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भाषा की दृष्टि से ये मूर्ति लेख संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी (मारवाड़ी), गुजराती, हिन्दी, संस्कृत मिश्रित हिन्दी में हैं। क्षेत्रीय भाषाई अध्ययन और मूर्तियों के प्राप्ति स्थान के अनुशीलन स्रोत इन प्रतिष्ठा लेखों से फूटता है। दुर्भाग्यवश पिछली अर्द्धशती में इन मूर्तियों की स्थिति अस्तव्यस्त हुई है और कुछ लुप्त भी हो गई हैं। इसलिए इस पुस्तक का महत्व और भी अधिक है।
लेखक ने पुस्तक के आरम्भ में अपने स्वकथ्य में लेखों के वैशिष्ट्य में प्रमुख मूर्तियों का उल्लेख पृथक् से किया जो पठनीय है। इसी प्रकार अन्त में दिए परिशिष्टों से ग्रन्थ के महत्व में बहुत वृद्धि हुई है। महोपाध्याय श्री विनय सागरजी प्राच्य-विद्या के अध्येताओं के लिए वस्तुतः अभिनन्दनीय हैं जिनके अथक परिश्रम, गवेषणात्मक बुद्धि एवं मन्थन से मूर्तिलेखों का नवनीत हमें सहज ही प्राप्त हो गया। आशा है विद्वत्समाज में इस पुस्तक का गौरवास्पद स्वागत होगा और उन्हें अनन्त कीर्ति उपलब्ध होगी।
वाराणसी ०१/०८/२००३
प्रो० रमेश चन्द्र शर्मा
मानद निदेशक/आचार्य ज्ञान-प्रवाह सांस्कृतिक अध्ययन केन्द्र, वाराणसी
एवं पूर्व महानिदेशक/कुलपति राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान, नई दिल्ली
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