________________ 24 प्राकृत पाठ-चयनिका 40. नाणाविहतरुणतरुब्भवेहि कुसुमेहि पञ्चवण्णेहिं / भसलीकओ व्व नज्जइ, निज्झर-गिरिविविहकहरेहिं // 40 // 41. पण्डुच्छवाडपउरो, सहावसंपन्नदीहियाकलिओ / वरकमलकेसरारुण-लवङ्गगन्धेण सुसुयन्धो // 41 // 42. अह पत्तो विहरतो, दीवं सव्वायरेण सिरिकण्ठो / पेच्छइ य वाणरगणे, सव्वत्तो माणुसायारे // 42 // 43. घेत्तूण ताण सव्वं, करणिज्जं खाण-पाणमाईयं / कारावियं च सिग्घं, कीलणहेउं नरिन्देण // 43 // 44. नच्चन्ति य वग्गन्ति य, जवाउलयन्ति अन्नमन्नस्स / वाणरचडुलसहावा, जाया अइवल्लहा तस्स // 44 // 45. किक्किन्धिपव्वओवरि, भवण-ऽट्टालय-सुवण्णपायारं / चोद्दसजोयणविउलं, किक्किन्धिपुरं कयं तेण // 45 // 46. पासाय-तुङ्गतोरण-मणिरयणमऊहभत्तिविच्छरियं / अमरपुरस्स व सोहं, हाऊण व होज्ज निम्मवियं // 46 // जं जं जणो वि मग्गइ, उवगरणा-ऽऽभरण-भोयणाईयं / तं तत्थ हवइ सव्वं, विज्जाभावेण सन्निहियं // 47 // . 48. एवंविहम्मि नयरे, पउमासहिओ अणोवमं रज्जं / भुञ्जइ सया सुमणसो, सुरलोगगओ सुरिन्दो व्व // 48 // 49. अह अन्नया कयाई, भवणस्सुवरिं ठिओ पलोएन्तो। पेच्छइ नहेण जन्तं, इन्दं नन्दीसरं दीवं // 49 // 50. गय-वसह-तुरय-केसरि-मय-महिस-वराहवाहणारूढा / वच्चन्ति देवसङ्घा, पूरन्ता अम्बरं सयलं // 50 //