________________ 6 प्राकृत पाठ-चयनिका विजय वल्लभ स्मारक जैन मंदिर के विशाल प्रांगण में स्थित "भोगीलाल लहेरचन्द इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलॉजी" भारतीय प्राच्य विद्याओं का एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अध्ययन एवं शोध संस्थान है। अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों, व्याख्यानमालाओं एवं पुरस्कारों के आयोजन, लगभग पच्चीस हजार से अधिक प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के विशाल शास्त्र-भण्डार का संरक्षण, पुरातत्त्व संग्रहालय की स्थापना, अनेक दुर्लभ एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का प्रकाशन, मुद्रित ग्रन्थों के समृद्ध पुस्तकालय की सुविधा जैसी अनेक गतिविधियों द्वारा भारतीय विद्याओं एवं भाषाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार के कारण इस संस्थान ने वैश्विक स्तर पर अपनी प्रतिष्ठापरक पहचान बनाई है। सम्पूर्ण देश में यही एकमात्र शोध संस्थान है, जिसने अपने स्थापन काल से ही प्राकृत भाषा एवं साहित्य के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं इसके अध्ययन हेतु शिक्षण-प्रशिक्षण का प्रभावी कदम उठाया और पिछले चौबीस वर्षों से प्रतिवर्ष निरन्तर ग्रीष्मकालीन प्राकृत भाषा और साहित्य के गहन अध्ययन हेतु इक्कीस दिवसीय कार्यशालाओं का आयोजन कर सम्पूर्ण देश से समागत उच्च शिक्षा संस्थानों के प्राध्यापक, शोध-छात्र एवं प्राकृत अध्ययन के इच्छुक अन्य सुयोग्य प्रतिभागियों को यह संस्थान अपनी ओर से सभी सुविधाएँ प्रदान करता है। इन्हीं प्राकृत अध्ययन शालाओं में विद्वानों के लम्बे अनुभव और अनेक बदलाओं के बाद प्राकृत भाषा और साहित्य के अध्ययन हेतु यह प्रारम्भिक (Elementary) पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। इस पाठ्यक्रम की अपनी यह विशेषता है कि इसे व्याकरण के मुख्य आधार पर पढ़ाया जाता है, जिससे उस पाठ के भाव ग्रहण के साथ ही उसमें सन्निहित विभिन्न प्राकृतों का स्वरूप और उनके व्याकरण पक्ष का भी विशेष प्रशिक्षण हो जाए ताकि प्राकृत साहित्य के किसी भी ग्रन्थ को समझने का मार्ग प्रशस्त हो। जब यहाँ से प्रशिक्षित और कालेजों, विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले