________________ 60 0 प्राकृत पाठ-चयनिका सुपत्तं एस साहू। ता - एरिसपत्तसुखित्तं, विसुद्धसद्धाजलेण संसित्तं। निहियं तु दव्वसस्सं इहपरलोए अणंतफलं // 4 // ता एत्थ कालोचिया देमि एयस्स चेव कुम्मासा, जओ अदायगो एस गामो, एसो य महप्पा कइवयघरेसु दरिसावं दाऊण पडिनियत्तइ, अहं पुण दो तिन्नि वारे हिंडामि तो पुणो लभिरसं, आसन्नो अवरं वितिओ गामो ता पयच्छामि सव्वे इमे त्ति। पणमिऊण तओ समप्पिया भगवओ कुम्मासा। साहुणा वि तस्स परिणामपयरिसं मुणंतेण दव्वाइसुद्धि च वियाणिऊण-'धम्मसील! थोवे देज्जह' त्ति भणिऊण घरियं पत्तगं। दिन्ना य तेण पवड्डमाणाऽऽसएण, भणियं च तेण"धन्नाणं खु नराणं, कुम्मासा होंति साहुपारणए।" एत्थंतरम्मि गयणंतरगयाए रिसिभत्ताए मूलदेवभत्तिरंजियाए भणियं देवयाए-पुत्त! मूलदेव! सुंदरमणुचिट्ठियं तुमे, ता एयाए गाहाए पच्छद्धेण मग्गह जं रोयए जेण संपाडेमि सव्वं। मूलदेवेण भणियं-"गणियं च देवदत्तं, दंतिसहस्सं च रज्जं च // 1 // " देवयाए भणियं-पुत्तं! निच्चिंतो विहरसु, अवस्सं रिसिचलणाणुभाषेण अइरेण चेव संपज्जिस्सइ एयं। मूलदेवेण भणियं-भयवह! एवमेयं ति। तओ वंदिय रिसिं पडिनियत्तो। रिसी वि गओ उज्जाणं। लद्धा अवरा मिक्खा मूलदेवेण। जेमिओ पत्थिओ य विन्नायडसम्मुहं। पत्तो य क्रमेण तत्थ। पसुत्तो रयणीए याहिं पहियसालाए। दिट्ठो य चरिमजामे सुमिणओ-'पडिपुन्नमंडलो निम्मलपहो मयंको उयरम्म पविट्ठो'। अन्नेण वि कप्पडिएण सो चेव दिट्ठो। कहिओ तेण कप्पडियाणं। तत्थेगेण भणियं-लभिहिसि तुमं अज्ज घयगुलसंपुन्नं महंतं रोट्टगं। ‘ण याणंदि एए सुमिणस्स परमत्थं' ति न कहियं मूलदेवेण। लद्धो कप्पडिएणं भिक्खागएण घरछायणियाए अहोवइट्ठो रोट्टगो। तुट्ठो य एसो निवेइओ य कप्पडियाणं। मूलदेवो वि गओ एगमारामं। आयज्जिओ तत्थ कुसुमोथयसाइज्जेण मालागारो। दिन्नाइं तेण पुप्फफलाइं। ताई घेत्तुं सुइभूओ गओ