SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (प्रकाशकीय) मूर्ति-लेख इतिहास के अकाट्य साक्ष्य होते हैं, यह महत्त्वपूर्ण बात व्यवस्था की धुंध में छुपी रहती है। यदा-कदा ही कुछ समर्पित शोधार्थी सतह को भेद गहराई में जाने का प्रयत्न करते हैं। ऐसे परिवेश में, जहाँ जैन पुरातत्त्व व इतिहास संबंधी शोध को ही महत्त्व नहीं दिया जाता, मूर्ति-लेखों को पढ़ने और व्यवस्थित रूप से संकलित करने के कष्ट साध्य कार्य को संपन्न करने वालों की संख्या नगण्य सी हो गई है, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं । महोपाध्याय विनयसागर जी उन श्रमशील विद्वानों में से एक हैं जिन्होंने शहर-शहर गाँव-गाँव घूम कर अनेक मंदिरों से महत्त्वपूर्ण मूर्ति-लेखों का संकलन किया। इस प्रतिष्ठा लेख संग्रह को दो भागों में प्रकाशित करना था। प्रथम भाग सुमति सदन, कोटा से प्रकाशित होने के पश्चात् व्यवधानों के कारण दूसरे भाग 7 प्रकाशन लम्बी अवधि तक रुका रहा। प्रथम भाग विद्वद् जगत में सराहा गया और व्यापक रूप से शोधार्थियों द्वारा उपयोग में लिया गया। अब प्राकृत भारती व एम०एस०पी०एस०जी० चेरिटेबल ट्रस्ट के सहयोग यह दूसरा भाग सुधी पाठकों के हाथों में समर्पित किया जा रहा है। इसके काशन की योजना को एक वर्ष पूर्व गति दी गई थी। इस बीच म० विनयसागरजी जितने अतिरिक्त लेखों का संग्रह किया था वे भी इसमें सम्मिलित कर लिए गए । साथ ही कतिपय महत्त्वपूर्ण लेखों के संबंध में विशेष जानकारी भी शोधार्थियों के लिए उपलब्ध करा दी गई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003984
Book TitlePratishtha Lekh Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherVinaysagar
Publication Year2003
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy