________________ 22 प्राकृत पाठ-चयनिका 18. अह भणइ कित्तिधवलो, सामि ! निसामेहि मज्झ वयणाई। सिरिकण्ठो य कुमारो, उत्तमकुल-रूवसंपन्नो // 18 // 19. उत्तमपुरिसाण जए, संजोगो होइ उत्तमेहि समं / अहमाण मज्झिमाण य, सरिसो, सरिसेहि वा होज्जा / / 19 / / 20. सुटु वि रक्खिज्जन्ती, थुथुक्कियं रक्खिया पयत्तेणं / होही परसोवत्था, खलयणरिद्धि व वरकन्ना // 20 // 21. दोण्णि वि उत्तमवंसा, दोण्णि वि वयसाणुगुरूवसोहाइं। एयाण समाओगो, होउ अविग्धं नराहिवई ! // 21 // 22. जुज्झेण नत्थि कज्जं, बहुजणघाएण कारिएण पहू!। परगेहसेवणं चिय, एस सहावो महिलियाणं // 22 // 23. एवं चिय वट्टन्ते, उल्लावे ताव आगया दुई। नमिऊण चलणकमले, विज्जाहरपत्थिवं भणइ // 23 // 24. अह विन्नवेइ पउमा, सामि ! तुमं चलणवन्दणं काउं / सिरिकण्ठस्स नराहिव ! थेवो वि हु नत्थि अवराहो / / 24 // . 25. सयमेव मए गहिओ, एसो कम्माणुभावजोएण / अन्नस्स मज्झ नियमो, नरस्स एयं पमोत्तूणं / / 25 // 26. बहुसत्थ-नीइकुसलो, राया परिचिन्तिऊण हियएणं / दाऊण तस्स कन्न, निययपुरं पत्थिओ सिग्धं // 26 // 27. मग्गसिरसुद्धपक्खे, नक्खत्ते सोहणे तओ दियहे। वत्तं पाणिग्गहणं, अणन्नसरिसं वसुमईए // 27 // 28. अह भणइ कित्तिधवलो सिरिकण्ठं तिब्वनेहपडिबद्धो / मा वच्चसु वेयज्ञ, तत्थ तुमं वेरिया बहवे // 28 //