________________ पवयणसारो 27 8. परिणमदि जेण दव्वं तक्कालं तम्मय त्ति पण्णत्तं तम्हा धम्मपरिणदो आदा धम्मो मुणेयव्वो // 8 // 9. जीवो परिणमदि जदा सुहेण असुहेण वा सुहो असुहो / सुद्धेण तदा सुद्धो हवदि हि परिणामसब्भावो // 9 // 10. णत्थि विणा परिणाणं अत्थो अत्थं विणेह परिणामो / दव्वगुणपज्जयत्थो अत्थो अत्थित्तणिव्वत्तो // 10 // 11. धम्मेण परिणदप्या अप्पा जदि सुद्धसंपयोगजुदो / - पावदि णिव्वाणसुहं सुहोवजुत्तो व सग्गसुहं // 11 // 12. असुहोदयेण आदा कुणरो तिरियो भवीय णेरइयो / दुक्खसहस्सेहिं सदा अभिदुदो भमदि अच्चंतं / / 12 / / 13. अइसयमादसमुत्थं विसयातीदं अणोवममणंतं / अव्वुच्छिण्णं च सुहं सुधुवओगप्पसिद्धाणं // 13 // 14. सुविदिदपयत्थसुत्तो संजमतवसंजुदो विगदरागो / समणो समसुहदुक्खो भणिदो सुद्धोवओगो त्ति / / 14 // 15. उवओगविसुद्धो जो विगदावरणंतरायमोहरओ / भूदो सयमेवादा जादि पारं णेयभूदाणं // 15 // 16. तह सो लद्धसहावो सव्वण्हू सव्वलोगपदिमहिदे / भूदो सयमेवादा हवदि सयंभु त्ति णिहिट्ठो // 16 // 17. भंगविहूणो य भवो संभवपरिवज्जिदो विणासो हि / विज्जदि तस्सेव पुणो ठिदिसंभवणाससमवायो // 17 // 18. उप्पादो य विणासो विज्जदि सव्वस्स अट्ठजादस्स / पज्जाएण दु केणवि अट्ठो खलु होदि सब्भूदो // 18 //