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प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः
(५५५) जिनकुशलसूरि-पादुका बृहत्भट्टारक खरतरगच्छे श्रीजिनरत्नसूरिशाखायां वाचनाचार्य श्री १०८ श्रीकर्मचन्द्रजी गणि तच्छिष्य श्री १०८ श्रीअखेचंदजी गणि तच्छिष्य पं। प्र। श्रीरत्नचंदजी गणि श्रीचैनसुखजी श्रीमोतीचंदजी तच्छिष्य पं। प्र। श्रीहीरचंदजी। पं। प्र। श्रीकुशलचंदमुनि तेषां बगीचा मध्ये खरतरगच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री दादाजी श्री १०८ श्री जिनकुशलसूरिजी महाराज का चर्ण पादुका श्रीसंघेन कराया। पं० रूपचंद उपदेशात् सं० १९०७ का मिति आषाढ वदि ७ सोमवारे शुभ दुगड़िया में महाराजाजी श्रीतखतसिंघजी विजयराजे शुभंभवतु श्रीसंघस्य कारीगर माली पन्नो॥
(५५६) जीर्णोद्धार-प्रशस्तिः ॥ श्रीसर्वज्ञाय नमः। श्रीसच्चिकायकुलदेव्यै नमः॥ श्रीपार्श्वसंताने। श्रीमत्कमलगच्छे श्री जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री १००८ श्रीरत्नप्रभसूरीश्वर- गुरुभ्यो नमः उक्तं च-ओशवंशे वृको येन गच्छ नामेति स्थापितं । आदौ सूरिपदं प्राप्तं नमः सूरीश्वर नाम ते। तत्पट्टे भ० श्रीसिद्धसूरिजिच्छिष्य श्री ..........वीरसुंदर मतिसागरादयस्तच्छिष्य वा। श्रीउदय वा नगपति सं० १९०७ आषाढ शुक्ल २ गुरौ श्रीपौषधशालायां जीर्णोद्धारे..........चेत् ॥
(५५७) जिनदत्तसूरि पादुका बृहद्भट्टारकखरतरगच्छे जंगम युगप्रधान भ० दादाजी श्री १०८ श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज का चर्ण पादुका श्रीसंघ पधराया। पं। रूपचन्द उपदेशात् ॥ सं० १९०७ का मिति आषाढ सुदि ९ बुधवासरे महाराजाजी श्रीतखतसिंहजी विजयराज्ये शुभंभवतुतराम्। दादाजी श्री १०८ श्री अखेचंदजी तच्छिष्य श्रीरत्नचन्दजी श्रीचैनसुखजी श्रीमोतीचंदजी तच्छिष्य श्रीहीराचंदजी पं। श्रीकुशलचन्द्र मुनि तेषां बगीचा मध्ये॥
५५५. नागोर सुमतिनाथ मंदिर ५५६. नागोर बड़ा मंदिर ५५७. नागोर सुमतिनाथ मंदिर
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