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________________ हैं वे इन्हीं की थीं। इस मन्दिर में भगवान् की मूर्तियों के अतिरिक्त गणेश मूर्ति, जिनमहेन्द्रसूरि पादुका, चतुरकंवर पादुका, संघवी बहादुरमल पादुका और पूर्वजों की पादुकाएँ भी विद्यमान हैं । इन्हीं के वंशजों में नगर सेठ श्री बुद्धसिंह जी बाफना विद्यमान हैं जो आंग्ल भाषा के अच्छे कवि और चिन्तक हैं । लेखांक ६४० - विक्रम सम्वत् १९४३ में बांठिया गोत्रीय सेठ गम्भीरमल निवासी बीकानेर, हाल निवासी आगरा की पुत्री जवारकंवर की पुत्री राजकंवर ने सवाई जयपुर में आदिनाथ मन्दिर और मूलनायक आदिनाथ भगवान् की प्रतिमा बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई। प्रतिष्ठाकारक थेपार्श्वचन्द्र गच्छीय श्री हेमचन्द्रसूरि और खरतरगच्छीय भट्टारक श्री जिनमुक्तिसूरि । मन्दिर का निर्माण डागा पुंजाणी गोत्रीय कन्हैयालाल के हस्ते हुआ था । इसकी व्यवस्था आगरा वाले ही कर रहे थे । कुछ वर्षों पूर्व उन्होंने सारी व्यवस्था जयपुर निवासियों को सौंप दी। नये व्यवस्थापकों ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार भी करवाया। उस समय से यह शिलापट्ट आज यथा-स्थान पर दृष्टिगत नहीं होता है । लेखांक ६५४-६६२– सम्वत् १९५५ में श्रीजिनमुक्तिसूरि ने आहोर में अंजनशलाका की प्रतिष्ठा करवाई थी। लेखांक ६७० - जयपुर स्टेशन के पास ऋषभदेव मन्दिर का निर्माण जयपुर के जौहरी सेठ भूरालाल गोकलचन्द पुंगलिया ने करवाया था और इसकी प्रतिष्ठा वि०सं० १९५८ में श्री जिनसिद्धिसूरि ने की थी । लेखांक ६८२-६८५- अजमेर स्थित भगतियों के मन्दिर का निर्माण भड़गतिया फतहमलजी कल्याणमलजी की धर्मपत्नी जवाहरबाई ने विक्रम सम्वत् १९७१ में करवाया था । इसकी प्रतिष्ठा श्री जिनचन्द्रसूरि के विजय राज्य में श्री मोहनलाल जी महाराज के शिष्य पंन्यास हर्षमुनि और प्रेमसुखमुनि ने करवाई थी। दादागुरुदेवों के पादुकाओं के अतिरिक्त श्री (xi) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003984
Book TitlePratishtha Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherVinaysagar
Publication Year2003
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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