________________ पउमचरियं 21 7. वितो चिय वीवाहो, दोण्ह वि विहिणा महासमुदएणं / सोऊण तन्निमित्तं, रुद्रो पुप्फत्तरो राया // 7 // 8. अह अन्नया कयाई, सिरिकण्ठो वन्दणाएँ देवगिरिं / गन्तूण पडिनियत्तो, पेच्छइ कन्नं वरुज्जाणे // 8 // 9. तीए वि सो कुमारो, दिट्ठो कुसुमाउहो व रूवेण / दोण्हं पि समणुरागो, तक्खणमेत्तेण उप्पन्नो // 9 // 10. मुणिऊण तीऍ भावं, हरिसवसुब्भिन्नदेहरोमञ्चो / .' अवगूहिऊण कन्नं, उप्पइओ नहयलं तुरिओ // 10 // 11. पुप्फुत्तरो नरिन्दो, सिटे चेडीहि नियसुयासमग्गो / सन्नद्धबद्धकवओ, मग्गेण पहाविओ तस्स // 11 // 12. बहुसत्थ-नीइकुसलो, सिरिकण्ठो जाणिऊण परमत्थं / लङ्कापुरि पविट्ठो, सरणं चिय कित्तिधवलस्स // 12 // 13. संभासिओ सिणेहं, रक्खसवइणा पहट्ठमणसेणं / सिट्टं च जहावत्तं, कन्नाहरणाइयं सव्वं // 13 // 14. ताव च्चिय गयणयले, गयवर-रह-जोह-तुरयसंघट्ट / उत्तरदिसाएँ पेच्छइ, एज्जन्तं साहणं विउलं // 14 // 15. कित्तिधवलेण दूओ, पेसविओ महुर-सामवयणेहिं / अह सो वि तुरियचवलो, सिग्धं पुष्फत्तरं पत्तो // 15 // . काऊण सिरपणाम, दूओ तं भणइ महुरवयणेहिं / कित्तिधवलेण सामिय!, विसज्जिओ तुज्झ पासम्मि // 16 // 17. उत्तमकुलसंभूओ, उत्तमचरिएहि उत्तमो सि पहु / तेणं चिय तेलोक्के, भमइ जसो पायडो तुज्झ // 17 //