________________ 300 प्राकृत पाठ-चयनिका 8. णीणन्ति मित्त-भज्जं रम्भन्ति सुअं वहुं पि पदअन्ति / णीलुक्कन्ति च गुरु-गेहिणिं पि काम-वस-परिअलिआ // 8 // 9. महिलाण वसे-परिअल्लिऊण वोलन्त-हिरिअमिह पावा / अवसेहन्ति तिरिच्छीउ वि अवहरिउज्जल-विवेआ / / 9 / / जे णिरिणासिअ-मेरा वम्मह-वस-गा समं न णिवहन्ति / अहिपच्चुइआ नूणं ते मुहिआ कम्म-भूमिम्मि // 10 // 11. महिलाण पेम्म-संगयमागच्छन्तीण जो न अब्भिडइ / उम्मत्थइ नाण-सिरि तस्सब्भागच्छइ विवेओ // 11 // 12. न भवे पच्चागच्छइ अपलोट्टिअ-माणसो जुवइ-सङ्गे / पडिसाय-मणो परिसामिएहिँ कहिओवसम-मग्गो / / 12 / / 13. संखुड्डण-कुसलाणं उब्भावन्तीण के वि रमणीण / किलकिंचिअ-मोट्टाइअ-कोडुमिएहिं न खेड्डन्ति // 13 // 14. रममाणीओ रामा णीसरिणज्जं अवेल्लणिज्जं च / अग्घविअ-वम्महाओ की अग्घाडइ सिणेहेण // 14 // 15. मायाइ उद्धमाया अहिरोमिअ-तुच्छयाइ अङ्गमिआ / चवलत्तं-पूरिआओ को तुवरइ दटुमित्थीओ // 15 // 16. तूरन्ति अतूरन्तं पि हु जअडावन्ति तुरिअ-मयणाओ। अहह हलिद्दी-राया खिरन्त-सेएहिँ अङ्गेहिं // 16 // 17. पच्चडमाण-सरीरा झरन्त-खाल ब्व पज्झरिअ-रमणा / धीरा अणिड्डअन्ते वि णिच्चलावेइ ही महिला / / 17 / / 18. उत्थल्लिअ-परिफाडिअ-भेगोवम-रमणि-रमण-रमिराण / सत्ती विअलइ थिप्पड़ कन्ती बुद्धी अणिगृहइ // 18 //