता शुभम् । ( ७४८ ) पार्श्वयक्षः ॥ श्रीः । सं० २००१ मि० प्र० चैत्रकृष्णदशम्यां शुक्रवासरे श्रीपार्श्वयक्षमूर्ति प्रतिष्ठा श्रीमत्तपागच्छेश्वर जैनशासनसम्राट् सूरिचक्रचक्रवर्ति श्रीविजयनेमिसूरीश्वरैः॥ ( ७४९ ) विजयशान्तिसूरि- पादुका आ० श्रीविजयशान्तिसूरीश्वरजी भगवान् की चरणपादुका वरखेड़ा गीराम प्रतिष्ठितं श्रीमांडोली नगरे श्रीसंघेन कारापितं आ० भट्टारक श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिभि: वि० सं० २००१ मा० शु० ५ गुरुवार । ( ७५० ) विजयशान्तिसूरि - पादुका रौप्यमय जगद्गुरु १००८ श्रीविजयशान्तिसूरीश्वरजी भगवान की चरणपादुका वि० सं० २००१ मा० शु० ५ गुरु ग्राम वरखेडस्थ आ० भ० श्रीजिनेन्द्रसूरिभिः प्र० । (७५१ ) विजयशान्तिसूरि-मूर्ति: ॐ नमः सिद्धं । सं० २००१ वि० फाल्गुन वदि ५ शनि को जगतगुरु आचार्यसम्राट् योगीन्द्रचूडामणि जैनाचार्य श्री १००८ श्रीविजयशान्तिसूरीश्वरजी की मूर्ति की प्रतिष्ठा श्रीपूज्याचार्य श्रीजिनधरणेन्द्रसूरि के करकमलों से जयपुर वास्तव्य श्रेष्ठी ... 1 * ७४७. कुचेरा चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर ७४८. कुचेरा चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर ७४९. वरखेड़ा ऋषभदेव मन्दिर ७५०. वरखेड़ा ऋषभदेव मन्दिर ७५१. जयपुर नया मन्दिर For Personal & Private Use Only * Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४५ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः __ (७५२) जिनदत्तसूरि-पादुका सं० १६४४ वर्षे माघ सुदि ५ दिने सोमवासरे फलवर्द्धिनगर्यां श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका मन्त्री संग्रामपुत्रेण मन्त्री कर्मचन्द्रेण सपुत्र-परिवारेण श्रेयो) कारापितं। (७५३) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ ० ॥ ओम् सिद्धः संवत् १६५३ वर्षे वैशाखाद्य ५ दिने श्रीजिनकुशलसूरि सद्गुरुणां पादुके कारिते अमरसरवास्तव्य श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः चित्रः खण्डिका निष्पन्ना सा० थानसिंहोद्यमेन मूलस्थंभ प्रारंभकर्ता मंत्रि कर्मचन्द्रः श्रेयोर्थम्। (७५४) भित्तिलेख: अथ संवत्सरे श्री नु श्रीनर्पति विक्रमादीति राजे संवत् १६५३ वर्षे चैत्र सुदी १५ सुक्रत लिखत खेता गांगा कुवो वण । (७५५) जिनकुशलसूरि-पादुका ॥ सं० १६५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि द्वादशी दिने शनिवारे श्रीसंग्रामपुरे श्रीमानसिंहविजयराज्ये खरतरगच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिविजयराज्ये महामंत्रिणा करमचन्द्रेण श्रीसंघेनापि श्रीजिनकुशलसूरिपादुका कारिता प्रतिष्ठितं वाचनाचार्य श्रीयश:कुशलैश्च सर्वसंघस्य कल्याणाय भवतु शुभम्। __ (७५६) कनकसोम-पादुका संवत् १६६२ वर्षे चैत्र वदि ५ दिने सोमवारे श्रीखरतरगच्छे वाचनाचार्यवर्य श्री ५ श्रीकनकसोमगणीनां पादुके प्रतिष्ठितेयं युग० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः। ७५२. फलोदी (पोकरण) राणीसर दादाबाड़ी ७५३. अमरसर (जयपुर) दादावाड़ी ७५४. अमरसर (जयपुर) दादावाड़ी ७५५. सांगानेर दादावाड़ी ७५६. अमरसर (जयपुर) दादावाड़ी For Personal & Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६. प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः (७५७) जिनकुशलसूरि-मूर्तिः ॥ सं० २०५९ माघ शु० १३ शनिवासरे श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथमंदिर-प्रतिष्ठायां खरतरगच्छविभूषण श्री जिनमणिसागरसूरीणां पूर्वशिष्येण ओस० ज्ञा० झाबक गो० सुखलाल-पुत्रेण महो० विनयसागरेण भा० सन्तोष श्रेयोर्थं पु० मंजुल भा० नीलम, विशाल, पौत्री तितिक्षा पौत्र वर्द्धमानादि परिवारश्रेयसे श्रीजिनकुशलसूरीणां प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता च खरतर ग० मुनि मणिरत्नसागरेण मालवीयनगर जयपुरे। श्री: ७५७. जयपुर नाकोड़ा पार्श्वनाथ मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - १ संबंधित लेखों के आधुनिक प्राप्ति स्थान स्थान मन्दिर नाम लेखाङ्क अजमेर गौडी पार्श्वनाथ मन्दिर २३८, २९९, ३६६, ४७१, ४७२, ४७३, ४७४, ४७६, ४७७, ४७९, ४८०, ४८१, ४८२, ४८३, ५२५, ५९९ । अजमेर जौहरी धनरूपमल जी गृह देरासर ३४८। अजमेर दादावाड़ी १५३, ३७९, ४३५, ४३७, ४४७, ४५९, ४६५, ५२४, ५५८, ५६२, ५८८, ६९४, ७२८,७२९। अजमेर भडगतियों का मन्दिर ६८२, ६८३, ६८४, ६८५ । अजमेर मेग्जिन (म्यूजियम) २, २११, २१२ । अजमेर वैदमुहता देवकरण गृह देरासर ७१८,७४३। अजमेर विमलनाथ मन्दिर ४५८। अजमेर संभवनाथ मन्दिर ५२, २४५, ३३९, ३४०, ३५१, ४३४, ४५३, ४५४, ४५६, ४६८, ४७५, ४७८, ५२८, ५२९, ५३०, ५३१, ५३९, ५४०, ५४१, ५४२, ५४३,५४४,५४५, ५४६, ५४७, ५७८, ७४२। अमरसर (जयपुर) दादावाड़ी ७५३, ७५४, ७५६ अहमदाबाद दादाजी की पोल शान्तिनाथ मन्दिर २४७, २४८ । For Personal & Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ अहमदाबाद शिवा सोमजी मं० अमरावती पार्श्वनाथ मन्दिर अमरावती पार्श्वनाथ मन्दिर ( राजीबाई धर्मशाला ) आमेर चन्द्रप्रभ मन्दिर आंतरी (मेवाड़) शांतिनाथ मन्दिर उखलाना (टोंक) आदिनाथ मन्दिर उज्जैन अजितनाथ मन्दिर उज्जैन अवंति पार्श्वनाथ मन्दिर उज्जैन दादावाड़ी उज्जैन शान्तिनाथ मन्दिर औरंगाबाद धर्मनाथ मन्दिर प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः २२८ । ५, १७, ५४, ९०, ९८, ११३,१६८, १७९, १९१, १९४, २५६, ६६७, ६६८ । १०७, ११८, १४४, १८० । २१३, २२६, २६२, २७१, ३२६, ३३०, ३३५, ३९९, ४००, ४२५, ४४१, ४९४ । १२९ । ६९९ । १३, ३२, ३३, ४४, ५१, ६२, ७४, ७६, १०१, १०५, ११४, ११५, १४२, १५२, १७४, १७७, १८२ । २०, २१, २३, ६७, ६८, ७०, ७३, ७५, ९७, १०८, ११२, ११९, १७६, २१७, २५१, ३२३, ५३९, ६९६ | ३९६ । १६, ७७, ८२, ८५, ८९, १०६, ११७, १२७, १३१, १३३, १३५, १३८, १४५, १६५, १६७, ११५, १८६, १९५, २०४, २३१, २३२, २५दा १४, १५, १८, २६, २७, २९, ३०, ३४, ४६, ४७, ६३, ६६, ७१, ८१, ८४, ८६, ८७, ९३, ९९, १२४, १३६, १५४, १५६, १६४, १८५, १९२, १९८, १९९, २००, २०२, २०५, २२२, २४९, २९८ । For Personal & Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः औरंगाबाद पार्श्वनाथ मन्दिर औरंगाबाद महावीर मन्दिर कारंजा ( बरार) आदिनाथ मन्दिर किसनगढ़ आदीश्वर मन्दिर किसनगढ़ खरतरगच्छ उपाश्रय किसनगढ़ चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर किसनगढ़ दादावाड़ी किसनगढ़ शान्तिनाथ मन्दिर किसनगढ़ स्वरूपचंदजी का उपाश्रय किसनगढ़ हीरविजयसूरि की बगीची कुचेरा पार्श्वनाथ मन्दिर कुसतला ( जयपुर ) पार्श्वनाथ मन्दिर कोटा चन्द्रप्रभ मन्दिर कोटा दानवाड़ी कोटा माणिकसागर जी का मन्दिर १४९ ६५, ८३, १६६, १६९, १७३, २२९, २३०, २६०, २८६, ३१३, ३६४ / ८०, ९१, ९२६, १३४, १४३, १५० । ३८, ६०, ६१, ७०४ । ४१०। ४, ४३३, ४४६, ६६३। २६१, २६४, २७४, २७५, २७६, २७७, २७८, २७९, २८०, २८१, २८२, २८३, २९४, ३७८, ४२४, ४२९, ५३८, ६३३ । २६६, ४१४, ४६०, ४६१, ४६२ । २२१, ५६४। ४१५ । ३८७, ३९३, ४११, ४१२, ५०२ । २५९, ६२९, ७४७, ७४८ । केकड़ी चन्द्रप्रभ मन्दिर कोटा आदिनाथ मन्दिर (गढ़ ) १ कोटा आदिनाथ मन्दिर ( ख० उ० ) १२। ६२८, ६८० । ८, १९, २२, ४२, ४९, ७९, १५७, १७१, २५८ । ९४, १२१, १६२, ३२२, ७२६ । ५०५। ५०, ५५, १२८, १४६, ६३८, ६७१ । For Personal & Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० मन्दिर प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः कोटा विमलनाथ मन्दिर ५७, ५८, ५९, ७८, १०४। कोटा सेठजी का गृह देरासर ६०६, ६१५, ६२०, ६४३ । खेडला (जयपुर) पार्श्वनाथ मं० ७२४ । खोह (जयपुर) चन्द्रप्रभ मन्दिर ३३८, ४०२, ४२१, ४५७ । गागरडु (जयपुर) आदिनाथ मन्दिर ___ २५२, ३७२, ३७५, ५६३, ७३४। गोविंदगढ़ (अजमेर) पार्श्वनाथ मन्दिर १०९, ६६२। चंदलाई (जयपुर) शान्तिनाथ २८८, २८९, २९०। चाकसू (जयपुर) शान्तिनाथ मन्दिर ६५४। जड़ाउ (जोधपुर) यति हीराचंदजी का गृह देरासर २५४ । जयपुर इमली वाली धर्मशाला ४१६, ६९३, ७३०, ७३१, ७७४ । जयपुर गुलाबचंदजी ढढ्ढा गृह देरासर ६५९। जयपुर नथमलजी का कटला ९५, १००, ७२० । जयपुर नया मन्दिर २६५, २९५, ३१४, ३५६, ३९१, ६२२, ६२३, ६२४, ६२५, ६२६, ६४०, ६४९, ६७२, ६९२, ७५१ । जयपुर नाकोड़ा पार्श्वनाथ मं० ७५७। जयपुर पञ्चायती मन्दिर १२५, २१६, २८४, ३१८, ३२०, ३७१, ३७३, ३७४, ३८९, ३९४, ३९५, ४०५, ४०६, ४०७, ४२२, ४२७, ४२८, ४३१, ४४५, ४६७, ४८७, ५०१, ५८९, ५९०, ५९१, ६००, ६३०, ६३१, ६५६, ६५७, ६७९, ७३५, ७३६। जयपुर पद्मप्रभ मन्दिर (घाट) ३६, २३३, ३९७, ५६१ । जयपुर पार्श्वचन्द्रगच्छ उपाश्रय ६६० । For Personal & Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १५१ जयपुर पूनमचंदजी ढोर गृह देरासर ७००,७३२, ७३३। जयपुर प्रतापमलजी ढढ्ढा गृह देरासर ३०६, ३५३। जयपुर मोहनबाड़ी २५३, ३५८, ३६७, ३६९, ३९२, ४१६, ४१८, ४१९, ४२०, ४३०, ५७७, ६६९, ६८१, ६९७, ६९८, ७०९, ७१०। जयपुर यति श्यामलालजी का उपासरा ५५९, ७३७। जयपुर लीलाधर का उपाश्रय ४०१, ४४०, ४४२ । जयपुर विजयगच्छीय मन्दिर ९, ११, ३४२, ३७०, ४९५, ५८६, ६९१,७०६। जयपुर श्रीमालों का पार्श्वनाथ मन्दिर २०६, ३२१, ४३२, ४४४, ४६३, ४६४, ४६६, ५००, ५२२, ५२७, ६६४, ६६५, ६६६, ६७८, ६८८, ६८९ । जयपुर श्रीमालों की दादाबाड़ी ३६२, ४४३, ४९८, ४९९, ५५४, ५६७, ५६८, ५७३, ५७४, ५८१, ५८२, ५८३, ६२७, ६५१, ६५२, ६५३, ७०१, ७०२, ७०३। जयपुर सुमतिनाथ मन्दिर ४५, २७२, ३२७, ३३१, ३५०, ३६०, ३६३, ३८३, ३९०, ५७५, ५७६, ६९०, ७०७, ७०८, ७१९, ७४५ । जयपुर स्टेशन मन्दिर ६४२, ६४४, ६५५, ६७० । जामनगर दादावाड़ी २३४। जालना चन्द्रप्रभ मन्दिर ६, ७, ३१, ३५, ३९, ४१, ४८, ५३, ७२, ८८, ९६, १०२, १११, ११६, १३७, १३९, १४८, १५५, १६१, १६३, १८१, १८७, १९७। For Personal & Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः जूनिया (अजमेर) आदिनाथ मन्दिर ३८१। जोधपुर कुन्थुनाथ मन्दिर १८९, ५३७, ६४५। जोधपुर केशरियानाथ मन्दिर १३२, ६४१, ७३९ । जोधपुर गुरासां जुहारमल जी का उपाश्रय १५८, २६९। जोधपुर चाणोद गुरांसा गृह देरासर १०३ जोधपुर जिनयश:सूरि ज्ञान भण्डार ६९५। जोधपुर पार्श्वनाथ मन्दिर ६३९। जोधपुर भैरोंबाग दादावाड़ी ३०४। जोधपुर महावीर मन्दिर ४०। जोधपुर मुनिसुव्रत मन्दिर ३७, १५९, ४७०। जोधपुर शान्तिनाथ मन्दिर २४०। जोधपुर संभवनाथ मन्दिर । ६९, ३२४, ६३२। जोबनेर (जयपुर) चन्द्रप्रभ मन्दिर २६८, ४५२, ६५८। टोडारायसिंह दादावाड़ी २९३। टोडारायसिंह पार्श्वनाथ मन्दिर २२५ । दांतरी (जयपुर) ऋषभदेव मन्दिर ४८८, ५९३, ५९४, ५९५, ५९६, ५९७, ५९८। दिणाव (गुजरात) २४। देवगढ़ पार्श्वनाथ मन्दिर ३२८ । धनज (म०प्र०) पार्श्वनाथ मन्दिर २५, ९१, ३१७ । धामन गाँव (म०प्र०) सुमतिनाथ मन्दिर १२०, १४०, १८८ । नाकोड़ा (जोधपुर) ऋषभदेव मन्दिर ४२६। For Personal & Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५३ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः नाकोड़ा (जोधपुर) शान्तिनाथ मन्दिर ११०, १८४, २२०, २३५, ५६५ । नागौर चौसठिया जी का मन्दिर १०। नागौर दादावाड़ी ४५१। नागौर दादावाड़ी (कनक मन्दिर) ७१६, ७१७ । नागौर न्यात की बगीची ६३६, ७२५। नागौर पायचंद ग० दादावाड़ी २१९, ३६५, ३८८, ५८०, ६२१ । नागौर बड़ा मन्दिर १५१, २२४, २३९, २४१, २६३, ३३६, ३४६, ३५२, ५५६। नागौर यति मुकुन्दसुंदर जी का उपाश्रय ५०३। नागौर ससवाणी माता का मन्दिर ७१४। नागौर सुमतिनाथ मन्दिर ५२३, ५२६, ५५५, ५५७, ६३४, ७३८, ७४१। नागौर स्टेशन चंद्रप्रभ मन्दिर ७०५, ७११, ७१२, ७१३ । नागौर हीराबाड़ी मन्दिर १९०, ७४० । पचेवर (जयपुर) चंद्रप्रभ ___ मन्दिर ४६९। पापड़दा (जयपुर) शान्तिनाथ ४३। पार्डी (नागपुर) सुपार्श्वनाथ मन्दिर ५६०। फलोदी (पोकरण) राणीसर दादावाड़ी ७५२। बड़ोद (म०प्र०) आदिनाथ मन्दिर ३५७। बसवा (जयपुर) यति जी का मन्दिर ३९८। मन्दिर For Personal & Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ बालाहेड़ी ( जयपुर ) आदिनाथ जी का मन्दिर बूंदी पार्श्वनाथ मन्दिर बूंदी सेठ जी का मन्दिर बेंड ( जयपुर ) विमलनाथ मन्दिर भांडारेज (जयपुर) नेमिनाथ मन्दिर भारूंदा (जोधपुर) शान्तिनाथ मन्दिर भिनाय ( अजमेर) पार्श्वनाथ मन्दिर भिनाय (अजमेर) सुमतिनाथ मं० मण्डावर ( जयपुर ) चंदप्रभ मन्दिर मंडोर (जोधपुर) दफ्तरियों का मन्दिर मंडोर (जोधपुर) पार्श्वनाथ मन्दिर मसूदा (अजमेर) पार्श्वनाथ मन्दिर मालपुरा ( जयपुर ) ऋषभदेव मन्दिर मालपुरा (जयपुर) मुनिसुव्रत मन्दिर प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः ३५५। ३१६, ३१९, ५५०, ५५१। ६०१, ६०२, ६०३, ६०४, ६०५, ६०७, ६०८, ६०९, ६१०, ६११, ६१२, ६१३, ६१४, ६१६, ६१७, ६१८, ६३७, ६४७ । ४२३ । ३३७ । ६६१ । २९२, २९६, ३०२, ५४९ । २९६ । ३५४, ४५८ । ४१३, ४९१, ५३३ । १४९, ३०१, ३०३, ३०७, ३०८, ३०९, ३१०, ३११ । २६७ । ३२५, ३२९, ३४७, ३७६, ४४८, ४४९, ७४६ । ३१२, ६४६ । For Personal & Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५५ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः मांगरोलपीर (बरार) वासुपूज्य गृहदेरासर १७०, २०३। मेड़ता रोड दादावाड़ी ६७५, ६७६, ६७७। मेड़ता रोड शान्तिनाथ मन्दिर ४९३। मेड़ता रोड पार्श्वनाथ मन्दिर ४८४, ४८५, ६५८। मेड़ता सिटी कुंथुनाथ मन्दिर २५० । मेड़ता सिटी दादावाड़ी ३३२। मेड़ता सिटी धर्मनाथ मन्दिर । २१८, ३३४, ४५५ । मेड़ता सिटी पार्श्वनाथ मन्दिर बगीची ३८०, ४३६, ४९६, ४९७। मेड़ता सिटी महावीर मन्दिर २८७, ५०४। मेड़ता सिटी युगादीश्वर मन्दिर ५९२। मेड़ता सिटी वासुपूज्य मन्दिर २५७, ५८४, ५८५ । मेड़ता सिटी शान्तिनाथ मं० उपकेशग० २४२, २४३, २४४, २७०, २७३, २९७, ३६१, ४०४। मेड़ता सिटी श्मसान २२७, २४६, ३४९, ४५०, ४८२, ७१५। रतलाम अमृतसागर दादावाड़ी ३८४, ३८५। रतलाम चन्द्रप्रभ मन्दिर १९६ । रतलाम जगवल्लभ पार्श्वनाथ मन्दिर ६७४। रतलाम बाबा सा० का मन्दिर ५०६, ५०७, ५०८, ५०९, ५१०, ५११, ५१२, ५१३, ५१४, ५१५, ५१६, ५१७, ५१८, ५१९, ५२०, ५२१ । रतलाम मोतीसा का मन्दिर ३१५। रतलाम सुमतिनाथ मन्दिर २९१, ४८५, ५९०। रतलाम श्मसान ३८६। राजनांदगांव (म०प्र०) पार्श्वनाथ मन्दिर १६०, १७८, २१७, ६७३। For Personal & Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ राजा देवलगाम ( बरार ) लखनऊ दादावाड़ी लखनऊ दादावाड़ी ऋषभदेव मन्दिर लखनऊ दादावाड़ी वासुपूज्य मन्दिर लखनऊ दादावाड़ी शान्तिनाथ मन्दिर लखनऊ पार्श्वनाथ मन्दिर लोणार ( बरार) मुनिसुव्रत मन्दिर वरखेड़ा ( जयपुर ) ऋषभदेव मन्दिर वहियल (गुज० ) पार्श्वनाथ मं० वृजनगर (झालावाड़) महावीर मन्दिर सवाई माधोपुर विमलनाथ मं० सांगानेर ( जयपुर ) दादावाड़ी सांगानेर ( जयपुर ) महावीर मं० सांगोदिया ( म०प्र० ) ऋषभदेव मन्दिर सांभर ( जयपुर ) पार्श्वनाथ मं० सिरपुर अंतरिक्ष पार्श्वनाथ मन्दिर सिंहपुरी शान्तिनाथ मन्दिर हिंडोन ( जयपुर ) श्रेयांसनाथ मं० मह प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः ४६, ६४, १२२, २२३ । ५३५, ५६९, ६८६, ६८७ । ५७०, ५७१, ५७२, ५८७ । ५३२ । ५३४, ५३६ । ६१९ । १४१, २०७, २०८ । ३, ४०३, ७४९, ७५० । २८५, ३३३ । १३०, ४३८ । १४७, २०१, ३५९, ७२७। ३८२, ४०९, ४८६, ६५०, ७५५ २८, २३६, २३७, ३०५, ३७७, ४०८ । ५५२, ५५३ । २१४ । १२३, १७२ १८३, १९३, २०९। ५६६ । २१५, ३४१, ३४३, ३४४, ३४५, ५७९, ६२५, ७२१, ७२२, ७२३ । For Personal & Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - २ (लेखों में आये हुए गच्छों के नाम नाम लेखाङ्क अंचल गच्छ आगम गच्छ उपकेश, ऊएस, ऊकेश गच्छ ७६, ८१, ८६,९८, १२१, १६९, १८२, २६२, ६२२ ४४, ९६, १९८, २०५ ७,५०, ६४, १३३, १७०, १७४, ४०४ २९९ ४०४ ५५६,७११ कमलकलश गच्छ कंवला गच्छ कमल गच्छ काम्यक गच्छ कासडा गच्छ कोरंट गच्छ कौटिक गण चन्द्रकुल खरतर गच्छ, (बृहत् खरतर, आचार्य, आद्यपक्ष, पिप्पलक, भावहर्ष, रंगविजय) १५७ १३,५५,१३१,१३५ ३७०, ३७१,५७७ ३७०,३७१, ३७७ ३७,५२,६९,७४,८३,८७,९२, ११०, ११४, १३२, १४९, १५१, १५८, १५९, १६०, १६३, १७१, १७९, १८९, १९१, २२०, २२८, २३४, २३५, २४५, २४७, २४८, २९३, २९७, ३००, ३०१, ३०३, ३०४, ३०७, ३०८, ३०९, ३१०, ३११, ३१६, ३७७, ३८२, ३९०, ३९१, ३९२, ३९६, ४०३, ४०५, ४०६, ४०८, ४०९, ४१४, ४१६, ४१७, ४१८, ४१९, ४२०, ४२१, ४२६, ४३२, ४४१, ४४३, ४४४, For Personal & Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ४४५, ४४६, ४४७, ४५१, ४६३, ४६५, ४६६,४६७, ४६९, ४८६, ४८७, ४८९, ४९०, ४९८, ४९९, ५००, ५०६, ५०७, ५०८, ५०९, ५१०, ५११, ५१२, ५१४, ५१५, ५१६,५१७, ५१८, ५१९, ५२२, ५२३, ५२६, ५२८, ५२९, ५३०, ५३१, ५३२, ५३३, ५३४, ५३५, ५३६, ५३७, ५३८, ५३९, ५४०, ५४१, ५४२, ५४३, ५४४, ५४५, ५४६, ५४७, ५४८, ५५०, ५५१, ५५२, ५५३, ५५५, ५५७, ५५८, ५६५, ५६७, ५६८, ५६९, ५७०, ५७१, ५७२, ५७३, ५७४, ५७७, ५८१, ५८२, ५८३, ५८७, ६०१, ६०३, ६०४, ६०५, ६०७, ६०८, ६०९, ६१०, ६११, ६१२, ६१५, ६३२, ६३९, ६४०, ६४९, ६५०, ६५८, ६५९, ६६२, ६६९, ६७०, ६७६, ६७७, ६८०, ६८२, ६८६, ६८७,६८८, ६८९, ६९२, ६९७, ६९८, ७०१, ७०२, ७०६, ७०७, ७०९, ७१६, ७१७, ७२५, ७४१, ७४४,७५७ १०६,१४५ ५१,५७,५८,५९,६२,७०,७२, ७३,७५, ७७,७९,८२,८४,८८, ९०, ९१, ९४, ९७, ९९, १०३, १०५, १०७, १०८, १११, ११२, ११३, ११५, ११६, ११८, १२०, चैत्रगच्छ तपा गच्छ, वृद्धतपा, बृहत्तपा For Personal & Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १५९ १२१, १२६, १२९, १३४, १३७, १३८, १४३, १४४, १५०, १५२, १५३, १५४, १५६, १६१, १६४, १६६, १७७, १८०, १८१, १८७, १९०, १९२, १९३, १९७, २०३, २१६, २१७, २१९, २२२, २२३, २३१, २३२, २३६, २३९, २४२, २४३, २४४, २४९, २५३, २५५, २५७, २६०, २६७, २६८, २७१, २७२, २७४, २७५, २७६, २७७, २७८, २७९, २८०, २८१, २८३, २८५, २८६, २९४, २९५, २९८, ३०५, ३०६, ३१३, ३१६, ३१८, ३२३, ३२८, ३३०, ३५६, ३६२, ३६४, ३७२, ३७८, ३८३, ३९७, ४३६, ४५०, ४५८, ४७२, ४७३, ४७४, ४७५, ४७६, ४७८, ४७९, ४८०, ४८२, ४८३, ४८४, ४८५, ४९६, ४९७, ५४९, ५६१, ५६३, ५६४, ५९३, ५९४, ५९७, ६२९, ६४८, ६६६, ६७१, ६७२, ६७४, ७०५, ७०८, ७१५, ७१९, ७२१, ७२२,७२३,७२४,७४७ ३१ २६, ३४, ६५, ६६, ६८, १६७, १८५, १८६ २१९ १६८ ३२,७८,९३,१३६ थारापद्र गच्छ धर्मघोष गच्छ नागपुर तपागच्छ नागुरी तपागच्छ नागेन्द्र गच्छ निर्वृतिक For Personal & Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः पल्लकीय गच्छ पार्श्वचन्द्र, पासचंदसूरि गच्छ पिप्पल गच्छ पीपलगच्छ पूर्णिमापक्ष पूर्णिमापक्ष-कछोलीवाल शा० बृहद् गच्छ ब्रह्माणीय, ब्रह्माण गच्छ मडाहड गच्छ मलधार गच्छ महूकर गच्छ विजय गच्छ १२७ ३१२,५८०,६४० ११९ २३, २०२ ६०,६३, १२४, १४०,१४२, २०४, २०० ५३,६१,१०४, १७५ ६७,७१, १२३ ४६ १३०, १७२ १४८ २५८, २९०, ३०२, ३२९, ३४१, ३४३, ३४४, ३४५, ३४७, ३६९, ३७३, ४२३, ६१९, ६२८,६३८ ४९,५४, १०१, १०२, १४१, २१४ ३३३, ४७१ १९४, १९९ संडेरगच्छ सागरगच्छ साधुपूर्णिमा For Personal & Private Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - ३ लेखस्थ आचार्य एवं मुनियों के नाम लेखाङ्क ५२३, ५२६, ५५५, ५५७ २९२ ४९७ ३२३ ७२५ ३४७ २३७ १५७ १२९ ४४ ४३४ ५९२, ७४२ ३८५, ३८६ ४९१ ३१६ ४२३ ४५१ १७७ १०२ १०१, १०५, ३२६ ६२९ १९४, १९९ ४६, ६७ ३२८ ५७७ नाम अखेचन्द्र गणि अगमसागर अचलसागर पं० अजितसागर गणि अभयमूर्ति गणि अमर अमरकीर्तिसूरि अमरचन्द्रसूरि अमरनन्दन गणि अमरसिंहसूरि अमृतधर्म गणि अमृतविजय अमृतोदय पं० आणंदरत्न गणि ( उदयचन्द्र) आनन्दविजय आनन्दसागरसूरि इलाधर्म गणि इन्द्रनन्दिसूरि ईश्वरसूरि ईसरसूरि उत्तमविजय पं० उदयचन्द्रसूरि उदयप्रभसूर उदयरत्नसूरि उदयराज पं० For Personal & Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ३२९ १५०,१५४,१५६,१६६, २१७ ७०४ ३६३ ६४,८०,१३१, १७०,६७४ ३८८ उदयसागर उदयसागरसूरि उदयसूरि ऋद्धिविजय उ० ककुदाचार्य कक्कसूरि कनकचन्द्रसूरि (पार्श्व०) कनकश्री कमलविजय करमा ऋषि कर्मचन्द्र गणि कल्याणविनय कल्याणसागर कल्याणसागरसूरि ७१६,७१७ ६६६ ३२९ ५२६,५५५ ५०८ २९२, ३२५ २५८, २८८, २८९, २९०, २९६, ३०२ ४१४ २९२ ३२८ कल्याणसिंह कान्तिसागर कान्तिसुन्दर पं० काशीदास महो० कीर्तिरत्नसूरि कीर्तिवर्द्धन गणि कृपाराज ऋषि कृपासागर पं० कुकदाचार्य कुशलचन्द्र मुनि कुशलधीर केसरमुनि गणि क्षमाकल्याण उ० क्षमासागर क्षमासूरि ३३२ ५५८ ३०७, ३०९,३१०, ३११,४५१ ३४७ ४९६,४९७ १३३,१७६ ५२३,५२६,५५५,५५७ २१८ ६९१ ४२२, ४२५, ४२७,४३४,५३१ २९६ ५६५ For Personal & Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः क्षान्तिरन गणि क्षेमसिंह सूरि खेमसागर गजानन्द मुनि गजेन्द्रसागर पं० गीर्वाणविजय गुणदेवसूरि गुणप्रभसूरि गुणरत्न गणि गुणसमुद्रसूरि गुणसागरसूरि गुणसुन्दर गुणसुन्दरसूरि गुमानसागर गणि गुलाबविजय पं० चतुरसागर गणि चन्द्रप्रभसूरि चारित्र उदय चारित्रविजय चारित्रसागर चारित्रसागर गणि चैनसागर गणि चैनसुख मुनि चौथजी गणि जयकेशरिसूरि जयचंद जयचन्द्रसूरि माणिक्यसू ४५३, ४५४ २४० ३२५ ४५३ २९२, ५४९ ७०५ ११९, १३६ १३९ २३५ १३६ १७२, २५८, २९६ ७१२ ६३, १३० ५६१, ५६३, ५६४ ६२९ ३३३ ११९ ४४३, ४८६, ४९८, ५००, ५२२, ५५४, ५६७, ५६८, ५७३, ५८१, ५८२, ५८३ ७२४ २९२, ३२५ ४५६ ४१० ५२३, ५२६, ५५५, ५५७ ५२६ ८१, ८६, ९८, १२२ ६२१ ७०, ७२, ७३, १२९ २०३ १६३ For Personal & Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ जयरत्न पं० जयविजय गणि जयशेखरसूरि जयवन्तसागर गणि जयसागर पं० जयसागर गणि जयसिंघसूरि जिणदास पं० (दि.) जिनकल्याणसूरि जिनकीर्तिसूरि जिनकुशलसूरि जिनचन्द्रसूरि जिनचन्द्रसूरि यु० जिनचन्द्रसागरसूरि जिनजयशेखरसूरि जिनदत्तसूरि प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः ३२८ २५१ ५६, ७६, ९१ ५६१, ५६३, ५६४ ५९३ ५६१, ५६३, ५६४ १६ ४६०, ४६१ ५८७, ५९१, ६०० ४८९, ४९०, ६६७, ६६८, ६६९ २३४ १६, ११०, ११४, १३२, १४९, १५१, १५८, १५९, १६०, १७१, २२०, ३०३, ३०९, ३२२, ३२४, ३३९, ३४०, ३७०, ३७१, ३७७, ३८२, ३८४, ३८५, ३८६, ३९६, ४०३, ४०५, ४०६, ४०८, ४०९, ४१८, ४२१, ४२६, ४२८, ४३१, ४३२, ४३३, ४४२, ४४३, ४४४, ४५५, ४६०, ४६१, ४६२, ४६३, ४६४, ४६६, ४६७, ४६९, ४८६, ५००, ५३२, ५३४, ५३५, ५३६, ५७२, ५७४, ६३९, ६४४, ६६३, ६६५, ६६९, ६८२, ६८४, ६८६, ६८८, ६९७, ६९८ २२८, २३४, २३५, २४७, २४८, ७५३, ७५५, ७५६ ६१९ ५८७ २४७ For Personal & Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः जिनदेवसूरि जिनधरणेन्द्रसूरि जिननन्दीवर्धनसूरि जिनभद्रसूरि जिनपद्मसूरि जिनमणिसागरसूरि जिनमहेन्द्रसूरि जिनमाणिक्यसूरि जिनमुक्तिसूरि जिनयश: सूरि ( यशोमुनि) जिनरंगसागर (पं० ) जिनरत्नसूरि १६५ १६, ३०९ ७०९, ७५१ ४८६, ४८७, ४९८, ४९९, ५००, ५२२, ५३२, ५३४, ५३५, ५३६, ५५४, ५६७, ५६८, ५६९, ५७०, ५७१, ५७२, ५७३, ५७४, ५८१, ५८२, ५८३ ६९, ७४, ८३, ९२, ११०, ११४, १५८, १५९, १६० ५६५ ७५७ ४६८, ४९४, ५०५, ५०६, ५०७, ५०८, ५०९, ५१०, ५११, ५१२, ५१३, ५१४, ५१५, ५१६, ५१७, ५१८, ५१९, ५२०, ५२१, ५३३, ५५०, ५५१, ५५२, ५५३, ५६६, ५७५, ६०१, ६११ २०३, २१८, २२८ ६०१, ६०२, ६०३, ६०४, ६०५, ६०६, ६०७, ६०८, ६०९, ६१०, ६११, ६१२, ६१३, ६१४, ६१५, ६३७, ६४०, ६४९, ६५०, ६५४, ६५५, ६५६, ६५७, ६५८, ६५९, ६६०, ६६१, ६६२, ६७८, ६७९, ७२७ ६९५ ३७६ ९१, १५२, २९१, २९३, ५२३, ५२६, ५५५, ५३९, ५४०, ५४१, ५४२, ५४३, ५४४, ५४५, ५४६, ५४७, ५४८, ६६४, ६६५, ६८६, For Personal & Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः जिनराजसूरि जिनलाभसूरि जिनवल्लभसूरि जिनसमुद्रसूरि जिनसागरसूरि जिनसिद्धिसूरि जिनसिंहसूरि जिनसुखसूरि जिनसोमसूरि जिनसौभाग्यसूरि ६८७,६८८,६८९,७००,७०१, ७०२,७०३,७२५ ३७,४०,८३, ९२, २४५, २४७, २४८,२६१ ३८२,४१८,४१९ २४७ ५२,१५९,१६३,१७९,१८९ ८७,१४९ ६७० २२८, २३४, २३५, २४७, २४८, ३०९ ३०४,४५१ १२९ ५२८,५२९, ५३०, ५३१, ५३७, ५३८,५६० ५२, १८९, १९१, ७०७,७१६,७१७ १२९ २९७, ३००, ३०१, ३०८, ३०९, ४०७,४०९, ४१३, ४१५, ४१६, ४१७, ४१८, ४१९, ४२०, ४४१, ४५७, ५०१, ५०६, ५०७, ५०८, ५०९, ५१०, ५११, ५१२, ५१३, ५१४, ५१५,५१७, ५१८, ५१९, ५३३,६०१ ५२७ ४४३, ४४५, ४६४, ४६७, ४८६, ५००,५३२, ५३४, ५३५, ५३६, ५७२,५७४ ४२४ जिनहंससूरि जिनहरिसागरसूरि जिनहर्षगणि जिनहर्षसूरि जिनहेमसूरि जिनाक्षयसूरि जिनेन्द्रसूरि For Personal & Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६७ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः जिनेश्वरसूरि जिनोदयसूरि जीवनविजय ज्ञानरीमनुसूरि ज्ञानलाल ज्ञानसागर ज्ञानसागरसूरि ज्ञानसार वा० ८,१६ २६९ ४११,४१२ ३२१ ६६९ ४४८,४४९ १५४, २१७ ३८२, ४०९, ४१७, ४१८, ४१९, ४२० ७११,७१२,७१३,७१४,७१८ ३१२ ३३२ ६४४,६६९ ३४१, ३४३,३४४, ३४५ ५७७ ३२८ ४१० ७२४ ५२६ ज्ञानसुन्दर ठाकुर ऋषि ठाकुरसी गणि तिलकधीर गणि तिलकसागरसूरि तिलोकचन्द्र तेजरत्नसूरि त्रिलोकसागर गणि दर्शनविजय दीपचन्द गणि दीपचन्द्र पं० दुलीचन्द ऋषि देवगुप्तसूरि देवचन्द्रसरि देवरतजी देवरत्नसूरि देवविजय उ० देवेन्द्रसूरि दौलतविजय धनप्रभसूरि धनराज उ० ३८४ ६३८ ४२,४८, १३३, १७६, २१५ १६ ३५९ २९९ २३२ ३४ ४६० १४८,१७५ २२० For Personal & Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ धर्मकीर्ति धर्मचन्द्रसूरि धर्मदेवसूरि धर्ममूर्तिसूरि धर्मरत्नसूरि धर्मविशालसूरि धर्मशेखरसूरि धर्मसुन्दरसिद्धसूरि धीररत्नसूरि धीरविजय गणि धृतसागर गणि नगपति वा० नंद ऋषि नन्दनसूरि नन्दिवर्धनसूरि नत्रसूरि नयरत्न पं० नरचन्द्र गणि नरशेखरसूरि नरेन्द्रसागर नरसिंह नित्यसागर पं० नेमिचन्द्र नेमिचन्द्र उ० पद्मचंद्रसूरि पद्मभाग्य पद्मशेखरसूरि पद्मसूर पद्महंस पद्मानंदसूर प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः २२ २३ २६ २६२ १९३,५०३ ५३१ १४० १७० ३२८ २९८ ३३३ ५५६ ३१२ ७०५, ७२१, ७२२, ७२३ ६६, १८५, १८६ १२७, १३१, १३५ ३२८ १६ ६३ ५४९ ३२८ ३७६ ५७७ ६६९ २९ ४६९ १५ २९६ ४४६ ६६, ७८, १८५, १८६ For Personal & Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६९ २१९ ३६ ११३,१५३ ४१५ १४२, २०४ ३९३ ४११, ६२९ ३८७ ४४१ ६९१,६९२,७१६,७१७ ५१,९४ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभाग: पार्श्वचन्द्र सूरि पासचन्द्रसूरि पुण्यनन्दन गणि पुण्यप्रिय गणि पुण्यरत्नसूरि पुण्यविजय पुण्यविजय पं. पुण्यविजय उ. पुण्यशील गणि पुण्यश्री पूर्णचन्द्रसूरि पूर्णभद्रसूरि प्रतापविजय प्रतापसागर पं० प्रेमचंद (प्रेमधीर) प्रेमसुखमुनि पं० बुद्धिविजय गणि (बूटेराय) भद्रेश्वरसूरि भाग्यनन्दन भानुसमीर भावसागर भावदेवसरि भावरत्नसूरि भुवनचन्द्रसूरि भोजसागर मतिसुन्दर मनरूप पं० मनरूपसागर मयासागर गणि महिमरंग गणि ४११,४१२ ३७६,४९७ ४६०,४६१ ६८२, ६८३, ६८४, ६८५ ७२४ १६ १२९ ३०२ ३४७ १८ 3२८ २४६ ५५६ ५५८ २९२ ३७८ २४० For Personal & Private Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० महेन्द्रसागरसूरि महेन्द्रसूरि महेसमुनि माणिक्यसागर माणिक्यसूरि मानराज मानविजय गणि मानसागर मुनि मुक्तिचन्द्रगणि मुक्तिविजय गणि (मूलचन्द्र ) मुनिचन्द्रसूरि मुनिमेरु मुनिराजसूरि मुनिविजय गणि मुनिसुन्दरसूरि मूलचन्द्र ऋषि मेरुकीर्ति पं० मेरुप्रभसूरि मोतीचन्द मुनि मोतीविजय मोहनलाल मुनि मोहनसागर यश: कुशल गणि यशविजय गणि यशोविजय रत्नप्रभसूरि रत्नशेखरसूरि रत्नाकरसूरि प्रतिष्ठा - लेख - संग्रहः द्वितीयो विभागः ३६९, ३७३ ३६७ ३०२ ७२६ २२८ ६४६ ५९२ ६९९ ३१८ ७२४ ७१, २१० २२० १९९ २३२, ३८३ ९७, १२९, २१६ ६२१ १२ १०४ ५२३, ५२६, ५५५, ५५७ ६७२, ७४६ ६४३, ६८५ २९२ २३४, ७५५ ४८८ ७२४ २७ ७५, ७९, ८४, ८८, ९०, ९७, ९९, १०३, १०८, ११७, ११८, १२९, १३८, १४३, १४४ २६, ३२ For Personal & Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१ - प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः रागिलाचार्य रंगरूपसागर रत्नचन्द्र मुनि (गणि) रत्ननिधान उ० रत्नप्रभसूरि रत्नरंग गणि रत्नराज गणि रत्नविजय पं० रत्नविजयसूरि रत्नविशाल गणि रत्नसागर रत्नसागरसूरि २९२ ५२३,५२६,५५५,५५७ २२८ ३८,५०,५५६,७११ ७४१ ४१९,४२० ७४१ ३१६ २३५ रत्नसिंहसूरि रत्नसुंदर उ० रविप्रभसूरि रविश्री राजहर ऋषि राजेन्द्रविजय पं० रामचन्द्र गणि रामविजय पं० राजसुन्दर गणि रुघनाथसागर रूपचन्द रूपचन्द्र पं० रूपचन्द मुनि रूपचन्द महो० रूपेन्द्रसागर लक्ष्मीचन्द्र गणि लक्ष्मीविमल गणि ३६१,३८० ३४७, ६२२, ६२३, ६२४, ६२५, ६२६ ७७,८२,१०७,११२, १५४ ३२८ २६४ ७१६,७१७ ३४७ ६२९ ४५७ ४१२ २९४ ६४६ ६२८ ५२३,५२६,५५५,५५७ ४६०,४६१,४६२ ४४१ ४९६ ६६९ २४० For Personal & Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः लक्ष्मीसागरसूरि १०५, १०६, १०८, १११, ११३, ११५, ११६, ११७, ११८, १२१, १२६, १२८, १२९, १३४, १३७, १३८, १४३, १४४, १४६, १५३, १५५, १६१,१६४, १९७ ३२८ ३०९ ३२८ १९२ लक्ष्मीसुंदरसूरि लब्धिकुशलसूरि लब्धिचन्द्रसूरि लब्धिसागरसूरि ललितप्रभसूरि लाखणचन्द्र गणि लाभविजय गणि लालचंद लालचन्द्र गणि ३८८ २९८ ४६०,४६१ ३८९, ३९०, ३९१, ३९२, ३९४, ३९५ लालविजय पं० लावण्यकमल गणि ६७६,६७७ ३७०, ३७१, ३७७, ४००, ४०१, ४०२,४१६ ३२८ ३३६ ८,१६ ७४७ लावण्यरत्न पं० वखराम पं० (दि.) वर्धमानसूरि वल्लभविजय विजयउदयसरि विजयकमलसूरि विजयक्षमासूरि विजयचन्द्रसूरि विजयजिनेन्द्रसूरि ३६४ ७२४ ४३६ ६५, ६८ ३८३, ३८७, ३९७, ४१२, ४२९, ४३६,४३९,५६१,७४९,७५० ४३६ २०७, २०८,२०९ विजयदयासूरि विजयदानसूरि For Personal & Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः विजयदेवसूरि विजयदेवेन्द्रसूरि विजयधरणेन्द्रसूरि विजयधर्मरत्नसूरि विजयधर्मसूरि विजयनेमिसूरि विजयप्रभसूरि विजयभावसूरि विजयमहेन्द्रसूरि विजयरत्नसूरि विजयराजसूरि विजयलाल विजयसिंह सूरि विजयसेनसूरि विजयहीरसूरि १७३ २३६, २३९, २४२, २४३, २४४, २४९, २५२, २५३, २५५, २५६, २५७, २६०, २६३, २६७, २७०, २७२, २७३, २७४, २७५, २७८, २७९, २८५, २८६, २९४, २९८, ३०५ ४७२, ४७३, ४७४, ४७५, ४७६, ४७७, ४७८, ४७९, ४८०, ४८१, ४८२, ४८३, ४८४, ४८५, ४९३, ५४९, ५६१, ५६३, ५६४ ५९३, ५९४, ५९५, ५९६, ५९७, ५९९, ६२९ ४३६ ३५०, ३६०, ३६३, ३६४, ३७२, ३७५, ३७८ ७०५, ७११, ७१२, ७२१, ७२२, ७२३, ७४७, ७४८ २९८, ३०५, ३१३, ३१४, ३१८ ३१९ ७१९ ६७४ ३०६, ६४८, ६७४ ७०६, ७०८ २५७, २६८, २७१, २७२, २७३, २७४, २७५, २७६, २७७, २७८, २७९, २८०, २८१, २८२, २८३, २८४, २८५, २८७, २९४ २२६, २२७, २३०, २३१, २३२, २३८, २५३, २६७, २९८, ३०५ २९८, ३०५ For Personal & Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४. प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः ६४१,६५१,६५२,६७२ ७०५,७२१,७२२,७२३ १२९ ৩৪৩ ३६३ २०० ५०३ २१०, ३२८ ७८ ३१३ विजयानन्दसूरि विजयोदयसूरि विज्ञाननन्दन विज्ञानसूरि विद्याविजय गणि विद्यासागरसूरि विनयकीर्ति मुनि विनयचन्द्रसूरि विनयप्रभसूरि विनयविजय गणि विनयसागर (महो०) विनयसुन्दर गणि विनीतसुन्दर गणि विमलहर्ष गणि विवेकरत्नसूरि विवेकसुंदर पं० विशालराजसूरि वीरचन्द्रसूरि वीरप्रभसूरि वीरभद्रसूरि वीरविजय गणि वीरसुन्दर वीरसूरि शान्तिप्रभसूरि शान्तिश्री शान्तिभद्रसूरि शान्तिसागरसूरि शान्तिसूरि शिवकुमारसूरि शिवचन्द्र गणि शिवसागर पं० ७५७ २२७ ४५१ २३० १९८ ३२८ १४० १४५, १७५ २९ ३४ ४५८ ५५६ १७, १२३ १६ ७१६,७१७ २४ ६१९,६२०,६२८,६३८ २८,४९,५४,५६, २१४,४७१ २०५ ४२१,४४१,५७७ ५६१ For Personal & Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः शुभशेखर श्यामलाल पं० श्रीउदय वा० श्रीतिलकसूरि श्रीविजय वा० श्रीसागर श्रीसुन्दर श्रीसूरि ७०६,७०७,७०८ ५५६ २५ ४१४ ३४९ ६४२ ३५, ३८, ४१, ४६, ९३, १६२, १६५, १७८,१८८, २०२ ३६१,३८० ६२९ २२८ सत्यसागर पं० सन्तोकविजय पं० समयराज उपाध्याय संपविजय गणि सरूपचन्द्र सर्वदेवसूरि सर्वसूरि ६९६ ६४२ ६०, १७३, ३३१, ५७६, ५७८, ६३३ ४३७ ४१ सागरचन्द्र (पं०) सागरतिलकसूरि साधुविजय गणि साधुरत्नसूरि साधुसुन्दरसूरि सालिभद्रसूरि सावदेवसूरि सिद्धसूरि १२९ १२४, १६७ १२४ ३४१ ५५, १३१,१३५ ४८,६४,१५७,१७०, १७४,४०४, ५५६ सिद्धसेन मुनि सिद्धान्तसागरसूरि सिहजसुंदर उ० सुखसागर ३९६ १६९, १८२ ३२८ ७१६,७१७,७४४ For Personal & Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ सुखसुंदर पं० सुजाणसागर सुधानन्दन सुन्दरलाल पं० सुधीर ग सुमतिरत्नसूरि सुमतिसागर सुमतिसागरसूरि सुमतिसूरि सुमतिसाधुसूरि सुमतिसिंधुर गणि सुधीरतनसी सुवधीसागर पं० सोमकीर्तिसूरि सोमचन्द्रसूरि सोमजयसूरि सोमतिलकसूरि सोमरत्नसूरि सोमसुन्दरसूरि सोमसूरि सौभाग्यसागर हंसविजय हनुसागर हमीरसागर गणि हरिषेणसूरि हर्षकल्याण पं० हर्षमुनि पं० हर्षवल्लभ प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह : द्वितीयो विभागः ३२८ ३२५ १२९ ६६९ १७७ २०४, ६७४ ६७३ २८८, २८९, २९० ३०२ १८०, १९७ २९३ २९६ ३७६ १४५ ८५ १२९ ३० २०५, ३४२ ५७, ५८, ५९, ६२, ७०, ७३, ८४, ८८,९७,९९, १०५, ११६, १२१, १२९, १७७, १८१, १९० १४६ २९२ ६९६ ७४१ ३४९ ३८ ६१३, ६३७ ६८२, ६८३, ६८४, ६८५ २४७ For Personal & Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १७७ हीरतिलक हीररत्नसूरि हीरविजयसूरि (विजयहीरसूरि) हीराचन्द्र यति हीरानन्द मुनि (हीराचंद) हेतोदय (पं०) हेमचन्द्रसूरि हेमरत्नसूरि हेमविमलसूरि ५०८ ६७४ २२२, २२३, २२४, २५३ ६७१ ५२३,५२६,५५५,५५७ ३८५, ६८६ ६१, ३५८,६४० ९६,१६८ १७७, १८०, १८१, १८३, १८६, १९७ १२० १२९ ५१,९४,१२० हेमसमुद्रसूरि हेमहंस गणि हेमहंससूरि हेमहर्षसूरि For Personal & Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (लेखस्थ दिगम्बर संघों एवं प्रतिष्ठापकों के नाम ३१५ १९६ काष्ठासंघ कुन्दकुन्दाचार्यान्वय देवसेन संघ नंदीतट गच्छ नन्दीतट संघ पुष्कर गच्छ बलात्कारगण मूलसंघ ३१५ १०,४७ ३४८ . . ४७, १९६,३५२ २२, ३३, ४७, १९५, १९६, ३४८, ३५२, ३५५,५८६ ३१५ ३१५ रामसेनान्वय विद्यागण सरसतीगण, सरस्वतीगच्छ सेनगण ३५२, ४७, १९६ ३४८ ३४८ १९५, १९६ ३३,४७ ३१५ जिनसेन ज्ञानभूषण पद्मनन्दि भुवनकीर्ति राम पं० जइसवाल लक्ष्मीधर पं० जइसवाल विजयकीर्ति विजयनन्दि विश्वसेन शुभचन्द्र श्रीप्रभकीर्ति सुरेन्द्रकीर्ति १९६ १९५ ३१५ ३५२ ३५४, ३५५ For Personal & Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम अणग्राम अछी आणा अजमेर अन्तरिकापुरी अमरसर राई नगर अवन्ती अवरंगावाद असाउलि अहमदाबाद आगरा आंतरी आंबर, आम्बेर आहोर उखलाणा उज्जैनी उदयपुर उम्मेदपुर छावनी करी काठलमंडल कंपिलपुर किशनगढ़. परिशिष्ट - ४ लेखस्थ ग्रामानुक्रमणिका लेखाङ्क ३४५ १२३ ३७९, ४४७, ४५६, ५३१, ५६२, ५७८, ५८८, ६९४ १२९ ७५३ ३२३ २५५ २९८, ३६४ १०७ १४२, १५०, १७७, २२८, २४७, २४८, ५२५ २३६, २३७, २६८, ६४०, ७१६ १२९ ३७३, ४४१ ६५४, ६५५, ६५६, ६५७, ६५८, ६६१, ६६२ ६९९ ३९६ ६९१ ४३८ १९९ ३२८ ५३४, ५३६, ५६९, ५७२ ४२९ For Personal & Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० कृष्णगढ़, कृष्ण दुर्ग प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः २७२, २७३, २७४, २७५, २७७, २७८, २९४, ३१७, ४१४,५६४ ७४७ ६८० कुचेरा केकड़ी केकिंद कोटा २५४ २५८, ५००, ५०५, ५५१, ५५२, ५५३,६३८ २०० ७२४ क्रोडा खेडला खोह गंधार ३७३ २८६ गजपुर गागरडु गिरिपुर गोपाचलदुर्ग ग्वालेर चण्डकुडवाटक चंदलाई चित्तोड़ जंडियाला जयपुर, जयनगर, जैपुर, सवाई जयनगर, सवाई जयपुर १२९ ३७२ ९९,१२९ ३३ ४००, ४०२ १२९ २८८,२८९, २९० ३५७ ६६६ ३८९, ३९०, ३९१, ३९२, ३९७, ४०३, ४०५, ४०६, ४०७, ४१६, ४१८, ४१९, ४२५, ४२७, ४३२, ४४१, ४४८, ४५३, ४५४, ४५७, ४८६, ४८८, ४९९, ५००, ५२२, ५५४, ५६१, ५७३, ५७४, ६३०, ६४०, ६४१, ६५०, ६५१, ६५७, ६६३, ६६६, ६६९, ६७०, ६७२, ६९७, ६९८,६९९, ७०१, ७०२, For Personal & Private Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १८१ जीराउली जीरापल्ली जैसलमेर जोधपुर, योधपुर दांतरी दिल्ली ७०६, ७०७,७०९, ७१९, ७२४, ७४५,७५१,७५७ १४९ १२९ २१८,३९४,५०५,५५०,५५१ २४०, ४२६,५६५ ५९३ २२८ देवगढ़ ३२८ x देवगिरि देवीकोट द्रव्यपुर ४१२ ३७६ धंधूका ९६ नागपुर नागौर पचेवर पत्तन पांचालदेश पादलिप्त पाली पालीताणा पीस्सांगण फलवर्द्धि बंगदेश बरहामपुर बहियल बालीसाण बीकानेर ३४६,६४२ ६३६, ७०५, ७११,७१२, ७१६, ७१७ ४६९ १९८,२०३, २२३, २३४, २६७ ५३४,५३६,५६९,५७२ ६२४,६२६ २५३,५६५ ७२४ ६०४ ३९९,७५२ ५७६ ४१० ३३३ ८२ ३९०, ३९७, ४०१, ४०२, ४८८, ५०७,६४०,६७० For Personal & Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ बीजापुर बीबडोद बूंदी बोरजा भारुंदा भिणाय मंडोवर मण्डदुर्ग मरुदेश मरुधरदेश महीशसनु महीसाणा महेन्द्रपुर महेवा माणसा माण्डवदुर्ग मांडोली मालपुर, मालपुरा मालवदेश मालसणा मुडहटी मुमुक्षाबाद- अजीमगंज मेड़ता रतलाम, रत्नपुरी रत्नवती राजनगर राजनांदगांव प्रतिष्ठा - लेख संग्रह : द्वितीयो विभागः २७० ३५७ ३१६ २०५ ६६१ २९६ ५३३ ७३, १०८ ३९६, ७२१, ७२२, ७२३ ७१६ १६९ २३० १४४ ५६५ १५२ १२१ ७४९ ३२९, ३४७, ४४८, ४४९, ६७२ १२८, १३८, ३२८ १८० १७० ६३० २७२, ४२४, ४३४, ४३६, ४९६, ४९७, ६७५, ७१५ २४, ५०६, ५०७, ५०८, ५१०, ५११, ५१२, ५१४, ५१५, ५१८, ५१९, ५५२, ५५३, ६५०, ६७४ ३८४, ३८५, ३८६ ४७१ ६७३ For Personal & Private Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख संग्रहः द्वितीयो विभाग: . .. १८३ ३७३ १२९ ५३५, ६१९ १८३ राजपुर रैवततीर्थ लक्ष्मणपुर (लखनऊ) लाटापल्ली लाडलि लाभपुर वडनगर वरखेडा वराणपुर १४० २२८ वलभी वागड देश वालीब वासनागर विक्रमपुर विद्यापुर वीरमग्राम वीरमपुर वीसलनगर वृन्दावती (बूंदी) १५३ ७४९,७५० ३६६ ११९ १२९ १९२ ३४१ ३१६,५१९ २०२ ८८,१३४ २२०, २३५,५६५ ४६,१९७ ६०१, ६०२, ६०४, ६०५, ६०७, ६०८, ६०९, ६१२,६१८,६३७ ७२२ १२९,३२० २० शिवगंज श्रीनगर श्रीपुर श्रीप्रथापुरि सणपुर सवाई माधोपुर सांगानेर, संग्रामपुर सागवाड़ा साबोसण सारंगपुर १३६ ५८६ ३०५,७५५ ३१५, ३२८ ९० १५० For Personal & Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ सालवापुर सीदूरसी सीवलीआ सुरताणपुर सुरवाणपुर सोज्झित प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १२३ १२८,१३८ १६४ १७७ १४३ ३९५ स्तम्भतीर्थ हरिदुर्ग हिण्डोन हीरावत हैदराबाद ११५, १६५, १४३, १४७, १७३, २२८ ४१२,४६२ ३४१ २८५ ६९४ For Personal & Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम अकबर उदयभान उम्मेदसिंह महाराव कर्मचन्द्र मन्त्री कल्याणसिंह खुमाण नृप गजपाल नृप जगनाथ जसवंतसिंह जालिम सिंह जीवराज दीवान तखतसिंह तेजसिंह धन्नो मंत्री प्रतापसिंह पृथ्वीसिंह, प्रथिसिंह, पृथिसिंह बलवन्तसिंह भावसिंह दीवान भीमसिंह माधवसिंह मानसिंह मेघराज राणा हमीर रातिसिंह रामसिंह रावराजा परिशिष्ट - ५ लेखस्थ राजाओं के नाम लेखाङ्क २२८, २३०, २५३ २९६ ४३८ २२८, ७५२, ७५३, ७५५ ४६३ ३२८ १२९ २२५ ३००, ३०१, ३०३, ३०९, ५६५ ४३८ ३७३ ५२३, ५२६, ५५५, ५५७, ५६५ २३५ २३५ ३८७ ३०३, ३०९, ३१८, ३५९, ५६४ ५०६ ३१६ ६०१ २५८ ७५५ २२०, ३०९ ३२८ ३७५ ६०१, ६०४, ६०८, ६१० For Personal & Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ रूपसिंह वस्तुपाल दीवान विमल दीवान वीरमदेव शत्रुसल्ल जाम संग्राममन्त्री साल्हराज दीवान सोमदास सवाई जगसिंह सवाई जगतसिंह सवाई जयसिंह सवाई पृथ्वीसिंह सवाई मानसिंह सवाई रामसिंह हम्मीरसिंह प्रतिष्ठा - लेख - संग्रह: द्वितीयो विभागः २७४ १२९ १२९ ३३ २३४ ७५२ १२९ १२९ ४२३ ४३२ ४४१ ५८६ ७१९ ५६१ ३६३ For Personal & Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम उएस, उपकेश, उसवंश, उसवाल, ऊकेश, ओकेश ओस, ओसवाल, (जाति, वंश) गूजर ज्ञाति जैसवाल (दि०) परिशिष्ट - ६ लेखस्थ जातियों के नाम लेखाङ्क १९, २६, ४१, ४२, ४८, ५५, ५६, ६०, ६१, ६४, ६६, ६७, ७८, ८०, ८४, ८६, ८७, ८९, ९२, ९७, ९८, १०१, १०४, १०५, १०६, ११०, १११, ११४, १२०, १२५, १२९, १३०, १३१, १३२, १३३, १३७, १४१, १४५, १४८, १५१, १५३, १५८, १५९, १६०, १६३, १६४, १७१, १७४, १७५, १७९, १८३, १८५, १८९, १९४, १९९, २०७, २०८, २०९, २३४, २३६, २३८, २४१, २४४, २४७, २४८, २५२, २५३, २५५, २५८, २६०, २७०, २७५, २७८, २८८, २८९, २९०, २९१, २९३, ३०३, ३०५, ३०९, ३१६, ३६७, ३६९, ३७३, ३९५, ४५८, ४५९, ४६३, ४६४, ४६७, ४७१, ५०८, ५२५, ५३२, ५३४, ५३५, ५५०, ५५६, ५६१, ५६४, ५६५, ५७०, ५७१, ५७२, ५८४, ५८५, ५८७, ५९१, ६०, ६१९, ६२२, ६२३, ६२४, ६२५, ६२६, ७०६, ७०७, ७०८, ७५७ १४९, १६८ ३३ For Personal & Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः १५५ १८८ डीसा ज्ञाति डीसावाल नगणावाल नागर ज्ञा. तूंवरवंश दुसाझवंश पल्लीवाल प्राग्वाट, पोरवाल ९४ ११२,१५२ ३३ २५ ३४१,३४५ १५, ३०, ३२,४६,४८,५३,५७, ५८,५९,६२,७०,७२,७९,८५, ८८, ९०, ९१,९९, १०३, १०८, ११३, ११५, ११६, ११७, ११८, १२१, १२८, १३४, १३८, १३९, १४६, १६१, १६९, १७७, १८०, १८१, १८७, १९०, १९२, १९७, २००, २२८, २५६, २६७, २९९, ७२१,७२२,७२३ ३५ ४१२ भावसार राठौर राठौर वं० वघेरवाल वीरवंश श्रीगौड श्रीमाल. ३४८ १२२ १४७ ५०, ७१, ७३, ७४, ८३, १०७, १२४, १६७, १९१, २१६, २२२, २२९, ३२२, ३३१, ३३७, ३४२, ३६६, ३८१, ३९२, ४०३, ४०५, ४०६, ४०८, ४१०, ४२८, ४८७, ५२२, ५३६, ५६८,५८१, ५८२, ५८३, ६६३, ६६६, ६८६, ६८७, ७०० For Personal & Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः श्रीमालि श्रीवंश २८५ १७३,१८२ ८१ श्रीश्रीवंश श्रीश्रीमाल २३,२७,३१,३८,४४,६३,७५, ७७, ८२, ९३, ९६, ११९, १२३, १२६, १३६, १४०, १४२, १४९, १५०, १५४, १६२, १६५, १६६, १७८, १९८, २०२, २०३, २०४, २०५, २६८, २८६ १४३ २१,४३,४७, १५६, १७०, १९३, १९६,३१५,३२८ श्रीश्रीमाली हुंबड, हुंबट For Personal & Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट - ७ (लेखस्थ गोत्रों की सूची ३४८ ५३४ १०१। नाम लेखाङ्क | नाम लेखाङ्क उंवितलादू (?) २४१, चंवरिया एंषेश्वर ३१५/ चीडा १०९ कछारा ५४ | चोपड़ा ३०४, ३१६,४४५, ५९१ कटारिया ५०६,५१७ . चोरड़िया कांकरिया ४२१, ४६४, ६१९ छाजहड, छाजूहड, छाजेड १२७, काठड १५१, ४५६ काणा २६५ | छोहरिया . १२० कालापरमार १३१ जडिया ५३२ काश्यप ६० जाल २१६ कुर्कुट १३२ | झरगड़ ४०८,६५१,६६३ कोचर ५९८ | झाबक ९२,७५७ कोचर मुहता ५९३ : टांक ६६६ कोठारी ३२३, ३९०, ४२५, डागा ३१०,४६७,७४४ ४६३,५२७,६०० । डागा पुंजाणी ६४० खारड ४०६, ४८७ | ढढा, ढट्टा ५०७,५१९, खजान्ची ७१७ ६९९,७४६ गडिया ४५९ | ढोर ५८१,७००,७०१,७०२ गहीलडा १७२ | दाता १४५ गान्धी मोहोता ६२५, ६२६ | दोसी १५९,१६१ गुगलिया . ५२१ नावेड़ा २८८, २८९, २९० गोठी १४१ । नाहट ११४ गोलेछा, गोलवछा ६३९,७०९ । नाहटा ३७,७२४ घुगयल १६७ । नाहर ५१,६२९ घेडरिया १९१ नाहारु २५५ चक्रेश्वरी १२९ । नौलाठिया ३४१,३४५ For Personal & Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९१ ४३ १७४ ४०० ५७८ प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः पडिहार १६० / भंडारी १५८, २९९, ३०९, पहलावत ५७०,५७१, ३११,५१८ ५७२, ५८७ । भड़गतीया ६७५, ६७६, ६७७, पाटणी ५१०। ६८२, ६८३, ६८४,६८५ पाडा १५६ ! भणसाली २९१,४५८ पारख गुजराती ६३८, भाविसर पालेचा ७०८ | मंडीआ पाल्हाउत १३० | मंत्रीदलीय २६५ पुंगलिया ६७०मटला १५७ पोकरणा, पोहकरणा ५२०,५२५ | मरोटी पोसालिया ५५ । ममइया फूलपगर १७५ | महमइया, महमहिया, फोफलिया ४०५,५२२, महिमिया . ४३४, ४३५,५३१ ५८२, ५८३, महिमवाल ४०३,५३६, बड़हरा ३२३ । ५६८,६८६, ६८७ ३९५ ! महोडा ११३ बलदुठ ७२१,७२२,७२३ , मात्रेश्वर ३२८ बहुफणा ६०१ | माथाल ८३ बहुरा, बोरा, बोहरा १७९, ३९४, | माधलपुरा ५३७, ६२९,६६५, माल्हू १६३ बांठिया ४८८,६४०,७०६ मुता ५६५,६४२ बागडा ६२४ | मुहडासीआ १९६ बाघचार ३९७ | मुइणोत, मुहणोत, मोणोत २७३, बाफणा २३४, २९३, ५०५, ४८९,५४७ ५०८,५४५, ५५०,५५१,६०७, मेड़तवाल ६८० ६०८,६०९, ६१०, ६११, ६१२, । मोहनोत २७४, २७५, २७८,५६४ ६१३, ६१४, ६१५, ६२०, ६३७ | रूणाहलिया २५८ बेंतडिया मेडीगहडा ४२३ , लपगर २५४ .. ब्रह्म ३९ लूणिया ३७७,४६५, ब्राम्हेचा २४७, २४८| ५३०,५४४,६९४ बलाही १६८ For Personal & Private Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०, १२५ । संचेती प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः लोढा २०७, २०८, २०९, | संखवालेचा १८९, २७२ २३८, २९७ , संघवी २५० वरडिया, वरहडीया १०४,५३५ । ३७८, ४४०,७०७ वलहि १३३ | समदड़िया २६१,७११,७१२ वायडा ५०९,५१२ ! सांगीयान ४२८ विशरिया मोहोता ६२२, ६२३ , सांडेचा ३६७, ३६९ वीरवाडन ५१४ । साहुसुखा ३०३ वैद ४६८ | साहू १४९ वैद मुहता ५६१,७४३ | सिंघवी ६२९ वैद्य ३६२, ४०४ | सुचिंती ३४, ३७२ वैद्यसचिव ४२४ । सुराणा, सूराणा २६, ६५, ६६, ६८, वोधाणा बाफणा ३०५ । १८५, १८६, ३७०, शंखवालेचा ४०१, ४०२,५१६ श्रीमाल १७६ | हथडीया ४२, ४०४ | हाथउंडीया ५६५ / श्रेष्ठि For Personal & Private Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महोपाध्याय विनयसागर जन्म - 1जुलाई, 1929 शिक्षा : साहित्य महोपाध्याय, साहित्याचार्य, जैन दर्शन शास्त्री, साहित्यरत्न (सं.) आदि। सम्मानित उपाधियाँ : साहित्य वाचस्पति, महोपाध्याय, शास्त्र-विशारद, विद्वत्रत्न आदि। म. विनयसागर प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी भाषाओं के विद्वान तथा पुरालिपियों एवं हस्तलिखित लिपियों के विशेषज्ञ तो हैं ही, उनके पास जैन-दर्शन एवं परम्परा का चहुँमुखी अध्ययन और अनुभव भी है। खरतरगच्छ के इतिहास और साहित्य के धुरंधर ज्ञाता है। एक लम्बे समय से जैन दर्शन, प्राकृत भाषा, पुरातत्त्व, इतिहास आदि अनेक विषयों में शोधरत होने के साथ-साथ आपका लेखन नियमित रूप से चल रहा है। आपके द्वारा लिखित/अनुवादित/सम्पादित पुस्तकों की श्रृंखला में 50 से अधिक हैं तथा अन्य दस पुस्तकें प्रकाशन के लिये प्राकृत भारती अकादमी के 1551 प्रकाशन भी आपके Serving JinShasanik आपकी पुस्तकों में से वृत्तमौक्तिकम् तथा नेमिदूतम् क्रमः | श्वविद्यालय के एम. ए. संस्कृत के पाठ्यक्रम में रही हैं / कार ने सन् 1986 में, 1988 में राजस्थानी वेलफेयर gyanmandirgkobatirth.org हर सम्मान पुरस्कार तथा प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर ने गौतम गणधर पुरस्कार से आपको सम्मानित भी किया है। सम्प्रति भोगीलाल लहरचंद इन्स्टीट्यूट ऑफ इंडोलोजी, दिल्ली के प्रोफेसर पद तथा सन् 1977 से प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के निदेशक एवं संयुक्त सचिव पद पर कार्यरत हैं। For Personal & Private Use Only