________________ 58 प्राकृत पाठ-चयनिका तेण भणियं-अन्नं ते विसिट्टतरं दाहामि। जणणीए भणियं-एवं ति। तओ तत्थडिओ चेव अब्भंगिउव्वट्टिओ उण्हखलउदगेहि य मज्जिओ। भरिओ तेण हेलुट्टिओ मूलदेवो। गहियाउहा पविट्ठा पुरिसा। सव्विओ जणणीए अयलो। गहिओ तेण मूलदेवो वालेहिं, भणिओ यं-रे! संपयं निरूवेहिं जइ कोइ अस्थि ते सरणं। मूलदेवेण निरूवियाई पासाइं, जाव दिट्ठ निसियाऽसिहत्थेहिं वेढियमत्ताणयं मणूसेहि। चिंतियं च-'नाहमेएसिं उव्वरामि, कायव्वं च मए वयरनिज्जायणं, निराउहो संपयं, ता न पोरसस्सावसरो त्ति'। चिंतिय भणियंजं ते रोयइ तं करेहि। अयलेण चिंतियं-उत्तमपुरिसो कोई एसो आगिईए चेव नज्जइ, सुलभाणि य संसारे महापुरिसाण वसणाई। भाणेयं च-'को एत्थ सया सुहिओ? कस्स व लच्छी थिराइं पेम्माइं? कस्स व न होइ खलियं? भण को वि ण खंडिओ विहिणा? // 1 // भणिओ मूलदेवो-भो एवंविहावत्थागओ मुक्को संपयं तुमं, ममं पि विहिवसेण कयाइ वसणपत्तस्स एवं चेव करेज्जइ। तओ विमणदुम्मणो निग्गओ नयराओ मूलदेवो 'पेच्छ, कहं एएण छलिओ?' त्ति चिंतियं। तो ण्हाओ सरोवरे, कया पाणवत्ती, चिंतियं च-गच्छामो विदेसं, तत्थ गंतूण करेमि किं पि इमस्स पडिविप्पिउवायं। पट्ठिओ वेन्नायडस्स सम्मुहं। गामनगराइमज्झेण वच्चंतो पत्तो दुवालसजोयणपमाणाए अडवीए मुहं। चिंतियं च तत्थ-जइ कोइ वच्चंतो वायासाहेज्जो वि दुइओ लव्भइ ता सुहं चेव छिज्जए अडवी। जाव थेववेलाए आगओ विसिट्ठाकारदसणीओ संवलथइयासणाहो टक्कबंभणो, पुच्छिओ य सो-भट्ट! के दूरे गंतव्वं? तेण भणियं-अस्थि अडवीए परओ वीरनिहाणं नाम थाम, तं गमिस्सामि, तुमं पुण कत्थ पत्थिओ? इयरेण भणियं-वेन्नायडं। भट्टेण भणियं-ता एह गच्छम्ह। तओ पयट्टा दो वि। मज्झण्हसमए वच्चंतेहिं दिद्वं सरोवरं। टक्केण भणियं-भो ! वीसमामो खणमेगं ति। गया उदगसमीवं। धोया हत्थपाया। गओ मूलदेवो पालिसंठियरुक्खच्छायं। टक्केण छोडिया संबलथइया, गहिया वट्टयम्मि सत्तुया। ते जलेण ओलित्ता लग्गओ खाइउं। मूलदेवेण चिंतियं-एरिसा चेव बंभणजाई भुक्खापहाणा हवइ, ता