________________ 165 प्राकृत पाठ-चयनिका 19. नो छायए नो वि य लूसएज्जा, माणं न सेवेज्ज पगासणं च / न यावि पण्णे परिहास कुज्जा, न यासियावाय वियागरेज्जा // 19 // 20. भूताभिसंकाइ दुगुंछमाणे, ण णिव्वहे मंतपदेण गोयं / ण किंचि मिच्छे मणुए पयासु, असाहुधम्माणि ण संवएज्जा // 20 // 21. से सुद्धसुत्ते उवहाणवं च, धम्मं च जे विंदति तत्थ तत्थ / आदेज्जवक्के कसले वियत्ते, स अरिहइ भासिउं तं समाहिं // 21 // - - -