Book Title: Prakrit Path Chayanika Prarambhik Pathyakram
Author(s): B L Institute of Indology
Publisher: B L Institute of Indology
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ-चयनिका GJoito प्रारम्भिक पाठ्यक्रम BUSGLOSBE STOTHRes BALLIACTOR TEJoPACCEXE SAUTKICHUT भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली O राष्यि संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Cover Design: Madhumangal Singh The image on the cover is an Ashokan inscription in Prakrit language dating back to the third century BC. The inscription is on display in the Bhubaneshwar Museum. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत पाठ-चयनिका प्रारम्भिक पाठ्यक्रम Page #4 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठ-चयनिका प्रारम्भिक पाठ्यक्रम अखिल भारतीय ग्रीष्मकालीन प्राकृत भाषा एवं साहित्य अध्ययनशाला भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली LDI राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली मानित विश्वविद्यालय Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली एवम् राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान (मानित विश्वविद्यालय), 56-57, इन्स्टीट्यूशनल एरिया, जनकपुरी, नई दिल्ली 110058 प्रथम संस्करण मई 2012 प्राप्ति स्थान बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी विजय वल्लभ स्मारक, जैन मन्दिर कॉम्पलेक्स, २०वाँ किमी. जी. टी. करनाल रोड, पोस्ट अलीपुर, दिल्ली 110036 फोन : 011-27202065, 27206630 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्राचीन भारतीय भाषाओं में प्राकृत भाषा अनेक शताब्दियों तक भारतीय जनमानस की प्रमुख जनभाषा रही है। सम्पूर्ण भारतीय भाषायें इनका साहित्य, इतिहास, संस्कृति परम्परायें, लोक-जीवन और जन-मन-गण इससे प्रभावित एवं ओत-प्रोत है। यही कारण है कि प्राकृत भाषा को अनेक भारतीय भाषाओं की जननी होने का गौरव प्राप्त है। साहित्य सर्जना के रूप में सर्वाधिक प्राचीन वैदिक भाषा में भी प्राकृत भाषा के अनेक तत्त्व प्राप्त होते हैं। इससे लगता है कि उस समय भी बोलचाल की लोक-भाषा के रूप में प्राकृत जैसी कोई जन-भाषा निश्चित ही प्रचलन में रही होगी। इसी जन-भाषा को अपने उपदेशों और धर्म प्रचार का माध्यम बनाकर तीर्थंकर महावीर और भगवान बुद्ध भाषायी क्रान्ति के पुरोधा कहलाये। यही कारण है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लेकर वर्तमान काल तक प्राकृत भाषा में धर्म-दर्शन, तत्त्वज्ञान, अलंकार-शास्त्र, सामाजिक विज्ञान, इतिहासकला-संस्कृति, गणित, ज्योतिष, भूगोल-खगोल, वास्तुशास्त्र, मूर्तिकला एवं जीवन मूल्यों आदि से संबन्धित अनेक विधाओं एवं आगम एवं इसकी व्याख्या से सम्बन्धित साहित्य की सर्जना समृद्ध रूप में होती आ रही है और यह क्रम आज भी प्रवर्तमान है। किन्तु आश्चर्य है कि जो स्वयं अनेक वर्तमान भाषाओं की जननी है और लम्बे काल तक जनभाषा के रूप में राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित रही - राष्ट्र की वह बहुमूल्य धरोहर प्राकृत आज इतनी उपेक्षित हैं क्यों इसे आज अपनी अस्मिता एवं पहचान बनाने और मूलधारा से जुड़ने हेतु संघर्ष करना पड़ रहा है? इन्हीं प्रश्नों के समाधान हेतु एक विनम्र प्रशस्त, किन्तु प्रयास पिछले चौबीस वर्षों से निरन्तर जारी रखते हुए एक इतिहास की सर्जना में बी. एल.इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी संलग्न है। बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी के नाम से प्रसिद्ध दिल्ली के Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6 प्राकृत पाठ-चयनिका विजय वल्लभ स्मारक जैन मंदिर के विशाल प्रांगण में स्थित "भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी" भारतीय प्राच्य विद्याओं का एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अध्ययन एवं शोध संस्थान है। अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों, व्याख्यानमालाओं एवं पुरस्कारों के आयोजन, लगभग पच्चीस हजार से अधिक प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के विशाल शास्त्र-भण्डार का संरक्षण, पुरातत्त्व संग्रहालय की स्थापना, अनेक दुर्लभ एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन, मुद्रित ग्रन्थों के समृद्ध पुस्तकालय की सुविधा जैसी अनेक गतिविधियों द्वारा भारतीय विद्याओं एवं भाषाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार के कारण इस संस्थान ने वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिष्ठापरक पहचान बनाई है। सम्पूर्ण देश में यही एकमात्र शोध संस्थान है, जिसने अपने स्थापन काल से ही प्राकृत भाषा एवं साहित्य के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं इसके अध्ययन हेतु शिक्षण-प्रशिक्षण का प्रभावी कदम उठाया और पिछले चौबीस वर्षों से प्रतिवर्ष निरन्तर ग्रीष्मकालीन प्राकृत भाषा और साहित्य के गहन अध्ययन हेतु इक्कीस दिवसीय कार्यशालाओं का आयोजन कर सम्पूर्ण देश से समागत उच्च शिक्षा संस्थानों के प्राध्यापक, शोध-छात्र एवं प्राकृत अध्ययन के इच्छुक अन्य सुयोग्य प्रतिभागियों को यह संस्थान अपनी ओर से सभी सुविधाएँ प्रदान करता है। इन्हीं प्राकृत अध्ययन शालाओं में विद्वानों के लम्बे अनुभव और अनेक बदलाओं के बाद प्राकृत भाषा और साहित्य के अध्ययन हेतु यह प्रारम्भिक (Elementary) पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। इस पाठ्यक्रम की अपनी यह विशेषता है कि इसे व्याकरण के मुख्य आधार पर पढ़ाया जाता है, जिससे उस पाठ के भाव ग्रहण के साथ ही उसमें सन्निहित विभिन्न प्राकृतों का स्वरूप और उनके व्याकरण पक्ष का भी विशेष प्रशिक्षण हो जाए ताकि प्राकृत साहित्य के किसी भी ग्रन्थ को समझने का मार्ग प्रशस्त हो। जब यहाँ से प्रशिक्षित और कालेजों, विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका 7 विद्वान् संस्कृत नाटकों में विद्यमान अधिकांश प्राकृत सम्वादों का उनकी संस्कृतच्छाया के आधार पर नहीं, अपितु मूल प्राकृत भाषा के ही आधार पर अर्थ समझाते हैं और गर्व से कहते हैं कि हमने प्राकृत भाषा और साहित्य का यह प्रशिक्षण बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी से प्राप्त किया है, तब हमें गौरवपूर्ण प्रसन्नता और सार्थकता का विशेष अनुभव होता है। पिछले चौबीस वर्षों में प्रशिक्षित ऐसे ही शताधिक विद्वानों में अनेक विद्वानों से जब हम यह भी सुनते हैं कि प्राकृत भाषा और साहित्य में इक्कीस दिनों में हम जो प्रवीणता यहाँ प्राप्त कर लेते हैं, वह 2-3 वर्षों में भी अन्यत्र सम्भव नहीं है, तब हमें इस दिशा में विशेष कार्य करने का अनुपम उत्साह प्राप्त होता है। प्रस्तुत पाठ्यक्रम की पुस्तक के रूप में प्रकाशन की काफी समय से प्रतीक्षा रही जो अब राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान (मानित विश्वविद्यालय नई दिल्ली, मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन) के सर्वविध सहयोग से पूर्ण हो रही है। इस हेतु यशस्वी एवं माननीय कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी के हम सभी बहुत कृतज्ञ हैं। ... इसे तैयार करने में प्राकृत-संस्कृत एवं अपभ्रंश भाषा और साहित्य के अनेक अनुभवी एवं उच्च कोटि के विद्वानों का विशेष सहयोग प्राप्त रहा है। प्राच्य भारतीय विद्याओं के सुविख्यात मनीषी प्रो. गयाचरण त्रिपाठी (राष्ट्रीय अध्येता, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला) के विशिष्ट मार्गदर्शन एवं सहयोग के प्रति हम सभी के मन में कृतज्ञता के भाव विद्यमान हैं। हमारे संस्थान के सम्माननीय उपाध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध विद्वान् डॉ. जितेन्द्र बी. शाह एवं अन्य सभी ट्रस्टियों के विशेष आभारी हैं। हमें उन सुझावों की भी प्रतीक्षा रहेगी, जिनसे यह पाठ्यक्रम और भी बहुउद्देशीय बन सके। श्रुत पंचमी, 2012 - प्रो. फूलचन्द जैन प्रेमी निदेशक, बी. एल. इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली - 36 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SYLLABUS FOR Elementary Course विषय सूची Text Page No. POETRY 20 , . 1. Acaranga-sutra आचाराङ्गसूत्र - राढ़देशे महावीरः 2. Sutra-krtanga-sutra सूत्रकृताङ्गसूत्र - अणगारकिच्चाई 3. Uttaradhyayana-sutra ___ उत्तराध्ययनसूत्र - प्रथमम् अध्ययनम् - विणयसुयं 4. Paumacariyam पउमचरियं - रक्खस-वाणरपव्वज्जाविहाणाहियारो 5. Pravacanasara पवयणसारो - प्रवचनसार 6. Kumarapalacarita कुमारपालचरितम् - सप्तमः सर्गः 7. Kumarapalacarita कुमारपालचरितम् - अष्टमः सर्गः Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय सूची 19 PROSE 8. Jnatrdharmakatha णायाधम्मकहाओ - चउत्थं अज्झयणं - कम्मे 9. Upasakadasa-sutra उपासकदशासूत्र - सत्तमं सद्दालपुत्तज्झयणं 10. Vasudeva Hindi वसुदेवहिण्डी - बीओ सामलीलंभो 11. Jacobi's Selected Narratives मूलदेव-कहा वा DRAMA 12, महाराष्ट्री श्लोक संग्रह - अभिज्ञानशकुन्तलम् 13. विदूषक-विलापः - अभिज्ञानशकुन्तलम् . 14. राज्ञःसमीपे धीवरस्यानयनम् - अभिज्ञानशाकुन्तलम् - षष्ठोऽङ्कः Page #12 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचाराङ्गसूत्र राढ़देशे महावीरः 1. तणफास सीतफासे य तेउफासे य दंसमसगे य / अहियासते सया समिते फासाइं विरूवरूवाइं // 1 // 2. अह दुच्चरलाढमचारी वज्जभूमिं च सुब्भभूमिं च / पंतं सेज्ज सेविंसु आसणगाई चेव पंताई // 2 // 3. लाढेहिं तस्सुवसग्गा बहवे जाणवया लूसिंसु / अह लूहदेसिए भत्ते कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु णिवतिंसु // 3 // 4. अप्पे जणे णिवारेति लूसणए सुणए डसमाणे / छुच्छुकारेंति आहंतु समणं कुक्कुरा दसंतु त्ति // 4 // 5. एलिक्खए जणे भुज्जो बहवे वज्जभूमि फरुसासी / लढेि गहाय णालीयं समणा तत्थ एव विहरिंसु // 5 // 6. एवं पि तत्थ विहरंता पुट्ठपुव्वा अहेसि सुणएहिं / संलुंचमाणा सुणएहिं दुच्चरगाणि तत्थ लाढेहिं // 6 // 7. णिधाय डंडं पाणेहिं तं वोसज्ज कायमणगारे / अह गामकंटए भगवं ते अधियासए अभिसमेच्चा // 7 // Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 प्राकृत पाठ-चयनिका 8. णाओ संगामसीसे वा पारए तत्थ से महावीरे / एवं पि तत्थ लाढेहिं अलद्धपुव्वो वि एगदा गामो // 8 // 9. उवसंकमंतमपडिण्णं गामंतियं पि अपत्तं / पडिणिक्खमित्तु लूसिंसु एत्तातो परं पलेहि त्ति // 9 // 10. हतपुव्वो तत्थ डंडेणं अदुवा मुट्ठिणा अदु फलेणं / अदु लेलुणा कवालेणं हंता हंता बहवे कंदिसु // 10 // 11. मंसूणि छिण्णपुव्वाइं उट्ठभियाए एगदा कायं / परिस्सहाइं लुंचिंसु अदुवा पंसुणा अवकरिंसु // 11 // 12. उच्चालइय णिहणिंसु अदुवा आसणावो खलइंसु / वोसट्टकाए पणतासी दुक्खसहे भगवं अपडिण्णे // 12 // 13. सूरो संगामसीसे वा संवुड्डे तत्थ से महावीरे / पडिसेवमाणो फरुसाइं अचले भगवं रीयित्था / / 13 / / 14. एस विही अणुक्कंतो माहणेण मतीमता / बहुसो अपडिण्णेणं भगवया एवं रीयति // 14 // त्ति बेमि। 15. ओमोदरियं चाएति अपुढे वि भगवं रोगेहिं / पुढे व से अपुढे वा णो से सातिज्जती तेइच्छं / / 15 / / 16. संसोहणं च वमणं च गायब्भंगणं सिणाणं च / संबाहणं न से कप्पे दंतपक्खालणं परिणाए // 16 // ण च / 17. विरते य गामधम्मेहिं रीयति माहणे अबहुवादी। सिसिरंसि एगदा भगवं छायाए झाति आसी य // 17 // 18. आयावइ य गिम्हाणं अच्छति उक्डए अभितावे / अदु जावइत्थ लूहेणं ओयण-मथु-कुम्मासेणं // 18 // Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13 आचाराङ्गसूत्र 19. एताणि तिण्णि पडिसेवे अट्ठ मासे अ जावए भगवं / अपिइत्थ एगदा भगवं अद्धमासं अदुवा मासं पि // 19 // 20. अवि साहिए दुवे मासे छप्पि मासे अदवा अपिवित्था / राओवरातं अपडिण्णे अण्णगिलायमेगता भुंजे // 20 // 21. छटेण एगया भुंजे अदुवा अट्ठमेण दसमेण / ___दुवालसमेण एगदा भुंजे पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे // 21 // 22. णच्चाण से महावीरे णो वि य पावगं सयमकासी। .. अण्णेहिं वि ण कारित्था कीरंतं पि णाणुजाणित्था // 22 // 23. गामं पविस्स णगरं वा घासमेसे कडं परट्ठाए / सुविसुद्धमेसिया भगवं आयतजोगताए सेवित्था / / 23 / / 24. अदु वायसा दिगिंछत्ता जे अण्णे रसेसिणो सत्ता / घासेसणाए चिटुंते सययं णिवतिते य पेहाए // 24 // Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृताङ्गसूत्र अणगारकिच्चाई 1. गंथं विहाय इह सिक्खमाणो, उट्ठाय सुबभंचेरं वसेज्जा / उवायकारो विणयं सुसिक्खे, जे छेयए विप्पमायं न कुज्जा // 1 // 2. जहा दिया पोतमपत्तजातं, सावासगा पविउं मन्नमाण / तमंचाइयं तरुणमत्तजातं, ढंकाइ अव्वत्तगमं हरेज्जा // 2 // 3. एवं तु सेहं पि अपुट्ठधम्मं, निस्सारियं बुसिमं मन्नमाणा / दियस्स छावं च अपत्तजायं, हरिंसु णं पावधम्मा अणेगे // 3 // . 4. ओसाणमिच्छे मणुए समाहिं, अणोसिए णंतकरे ति णच्चा / ओभासमाणे दधियस्स वित्तं, न निक्कसे बहिया आसुपन्नो // 4 // 5. जे ठाणओ य सयणासणे य, परक्कमे यावि सुसाहुजुत्ते / ___ समितीसु गुत्तोसु य आयपन्ने, बियागरेते य पुढो वएज्जा // 5 // 6. सहाणि सोच्चा अदु भेरवाणि, अणासवे तेसु परिव्वएज्जा / निदं च भिक्खू न पमाय कुज्जा, कहंकहं वा वितिगिच्छ तिन्ने // 6 // त्तिा अपि 7. डहरेण वुड्ढेण णुसासिए उ, रायणिएणावि समव्वएण / सम्मं तयं थिरतो नाभिगच्छे, निज्जंतए वा वि अपारए से // 7 // Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृताङ्गसूत्र 15 8. विउट्ठितेणं समयाणुसिढे, डहरेण वुड्ढेण य चोइए य / अच्चुठ्ठियाए घडदासिए वा, अगारिणं वा समयाणुसिढे // 8 // 9. न तेसु कुज्झे, न य पव्वहेज्जा, न यावि किंची फरुसं वदेज्जा / तहा करिस्सं त्ति पडिस्सुणेज्जा, सेयं खु मेयं न पमाय कुज्जा // 9 // 10. वणंसि मूढस्स जहा अमूढा, मग्गाणुसासंति हितं पयाणं / तेणेव मज्झं इणमेव सेयं, जं मे बुहा समणुसासयंति // 10 // 11. अह तेण मढेण अमढगस्स. कायव्व पया सविसेसजत्ता / - एओवमं तत्थ उदाहु वीरे, अणुगम्म अत्थं उवणेति सम्मं // 11 // रात्री 12. णेता जहा अंधकारंसि राओ, मग्गं ण जाणाति अपस्समाणे / से सूरियस्स अब्भुग्गमेणं, मग्गं वियाणाइ पगासियंसि // 12 // 13. एवंतु सेहे वि अपुट्ठधम्मे, धम्मं न जाणाइ अबुज्झमाणे / से कोविए जिणवयणेण पच्छा, सूरोदए पासति चक्खुणेव / / 13 / / 14. उड्ढे अहे य तिरियं दिसासु, तसा य जे थावरा जे य पाणा / सया जए तेसु परिव्वएज्जा, मणप्पओसं अविकंपमाणे // 14 // 15. कालेण पुच्छे समियं पयासु, आइक्खमाणो दवियस्स वित्तं / तं सोयकारो पुढो पवेसे, संखा इमं केवलियं समाहिं / / 15 / / 16. असिसं सुठिच्चा तिविहेण ताई, एएसु या संतिनिरोहमाहु / ते एवमक्खंति तिलोगदंसो, ण भुज्जमेयंति पमायसंगं // 16 // 17. निसम्म से भिक्ख समीहियट्रं, पडिभाणवं होइ विसारए य / आयाणअट्ठी वोदाणमोणं, उवेच्च सुद्धेण उवेति मोक्खं // 17 // 18. संखाइ धम्मं च वियागरंति, बुद्धा हु ते अंतकरा भवंति। ते पारगा दोण्ह वि मोयणाए, संसोधितं पगहमुदाहरंति / / 18 / / Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 165 प्राकृत पाठ-चयनिका 19. नो छायए नो वि य लूसएज्जा, माणं न सेवेज्ज पगासणं च / न यावि पण्णे परिहास कुज्जा, न यासियावाय वियागरेज्जा // 19 // 20. भूताभिसंकाइ दुगुंछमाणे, ण णिव्वहे मंतपदेण गोयं / ण किंचि मिच्छे मणुए पयासु, असाहुधम्माणि ण संवएज्जा // 20 // 21. से सुद्धसुत्ते उवहाणवं च, धम्मं च जे विंदति तत्थ तत्थ / आदेज्जवक्के कसले वियत्ते, स अरिहइ भासिउं तं समाहिं // 21 // - - - Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययनसूत्र प्रथमम् अध्ययनम् - विणयसुयं 1. संजोगा विप्पमुक्कस्स अणगारस्स भिक्खुणो / विणयं पाउकरिस्सामि आणपव्विं सुणेह मे // 1 // 2. आणानिदेसकरे गुरूणमुववायकारए / - इंगियागारसंपन्ने से विणीए त्ति वुच्चई॥२॥ 3. आणानिद्देसकरे गुरूणमणुववायकारए / पडणीए असंबुद्धे अविणीए त्ति वुच्चई // 3 // जहा सुणी पूइकणी निक्कसिज्जइ सव्वसो / एवं दुस्सीपडिणीए मुहरी निक्कसिज्जई // 4 // 5. कणकुण्डगं चइत्ताणं विटुं भुंजइ सूयरे / एवं सीलं चइत्ताणं दुस्सीले रमई मिए // 5 // 6. सुणिया भावं साणस्स सूयरस्स नरस्स य / विणए ठवेज्ज अप्पाणमिच्छन्तो हियमप्पणो // 6 // 7. तम्हा विणयमेसिज्जा सीलं पडिलभेज्जए / बुद्धपुत्त नियागट्ठी न निक्कसिज्जइ कण्हुई // 7 // Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18 ] प्राकृत पाठ-चयनिका 8. निसन्ते सियामुहरी बुद्धाणम् अन्तिए सया / अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा निरट्ठाणि उ वज्जए // 8 // 9. अणुसासिउ न कुप्पिज्जा खंतिं सेविज्ज पणिडए / खुड्डेहिं सह संसग्गिं हासं कीडं च, वज्जए // 9 // 10. मा य चण्डालियं कासी बहुयं मा य आलवे / कालेण य अहिज्जित्ता तउ झाइज्ज एगगो // 10 // 11. आहच्च चण्डालियं कट्ट न निण्हविज्ज कयाइ वि / कडं कडे त्ति भासेज्जा अकडं नो कडे त्ति य // 11 // 12. मा गलियस्से व कसं वयणमिच्छे पुणो पुणो / कसं व दट्ठमाइणे पावगं परिवज्जए // 12 // 13. अणासवा थूलवया कुसीला, मिउं पि चण्डं पकरिन्ति सीसा / / चित्ताणुया लहु दक्खोववेया पसायए ते हु दुरासयं पि // 13 // 14. नापुट्ठो वागरे किंचि पुट्ठो वा नालियं वए / कोहं असच्चं कुव्वेज्जा धारेज्जा पियमप्पियं // 14 // 15. अप्पा चेव दमेयव्वो अप्पा हु खलु दुइमो / अप्पा दन्तो सुही होइ अस्सिं लोए परत्थ य // 15 // 16. वरि मे अप्पा दन्तो संजमेण तवेण य / माहं परेहि दम्मन्तो बन्धणेहि वहेहि य // 16 // 17. पडणीयं च बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा / आवी वा जइ वा रहस्से नेव कुज्जा कयाइ वि // 17 // 18. न पक्खउ न पुरउ नेव किच्चाण पिउ / न जुंजे ऊरुणा ऊरुं सयणे नो पडिस्सुणे // 18 // Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययनसूत्र 19 19. नेव पल्हत्थियं कुज्जा पक्खपिण्डं च संजए / पाए पसारिए वावि न चिडे गुरुणन्तिए / / 19 / / 20. आयारिएहिं वाहित्तो तुसिणीउ न कयाइ वि / पसायपेही नियागट्ठी उवचिद्वे गुरुं सया // 20 // 21. आलवन्ते लवन्ते वा न निसीएज्ज कयाइ वि / चइऊणमासणं धीरो जउ जत्तं पडिस्सुणे // 21 // 22. आसणगउ न पुच्छेज्जा नेव सेज्जागउ कया / .. आगम्मुक्कुडुउ सन्तो पुच्छिज्जा पंजलीउडो // 22 // 23. एवं विणयजुत्तस्स सुत्तं अत्थं च तदुभयं / पुच्छमाणस्स सीसस्स वागरिज्ज जहासुयं / / 23 / / 24. मुसं परिहरे भिक्खू न य ओहारिणिं वए / भासादोसं परिहरे मायं च वज्जए सया / / 24 // 1. न लवेज्ज पुट्टो सावज्जं न निरष्टुं न मम्मयं / अप्पणट्ठा परट्ठा वा उभयस्सन्तरेण वा // 25 // 26. समरेसु अगारेसु सन्धीसु य महापहे / एगो एगत्थिए सद्धिं नेव चिट्ठे न संलवे // 26 // 27. जम्मे वुद्धाणुसासन्ति सीएण फरुसेण वा / मम लाभो त्ति पेहाए पयउ तं पडिस्सुणे // 27 // Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमचरियं रक्खस-वाणरपव्वज्जाविहाणाहियारो वानरवंशः 1. एसो ते परिकहिओ, रक्खसवंसो मए समासेणं / एत्तो सुणाहि नरवइ! वाणरवंसस्स उप्पत्ती // 1 // 2. वेयड्डनगवरिन्दे, मेहपुरं दक्खिणाएँ सेढीए / विज्जाहरसामन्तो, अहइन्दो अस्थि विक्खाओ // 2 // 3. भज्जा य सिरिमई से, सिरिकण्ठो तीऍ गब्भसंभूओ। पुत्तो महागुणधरो, देवकुमारोवमसिरीओ // 3 // 4. देवि त्ति नाम कन्ना, सिरिकण्ठसहोयरा विसालच्छी। सयलम्मि जीवलोए, रूवपडागा महिलियाणं // 4 // 5. अह रयणपुराहिवई, वीरो पुप्फुत्तरो महाराया।' तस्स गुणेहि सरिच्छो, पुत्तो पउमुत्तरो नाम // 5 // 6. सिरिकण्ठनिययबहिणी, मग्गइ पुप्फत्तरो सुयनिमित्तं / न य तेण तस्स दिन्ना, दिन्ना सा कित्तिधवलस्स // 6 // Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमचरियं 21 7. वितो चिय वीवाहो, दोण्ह वि विहिणा महासमुदएणं / सोऊण तन्निमित्तं, रुद्रो पुप्फत्तरो राया // 7 // 8. अह अन्नया कयाई, सिरिकण्ठो वन्दणाएँ देवगिरिं / गन्तूण पडिनियत्तो, पेच्छइ कन्नं वरुज्जाणे // 8 // 9. तीए वि सो कुमारो, दिट्ठो कुसुमाउहो व रूवेण / दोण्हं पि समणुरागो, तक्खणमेत्तेण उप्पन्नो // 9 // 10. मुणिऊण तीऍ भावं, हरिसवसुब्भिन्नदेहरोमञ्चो / .' अवगूहिऊण कन्नं, उप्पइओ नहयलं तुरिओ // 10 // 11. पुप्फुत्तरो नरिन्दो, सिटे चेडीहि नियसुयासमग्गो / सन्नद्धबद्धकवओ, मग्गेण पहाविओ तस्स // 11 // 12. बहुसत्थ-नीइकुसलो, सिरिकण्ठो जाणिऊण परमत्थं / लङ्कापुरि पविट्ठो, सरणं चिय कित्तिधवलस्स // 12 // 13. संभासिओ सिणेहं, रक्खसवइणा पहट्ठमणसेणं / सिट्टं च जहावत्तं, कन्नाहरणाइयं सव्वं // 13 // 14. ताव च्चिय गयणयले, गयवर-रह-जोह-तुरयसंघट्ट / उत्तरदिसाएँ पेच्छइ, एज्जन्तं साहणं विउलं // 14 // 15. कित्तिधवलेण दूओ, पेसविओ महुर-सामवयणेहिं / अह सो वि तुरियचवलो, सिग्धं पुष्फत्तरं पत्तो // 15 // . काऊण सिरपणाम, दूओ तं भणइ महुरवयणेहिं / कित्तिधवलेण सामिय!, विसज्जिओ तुज्झ पासम्मि // 16 // 17. उत्तमकुलसंभूओ, उत्तमचरिएहि उत्तमो सि पहु / तेणं चिय तेलोक्के, भमइ जसो पायडो तुज्झ // 17 // Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 22 प्राकृत पाठ-चयनिका 18. अह भणइ कित्तिधवलो, सामि ! निसामेहि मज्झ वयणाई। सिरिकण्ठो य कुमारो, उत्तमकुल-रूवसंपन्नो // 18 // 19. उत्तमपुरिसाण जए, संजोगो होइ उत्तमेहि समं / अहमाण मज्झिमाण य, सरिसो, सरिसेहि वा होज्जा / / 19 / / 20. सुटु वि रक्खिज्जन्ती, थुथुक्कियं रक्खिया पयत्तेणं / होही परसोवत्था, खलयणरिद्धि व वरकन्ना // 20 // 21. दोण्णि वि उत्तमवंसा, दोण्णि वि वयसाणुगुरूवसोहाइं। एयाण समाओगो, होउ अविग्धं नराहिवई ! // 21 // 22. जुज्झेण नत्थि कज्जं, बहुजणघाएण कारिएण पहू!। परगेहसेवणं चिय, एस सहावो महिलियाणं // 22 // 23. एवं चिय वट्टन्ते, उल्लावे ताव आगया दुई। नमिऊण चलणकमले, विज्जाहरपत्थिवं भणइ // 23 // 24. अह विन्नवेइ पउमा, सामि ! तुमं चलणवन्दणं काउं / सिरिकण्ठस्स नराहिव ! थेवो वि हु नत्थि अवराहो / / 24 // . 25. सयमेव मए गहिओ, एसो कम्माणुभावजोएण / अन्नस्स मज्झ नियमो, नरस्स एयं पमोत्तूणं / / 25 // 26. बहुसत्थ-नीइकुसलो, राया परिचिन्तिऊण हियएणं / दाऊण तस्स कन्न, निययपुरं पत्थिओ सिग्धं // 26 // 27. मग्गसिरसुद्धपक्खे, नक्खत्ते सोहणे तओ दियहे। वत्तं पाणिग्गहणं, अणन्नसरिसं वसुमईए // 27 // 28. अह भणइ कित्तिधवलो सिरिकण्ठं तिब्वनेहपडिबद्धो / मा वच्चसु वेयज्ञ, तत्थ तुमं वेरिया बहवे // 28 // Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमचरियं / 23 29. अत्थेत्थ लवणतोए, दीवो मणि-रयणकिरणविच्छुरिओ / कप्पतरुसन्निहेहिं, संछन्नो पायवगणेहिं // 29 // 30. भीमा-ऽइभीमहेळं, दक्खिण्णं सुरवरेहि काऊण / पुव्वं चिय अणुणाया, खेयरवसहा इहं दीवे // 30 // 31. दीवो संझावेलो, मणपल्हाओ सुवेलकणयहरी / नामं सुओवणो वि ये, जलअज्झाओ य हंसो य // 31 // 32. नामेण अद्धसग्गो, उक्कडवियडो त्थ रोहणो अमलो / .. कन्तो फुरन्तरयणो, तोयवलीसो अलङ्गो य // 32 // 33. दीवो नभो य भाणू, खेमो य हवन्ति एवमाईया / निच्चं मणाभिरामा, आसन्ने देवरमणिज्जा // 33 // 34. अवरुत्तराएँ एत्तो, दिसाएँ तिण्णेव जोयणसयाई / लवणजलमज्झयारे, वाणरदीवो त्ति नामेणं // 34 // तत्थऽच्छसु वीसत्थो, काऊण पुरं महागुणसमिद्धं / बन्धवजणेण सहिओ, सुरवरलीलं विडम्बन्तो / / 35 / / 36. चेत्तस्स पढमदिवसे, सिरिकण्ठो निग्गओ सपरिवारो / रह-गय-तुरयसमग्गो, दीवाभिमुहो समुप्पइओ // 36 // 37. पेच्छइ महासमुई, संघट्टट्ठन्तवीइ-कल्लोलं / गाहसहस्सावासं, आगासं चेव वित्थिण्णं // 37 // 38. संपत्तो च्चिय दर्दू, दीवं वररयणसंपयसमिद्धं / ओइण्णो सिरिकण्ठो, तत्थ निविट्ठो मणिसिलासु // 38 // 39. वज्जिन्दनील-मरगय-पूसमणी-पउमरायकन्तीए / लक्खिज्जइ बहुवण्णो, दीवो किरणाणुवालीए // 39 // Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24 प्राकृत पाठ-चयनिका 40. नाणाविहतरुणतरुब्भवेहि कुसुमेहि पञ्चवण्णेहिं / भसलीकओ व्व नज्जइ, निज्झर-गिरिविविहकहरेहिं // 40 // 41. पण्डुच्छवाडपउरो, सहावसंपन्नदीहियाकलिओ / वरकमलकेसरारुण-लवङ्गगन्धेण सुसुयन्धो // 41 // 42. अह पत्तो विहरतो, दीवं सव्वायरेण सिरिकण्ठो / पेच्छइ य वाणरगणे, सव्वत्तो माणुसायारे // 42 // 43. घेत्तूण ताण सव्वं, करणिज्जं खाण-पाणमाईयं / कारावियं च सिग्घं, कीलणहेउं नरिन्देण // 43 // 44. नच्चन्ति य वग्गन्ति य, जवाउलयन्ति अन्नमन्नस्स / वाणरचडुलसहावा, जाया अइवल्लहा तस्स // 44 // 45. किक्किन्धिपव्वओवरि, भवण-ऽट्टालय-सुवण्णपायारं / चोद्दसजोयणविउलं, किक्किन्धिपुरं कयं तेण // 45 // 46. पासाय-तुङ्गतोरण-मणिरयणमऊहभत्तिविच्छरियं / अमरपुरस्स व सोहं, हाऊण व होज्ज निम्मवियं // 46 // जं जं जणो वि मग्गइ, उवगरणा-ऽऽभरण-भोयणाईयं / तं तत्थ हवइ सव्वं, विज्जाभावेण सन्निहियं // 47 // . 48. एवंविहम्मि नयरे, पउमासहिओ अणोवमं रज्जं / भुञ्जइ सया सुमणसो, सुरलोगगओ सुरिन्दो व्व // 48 // 49. अह अन्नया कयाई, भवणस्सुवरिं ठिओ पलोएन्तो। पेच्छइ नहेण जन्तं, इन्दं नन्दीसरं दीवं // 49 // 50. गय-वसह-तुरय-केसरि-मय-महिस-वराहवाहणारूढा / वच्चन्ति देवसङ्घा, पूरन्ता अम्बरं सयलं // 50 // Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पउमचरियं 25 51. सरिऊण पुव्वजम्मं, भणइ निवो सुरवरा इमे सव्वे / नन्दीसरवरदीवं, वन्दणहेउम्मि वच्चन्ति // 51 // 52. अहमवि सुरेहि समयं, दीवं नन्दीसरं पयत्तेणं / गन्तूण चेइयाई, करेमि थुइमङ्गलविहाणं // 52 // 53. अह कोचविमाणेणं, गयणेणं पत्थियस्स वेगेणं / मणुसुत्तरस्स उवरिं, गइपडिहाओ य से जाओ // 53 // 54. सो पेच्छिऊण देवे, वोलन्ते माणुसुत्तरं सेलं / .. परिदेविउं पयत्तो, सोगभरापूरियसरीरो // 54 // 55. हा ! कहूँ चिय पावो, जो हं नन्दीसरं न संपत्तो / विहलमणोरहभावो, भग्गुच्छाहो फुडं जाओ // 55 // 56. नन्दीसरवरदीवे, जह पूया चेइयाण विरएउं / भावेण नमोक्कारं, पसन्नमणसो करिस्सामि // 56 // 57. जे चिन्तिया महन्ता, मणोरहा मन्दभागधेएणं / ते मे फलं न पत्ता, उदएण अहम्मकम्मस्स // 57 // Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवयणसारो प्रवचनसार 1. एस सुरासुरमणुसिंदवंदिदं धोदघाइकम्ममलं / पणमामि वड्डमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं // 1 // 2. सेसे पुण तित्थयरे ससव्वसिद्धे विसुद्धसब्भावे / समणे य णाणदंसणचरित्ततववीरियायारे // 2 // 3. ते ते सव्वे समगं समगं पत्तेगमेव पत्तेगं / वंदामि य वढ्ते अरहंते माणुसे खेत्ते // 3 // 4. किच्चा अरहंताणं सिद्धाणं तह णमो गणहराणं / अज्झावयवग्गाणं साहूणं चेव सव्वेसिं // 4 // तेसिं विसुद्धदंसणणाणपहाणासमं समासेज्ज / उवसंपयामि सम्म जत्तो णिव्वाणसंपत्ती // 5 // [पणगं] 6. संपज्जदि णिव्वाणं देवासुरमणुयरायविहवेहिं / जीवस्स चरित्तादो दंसणणाणप्पहाणादो // 6 // 7. चारित्तं खलु धम्मो धम्मो जो सो समोत्ति णिहिट्ठो / मोहक्खोहविहीणो परिमाणो अप्पणो हु समो // 7 // Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पवयणसारो 27 8. परिणमदि जेण दव्वं तक्कालं तम्मय त्ति पण्णत्तं तम्हा धम्मपरिणदो आदा धम्मो मुणेयव्वो // 8 // 9. जीवो परिणमदि जदा सुहेण असुहेण वा सुहो असुहो / सुद्धेण तदा सुद्धो हवदि हि परिणामसब्भावो // 9 // 10. णत्थि विणा परिणाणं अत्थो अत्थं विणेह परिणामो / दव्वगुणपज्जयत्थो अत्थो अत्थित्तणिव्वत्तो // 10 // 11. धम्मेण परिणदप्या अप्पा जदि सुद्धसंपयोगजुदो / - पावदि णिव्वाणसुहं सुहोवजुत्तो व सग्गसुहं // 11 // 12. असुहोदयेण आदा कुणरो तिरियो भवीय णेरइयो / दुक्खसहस्सेहिं सदा अभिदुदो भमदि अच्चंतं / / 12 / / 13. अइसयमादसमुत्थं विसयातीदं अणोवममणंतं / अव्वुच्छिण्णं च सुहं सुधुवओगप्पसिद्धाणं // 13 // 14. सुविदिदपयत्थसुत्तो संजमतवसंजुदो विगदरागो / समणो समसुहदुक्खो भणिदो सुद्धोवओगो त्ति / / 14 // 15. उवओगविसुद्धो जो विगदावरणंतरायमोहरओ / भूदो सयमेवादा जादि पारं णेयभूदाणं // 15 // 16. तह सो लद्धसहावो सव्वण्हू सव्वलोगपदिमहिदे / भूदो सयमेवादा हवदि सयंभु त्ति णिहिट्ठो // 16 // 17. भंगविहूणो य भवो संभवपरिवज्जिदो विणासो हि / विज्जदि तस्सेव पुणो ठिदिसंभवणाससमवायो // 17 // 18. उप्पादो य विणासो विज्जदि सव्वस्स अट्ठजादस्स / पज्जाएण दु केणवि अट्ठो खलु होदि सब्भूदो // 18 // Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 288 प्राकृत पाठ-चयनिका 19. पक्खीणघादिकम्मो अणंतवरवीरिओ अधिकतेजो। जादो अदिदिओ सो णाणं सोक्खं च परिणमदि // 19 // 20. सोक्खं वा पुण दुक्खं केवलणाणिस्स णत्थि देहगदं / जम्हा अदिदियत्तं जादं तम्हा दु तं णेयं // 20 // Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुमारपालचरितम् सप्तमः सर्गः 1. ओहाविअ-सयल-बलो उत्थारिअ-अन्तरङ्ग-रिउ-वग्गो / थुन्दिअ-करणो राया निहन्ते चिन्तमिअ काही // 1 // 2. अक्कमिआ विसएहिं टिरिटिल्लन्ता पुरन्धि-सेवाए / ही दुण्ढुल्लन्ति भवे चक्कम्मविआ कुकम्मेहिं // 2 // 3. काम-गह-भमडिएहिं भमाडिओ भम्मडेइ को न भवे / गय-काम-झण्टणो पुण तलअण्टइ सिद्ध-भूमीसु // 3 // 4. ढण्ढल्लिअ-भुमयं भुमिअ-धणू जग-झम्पणो गुमिअ-आणो / ____जं न फुमावइ मयणो अफुसिअ-बुद्धी खु सो धन्नो // 4 // 5. दुमड़ पुरे दुसइ वणे परइ थलीसुं परीइ जल-मज्झे। अभमिअ-चित्तो इत्थीहि णीइ धन्नो पसम-रज्जं // 5 // 6. सो च्चिअ सोक्खमइच्छइ पसमं उक्कसइ अक्कसइ सग्गं / मोक्खं पि हु अणुवज्जइ अईइ न हु जो जुवइ-सङ्गं // 6 // 7. तारुण्णे णिम्महिए अवज्जसन्तेसु हाणिमक्खेसु / ही पच्चड्डुइ वुडो वि न पसमं काम-पच्छन्दी // 7 // Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 300 प्राकृत पाठ-चयनिका 8. णीणन्ति मित्त-भज्जं रम्भन्ति सुअं वहुं पि पदअन्ति / णीलुक्कन्ति च गुरु-गेहिणिं पि काम-वस-परिअलिआ // 8 // 9. महिलाण वसे-परिअल्लिऊण वोलन्त-हिरिअमिह पावा / अवसेहन्ति तिरिच्छीउ वि अवहरिउज्जल-विवेआ / / 9 / / जे णिरिणासिअ-मेरा वम्मह-वस-गा समं न णिवहन्ति / अहिपच्चुइआ नूणं ते मुहिआ कम्म-भूमिम्मि // 10 // 11. महिलाण पेम्म-संगयमागच्छन्तीण जो न अब्भिडइ / उम्मत्थइ नाण-सिरि तस्सब्भागच्छइ विवेओ // 11 // 12. न भवे पच्चागच्छइ अपलोट्टिअ-माणसो जुवइ-सङ्गे / पडिसाय-मणो परिसामिएहिँ कहिओवसम-मग्गो / / 12 / / 13. संखुड्डण-कुसलाणं उब्भावन्तीण के वि रमणीण / किलकिंचिअ-मोट्टाइअ-कोडुमिएहिं न खेड्डन्ति // 13 // 14. रममाणीओ रामा णीसरिणज्जं अवेल्लणिज्जं च / अग्घविअ-वम्महाओ की अग्घाडइ सिणेहेण // 14 // 15. मायाइ उद्धमाया अहिरोमिअ-तुच्छयाइ अङ्गमिआ / चवलत्तं-पूरिआओ को तुवरइ दटुमित्थीओ // 15 // 16. तूरन्ति अतूरन्तं पि हु जअडावन्ति तुरिअ-मयणाओ। अहह हलिद्दी-राया खिरन्त-सेएहिँ अङ्गेहिं // 16 // 17. पच्चडमाण-सरीरा झरन्त-खाल ब्व पज्झरिअ-रमणा / धीरा अणिड्डअन्ते वि णिच्चलावेइ ही महिला / / 17 / / 18. उत्थल्लिअ-परिफाडिअ-भेगोवम-रमणि-रमण-रमिराण / सत्ती विअलइ थिप्पड़ कन्ती बुद्धी अणिगृहइ // 18 // Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 31 कुमारपालचरितम् 19. तस्स विसट्टउ हिअयं सयहुत्तं दलउ बुद्धि-कोसल्लं / जो लिहइ वलिअ-भत्तं व वम्फि-लालं रमणि-अहरं // 19 / / 20. अणफुडिअ-इन्दवारण-रम्मा रामा अफिट्ट-कडुअत्ता। रे हिअय फुट्ट चुक्कसि किं मग्गा ताहि भुल्लविअं // 20 // 21. अब्भंसि-दूसिअच्छं अफिडिअ-कहमाणणं महेलाण / रच्चइ तत्थ वि मूढो नसिअ-मई णिवहिअ-विवेओ // 21 // 22. सेहइ सीलं पडिसन्ति धी-गुणा संजमो वि अवहरइ / .. णिरणासइ सुअमवसेहइ सच्चं जुवइ-सत्ताण // 22 // 23. ओवासइ न विवेओ थी-सङ्गे इअ गुरूहि संदिसि / अप्पाहामो ता तत्त-पिच्छिरो ताउ को निअइ // 23 // 24. जे भावि-पुलअणा भूअ-देक्खणा वट्टमाण-सच्चवणा / तेहि निअच्छि अ भणिअंमा इत्थीओ पुलोएह // 24 // 25. अवयच्छन्तो वि जणो नोअक्खड़ कामिणिं अवक्खन्तो / न गुरुं चज्जइ नन्नं पासइ जं तीइ पासत्थो // 25 // 26. असरीरिणमवअक्खइ अवआसइ सील-जाइ-रहिअंपि / अवयज्झिऊण तं पि हु जो इत्थि छिवह तस्स नमो // 26 // 27. फासिज्जइ कविकच्छू फंसिज्जइ अहव कुविअ-वग्घी वि / फरिसिज्जइ न उणेत्थी धम्म-सरीरं हणइ छिहिआ // 27 // 28. आलिहइ नरमणालुङ्खणिज्जमवि नीअ-रच्चणी नारी।। मूढाण रिअइ सा वि हु हिअए पविसन्त-कामम्मि / / 28 / / 29. नारीउ हिअय पम्हस मा ताओ पम्हसन्ति पर-लोअं / रोञ्चन्ति धम्म-बीजं न य रोहइ चड्डिअं तं च / / 29 / / Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 प्राकृत पाठ-चयनिका 30. णिरिणासिअ-मेरं णिरिणज्जिअ-हिरिअंच णिवहिअ-गुणं च / पीसिअ-सीलं नारिं भुक्किर-सुणई व को सिहइ // 30 // 31. विलयाहि असाअड्डिअ-हिअओ अणकटिओ अ विसएहिं / अञ्चिअ-निव्वाण-सिरी सो धन्नो थूलभद्द-मुणी // 31 // 32. कामेण करिसिअ-सरेणावि अणाइञ्छिओ अणच्छेड़ / मह मणमयञ्छिरेहिं गुणेहिं सिरि-थूलभद्द-मुणी // 32 // Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुमारपालचरितम् अष्टमः सर्गः कधिदे शुभोवदेशे शलश्शदीए तदो अपस्खलिदे / भव-कस्ट-गिम्ह-पदहण-विघस्टणे शुस्टु-मेघे व // 1 // 2. अदिशुस्तिदं निविस्टे चदुस्त-वग्गं विवय्यिद-कशाए / शावय्य-योग-लहिदे शाहू शाहदि अणज-मणे // 2 // 3. पुजे निशाद-पर्छ सुपञले यदि-पधेण वजन्ते / शयल-यय-वश्चलत्तं गश्चन्ते लहदि पलम-पदं // 3 // 4. श-पल-विव का-लहिदे पेस्कन्ते सव्वमोल्ल-दिस्टीए / मिद-पियमाचस्कन्ते चिष्ठदि मग्गम्मि मो कस्स // 4 // 5. एदस्स वधं कलिमो भत्तिं एदाह इदि मदी जाहँ / ताणं दोण्हं पि हगे हिदे त्ति बुद्धी पउद्दव्वा // 5 // 6. पान राचिञा गुन-निधिना रा अनञ-पुञ्जेन / चिन्तेतव्वं मतनाति-वेरिनो किल विजेतव्वा // 6 // 7. सुद्धाकसाय-हितपक-जित-करन-कुतुम्ब-चेसटो योगी / मुक्क-कुटुम्ब-सिनेहो न वलति गन्तून मुक्ख-पतं // 7 // Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 प्राकृत पाठ-चयनिका 8. यन्ति कसाया नत्थून यन्ति नळून सव्व-कम्माइं सम-सलिल-सिनातानं उज्झित-कत-कपट-भारयान // 8 // 9. यति अरिह-परम-मन्तो पढिय्यते कीरते न जीव-वधो / यातिस-तातिस-जाती ततो जनो निव्वुतिं याति // 9 // 10. अच्छति रन्ने सेले वि अच्छते दढ-तपं तपन्तो वि / ताव न लभेय्य मु.कं याव न विसयान तूरातो // 10 // 11. तूरातु नेन घेप्पति मुत्ति-सिरी नाइ योग-किरियाए / चत्तारि-मङ्गलं-पभुति-मन्तमुक्खोसमानेन / / 11 / / 12. वन्थू सठासठेसु वि आलम्पित-उपसमो अनालम्फो / सव्वञ्ज-लाच-चलने अनुझायन्तो हवति योगी // 12 // 13. झच्छर-डमरुक-भेरी-ढक्का -जीमत-गफिर-घोसा वि / बम्ह-नियोजितमप्पं जस्स न दोलिन्ति सो धो // 13 // 14. उब्भिय-बाह असारउ सव्वु वि म भमि कु-तिथिअ-पढें मुहिआ / परिहरि तृणु जिम् सव्वु वि भव-सुहु पुत्ता तुह मइ एउ कहिआ // 14 // गङ्गहे जॅम्वूणहें भीतरु मेल्लइ सरसइ-मज्झि हंसु जइ झिल्लइ / तय सो केत्थु वि रमइ पहुत्तउ / जित्थु ठाइ सो मोक्खु निरुत्तउ // 15 // 16. केण वि जोग-पओगेंण कह वि हु, घरि रुद्धे सव्वेहिँ वि वारिहिँ॥ जोअन्तहें वि निहेलण-नाहह, घर-सव्व-स्सु वि निज्जइ चोरेंहिं // 16 // Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुमारपालचरितम् 35 17. करणाभासहुँ मणु उत्तारहु, करणाभासेंहिँ मुक्खु न कसु हि वि / आसणु सयणु वि सव्वहों करणेंहिँ, करणहुँ मुक्खु तो निरु सव्वस्सु वि // 17 // 18. विसयहँ पर-वस मच्छहु मूढा बन्धुहुँ सहिहुँ वि घवलि छूढा / दुहुँ ससि-सूरिहिँ मणु संचारहु बन्धुहँ सहिहँ व वढ विणु सारहु // 18 // गिरिहें वि आणिउ पाणिउ पिज्जइ तरुहें वि निवडिउ फलु भक्खिज्जइ / गिरिहुँ व तरुहुँ व पडिअउ अच्छइ विसयहिँ तह वि विराउ न गच्छइ / / 19 / / 20. जइ हिम-गिरिहि चडेविणु निवडइ अह पयाय-तरुहि वि इक्क-मणु / निक्कइअवै विणु समयाचारॅण विणु मण-सुद्धिएँ लहइ न सिवु जणु / / 20 / / Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णायाधम्मकहाओ चउत्थं अज्झयणं - कुम्मे जति णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं णायाणं तच्चस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, चउत्थस्स णं णायाणं के अटे पण्णत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी होत्था, वण्णओ। तीसे णं वाणारसीए नयरीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे गंगाए महानदीए मयंगतीरबहे नाम दहे होत्था, अणुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजले अच्छविमलसलिलपलिच्छन्ने संछन्नपत्तपुप्फपलासे बहुउप्पलपउमकुमुयनलिणसुभगसोगंधियपुंडरीयमहापुंडरीयसयपत्तसहस्सपत्त-केसरपुप्फोवचिए! छप्पयपरिभुज्जमाणकमले अच्छविमलसलिलपत्थपुण्णे परिहत्थभमंतमच्छकच्छ-भअणेगसउणगणमिहुणपविचरिए! पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छभाण य गाहाण य मगराण य सुंसुमाराण य सइयाणि य साहस्सियाणि य सयसाहस्सियाणि य जूहाइं निब्भयाइं निरूव्विग्गाइं सहसहेणं अभिरममाणाई विहरंति। तस्स णं मयंगतीरदहस्स अदूरसामंते एत्थ णं महं एगे मालुयाकच्छए होत्था, वण्णओ। तत्थ णं दुवे पावसियालगा परिवसंति, पावा चंडा रोद्दा तल्लिच्छा साहसिया लोहितपाणी आमिसत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमि. सलोला आमिसं गवेसमाणा रत्ति-वियालचारिणो दिया पच्छण्णं यावि चिट्ठति। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णायाधम्मकहाओ 37 तते णं तातो मयंगतीरद्दहातो अन्नया कदाइ सूरियंसि चिरत्थमियंसि लुलियाए संझाए पविरलमाणुसंसि णिसंतपडिणिसंतंसि समाणंसि दुवे कुम्मगा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा सणियं उत्तरंति। तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं सव्वतो समंता परिघोलेमाणा परिघोलेमाणा वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। तयणंतरं च णं ते पावसियालगा आहारत्थी जाव आहारं गवेसमाणा मालुया-कच्छगाओ पडिनिक्खमंति, 2 त्ता जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छंति, 2 त्ता तस्सेव मयगंतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं परिघोलेमाणा परिघोलेमाणा वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। तते णं ते पावसियालया ते कम्मए पासंति, 2 सा जेणेव ते कुम्मए तेणेव पधारेत्थ गमणाए। तते णं ते कुम्मगा ते पावसियालए एज्जमाणे पासंति, 2 त्ता भीता तत्था तसिया उब्बिग्गा संजातभया हत्थे य पादे य गीवाओ य सएहिं 2 काएहिं साहरंति, 2 त्ता निच्चला निप्फंदा तुसिणीया संचिटुंति। तते णं ते पावसियालया जेणेव ते कुम्मगा तेणेव उवागच्छंति, 2 त्ता ते कुम्मगा सव्वतो समंता उव्वत्तेति परियत्तेति आसारेंति संसारंति चालेंति घटेंति फंदेंति खोभेति, नहेहिं आलुंपंति, दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसिं कम्मगाणं किंचि सरीरस्स आबाहं वा पबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेदं वा करेत्तए। तते णं ते पावसियालगा ते कुम्मए दोच्चं पि तच्चं पि सव्वतो समंता उव्वत्तेति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए। ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा सणियं सणियं पच्चोसक्केंति, 2 त्ता एगंतम -वक्कमंति, 2 निच्चला निप्फंदा तुसिणीया संचिट्ठति। तत्थ णं एगे कुम्मगे ते पावसियालए चिरगते दूरगए जाणित्ता सणियं सणियं एगं पायं निच्छुभति। तते णं ते पावसियाला तेणं कुम्मएणं सणियं सणियं एगं पायं निणियं पासंति, 2 त्ता सिग्धं चवलं तुरियं चंडं जतिणं वेगितं जेणेव से कुम्मए तेणेव उवागच्छंति, 2 तस्स णं कुम्मगस्स तं पायं नक्खेहिं आलुपंति, दंतेहिं अक्खोडेंति, ततो पच्छा मंसं च सोणियं च आहारेंति, 2 त्ता तं कुम्मगं सव्वतो समंता उव्वत्तेति जाव नो चेत्र णं संचाएंति करेत्तए Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 प्राकृत पाठ-चयनिका ताहे दोच्चं पि अवक्कमंति, एवं चत्तारि वि पाया जाव सणियं सणियं गीवं. णीणेति। तते णं ते पावसियालगा तेणं कुम्मएणं गीवं णीणियं पासंति, पासित्ता सिग्घं चवलं तुरियं चंडं जइणं वेइयं जाव नहेहिं दंतेहिं य कवालं विहाडेंति, 2 ता तं कुम्मगं जीवियाओ ववरोवेंति, 2 त्ता मंसं च सोणियं च आहारेंति। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरिय उवज्झायाणं अंतिए पव्वतिए समाणे, पंच य से इंदिया अगुत्ता भवंति से णं इह भवे चेव बहूणं समणाणं 4 हीलणिज्जे (निंदणिज्जे खिंसणिज्जे गरहणिज्जे परिभवणिज्जे), परलोगे वि य णं आगच्छति बहूणं दंडणाणं जाव अणुपरियट्टति, जहा व से कुम्मए अगुत्तिंदिए। तते णं ते पावसियालगा जेणेव से दोच्चए कुम्मए तेणेव उवगच्छंति, 2 तं कुम्मगं सव्वतो समंता उव्वत्तेति जाव दंतेहिं णिक्खुडेंति जाव नो चेव णं सक्का करेत्तए। तते णं ते पावसियालगा दोच्चं पि तंच्चं पि जाव नो संचाएंतिं तस्स .. कुम्मगस्स किंचि आबाहं वा पबाहं वा जाव छविच्छेदं वा करेत्तए। ताहे संता तंता परितंता निविण्णा समाणा जामेव दिसं पाउब्भूता तामेव दिसं पडिगया। तते णं से कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरगए जाणित्ता सणियं सणियं. गीवं नीति, 2 दिसावलोयं करेति, 2 त्ता जमगसमगं चत्तारि वि पादे नीणेति, 2 ताए उक्किट्ठाए कुम्मगतीए वीतीवयमाणे वीतीवयमाणे जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छति, 2 त्ता मित्त-णाति-नियग-सयण-संबंधिपरिजणेण सद्धिं अभिसमन्नागए यावि होत्था। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं समणो वा समणी वा पंच य से इंदियाई गुत्ताइं भवंति जाव जहा व से कुम्मए गुत्तिंदिए। एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि॥ // चउत्थं णायज्झयणं सम्मत्तं // 4 // Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासकदशासूत्र सत्तमं सद्दालपुत्तज्झयणं // उक्खेवो // पोलासपुरे नाम नयरे। सहस्सम्बवणे उज्जाणे। जियसत्तू राया // 180 // तत्थ णं पोलासपुरे नयरे सद्दालपुत्ते नाम कुम्भकारे आजीविओवासए परिवसइ। आजीवियसमयंसि लद्धटे गहियटे पुच्छियटे विणिच्छियटे अभिगयटे अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते य 'अयमाउसो आजीवियसमए अद्वे अयं परमटे सेसे अणद्वे' त्ति आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ // 181 // तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का हिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एक्का वड्विपउत्ता एक्का पवित्थरपउत्ता एक्के वए दसगोहासस्सिएणं वएणं // 182 // तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स अग्गिमित्ता नाम भारिया होत्था // 183 // .. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया पञ्च कुम्भकारावणसया होत्था। तत्थ णं बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लि बहवे करए य वारए य पिहडए य घडए य अद्धघडए य कलसए य अलिञ्जरए य जम्बूलए य उट्टियाओ य करेन्ति, अन्ने य से बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लि तेहिं बहूहिं करएहि य जाव उट्टियाहि य Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 प्राकृत पाठ-चयनिका रायमग्गंसि वित्तिं कप्पेमाणा विहरन्ति // 184 / / तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नया कयाइ पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, २त्ता गोसालस्स मङ्खलिपुत्तस्स अन्तियं धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ // 185 // तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एगे देवे अन्तियं पाउब्भवित्था // 186 // तए णं से देवे अन्तलिक्खपडिवन्ने सखिंखिणियाई जाव परिहिए सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी। “एहिइ णं, देवाणुप्पिया, कल्लं इहं महामाहणे उप्पन्नणाणदंसणधरे तीयपडुपन्न-मणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कवहियमहियपूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे वन्दणिज्जे सक्कारणिज्जे संमाणणिज्जे कल्लाणं मङ्ग लं देवयं चेइयं जाव पज्जुवासणिज्जे तच्चकम्मसंपयासंपउत्ते। तं णं तुमं वन्देज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि, पाडिहारिएणं पीढफलगसिज्जासंथारएणं उवनिमन्तेज्जाहि"॥दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयइ, २त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए // 187 // तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तेणं देवेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए 4 समुप्पन्ने। “एवं खलु ममं धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मङ्खलिपुत्ते, से णं महामाहणे उप्पन्नणाणदसणधरे जाव तच्चकम्मसंपयासंपउत्ते, से णं कल्लं इहं हव्वमागच्छिस्सइ। तए णं तं अहं वन्दिस्सामि जाव पज्जुवासिस्सामि पाडिहारिएणं जाव उवनिमन्तिस्सामि" // 188 // तए णं कल्लं जाव जलन्ते समणे भगवं महावीरे जाव समोसरिए। परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ // 189 // तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए इमीसे कहाए लद्धढे समाणे, “एवं खलु समणे भगवं महावीरे जाव विहरइ, तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासकदशासूत्र 741 वन्दामि जाव पज्जुवासामि", एवं संपेहेइ, 2 त्ता ण्हाए जाव पायच्छित्ते सुद्ध प्पावेसाइं जाव अप्पमहग्घा-भरणालंकियसरीरे मणुस्सवग्गुरापरिगए साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, २त्ता पोलासपुरं नयरं मज्झमझेणं निग्गच्छइ, 2 त्ता जेणेव सहस्सम्बवणे उज्जाणे जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २त्ता तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, 2 त्ता वन्दइ नमसइ, 2 त्ता जाव पज्जुवासइ // 19 // तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तीसे य महइ जाव धम्मकहा समत्ता // 191 // - "सद्दालपुत्ता" इ समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी। ‘से नूणं, सद्दालपुत्ता, कल्लं तुमं पुव्वावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया जाव विहरसि। तए णं तुब्भं एगे देवे अन्तियं पाउब्भवित्था। तए णं से देवे अन्तलिक्खपडिवन्ने एवं वयासी। "हं भो सद्दालपुत्ता," तं चेव सव्वं जाव "पज्जुवासिस्सामि"। से नूणं, सद्दालपुत्ता, अद्वे समढे?" // "हंता, अत्थि" // “नो खलु, सद्दालपुत्ता, तेणं देवेणं गोसालं मङ्खलिपुत्तं पणिहाय एवं वुत्ते"॥१९२॥ तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासयस्स समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए 4 / “एस णं समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पन्नणाण-दंसणधरे जाव तच्चकम्मसंपयासंपउत्ते। तं सेयं खलु ममं समणं भगवं महावीरं वन्दित्ता नमंसित्त। पाडिहारिएणं पीढफलग जाव उवनिमन्तित्तए" एवं संपेहेइ, 2 त्ता उट्ठाए उद्वेइ, 2 त्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, 2 त्ता एवं वयासी। एवं खलु, भन्ते, ममं पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया पञ्च कुम्भकारावणसया। तत्थ णं तुब्भे पाडिहारियं पीढ जाव संथारयं ओगिण्हित्ताणं विहरइ" // 193 // तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एयम₹ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 प्राकृत पाठ-चयनिका पडिसुणेइ, 2 त्ता सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स पञ्चकुम्भकारावणसएसु फासुएसणिज्जं पाडिहारियं पीढफलग जाव संथारयं ओगिण्हित्ताणं विहरइ // 194 // तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नया कयाइ वायाहययं कोलालभण्डं अनतो सालाहिंतो बहिया नीणेइ, 2 त्ता आयवंसि दलयइ // 195 // तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी। "सद्दालपुत्ता, एस णं कोलालभण्डे कओ?" // 196 // तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी। "एस णं, भन्ते, पुब्बिं मट्टियाआसी, तओ पच्छा उदएणं निमिज्जइ, 2 ता छारेण य करिसेण य एगयओ मीसिज्जइ, 2 त्ता चक्के आरोहिज्जइ; तओ बहवे करगा य जाव उट्टियाओ य कज्जन्ति" // 197 // तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी। "सद्दालपुत्ता, एस णं कोलालभण्डे किं उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कारपरक्कमेणं कज्जन्ति, उदाहु अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं कज्जन्ति?" // 198 // तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी। "भन्ते, अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं, नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव परक्कमे इ वा, नियया सव्वभावा" // 199 // तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी। "सद्दालपुत्ता, जइ णं तुब्भं केइ पुरिसे वायाहयं वा पक्केल्लयं वा कोलालभण्डं अवहरेज्जा वा विक्खिरेज्जा वा भिन्देज्जा वा अच्छिन्देज्जा वा परिट्ठवेज्जा वा अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुञ्जमाणे विहरेज्जा, तस्स णं तुमं पुरिसस्स किं दण्डं वत्तेज्जासि?" "भन्ते, अहं णं तं पुरिसं आओसेज्जा वा हणेज्जा वा बन्धेज्जा वा महेज्जा वा तज्जेज्जा वा तालेज्जा वा निच्छोडेज्जा वा निब्भच्छेज्जा वा अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेज्जा" // Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासकदशासूत्र 43 “सद्दालपुत्ता, नो खलु तुब्भं केइ पुरिसे वायाहयं वा पक्केल्लयं वा कोलालभण्डं अवहरइ वा जाव परिट्टवेइ वा अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धिं विउलाई भोगभोगाइं भुञ्जमाणे विहरइ। नो वा तुमं तं पुरिसं आओसेज्जसि वा हणेज्जसि वा जाव अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेज्जसि। जइ नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव परक्कमे इ वा, नियया सव्वभावा। अह णं, तुब्भं केइ पुरिसे वायाहयं जीव परिढेवेइ वा अग्गिमित्ताए वा जाव विहरइ, तुमं वा तं पुरिसं आओसेसि वा जावं ववरोवेसि। तो जं वदसि नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव नियया सव्वभावा, तं ते मिच्छा" // 20 // ... एत्थ णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए संबुद्धे // 201 // तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, 2 त्ता एवं वयासी। "इच्छामि णं, भन्ते, तुब्भं अन्तिए धम्मं निसामेत्तए" // 202 // तए णं समणं भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स तीसे य जाव धम्म परिकहेइ // 203 // . तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ जाव हियए जहा आणन्दो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ। नवरं एगा हिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगा हिरण्णकोडी वड्डिपउत्ता एगा हिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता एगे वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं जाव समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, 2 त्ता जेणेव पोलासपुरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, 2 त्ता पोलासपुरं नयरं मझमज्झेणं जेणेव सए गिहे, जेणेव अग्गिमित्ता भारिया, तेणेव उवागच्छइ, 2 त्ता अग्गिमित्तं भारियं एवं वयासी। “एवं खलु, देवाणुप्पिए, समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे, तं गच्छाहि णं तुम समणं भगवं महावीरं वन्दाहि जाव पज्जुवासाहि, समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जाहि" // 204 // तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया सद्दालपुत्तस्स समणोवासगस्स "तह" त्ति एयमटुं विणएण पडिसुणेइ // 205 // Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44 प्राकृत पाठ-चयनिका तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ, 2 त्ता एवं वयासी। "खिप्यामेव, भो देवाणुप्पिया, लहुकरणजुत्तजोइयं समखुरवालिहाणसमलिहियसिङ्गएहिं जम्बूणयामयकला- वजोत्तपइविसिट्ठएहिं रययामयघण्टसुत्तरज्जुगवरकञ्चणखइयनत्थापग्गहोग्गहियएहिं नीलुप्पलकया-मेल्लएहिं पवरगोणजुवाणएहिं नाणामणिकणगघण्टियाजालपरिगयं सुजायजुगजुत्तउज्जुगपसत्थ-सुविरइयनिम्मियं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेह, 2 त्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह // 206 // तए णं ते कोडुम्बियपुरिसा जाव पच्चप्पिणन्ति // 207 // तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया ण्हाया जाव पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई जाव अप्पमहग्या-भरणालंकियसरीरा चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा धम्मियं / जाणप्पवरं दुरुहइ, 2 त्ता पोलासपुर नगरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, 2 त्ता , जेणेव सहस्सम्बवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, 2 त्ता धम्मियाओ जाणाओ पच्चोरुहइ, 2 त्ता चेडियाचक्कवालपरिवुडा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २त्ता तिक्खुत्तो जाव वन्दइ नमसइ, 2 त्ता नच्चासन्ने नाइदूरे जाव पञ्जलिउडा ठिइया चेव पज्जुवासइ // 208 // तए णं समणे भगवं महावीरे अग्गिमित्ताए तीसे य जाव धम्मं कहेइ // 209 // तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, 2 त्ता एवं वयासी। “सद्दहामि णं, भन्ते, निग्गन्थं पावयणं जाव से जहेयं तुब्मे वयह। जहा णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए बहवे उग्गा भोगा जाव पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि देवाणुप्पियाणं अन्तिए मुण्डा भवित्ता जाव। अहं णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए पञ्चाणुवइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि। . अहासुहं, देवाणुप्पिया, मा पडिबन्धं करेह" // 210 // तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवाल सविहं सावगधम्म पडिवज्जइ, 2 त्ता Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासकदशासूत्र 45 समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २त्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, 2 त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया // 211 // तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ पोलासपुराओ सहस्सम्बवणाओ पडिनिग्गच्छइ, 2 त्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ // 212 // . तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ // 213 // ____ तए णं से गोसाले मङ्खलिपुत्ते इमीसे कहाए लद्धढे समाणे, “एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं निग्गन्थाणं दिढेि पडिवन्ने। तं गच्छामि णं सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं समणाणं निग्गन्थाणं दिट्टि वामेत्ता पुणरवि आजीवियदिढिं गेण्हावित्तए" त्ति कट्ट एवं संपेहेइ, २त्ता आजीवियसंघपरिवुडे जेणेव पोलासपुरे नयरे, जेणेव आजीवियसभा, तेणेव उवागच्छइ, 2 त्ता कइवएहिं आजीविएहिं सद्धिं जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छइ // 214 // तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मङ्खलिपुत्तं एज्जमाणं पासइ, . 2 ता नो आढाइ नो परिजाणइ, अणाढायमाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ // 215 // तए णं से गोसाले मङ्कलिपुत्ते सद्दालपुत्तेणं समणोवासएणं अणाढाइज्जमाणे, अपरिजाणिज्ज-माणे पीढफलगसिज्जासंथारट्ठाए समणस्स भगवओ महावीरस्स गुणकित्तणं करेमाणे सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी। “आगए णं, देवाणुप्पिया, इहं महामाहणे" // 216 // .. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मङ्खलिपुत्तं एवं वयासी। "के णं, देवाणुप्पिया, महामाहणे?" // 217 // तए णं से गोसाले मङ्कलिपुत्ते सहालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी। "समणे भगवं महावीरे महामाहणे" // "से केणटेणं, देवाणुप्पिया, एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे महामाहणे?" Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 में प्राकृत पाठ-चयनिका ___“एवं खलु, सद्दालपुत्ता, समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पन्नणाणदंसणधरे जाव महियपूइए जाव तच्चकम्मसंपयासंपउत्ते। से तेणद्वेणं, देवाणुप्पिया, एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे महामाहणे। आगए णं, देवाणुप्पिया, इहं महागोवे" // “के णं, देवाणुप्पिया महागोवे?" "समणे भगवं महावीरे महागोवे" // “से केणद्वेणं, देवाणुप्पिया जाव महागोवे?" “एवं खलु, देवाणुप्पिया, समणे भगवं महावीरे संसाराडवीए बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलुप्पमाणे धम्ममएणं दण्डेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे, निव्वाणमहावाडं साहत्थिं संपावेइ। से तेण?णं, सद्दालपुत्ता, एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे महागोवे। आगए णं, देवाणुप्पिया, इहं महासत्थ वाहे"। "के णं, देवाणुप्पिया, महासत्थवाहे?" “सद्दालपुत्ता, समणे भगवं महावीरे-महासत्थवाहे" // “से केणद्वेणं?" “एवं खलु, देवाणुप्पिया, समणे भगवं महावीरे संसाराडवीए बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे जाव विलुप्पमाणे धम्ममएणं पन्थेणं सारक्खमाणे निव्वाणमहापट्टणाभिमुहे साहत्थिं संपावेइ। से तेणटेणं, सद्दालपुत्ता, एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे। आगए णं, देवाणुप्पिया, इहं महाधम्मकही" // "के णं, देवाणुप्पिया, महाधम्मकही?" "समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही" // "से केणटेणं समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही?". "एवं खल, देवाणुप्पिया, समणे भगवं महावीरे महइमहालयंसि संसारंसि बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे उम्मग्गपडिवन्ने सप्पहविप्पणद्वे Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासकदशासूत्र में 47 मिच्छत्तबलाभिभूए अट्ठ-विहकम्मतमपडलपडोच्छन्ने बहूहिं अटेहि य जाव वागरणेहि य चाउरन्ताओ संसारकन्ताराओ साहत्थिं नित्थारेइ। से तेणटेणं, देवाणुप्पिया, एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही। आगए णं, देवाणुप्पिया, इहं महानिज्जामए"॥ “के णं, देवाणुप्पिया, महानिज्जामए?" * “समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए" // “से केणद्वेण?" “एवं खलु, देवाणुप्पिया, समणे भगवं महावीरे संसारमहासमुद्दे बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे बुड्डमाणे निबुड्डमाणे उप्पियमाणे धम्ममईए नावाए निव्वाण- तीराभिमुहे साहत्थिं संपावेइ। से तेणद्वेणं, देवाणुप्पिया, एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए" // 218 // ___ तण णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मङ्गुलिपुत्तं एवं वयासी। "तुब्भे णं, देवाणुप्पिया, इयच्छेया जाव इयनिउणा इयनयवादी इयउवएसलद्धा इयविण्णाणपत्ता, पभू णं तुब्भे मम धम्मायरिएणं धम्मोवएसएणं भगवया महावीरेणं सद्धिं विवादं करेत्तए?" “नो इणढे समढे” “से केणटेणं, देवाणुप्पिया, एवं वुच्चइ नो खलु पभू तुब्भे मम धम्मायरियणं जाव महावीरेणं सद्धिं विवादं करेत्तए?"॥ __ "सद्दालपुत्ता, से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे जुगवं जाव निउणसिप्पोवगए एगं महं अयं वा एलयं वा सूयरं वा कुक्कडं वा तित्तिरं वा वट्टयं वा लावयं वा कवोयं वा कविञ्जलं वा वायसं वा सेणयं वा हत्थंसि वा पायंसि वा खुरंसि वा पुच्छंसि वा पिच्छंसि वा सिङ्गसि वा विसाणंसि वा रोमंसि वा जहिं जहिं गिण्हइ, तहिं तहिं निच्चलं निप्पंदं धरेइ। एवामेव समणे भगवं महावीरे मम बहूहिं अद्वेहि य हेऊहि य जाव वागरणेहि य जहिं जहिं गिण्हड, तहिं तहिं निप्पट्टपसिणवागरणं करेइ। से तेणटेणं, सद्दालपुत्ता, एवं वुच्चइ नो खलु पभू Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 + प्राकृत पाठ-चयनिका अहं तव धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं सद्धिं विवादं करेत्तए" // 219 // तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मङ्खलिपुत्तं एवं वयासी। "जम्हा णं, देवाणुप्पिया, तुब्भे मम धम्मायरियस्स जाव महावीरस्स सन्तेहिं तच्चेहिं तहिएहिं सब्भूएहिं भावेहिं गुणकित्तणं करेह, तम्हा णं अहं तुब्भे पाडिहारिएणं पीढ जाव संथारएणं उवनिमन्तेमि। नो चेव णं धम्मो त्ति वा तवो त्ति वा। तं गच्छह णं तुब्भे ममकुम्भारावणेसु पाडिहारियं पीढफलग जाव ओगिण्हित्ताणं विहरह" // 220 // तए णं से गोसाले मङ्खलिपुत्ते सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स एयमटुं पडिसुणेइ, 2 त्ता कुम्भारावणेसु पाडिहारियं पीढ जाव ओगिण्हित्ताणं विहरइ // 221 // तए णं से गोसाले मङ्खलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासगं जाहे नो संचाएइ बहूहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवण्णाहि य निग्गन्थाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे सन्ते तन्ते परितन्ते पोलासपुराओ नयराओ पडिणिक्खमइ, 2 त्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ // 222 // तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील जाव भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कन्ता। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अन्तरा वट्टमाणस्स पुव्वरत्ता- वरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तियं धम्मपण्णत्तिं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ // 223 // तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अन्तियं पाउब्भवित्था // 224 // तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल जाव असिंगहाय सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी। जहा चुलणीपियस्स तहेव देवो उवसग्गं करेइ। नवरं एक्केक्के पुत्ते नव मंससोल्लए करेइ। जाव कणीयसं घाएइ, 2 त्ता जाव आयञ्चइ // 225 // तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए अभीए जाव विहरइ // 226 / / Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासकदशासूत्र 49 तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव पासित्ता चउत्थं पि सद्दालपुत्तं समणो-वासयं एवं वयासी। "हं भो सद्दालपुत्ता, समणोवासया, अपत्थियपत्थिया जाव न भञ्जसि, तओ ते जा इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरत्ता समसुहदुक्खसहाइया, तं ते साओ गिहाओ नीणेमि, २त्ता तव अग्गओ घाएमि, 2 त्ता नव मंससोल्लए करेमि, २त्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, २त्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आयञ्चामि, जहा णं तुमं अट्टदुहट्ट जाव ववरो- विज्जस्सि // 227 // तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ // 228 // तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी। "हं भो सद्दालपुत्ता समणोवासया," तं चेव भणइ // 229 // तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्तस्स समाणस्स अयं अज्झथिए 4 समुप्पन्ने। एवं जहा चुलणीपिया तहेव चिन्तेइ। “जेणं ममं जेटुं पुत्तं, जेणं ममं मज्झिमयं पुत्तं, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं जाव आयञ्चइ, जा वि य णं ममं इमा अग्गिमित्ता भारिया समसुदुक्खसहाइया, तं पि य इच्छइ साओ गिहाओ नीणेत्ता ममं अग्गओ घाएत्तए। तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए" त्ति कट्ट उट्ठाइए जहा चुलणीपिया तहेव सव्वं भाणियव्वं। नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहलं सुणित्ता भणइ। सेसं जहा चुलणीपिया वत्तव्वया नवरं अरुणच्चए विमाणे उववन्ने जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ // 230 // ॥निक्खेवो॥ सत्तमं सद्दालपुत्तज्झयणं समत्तं॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिण्डी बीओ सामलीलंभो ततो अहं ताओ वीसंभेऊण एगागी निग्गओ, मग्गं मोत्तूण दूरमइवइओ उत्तरदिसिं। हिमवंतपव्वयं पस्समाणो य पुव्वदेसं गंतुमणो कुंजरावत्तं अडविं पविट्ठो। महंतमद्धाणमइवाहेऊण परिस्संतो तिसिओ य एगं सरं पत्तो विगयपंक पंकयसंछण्णतोयं वारिचरविहगमणहरभणियं। चिंतियं मया - अहं परिस्संतो जड़ तण्हावसेण उदगं पाहामि तो मे अपरिट्ठिओ मारुओ सरीरे दोसं उप्पाएज्जा। वीसमामि ताव मुहुत्तं, सिणाओ पाणियं पाहिं (हं) ति। एयम्मि अंतरे हत्थिजूहं कालमेहवंद्रमिव पाणियं पाउकामं सरमवइण्णं, कमेण पीओदगं उत्तिण्णं। अहमवि मज्जिउं पवत्तो। जूहवई य कणेरुपट्टिओ ईसिंमदजलदी-समाणसुरभिकपोलदेसो सरमवइण्णो। निव्वण्णिओ य मया उत्तमभद्दलक्ख-णोववेओ। सो गंधहत्थी गंधमणुसरंतो ममं अणुवइउमारद्धो। चिंतिअंच मे-जले ण तीरिहिति गओ जोहेउं। एस उत्तमो आसपणे पत्तो विहेओ होहिति। तओ उत्तिण्णो मि। सो वि मे पच्छओ लग्गो। मया य करमग्गं वंचेऊणं गत्ते अफालिओ, सिग्घयाए य णं वंचामि। सो मं सुकुमालयाए कायगरुयाए य ण संचाएइ गहेउं। तहिं तहिं चेव मया छगलो विव भामिओ। परिस्संतं च जाणिऊण उत्तरीयं से पुरओ खित्तं, तम्मि निसण्णो। अहमवि अभीओ महागयस्स दंते पायं काऊण आरूढो तुरियं। पत्तासणस्स य सुसीसो इव Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसुदेवहिण्डी 51 विधेओ जाओ, उत्तरीयं च गिण्हाविओ, वाहेमि णं जहिच्छं ति। ___ गहिओ य मि आकासत्थिएहिं दोहिं वि पुरसेहिं बाहासु समगं उक्खित्तो, णिंति णं गगणपहेण कहिं पि। चिंतियं च मया - एए ममाओ किं मण्णे अहिया ऊण? त्ति। दिट्टा य दिढेि साहरंति, ततो 'ऊण' त्ति मे ठियं। सदयं च वÉति ‘साणुकंप' त्ति संभाविया। उप्पण्णा मे बुद्धी - जइ मंगुलं काहिंति तो णे विवाडिस्सं, अलं चावल्लेण। आरुहिओ मि तेहिं पव्वयं, उज्जाणे णिक्खित्तो, पणया य नामाणि साधेऊण - पवणवेग-ऽच्चिमालिणो अम्हे त्ति। तओ दुतमवक्कंता। सामलीपरिचओ मुहुत्तंतरेण य इत्थिगा मज्झिमे वए पवत्तमाणी सित-सुहुम-दुगुल्लपरिधाणुत्तरीया आगया, पणया य नाम साहिऊण-अहं मत्तकोकिला रणो असणिवेगस्स दुहियाए सामलियाए विज्जाहरकण्णाए बाहिरिया पडिहारी। सुणह देव ! - राइणो संदेसेणं सचिवेहिं पवणवेग-ऽच्चिमालीहिं आणित त्थ। रण्णो दुहिया सामली नाम माहवमा-ससंझाकुवलयसामा लक्खणपाढग-पसंसियसुपइट्ठियसभावरत्ततला, तलाऽणुपुव्ववट्टियंगुलीतंबनहपायजुयला, दुव्विभावणीय-पिंडिय-वट्ट-सुकुमालगूढरोमजंघा, पीणसनाहित कतलीखंभसन्निभोरू, पीवरथिरनितंबदेसपिहुलसोणी, दाहिणावत्तनाही, मंडलग्गयतणुकसिणरोमराईपरिमंडियकरमितमज्झा, पीणुण्णयहारहसिरहितयहर-संहितपओहरा, गूढसंधिदेससण्णिभूसणमाणसंगयबाहुलतिका, चामर-मीणा-ऽऽयपत्तसुविभत्तपाणिलेहा, रयणावलिसमुचितकंबुकंधरा, पयोोरपडलविणिग्गयपुण्णचंदसोमवदणचंदा, रत्तंतधवलकसिण-मज्झनयणा, बिंबफलोवमरमणिज्जाऽधररूवगा, कुंडलोवभोगजोगसंगयसवणा, उण्णयपसत्थनासावंसा, सवणमणसुभगमहरभणिया, परिजणनयणभमरपिज्जमाणलायण्णरस त्ति। तुम्हं राया दाउकामो, मा ऊसुगा होह। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 प्राकृत पाठ-चयनिका तत्थ य वावी आसण्णा, खारका य आकासेणं तं वाविं उयरंति। मया चिंतियं- किं मण्णे सिरीसिवा विज्जाहरी होज्जा, जओ इमा खारका आकासेणं वच्चंति। मत्तकोकिला य मम आकूयं जाणिऊण भणइ - देव ! न एस खारका विज्जाहरी। सुणध कारणं - एसा वावी झरिम-पिट्ट-पत्थपाणिया 'मा चउप्पयगम्मा होहिति' त्ति फलिहसोमाणा कया। जइ य पाणियं पाउं अहिलसह तो उयारेमि ते। मया 'आम' ति भणियं। ततो हं तीए समगं तं सोमाणवीहिं उइण्णो वाविं। पीयं मया पियवयणामयमिव मधुरं गुरुवयणमिव पत्थं तिसिएणं पाणियं। उत्तिण्णो मि। आगओ परियणो रायसंदेसेणं ण्हाणविहि-वत्था-ऽऽभरणाणि य गहेऊणं। णयरदुवारे य कलहंसी नाम अब्भंतरपडिहारी, तीए ण्हविओ सपरियणाए, अलंकिओ पविट्ठो नयरं जणेण य पसंसिज्जमाणो। दिवो मया राया असणिवेगो, कओ य से पणिवाओ। तेणं अब्भुढेऊणं 'सुसागयं' ति भणंतेणं अद्धासणे निवेसाविओ। सोहणे मुहुत्ते दिट्ठा मया सामली रायकण्णा जहाकहिया मत्तकोकिलाए। तीए वि तुटेण राइणा पाणिं गाहिओ विहीए, पविट्ठो गब्भागारं। वत्तेसु य कोउगेसु विरहे मं सामली विण्णवेइ-अज्जउत्त ! विण्णवेमि, देहि मे वरं। मया भणिया-पिये ! विण्णवेयव्वा, जं तुमं विण्णवेसि सो ममं पसाओ। सा भणइ-अविप्पओगं तुब्भेहिं समं इच्छामि त्ति। मया भणियाएस मज्झं वरो न तुज्झं ति। सा भणइ-कारणं सुणह Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलदेव-कहा . -- Jacobi's Selected Narratives अत्थि उज्जेणी नयरी। तीए य असेसकलाकुसलो अणेगविन्नाणनिउणो उदारचित्तो कयन्नू पडिवन्नसूरो गुणाणुराई पियंवओ दक्खो रूव-लावन्न-तारुन्नकलिओ मूलदेवो नाम रायपुत्तो पाडलिपुत्ताओ जूयवसणासत्तो जणगावमाणेण पुहविपरित्भमंतो समागओ। तत्थ गुलियापओगेण परावत्तियवेसो वामणयागारो विम्हावेइ विचित्तकहाहिं गंधव्वाइकलाहिं णाणाकोउगेहि य णायरजणं। पसिद्धो जाओ। अत्थि य तत्थ रूवलावन्नविन्नाणगव्विया देवदत्ता नाम पहाणगणिया। सुयं च तेण-न रंजिज्जइ एसा केणइ सामन्नपुरिसेण अत्तगव्विया। तओ कोउगेण तीए खोहणत्थं पच्चूससमए आसन्नत्थेण आढत्तं सुमहुररवं बहुभंगिघोलिरकंठं अन्नन्नवन्नसंवेहरमणिज्जं गंधव्वं। सुयं च तं देवदत्ताए, चिंतियं च-अहो! अउव्वा वाणी, ता दिव्वो एस कोइ, न मणुस्समेत्ते। गवेसाविओ चेडीहिं। गविट्ठो, दिट्ठो मूलदेवो वामणरूवो। साहियं जहट्ठियमेईए। पेसिया तीए तस्स वाहरणत्थं माहवाभिहाणा खुज्जचेडी। गंतूण विणयपुव्वयं भणिओ तीए-भो महासत्त ! अम्ह सामिणी देवदत्ता विन्नवेइ-कुणह पसायं, एह अम्ह घरं। तेण वियड्याए भणियं-न पओयणं मे गणियाजणसंगण, निवारिओ विसिट्ठाण वेसासंयोगो। भणियं च - Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 प्राकृत पाठ-चयनिका या विचित्रविटकोटिनिघृष्टा, मद्यमांसनिरताऽतिनिकृष्टा। कोमला वचसि चेतसि दुष्टा, तां भजन्ति गणिकां न विशिष्टाः // 1 // योपतापनपराऽग्निशिखेव, चित्तमोहनकरी मदिरेव। देहदारणकरी क्षुरिकेव, गर्हिता हि गणिका सलिकेव // 2 // अओ नत्थि मे गमणाभिलासो। तीए वि अणेगाहिं भणिइभंगीहिं आराहिऊण चित्तं महानिव्वंधेण करे घेत्तूण नीओ घरं। वच्चंतेण य सा खुज्जा कलाकोसल्लेण य विज्जापओगेण य अप्फालिऊण कया पउणा। विम्हयक्खित्तमणाए पवेसिओ सो भवणे। दिट्ठो देवदत्ताए वामरूवो अज्वलावन्नधारी। विम्हियाए देवदत्ताए दवावियमासणं। निसन्नो य सो। दिन्नो तंवोलो। दंसियं च माहवीए अत्तणो रूवं, कहिओ य वइयरो। सुट्ट्यरं विम्हिया। पारद्धो आलावो महुराहिं वियड्डभणिईहिं। आगरिसियं च तेण तीए हिययं। भणियं च -अणुणयकुसलं परिहासपेसलं लडहवाणिदुल्ललियं। आलवणं पि ह छयाण कम्मणं किं च मूलीहि? // 1 // एत्थंतरे आगओ तत्थेगो वीणावायगो। वाइया तेण वीणा। रंजिया देवदत्ता। भणियं च-साहु भो वीणावायग! साहु सोहणा ते कला। मूलदेवेण भणियं-अहो! अइनिउणो उज्जेणीजणो जाणइ सुंदरासुंदरविसेसं। देवदत्ताए भणियं-भो! किमेत्थ खूणं? तेण भणियं-वंसो चेव असुद्धो, सगठभा य तंती। तीए भणियं-कहं जाणिज्जइ ? दंसेमि अहं। समप्पिया वीणा। कड्डिओ वंसाओ पाहणगो। तंतीए वालो समारिऊण वाइउं पयत्तो। कया पराहीणमाणसा सपरियणा देवदत्ता। पच्चासन्ने करेणुया सया रवणसीला आसि, सा वि ठिया घुम्मंती ओलंवियकन्ना। अईव विम्हिया देवदत्ता वीणावायगो य। चिंतियं च-अहो ! पच्छन्नवेसो विस्सकम्मा एस। पूइऊण तीए पेसिओ वीणावायगो। आगया भोयणवेला। भणियं देवदत्ताए-वाहरह अंगमद्दयं जेण दो वि अम्हे मज्जामो। मूलदेवेण भणियं-अणुमन्नह, अहं चेव करेमि तुम्ह अब्भंगणकम्म। किमेयं पि जाणासि? Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलदेव-कहा 55 ण याणामि सम्मं परं ठिओ जाणगाण सयासे। आणियं चंपगतेल्लं। आढत्तो अब्भंगिउं। कया पराहीणमणा। चिंतियं च णाए-अहो विन्नाणाइसओ, अहो! अउव्वो करयलफासो, ता भवियव्वं केणइ इमिणा सिद्धपुरिसेण पच्छन्नरूवेण, न पयईए एवंरूवस्स इमो पगरिसो त्ति, ता पयडीकरावेमि रूवं। निवडिया चलणेसु, भणिओ य-भो महाणुभाव ! असरिसगुणेहिं चेव नाओ उत्तमपुरिसो पडिंवन्नवच्छलो दक्खिन्नपहाणो य तुमं, ता दंसेहि में अत्ताणयं, बाढं उक्कंठियं तुह दंसणस्स मे हिययं ति। ___ मूलदेवेण पुणो पुणो निव्वंधे कए ईसिं हसिऊण अवणीया वेसपरावत्तिणी गुलिया। जाओ सहावत्थो। दिट्ठो दिणनाहो व्व दिप्पंततेओ अणंगो व्व मोहयंतो रूवेणं सवलजणं नवजोव्वणलावन्न संपुन्नदेहो। हरिसवसुब्भिन्नरोमंचा पुणो निवडिया चलणेसु, भणियं च-महापसाओ त्ति अब्भंगिओ सहत्थेहि। मज्जियाइं दो वि जिमियाई महाविभूईए, परिहाविओ देवदूसे, ठियाइं विसिट्ठगोट्ठीए। भणियं च तीए-महाभाग! तुमं मोत्तूण ण केणइ अणुरंजियं में अवरपुरिसेण माणसं, ता सच्चमेयं-नयणेहिं को न दीसइ? केण समाणं न होंति उल्लावा? हिययाणंदं जं पुण, जणेइ तं माणुसं विरलं ॥१॥ता ममाणुरोहेण एत्थ घरे निच्चमेवागंतव्वं। मूलदेवेण भणियंगुणराइणि! अन्नदेसिएसु निद्धणेसु य अम्हारिसेसु न रेहए पडिबंधो, न य थिरीहवइ, पाएण सव्वस्स वि कज्जवसेण चेव नेहो। भणियं च-वृक्षं क्षीणफलं त्यजन्ति विहगाः शुष्कं सरः सारसाः, पुप्पं पर्युषितं त्यजन्ति मधुपा दग्धं बनान्तं मृगाः। निर्द्रव्यं पुरुषं त्यजन्ति गणिका भ्रष्टं नृपं सेवकाः, सर्वः कार्यवशाज्जनोऽभिरमते कः कस्य को वल्लभः? // 1 // . तीए भणियं-सदेसो परदेसो वा अकारणं सप्पुरिसाणं। भणियं चजलहिविसंघडिएण वि, निवसिज्जइ हरसिरम्मि चंदेण। जत्थ गया तत्थ गया, गुणिणो सीसेण वुज्झंति // 2 // अत्थो वि असारो, न तम्मि वियक्खणाण बहुमाणो, अवि य गुणेसु चेवाणुराओ हवइ त्ति। किञ्च-वाया सहस्समइया, सिणेहनिज्झाइयं सयसहस्सं। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 562 प्राकृत पाठ-चयनिका सम्भावो सज्जणमाणुसस्स कोडिं विसेसेइ // 3 // ता सव्वहा पडिवज्ज इमं पत्थणं ति। पडिवन्नं तेण। जाओ तेसिं नेहनिभरो संजोगो। अन्नया रायपुरओ पणच्चिया देवदत्ता वाइओ मूलदेवेण पडहो। तुट्ठो तीए राया। दिन्नो वरो। नासीकओ तीए। सो य अईवजूयपसंगी निवसणमेत्तं पि न रेहए। भणिओ य साणुणयं तीए पियवाणीए-पिययम ! को तुह इमं मयंकस्सेव हरिणपडिबंधं? तुम्ह सयलगुणालयाण कलंक चेव जूअवसणं, बहुदोसविहाणं च एयं। तहा हि-"कुलफलंकणु सच्चपढिवक्खु गुरुलज्जासोयहरु धम्मविग्घु अत्थह पणासणु। जं दाणभोगिहि रहिउ पुत्त-दार-पिइ-माइमोसणु। जहिं न गणिज्जइ देउ गुरु जहिं नवि कज्जु अकज्जु। तणुसंतावणु कुगइपहु तहिं पिय। जूय म रज्जु // 1 // " ता सव्वहा परिच्चयसु इमं। अइरसेण य न सक्कए मूलदेवो परिहरिउं। अत्थि य देवदत्ताए गाढाणुरत्तो मूलिल्लो मित्तसेणो अयलनामा सत्थवाहपुत्तो। देइ सो जमग्गियं। संपाडेइ वत्थाभरणाईयं। वहइ य सो मूलदेवोवरि पओसं, मग्गइ य छिड्डाणि। तस्स संकाए न गच्छइ मूलदेवो तीए घरं अवसरमंतरेण। भणिया य देवदत्ता जणणीए-पुत्ति! परिच्चय मूलदेवं, न किंचि निद्धणेण पओयणमेएण, सो महाणुभावो दाया अयलो पेसेइ पुणो पुणो बहुयं दव्वजायं, ता तं चेव अंगीकरेसु सव्वप्पणयाए, न एक्कम्मि पडियारे दोन्नि करवालाई मायंति, न य अलोणियं सिलं को वि चट्टेइ, ता मुंच जूयारियमिमं ति। तीए भणियं-नाहं अंब! एगंतेण धणाणुरागिणी, गुणेसु चेव से पडिबंधो। जणणीए भणियं-केरिसा तस्स जूयारगस्स गुणा? तीए भणियं -अंब! केवलगुणमओ खु सो। जओ 'धीरो उदारचरिओ, दक्खिन्नमहोयही कलानिउणो। पियभासी य कयन्नू, गुणाणुरागी विसेसण्णू // 1 // ' / अओ न परिच्चयामि एयं। तओ सा अणेगेहिं दिटुंतेहिं आढत्ता पडिवोहेउं -अलत्तए मग्गिए नीरसं पणामेइ, उच्छुखंडे पत्थिए छोइयं पणामेइ, कुसुमेहिं जाइएहिं विंटमित्ताईपणामेइ। चोइया य पडिभणति-जारिसमेयं तारिसो एस ते पिययमो, तहावि तुमं न परिच्चयसि। देवदत्ताए चिंतियं-मूढा एसा तेणेवंविहे Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलदेव-कहा 57 दिटुंते देइ। तओ अन्नया भणिया जणणी-अम्मो ! मग्गेहिं अयलं उच्छु। कहियं च तीए तस्स। तेण वि सगडं भरेऊणं पेसियं तीए भणियं-किमहं करेणुया जेण एवंविहं सपत्तडालं उच्छं पभूयं पेसिज्जइ। तीए भणियं-पुत्ति! उदारो खु सो तेण एवं पेसियं ति, चिंतियं च णेण -अन्नाणं पि सा दाहि त्ति। अवरदियहे देवदत्ताए भणिया माहवी-हला! भणाहि मूलदेवं जहा उच्छृणमुवरि सद्धा, ता पेसेहि मे। तीए वि गंतूण कहियं। तेण गहियाओ दुन्नि उच्छुलट्ठीओ, निच्छोलिऊण कयाओ दुयंगुलपमाणाओ गंडियाओ, चाउज्जाएण य अवचुन्नियाओ, कप्पूरेण य मणागं वासियाओ, सूलाहि य मणागं भिन्नाओ, गहियाइं अभिणवमल्लगाइं, भरिऊण य ताणि ढक्किऊणं पेसियाणि। ढोइयाइं च गंतूण माहवीए। दंसियाणि तीए वि जणणीए। भणिया य-पेच्छ अम्मो! पुरिसाणमंतरं ति, ता अहं एएसिं गुणाणमणुरत्ता। जणणीए चिंतियं-'अच्चंतमोहिया एसा न पच्चियइ अत्तणाइमं, ता करेमि किं पि उवायं जेण एसो कामुओ गच्छइ विदेसं, तओ सुत्थं हवइ' त्ति चिंतिऊण भणिओ तीए अयलो-कहसु एईए पुरओ अलियगामंतरगमणं, पच्छा पविढे माणुस्ससामग्गीए आगच्छेज्जह विमाणेज्जह य तं, जेण विमाणिओ संतो देसच्चायं करेइ, ता संजुत्ता चिट्ठज्जइ, अहं ते वत्तं दाहामि। पडिवन्नं च तेण अन्नम्मि दिणे कयं तहेव तेण। निग्गओ अलियगामंतरगमणमिसेण। निठभएण पविट्ठो य मूलदेवो। जाणाविओ जणणीए अयलो आगओ महासामग्गीए। दिट्ठो य पविसमाणो देवदत्ताए, भणिओ य मूलदेवो-ईइसो चेव अवसरो, पडिच्छियं च जणणीए एयं पेसियं दव्वं, ता तुमं पल्लंकहे?ओ मुहुत्तगं चिट्ठह। ताव ठिओ सो पल्लंकहेटुओ। लक्खिओ अयलेणं। निसन्नो य पल्लंके अयलो, भणिया य सा तेण-करेह न्हाणसामिग्गिं। देवदत्ताए भणियं-एवं ति ता उट्ठह नियंसह पोत्तिं जेण अभंगिज्जइ। अयलेण भणियं-मए दिट्ठो अज्ज सुमिणओ, जहा'नियत्थिओ चेव अभंगियगत्तो एत्थ पल्लंके आरूढो ण्हाओ' त्ति, तो सच्चं सुमिणयं करेसु। देवदत्ताए भणियं-नणु विणासिज्जए महग्धं तूलिगंडुयमाईयं। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58 प्राकृत पाठ-चयनिका तेण भणियं-अन्नं ते विसिट्टतरं दाहामि। जणणीए भणियं-एवं ति। तओ तत्थडिओ चेव अब्भंगिउव्वट्टिओ उण्हखलउदगेहि य मज्जिओ। भरिओ तेण हेलुट्टिओ मूलदेवो। गहियाउहा पविट्ठा पुरिसा। सव्विओ जणणीए अयलो। गहिओ तेण मूलदेवो वालेहिं, भणिओ यं-रे! संपयं निरूवेहिं जइ कोइ अस्थि ते सरणं। मूलदेवेण निरूवियाई पासाइं, जाव दिट्ठ निसियाऽसिहत्थेहिं वेढियमत्ताणयं मणूसेहि। चिंतियं च-'नाहमेएसिं उव्वरामि, कायव्वं च मए वयरनिज्जायणं, निराउहो संपयं, ता न पोरसस्सावसरो त्ति'। चिंतिय भणियंजं ते रोयइ तं करेहि। अयलेण चिंतियं-उत्तमपुरिसो कोई एसो आगिईए चेव नज्जइ, सुलभाणि य संसारे महापुरिसाण वसणाई। भाणेयं च-'को एत्थ सया सुहिओ? कस्स व लच्छी थिराइं पेम्माइं? कस्स व न होइ खलियं? भण को वि ण खंडिओ विहिणा? // 1 // भणिओ मूलदेवो-भो एवंविहावत्थागओ मुक्को संपयं तुमं, ममं पि विहिवसेण कयाइ वसणपत्तस्स एवं चेव करेज्जइ। तओ विमणदुम्मणो निग्गओ नयराओ मूलदेवो 'पेच्छ, कहं एएण छलिओ?' त्ति चिंतियं। तो ण्हाओ सरोवरे, कया पाणवत्ती, चिंतियं च-गच्छामो विदेसं, तत्थ गंतूण करेमि किं पि इमस्स पडिविप्पिउवायं। पट्ठिओ वेन्नायडस्स सम्मुहं। गामनगराइमज्झेण वच्चंतो पत्तो दुवालसजोयणपमाणाए अडवीए मुहं। चिंतियं च तत्थ-जइ कोइ वच्चंतो वायासाहेज्जो वि दुइओ लव्भइ ता सुहं चेव छिज्जए अडवी। जाव थेववेलाए आगओ विसिट्ठाकारदसणीओ संवलथइयासणाहो टक्कबंभणो, पुच्छिओ य सो-भट्ट! के दूरे गंतव्वं? तेण भणियं-अस्थि अडवीए परओ वीरनिहाणं नाम थाम, तं गमिस्सामि, तुमं पुण कत्थ पत्थिओ? इयरेण भणियं-वेन्नायडं। भट्टेण भणियं-ता एह गच्छम्ह। तओ पयट्टा दो वि। मज्झण्हसमए वच्चंतेहिं दिद्वं सरोवरं। टक्केण भणियं-भो ! वीसमामो खणमेगं ति। गया उदगसमीवं। धोया हत्थपाया। गओ मूलदेवो पालिसंठियरुक्खच्छायं। टक्केण छोडिया संबलथइया, गहिया वट्टयम्मि सत्तुया। ते जलेण ओलित्ता लग्गओ खाइउं। मूलदेवेण चिंतियं-एरिसा चेव बंभणजाई भुक्खापहाणा हवइ, ता Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलदेव-कहा 59 पच्छा मे दाही। भट्टो वि भुजित्ता वंधिऊण थइयं पयट्टो। मूलदेवो वि 'नूणं अवरण्हे दाहि' त्ति चिंतितो अणुपयट्टो। तत्थ वि तहेव भुत्तं, न दिन्नं तस्स। 'कल्लं दाहि' त्ति आसाए गच्छइ एसो। वच्चंताण य आगया रयणी। तओ वट्टाओ ओसरिऊण वडपायवहेद्रओ पसुत्ता। पच्चूसे पुणो पत्थिया, मज्झण्हे तहेव थक्का, तहेव भुत्तं टक्केण, न दिन्नं एयस्स। जाव तइयदियहे चिंतियं मूलदेवेण -नित्थिन्नप्पाया अडवी, ता अज्ज अवस्सं ममं दाही एस। जाव तत्थ वि न दिन्न। नित्थिन्ना य तेहिं अडवीं। जावाओ दोण्ह वि अन्नन्नवट्टाओ। तओ भट्टेण भणियं-भो! तुज्झ एसा वट्टा समं पुण एसा, ता वच्च तुमं एयाए। मूलदेवेण भणियं-भो भट्ट ! आगओ अइं तुज्झ प्पभावेणं, ता मज्झ मूलदेवो नाम, जइ कयाइ किं पि पओयणं में सिज्झइ ता आगच्छेज्ज वेन्नायडे, किं च तुज्झ नामं? टक्केण भणियं-सद्धडो, जणकयावडकेण य निग्घिणसम्मो नाम। तओ पत्थिओ भट्टो सग्गामं। __ मूलदेवो वि विन्नायडसम्मुहं ति। अंतराले य दिटुं वसिमं। तत्थ पविट्ठो भिक्खानिमित्तं। हिंडियं असेसं गामं। लद्धा कुम्मासा, न किंपि अन्नं। गओ जलासयामिमुहं। एत्थंतरम्मि य तवसुसियदेहो महाणुभावो महातवस्सी मासोपवासपारणयनिमित्तं दिट्ठो पविसमाणो। तं च पेच्छिय हरिसवसुभि-न्नपुलएण चिंतियं च मूलदेवेण-अहो! धन्नो कयत्थो अहं, जस्स इमम्मि काले एस महातवस्सी दसणपहमागओ, ता अवस्सं भवियव्वं मम कल्लाणेण। अवि य-मरुत्थलीए जह कप्परुक्खो , दरिद्दगेहे जह हेमवुट्ठी। मायंगगेहे जह हत्थिराया, मुणी महप्पा तह एत्थ एसो // 1 // किञ्चदसणनाणविसुद्धं, पंचमहव्वयसमाहियं धीरं। खंती-मद्दव-अज्जव-जुत्तं मुत्तिप्पहाणं च // 2 // सज्झायज्झाणतवोवहाणनिरयं विसुद्धलेसागं। पंचसमियं तिगुत्तं, अकिंचणं चत्तगिहिसंगं // 3 // Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 60 0 प्राकृत पाठ-चयनिका सुपत्तं एस साहू। ता - एरिसपत्तसुखित्तं, विसुद्धसद्धाजलेण संसित्तं। निहियं तु दव्वसस्सं इहपरलोए अणंतफलं // 4 // ता एत्थ कालोचिया देमि एयस्स चेव कुम्मासा, जओ अदायगो एस गामो, एसो य महप्पा कइवयघरेसु दरिसावं दाऊण पडिनियत्तइ, अहं पुण दो तिन्नि वारे हिंडामि तो पुणो लभिरसं, आसन्नो अवरं वितिओ गामो ता पयच्छामि सव्वे इमे त्ति। पणमिऊण तओ समप्पिया भगवओ कुम्मासा। साहुणा वि तस्स परिणामपयरिसं मुणंतेण दव्वाइसुद्धि च वियाणिऊण-'धम्मसील! थोवे देज्जह' त्ति भणिऊण घरियं पत्तगं। दिन्ना य तेण पवड्डमाणाऽऽसएण, भणियं च तेण"धन्नाणं खु नराणं, कुम्मासा होंति साहुपारणए।" एत्थंतरम्मि गयणंतरगयाए रिसिभत्ताए मूलदेवभत्तिरंजियाए भणियं देवयाए-पुत्त! मूलदेव! सुंदरमणुचिट्ठियं तुमे, ता एयाए गाहाए पच्छद्धेण मग्गह जं रोयए जेण संपाडेमि सव्वं। मूलदेवेण भणियं-"गणियं च देवदत्तं, दंतिसहस्सं च रज्जं च // 1 // " देवयाए भणियं-पुत्तं! निच्चिंतो विहरसु, अवस्सं रिसिचलणाणुभाषेण अइरेण चेव संपज्जिस्सइ एयं। मूलदेवेण भणियं-भयवह! एवमेयं ति। तओ वंदिय रिसिं पडिनियत्तो। रिसी वि गओ उज्जाणं। लद्धा अवरा मिक्खा मूलदेवेण। जेमिओ पत्थिओ य विन्नायडसम्मुहं। पत्तो य क्रमेण तत्थ। पसुत्तो रयणीए याहिं पहियसालाए। दिट्ठो य चरिमजामे सुमिणओ-'पडिपुन्नमंडलो निम्मलपहो मयंको उयरम्म पविट्ठो'। अन्नेण वि कप्पडिएण सो चेव दिट्ठो। कहिओ तेण कप्पडियाणं। तत्थेगेण भणियं-लभिहिसि तुमं अज्ज घयगुलसंपुन्नं महंतं रोट्टगं। ‘ण याणंदि एए सुमिणस्स परमत्थं' ति न कहियं मूलदेवेण। लद्धो कप्पडिएणं भिक्खागएण घरछायणियाए अहोवइट्ठो रोट्टगो। तुट्ठो य एसो निवेइओ य कप्पडियाणं। मूलदेवो वि गओ एगमारामं। आयज्जिओ तत्थ कुसुमोथयसाइज्जेण मालागारो। दिन्नाइं तेण पुप्फफलाइं। ताई घेत्तुं सुइभूओ गओ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलदेव-कहा- 61 सुमिणयसत्थपाढगस्स गेहं। कओ तस्स पणामो। पुच्छिया खेमारोगवत्ता। 'तेण वि' संभासिओ सबहुमाणं, पुच्छिओ पओयणं। मूलदेवेण जोडिऊण करजुयलं कहिओ सविणगघइयरो। उवज्झाएण वि भणियं सहरिसेणं-कहिस्सामि सुहमुहुत्ते सुविणयफलं, अज्ज ताव अतिही होसु अम्हाणं। पडिवन्नं च मूलदेवेणं। ण्हाओ जिमिओ य विभूइए। भुत्तुत्तरे य भणिओ उवज्झाएण-पुत्त! पत्तवरा में एसा कन्नागा, ता परिणेसु ममोघरोहेण एयं तुमं ति। मूलदेवेण भणियं -ताय! कहं अन्नायकुलसीलं जामाउयं करेसि? उवज्झाएण भणियं-पुत्त! आयारेण चेष नज्जइ अकहियं पि कुलं। भणियं च-आचारः कुलमाख्याति, देशमाख्याति जल्पित्तम्। सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति, वपुराख्याति भोजनम् // 1 // तहा-को कुवलयाण गंध, करेइ महुरत्तणं च उच्छूणं? वरहत्थीण य लीलं, विणयं च कुलप्पसूयाणं? // 2 // अहवा-जइ हुँति गुणा ता किं, कुलेण? गुणिणो कुलेण न हु कज्ज। कुलमकलंकं गुणवज्जियाण गरुयं चिय कलंकं // 3 // एवमाइ-भणिईहि पडिवज्जाविय सुहमुहुत्तेण परिणाविओ। कहियं सुवि, णगफलं-सत्तदिणभंतरे राया होहिसि। तं च सोऊण जाओ पहट्ठमणो, अच्छइ य तत्थ सुहेणं। पंचमे य दिवसे गओ नयरवाहि, निसन्नो चंपगच्छायाए। इओ यतीए नयरीए अपुत्तो राया कालगओ। तत्थ अहियासियाणि पंच दिव्वाणि। ताणि आहिंडिय नयरमझे निग्गयाणि वाहिं पत्ताणि मूलदेवसयासं। दिद्वो य सो अपरियत्तमाणच्छायाए हिट्ठओ। तं पेच्छिय गुलुगुलियं हत्थिणा, हेसियं तुरंगेण, अहिसित्तो भिंगारेणं, वीइओ चामरेहिं, ठियमुवरि पुंडरियं। तओ कओ लोएहिं जयजयारवो। चडाविओ गएण खंधे पइसारिओ य नयरिं। अभिसित्तो च मंतिसामंतेहिं। भणियं च गयणतलगयाए देवयाए-भो! भो! एस महाणुभावो असेसकलापारगओ देवयाहिट्टियसरीरो विक्कमराओ नाम राया, ता एयस्स सासणे जो न वट्ठइ तस्स नाहं खमामि त्ति। तओ सव्वो सामंत-मंति-पुरोहियाइओ परियणो आणाविहेओ जाओ। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 ) प्राकृत पाठ-चयनिका तओ उदारं विसयसुहमणुहवंतो चिट्ठइ। आढत्तो उज्जेणिसामिणा वियारधवलेण सह संववहारो, जाव जाया परोप्परं निरंतरा पीई। इओ य देवदत्ता तारिसं विडवणं मूलदेवस्स पेच्छिय विरत्ता अईव अयलोवरि। ततो निव्भच्छिओ अयलो- 'भो! अहं वेसा, न उण अहं तुज्झ कुलघरिणी, तहा वि मज्झ गेहत्थो एवंविहं ववहरसि, ता मामिच्छाए ण पुणो खिज्जियव्वं' ति भणिय गया राइणो सयासं। भणिओ य निवडिय चलणेसु राया-सामि ! तेण वरेण कीरउ पसाओ। राइणा भणियं-भण, कओ चेव तुज्झ पसाओ? किमवरं भणीयइ? देवदत्ताए भणियं-ता सामि! मूलदेवं वज्जिय ण अन्नो पुरिसो मम आणावेयव्वो, एसो अयलो मम घरागमणे निवारेयव्वो। राइणा भणियं-एवं, जहा तुज्झ रोयए, परं कहेह को पुण एस वुत्तंतो? तओ कहिओ माहवीए। रुट्ठो राया अयलोवरि। भणियं च-भो! मम एईए नयरीए एयाइं दोन्नि रयणाइं ताई पि खलीकरेइ? एसो तओ हक्कारिय अंबाडिओ भणिओ-रे! तुमं एत्थ राया जेण एवंविहं. ववहरसि? ता निरूवेहिं संपयं सरणं, करेमि तुह पाणविणासं। देवदत्ताए भणियं -सामि! किमेइणा सुणहपाएण पडिखद्धेणं? ति, ता गुंचह एवं। राइणा भणिओ - रे! एईए महाणुभावाए वयणेणं छुट्टो संपयं, सुद्धी उण तेणेवेह आणिएणं भविस्सई। तओ चलणेसु निवडिऊण निग्गओ रायउलाओ। आढत्तो गवेसिउं दिसोदिसिं। तहावि न लद्धो। तओ तीए चेव ऊणिमाए भरिऊण भंडस्स वहणाइं पत्थिओ पारसउलं। इओ य मूलदेवेण पेसिओ लेहो कोसलियाइं च देवदत्ताए तस्स राइणो य। भणिओ य राया-मम पयईए देवदत्ताए उवरि महंतो पडिबंधो, ता जइ एईए अभिरुचियं तुम्ह वा रोयए ता कुणह रसायं, पेसेह एय। ततो राइणा भणिया रायदोवारिगा-भो! किमेयमेवंविहं लिहियं विक्कमराएणं? किं अम्हाणं तत्स य कोइ अत्थि विसेसो? रज्जं पि सव्वं तस्सेयं किं पुण देवदत्ता? परं इच्छउ सा। तओ इक्कारिया देवदत्ता कहिओ वुत्तंतो-ता जइ तुम्ह रोयए ताहे गम्मउ तस्स सगासं। तीए भणियं-महापसाओ, तुम्हाऽणुन्नायाण मणोरहा एए अम्हं। तओ महाविभवेणं पूइऊण पेसिया गया य। तेण वि महाविभूईए चेव पवेसिया। जायं Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलदेव-कहा 2 63 च परोप्परमेगरज्जं। अच्छए मूलदेवो तीए सह विसयसुहमणुहवंतो जिणभवणबिंबकरणपूय-णतप्परो त्ति। इओ य सो अयलो पारसउले विढविय घहयदव्वं पवरं भंडं भरेऊण आगओ विन्नायडं। आवासिओ य बाहिं। पुच्छिओ लोगो-किं नामाभिहाणो एत्थ राया? कहियं च-विक्कमराओ त्ति। तओ हिरन्नसुवन्नमोत्तियाणं थालं भरेऊण गओ राइणो पेक्खगो। दवावियं राइणा आसणं, निसन्नो पच्चमिन्नाओ य। अयलेण य न नाओ एसो। रन्ना पुच्छिओ-कुओ सेट्ठी! आगओ? तेण भणियं -पारसउलाओ। रन्ना पूइएण अयलेण भणियं-सामि! पेसेह उवरिगो जो भंडं निरूवेह। तओ राइणा भणियं-अहं सयमेवागच्छामि। तओ पंचउलसहिओगओ राया। दंसियं वहणेसु संख-फोप्फल-चंदणा-ऽगरु-मंजिट्ठाइयं भंडं। पुच्छियं पंचउलसमक्खं राइणा-भो सेट्टि एत्तियं चेव इमं? तेण भणियं -देव! एत्तियं चेव। राइणा भणियं-करेह सेट्ठिस्स अद्धदाणं परं मम समक्खं तोलेह चोल्लए। तोलियाई पंचउलेण। भारेण य पायप्पहारेण य वंसवेहेण य लक्खियं मंजिट्ठमाइमझगयं सारभंडं। राइणा उक्केल्लावियाई चोल्लयाई निरूवियाई समंतओ, जाव दिटुं कत्थइ सुवन्नं कत्थई रुप्पयं कत्थइ मणि-मोत्तिय-पवालाइ महग्धं भंडं। तं च दट्ठण रुटेण नियपुरिसाण दिन्नो आएसो-अरे! वंधइ पच्चक्खं चोरं इमं ति। वद्धो य थगथगिंतहियओ तेहिं। दाऊण रक्खवाले जाणेसु गओ राया भवणं। सो वि आणिओ आरक्खिगेण रायसमीवं। गाढं वद्धं च दट्ठण भणियं राइणा-रे! छोडेह छोडह। छोडिओ अणेहि। पुच्छिओ। राइणा-परियाणेसि नमं? तेण भणियं-देव! सयलपुहविविक्खाए महाणरिंदे को न याणइ? राइणा भणियं-अलं उवयारभासणेहिं, फुडं साहसु जइ जाणसि। अयलेण भणियं-देव! ण याणामि सम्म। तओ राइणा वाहराविया देवदत्ता। आगया वरच्छर व्व सव्वंगभूसणधरा विन्नाया अयलेण। लज्जिओ मणम्मि वाढं। भणियं च तीए-भो! एस सो मूलदेवो जो तुमे 'भणिओ तम्मि काले-ममावि कयाइ विहिजोगेण वसणं पत्तस्स उवयारं करेज्जइ, ता एस सो Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 प्राकृत पाठ-चयनिका अवसरो, मुक्को य तुमं अत्थसरीरसंसयमावन्नो वि पणयदीणजणवच्छलेण राइणा संपयं। इमं च सोऊण विलक्खमाणसो ‘महापसाओ' त्ति भणिऊण निवडिओ राइणो देवदत्ताए य चलणेसु। भणियं च-कयं मए जं तया सयलजणनिव्वुइकरस्स नीसेसकलासोहियस्स देवस्स निम्मलसहावस्स पुन्निमाचंदस्सेव राहुणा कयत्थणं ता तं खमउ मम सामी, तुम्ह कयत्थणामरिसेण महाराओ वि न देइ मे उज्जेणीए पवेसं। मूलदेवेण भणियं-खमियं चेव मए जस्स तुह देवीए कओ पसाओ। तओ सो पुणो वि निवडिओ दोण्ह विचलणेसं परमायरेण ण्हाविओ जेमाविओ य देवदत्ताए परिहाविओ महग्घवत्थे। राइणा मुक्कं दाणं। पेसिओ उज्जेणिं। मूलदेवराइणो अभत्थणाए खमियं वियारधवलेण। निग्घिणसम्मो वि रज्जे निविटुं सोऊण मूलदेवं आगओ विन्नायडं। दिट्ठो राया। दिन्नो सो चेव अदिट्ठसेवाए गामो तस्स रन्ना। पणमिऊण 'महापसाओ' त्ति भणिऊण य सो गओ गाम। इओ य तेण कप्पडिएण सुयं-जहा मूलदेवेण वि एरिसो सुमिणो दिट्ठो जारिसो मए, परं सो आएसफलेण राया जाओ। सो चिंतेइ-वच्चामि जत्थ गोरसो, तं पिवित्ता सुवामि जाव तं सुविणं पुणो पेच्छामि। अवि सो तं पुण पेच्छेज्ज। न य माणसाओ विभासा।। Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराष्ट्री श्लोक संग्रह अभिज्ञानशकुन्तलम् ईसीसि-चुम्बिआई भमरेहिं सुउमार-केसर-सिहाई / ओदंसयन्ति दअमाणा पमदाओ सिरीसकुसुमाइं॥१॥ उग्गलिअदब्भकवला मिआ परिच्चत्तणच्चणा मोरा / ओसरिअ पण्डुपत्ता मुअन्ति अस्स विअ लदाओ // 2 // तुज्झ ण आणे हिअअं, मम उण मअणो दिवा वि रत्तिं वि / णिवि! दावइ वलिअं, तुह हत्थमणोरहाई अङ्गाइं // 3 // अहिणव-महु-लोजुवो तुमं तह परिचुम्बिअ चूअमञ्जरिं / कमलवसइमेत्तणिब्बुदो महुअर विम्हरिओसि णं कहं // 4 // अरिहसि मे चूअंगुर दिण्णो कामस्स गहिदचावस्स / पहिअजणजुअइलक्खो पञ्चन्तरिओ सरो होइं // 5 // S Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदूषक-विलापः अभिज्ञानशकुन्तलम् विदूषक-भो हदोम्हि। एदस्स मिअआ-सीलस्स रण्णो वअस्सभावेण णिविण्णो। 'अअं मिओ, अअं वराओ' त्ति मज्झन्दिणे वि गिम्हे विरल-पादव-च्छाआसु वण-राईसुं वणराईसुं आहिण्डिअ, पत्त-सङ्कर-कसाअ-विरसाइं उण्ह-कडुआई पिज्जन्ति गिरि-णई-सलिलाई। अणिअदवेलं च उण्हुण्हं मंसं भुज्जीअदि। तुरअ-गआणं च सद्देण रत्तिं पि णत्थि पकाम-सुइदव्वं / ___महन्ते ज्जेव पच्चूसे दासीए पुत्तेहिं सअणि-लुद्धेहिं कणीवघादिण वणगमण-वणगमण कोलाहलेण पवोधआमि। एत्तिकेणावि दाव पीडा ण वुत्ता जदो गण्डस्स उवरि विष्फोडओ संवुत्तो। जेण किल अम्हेसु अवहीणेसुं तत्थ-भवदा मिआणुसारिणा अस्समपदं पविद्वेण मम अधण्णदाए सउन्तला णाम का वि तावसकण्णआ दिट्ठा। तं पेक्खिअ संपदं णअर-गमणस्स कधं पि ण करेदि एवं जेव चिन्तअन्तस्स मम पहादा अच्छीसुं रअणी। ता का गदी? जाव णं किदाआरपरिकम्मं पिअ-वअस्सं पेक्खामि। एसो वाणासण-हत्थो हिअअ-णिहिदपिअ-अणो वण-पुप्फ-माला-धारी इदो ज्जेव आअच्छदि पिअवअस्सो। भोदु अङ्गा-मद्द-विअलो भविअ चिट्ठिस्सं। एवं पि णाम विस्सामं लहेअंति। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज्ञःसमीपे धीवरस्यानयनम् अभिज्ञानशाकुन्तलम् - षष्ठोऽङ्कः (ततः प्रविशति नागरिकः श्यालः पश्चाद्वद्धपुरुषमादाय रक्षिणौ च।) रक्षिणौ - (ताडयित्वा।) अले कुम्भिलआ, कहेहि कहिं तुए एशे मणिबन्धणु- किण्णणामहेए लाअकीए अङ्गुलीअए शमाशादिए। पुरुषः - (भीतिनाटितकेन।) पशीदन्तु भावमिश्शे। हगे ण ईदिशकम्मकाली। प्रथमः - किं खु सोहणे बह्मणेत्ति कलिअ लण्णा पडिग्गहे दिण्णे। पुरुषः - सुणध दाणिं। हगे शक्कावदालब्भन्तलवाशी धीवले। द्वितीयः - पाडच्चला, किं अोहिं जादी पुच्छिदा। श्यालः - सूअअ, कहेदु शव्वं अणुक्कमेण। मा णं अन्तरा पडिबन्धह। उभौ - जं आवुत्ते आणवेदि कहेहि। पुरुषः - अहके जालुग्गालादीहिं मच्छबन्धणोवाएहिं कुडुम्बभलणं कलेमि। श्यालः - (विहस्य।) विसद्धो दाणिं आजीवो। पुरुषः - शहजे किल जे विणिन्दिए ण हु दे कम्म विवज्जणीअए। पशुमालणकम्मदालुणे अणुकम्पाभिदु एव्व शोत्तिए // 1 // Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 प्राकृत पाठ-चयनिका श्याहः - तदो तदो। पुरुषः - एक्करिंश दिअशे खण्डशो लोहिअमच्छे मए कप्पिदे जाव। तश्श उदलब्भन्तले एवं लदणभाशुलं अङ्गलीअअं देक्खिजं पच्छा अहके शे विक्कआअ दंशअन्ते गहिदे भावमिश्शेहिं। मालेह वा मुश्चेह वा। अअंशे आअमवुत्तन्ते। श्यालः - जाणुअ, विस्सगन्धी गोहादी मच्छबन्धो एव्व णिस्संस। अङ्गुलीअअदंसणं से विमरिसिदव्वं। राउलं एव्व गच्छामो। रक्षिणौ - तह। गच्छ अले गण्ठिभेद। (सर्वे परिक्रामन्ति।) श्यालः - सूअअ, इमं गोपुरदुआरे अप्पमत्ता पडिवालह जाव इमं अङ्गलीअअं जहागमणं भट्टिणो णिवेदिअ तदो सासणं पडिच्छिअणिक्कमामि। उभौ - पविशदु आवृत्ते शामिपशादश्श। (इति निष्क्रान्तः श्यालः।) प्रथमः - जाणुअ, चिलाअदि क्खु आवुत्ते। द्वितीयः - णं अवशलोवशप्पणीआ लाआणो। प्रथमः - जाणुअ, फुल्लन्ति मे हत्था इमश्श वज्झश्श शुमणो पिण«। (इति पुरुषं निर्दिशति।) पुरुषः - ण अलुहदि भावे अकालणमालणे भवितुं। द्वितीयः - (विलोक्य।) एशे अम्हाणं शामी पत्तहत्थे लाअशाशणं पडिच्छि अ इदोमुहे देक्खीअदि। गिद्धबली भविश्शशि, शुणो मुहं वा देक्खिश्शशि। (प्रविश्य।) श्यालः - सुअअ, मुञ्चेदु एसो जालोअजीवी। उववण्णो क्खु अङ्गलीअस्स आअमो। Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज्ञःसमीपे धीवरस्यानयनम् 7 69 सूचकः - जह आवुत्ते भणादि। द्वितीयः - एशे जमशदणं पविशिअ पडिणिवुत्ते। (इति पुरुषं परिमुक्तबन्धनं करोति।) पुरुषः - (श्यालं प्रणम्य) भट्टा, अह कीलिशे मे आजीवे। . श्यालः - एसो भट्टिणा अङ्गुलीअअमुल्लसम्मिदो पसादो वि दाविदो। (इति पुरुषायार्थं प्रयच्छति।) पुरुषः - (सप्रणाम प्रतिगृह्य।) भट्टा, अणुग्गहीदह्मि। . सूचकः - एशे णाम अनुग्गहिदे जे शूलादो अवदालिअ हत्थिक्खन्धे पडिट्ठाविदे। जानुकः - आवृत्त, पालिदोशिअं कहेदि। तेण अङ्गुलीअएण भट्टिणो शम्मदेण होदव्वं। श्यालः - ण तस्सि महारुहं रदणं भट्टिणो बहुमदं त्ति तक्केमि। तस्स दंसणेण भट्टिणो अभिमदो जणो सुमराविदो। मुहुत्त पकिदिगम्भीरो वि पज्जुस्सुअणअणो आसि। सूचकः - शेविदं णाम आवुत्तेण। जानुकः - णं भणाहि। इमश्श कए मच्छिआभत्तुणोत्ति। (इति पुरुषमसूयया पश्यति।) पुरुषः - भट्टालके, इदो अद्धं तुम्हाणं शुमणोमुल्लं होदु। जानुकः - एत्तके जुज्जइ। श्याल:- धीवर, महत्तरो तुमं पिअवअस्सओ दाणिं मे संवुत्तो।कादम्बरीसक्खिअं अम्हाणं पढमसोहिदं इच्छीअदि। ता सोण्डिआपणं एव्व गच्छामो। (इति निष्क्रान्ताः सर्वे।) Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ feuqunt (Notes) Page #73 -------------------------------------------------------------------------- _ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ le भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी, दिल्ली राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली मानित विश्वविद्यालय |