________________
,
भी रुचिकर कार्य होने से इस काम में दिल से जुट गया । जैसा कि स्वयं नाहटा बन्धुओं ने "बीकानेर लेख संग्रह वक्तव्य" पृष्ठ ११ पर उल्लेख किया है :- चिन्तामणि मन्दिर के गर्भगृहस्थ मूर्तियों के लेखों के लेने में स्व० हरिसागरसूरिजी, उ० कवीन्द्र सागरजी महो० विनयसागरजी, श्री ताजमलजी बोथरा, रूपचन्दजी सुराना आदि ने साथ दिया है। इसके पश्चात् तो मुझे यह कार्य इतना अच्छा लगा कि जहाँ भी जाता वहाँ मन्दिरस्थ मूर्तियों के लेखों की नकल करना मैंने प्रारम्भ कर दिया । नागौर, मेड़ता, अजमेर, किशनगढ़, जयपुर, कोटा आदि स्थानों पर जहाँ भी मैं गया, यह कार्य रुचिपूर्वक करता रहा ।
विक्रम सम्वत् २००२ में श्रेष्ठिवर्य श्री गुलाबचन्द जी ढढ्ढा और श्री सोहनमल जी गोलेछा के अनुरोध पर कि जयपुर के समस्त मन्दिरों के समग्र मूर्ति लेख आपने ले लिए हैं। जयपुर स्टेट के अन्तर्गत सभी स्थानों एवं मन्दिरों के लेखों का संकलन भी कर लें तो यह एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित की जाए। मैं भी जयपुर के गाँव-गाँव घूमकर मन्दिरों के दर्शन करते हुए मन्दिरस्थ मूर्तियों के लेख लेता रहा । पढ़ाई भी लेख के साथ चलती रही। कुछ समय पश्चात् इस वेग में शिथिलता आ गई । साधु-जीवन में रहते हुए भी व्यवहारिक / सामाजिक प्रपंचों में उलझ गया। इस मौलिक कार्य से विमुख हो गया। कभी तरंग आती तो कई स्थानों के, मन्दिरों के लेख अवश्य ले लेता । फिर भी लगभग इक्कीस सौ लेख संग्रहित कर लिए थे ।
प्रथम भाग का प्रकाशन
विक्रम सम्वत् २०१० में यह भावना जागृत हुई कि इन लेखों को व्यवस्थित कर प्रकाशन अवश्य किया जाए, जिससे यह संग्रह उपयोगी हो सके । १२०० लेखों की प्रतिलिपि तैयार कर प्रकाशनकार्य प्रारम्भ किया। प्रथम भाग " हो रहा था उसी समय यह अभिलाषा
!
Jain Education International
,
(ii)
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org