________________ मूलदेव-कहा- 61 सुमिणयसत्थपाढगस्स गेहं। कओ तस्स पणामो। पुच्छिया खेमारोगवत्ता। 'तेण वि' संभासिओ सबहुमाणं, पुच्छिओ पओयणं। मूलदेवेण जोडिऊण करजुयलं कहिओ सविणगघइयरो। उवज्झाएण वि भणियं सहरिसेणं-कहिस्सामि सुहमुहुत्ते सुविणयफलं, अज्ज ताव अतिही होसु अम्हाणं। पडिवन्नं च मूलदेवेणं। ण्हाओ जिमिओ य विभूइए। भुत्तुत्तरे य भणिओ उवज्झाएण-पुत्त! पत्तवरा में एसा कन्नागा, ता परिणेसु ममोघरोहेण एयं तुमं ति। मूलदेवेण भणियं -ताय! कहं अन्नायकुलसीलं जामाउयं करेसि? उवज्झाएण भणियं-पुत्त! आयारेण चेष नज्जइ अकहियं पि कुलं। भणियं च-आचारः कुलमाख्याति, देशमाख्याति जल्पित्तम्। सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति, वपुराख्याति भोजनम् // 1 // तहा-को कुवलयाण गंध, करेइ महुरत्तणं च उच्छूणं? वरहत्थीण य लीलं, विणयं च कुलप्पसूयाणं? // 2 // अहवा-जइ हुँति गुणा ता किं, कुलेण? गुणिणो कुलेण न हु कज्ज। कुलमकलंकं गुणवज्जियाण गरुयं चिय कलंकं // 3 // एवमाइ-भणिईहि पडिवज्जाविय सुहमुहुत्तेण परिणाविओ। कहियं सुवि, णगफलं-सत्तदिणभंतरे राया होहिसि। तं च सोऊण जाओ पहट्ठमणो, अच्छइ य तत्थ सुहेणं। पंचमे य दिवसे गओ नयरवाहि, निसन्नो चंपगच्छायाए। इओ यतीए नयरीए अपुत्तो राया कालगओ। तत्थ अहियासियाणि पंच दिव्वाणि। ताणि आहिंडिय नयरमझे निग्गयाणि वाहिं पत्ताणि मूलदेवसयासं। दिद्वो य सो अपरियत्तमाणच्छायाए हिट्ठओ। तं पेच्छिय गुलुगुलियं हत्थिणा, हेसियं तुरंगेण, अहिसित्तो भिंगारेणं, वीइओ चामरेहिं, ठियमुवरि पुंडरियं। तओ कओ लोएहिं जयजयारवो। चडाविओ गएण खंधे पइसारिओ य नयरिं। अभिसित्तो च मंतिसामंतेहिं। भणियं च गयणतलगयाए देवयाए-भो! भो! एस महाणुभावो असेसकलापारगओ देवयाहिट्टियसरीरो विक्कमराओ नाम राया, ता एयस्स सासणे जो न वट्ठइ तस्स नाहं खमामि त्ति। तओ सव्वो सामंत-मंति-पुरोहियाइओ परियणो आणाविहेओ जाओ।