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मोहनलाल जी महाराज की पादुकाएँ भी विद्यमान है । इस लेख में जिनचन्द्रसूरि के विजय राज्य का उल्लेख होने से यह स्पष्ट है कि सम्वत् १९७१ तक पंन्यास श्री हर्षमुनिजी खरतरगच्छ की मान्यता को ही स्वीकार करते थे।
लेखांक ६९४- चाँदमल - हुलासकंवर स्मारक के लेख से यह स्पष्ट है कि सेठ चाँदमल जी लूनिया का १९९७ में और उनकी पत्नी हुलासकंवर का स्वर्गवास १९३६ में अजमेर में हुआ। उनके दाहसंस्कार स्थान पर यह स्मारक सम्वत् १९७६ में श्री चाँदमल जी के पुत्र रायबहादुर, राजा बहादुर सेठ थानमल जी लूनिया (हैदराबाद) अजमेर वालों ने अजमेर दादाबाड़ी में बनवाया ।
लेखांक ७१६-७१७- खरतरगच्छीय प्रवर्तिनी पुण्यश्रीजी की शिष्या कनकश्री का स्वर्गवास १९९४ में नागौर में हुआ । उन्हीं की स्मृति में साध्वी शान्तिश्री के उपदेश से आगरा निवासी बाबू पूर्णचन्द्र और कपूरचन्द्र की माता श्रीमती मगाबाई बसंतीबाई ने यह कनक मन्दिर बनवाया और समारोहपूर्वक १९९४ में इसकी प्रतिष्ठा करवाई ।
लेखांक ७५२ - बीकानेर निवासी मंत्री संग्रामसिंह के पुत्र मंत्री कर्मचन्द्र ने फलोदी में राज्याधिकारी रहते हुए जिनदत्तसूरि की पादुका प्रतिष्ठित करवाई। यह पादुका आज भी फलोदी राणीसर दादाबाड़ी में पूजित है।
लेखांक ७५३ - विक्रम सम्वत् १६५३ में मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र बच्छावत ने अमरसर में श्री जिनकुशलसूरि की पादुका स्थापित करवाई और युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई । अमरसर निवासी श्री थानसिंह के प्रयत्नों से यह कार्य सम्पन्न हुआ था । यह अमरसर शाहपुरा ( जयपुर ) से १० कि०मी० दूर है। यह उस समय में प्रसिद्ध नगर रहा था। जहाँ महोपाध्याय समयसुन्दर और गुणविनय इत्यादि ने यहाँ चातुर्मास भी किये थे। यहाँ शीतलनाथ का मन्दिर था जिसका अब नामो-निशान भी नहीं
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