________________ 34 प्राकृत पाठ-चयनिका 8. यन्ति कसाया नत्थून यन्ति नळून सव्व-कम्माइं सम-सलिल-सिनातानं उज्झित-कत-कपट-भारयान // 8 // 9. यति अरिह-परम-मन्तो पढिय्यते कीरते न जीव-वधो / यातिस-तातिस-जाती ततो जनो निव्वुतिं याति // 9 // 10. अच्छति रन्ने सेले वि अच्छते दढ-तपं तपन्तो वि / ताव न लभेय्य मु.कं याव न विसयान तूरातो // 10 // 11. तूरातु नेन घेप्पति मुत्ति-सिरी नाइ योग-किरियाए / चत्तारि-मङ्गलं-पभुति-मन्तमुक्खोसमानेन / / 11 / / 12. वन्थू सठासठेसु वि आलम्पित-उपसमो अनालम्फो / सव्वञ्ज-लाच-चलने अनुझायन्तो हवति योगी // 12 // 13. झच्छर-डमरुक-भेरी-ढक्का -जीमत-गफिर-घोसा वि / बम्ह-नियोजितमप्पं जस्स न दोलिन्ति सो धो // 13 // 14. उब्भिय-बाह असारउ सव्वु वि म भमि कु-तिथिअ-पढें मुहिआ / परिहरि तृणु जिम् सव्वु वि भव-सुहु पुत्ता तुह मइ एउ कहिआ // 14 // गङ्गहे जॅम्वूणहें भीतरु मेल्लइ सरसइ-मज्झि हंसु जइ झिल्लइ / तय सो केत्थु वि रमइ पहुत्तउ / जित्थु ठाइ सो मोक्खु निरुत्तउ // 15 // 16. केण वि जोग-पओगेंण कह वि हु, घरि रुद्धे सव्वेहिँ वि वारिहिँ॥ जोअन्तहें वि निहेलण-नाहह, घर-सव्व-स्सु वि निज्जइ चोरेंहिं // 16 //