________________
परिशिष्ट २. लेखों में आये हुए गच्छों के नाम अकारानुक्रम से लेखांक
के साथ दिये गये हैं। परिशिष्ट ३. लेखस्थ आचार्य एवं मुनियों के नाम अकारानुक्रम में लेखांक
के साथ दिये गये हैं। परिशिष्ट ४. लेखस्थ ग्रामानुक्रमणिका में ग्राम का नाम और लेखांक दिये
गये हैं। परिशिष्ट ५. लेखस्थ राजाओं के नाम अकारानुक्रम से लेखांक दिये गये हैं। परिशिष्ट ६. लेखस्थ जातियों के नाम अकारानुक्रम से लेखांक दिये गये हैं। परिशिष्ट ७. लेखस्थ गोत्रों की सूचि अकारानुक्रम से दी गई है।
स्थान-परिवर्तन ____ इन लेखों का संकलन लगभग पाँच दशक पूर्व किया गया था। अतः कई मूर्तियों के वर्तमान स्थान परिवर्तित हो गए हैं। प्रायशः समस्त मूर्तियाँ विशेष स्थानों और विशेष मन्दिरों की यथास्थान पर हैं किन्तु निजी उपाश्रयों और गृहदेरासर की प्रतिमाएँ कुछ कारणों से अन्यत्र विराजमान कर दी गई हैं अथवा हटा दी गई हैं। जैसे पार्श्वचन्दगच्छ उपाश्रय, जयपुर, इमली वाली धर्मशाला, जयपुर, यति श्यामलाल जी का उपाश्रय, जयपुर, श्री प्रतापचन्द जी ढढ्ढा गृह देरासर, जयपुर आदि की प्रतिमाएँ किन नये स्थानों पर विराजमान हैं या हटा दी गई हैं, मुझे जानकारी नहीं है। कई मूर्तियाँ पूजन के अभाव में पूजा की दृष्टि से अन्यत्र भी विराजमान की गई हैं। कई नव-निर्माण होने के कारण अन्यत्र स्थानों पर विराजमान की गई हैं, जैसे इमली वाली धर्मशाला की मूर्तियाँ। जीर्णोद्धार के नाम से कई मूर्तियाँ और कई शिलालेख हटा दिये गये हैं-जैसे लेखांक ६४० का शिलापट्ट। ऐसी जानकारी भी मिलती है कि कई अर्थलोभी तस्करों द्वारा मूर्तियाँ बेची भी गई हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org