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प्रतिष्ठा-लेख-संग्रहः द्वितीयो विभागः
भद्रगोत्रीय समदड़ीया शाखायां सा० सुखलाल जी बादरमल जी कानमलजी ने श्रीमद् जैनाचार्य श्री विजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से स्टेशन पर भगवान चन्द्रप्रभ का भव्य मंदिर बनवाया। जिसकी शुभ प्रतिष्ठा श्रीमद् उपकेशगच्छीय इतिहासप्रेमी मुनिवर्य श्री ज्ञानसुंदरजी गुणसुंदर जी महाराज की अध्यक्षता में शुभ मुहुर्त व विधि विधान सहित बड़े समारोह पूर्वक हुई। इस शुभ अवसर पर श्री नंदीश्वरद्वीपादि ९६ जिनालयों की रचना हुई जिससे जैन धर्म की अच्छी प्रभावना हुई, प्रतिष्ठा की सब क्रिया सेठ फूलचंद खीमचंद श्रावक मु. वलाद (गुजरात) वालों ने करवाई। इस लेख को सोमपुरा कस्तूरचंद खनाजी मु. चाणोद वालों ने लिपिबद्ध किया शुभम्॥
(७१३) पार्श्वनाथ-पादुका श्रीपार्श्वनाथ भगवान के चरण पादुका वि० सं० १९९३ का० फाल्गुन कृष्णा ७ गुरुवार प्रतिष्ठा मुनि श्रीज्ञानसुंदरजी महाराज
(७१४) रलप्रभसूरि-पादुका श्रीधर्मघोषसूरिसद्गुरुभ्यो नमः ओशवंश के आद्य संस्थापक जैनाचार्य श्रीरत्नप्रभसूरीश्वरजी महाराज के चरण पादुका वि० सं० १९९३ का फाल्गुन कृष्णा ७ गुरुवार प्रतिष्ठा मुनिश्री ज्ञानसुंदरजी महाराज कारापिता।
(७१५) विनयविजय-पादुका ॥ संवत् १९४४ का ज्येष्ठ सुदि ३ बुधवासरे प्रतिष्ठा करापितं श्रीमेडतामध्ये ॥ श्रीमबृहत्तपागच्छे श्रीदेवाणीशाखायां ॥ श्रीमरुधरदेशे। श्रीराठौडीराज्ये ॥ श्रीसंघ स्थापितं। श्री। श्रीश्री
॥ ० ॥ पन्यासजी श्री १०८ श्री पं० प्रवर श्रीहुकम पं। प्रवर श्री १०८ श्रीविनयविजयजी कस्य पादुका स्थापितं ॥ पं। प्रवर श्री १०८ श्री हमीरविजयजी कस्य पादुका स्थापिता ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु॥ शुभंभवतु ॥
७१३. नागोर स्टेशन चन्द्रप्रभ मन्दिर ७१४. नागोर ससवाणी माता का मन्दिर ७१५. मेड़ता सिटी श्मसान
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