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से प्रतिष्ठा करवाई। इन्हीं जीवराजजी ने लेखांक ३६७ में सूरजपोल के बाहर मोहनबाड़ी में दादा जिनकुशलसूरि के चरणों की और लेखांक ३६८ के अनुसार ऋषभदेव की पादुका स्थापित/प्रतिष्ठित करवाई थी। मेरे विचारों के अनुसार सं० जीवराजजी के पुत्र मोहनराम के नाम से ही यह स्थान जयपुर सूरजपोल के बाहर मोहनबाड़ी के नाम से प्रसिद्ध हुआ है।
लेखांक ४२०- मोहनबाड़ी, जयपुर में सम्वत् १८६२ में जिनहर्षसूरि के विजय राज्य में श्री रत्नराजगणि के शिष्य प्राज्ञ ज्ञानसार मुनि की विद्यमानता में ही उनके शिष्यवर्ग ने पादुका स्थापित करवाई। ज्ञानसार जी नारायण बाबा के नाम से प्रसिद्ध थे और इनके भक्तवृन्दों में महाराजा बीकानेर, महाराजा किशनगढ़ के विशेष उल्लेख उन राजाओं के पत्रों द्वारा मिलते हैं।
लेखांक ४४१- सम्वत् १८७७ में आमेर नगर में सवाई जयसिंह जी के राज्य में आमेर और सवाई जयनगरादि निवासी श्रीसंघ ने यह मन्दिर बनवाया। क्षेमकीर्ति शाखा के महोपाध्याय रूपचन्द्रगणि (रामविजय गणि) के पौत्र शिष्य महोपाध्याय श्री शिवचन्द्र गणि ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई।
लेखांक ५०६- सम्वत् १९०१ में रतलाम नगर में श्रीजिनमहेन्द्रसूरि ने चातुर्मास किया था और उसके पश्चात् विशाल अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव भी सम्पन्न करवाया था। विशालकाय अनेक प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा राजराजेश्वर श्री बलवतसिंहजी के विजय राज्य में हुई थी। उस समय जिनमहेन्द्रसूरि के साथ उपाध्याय, वाचक आदिपदों के धारक ५१ साधुओं का समुदाय था। लेखांक ५०६ से ५२१ तक की मूर्तियाँ बाबा सा० के मन्दिर रतलाम में विद्यमान है।
लेखांक ५२३- सम्वत् १९०२ में श्रीजिनरत्नसूरि की शाखा में वाचनाचार्य कर्मचन्द्रगणि की परम्परा में पण्डित प्रवर श्री कुशलचन्द का नागोर में बगीचा था। उसी में पण्डित रूपचन्द्र जी के उपदेश से सुमतिनाथ
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