Book Title: Yogashastram Part_2
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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चतुर्थः प्रकाशः
स्वोपक्षवृत्तिविभूषितं योगशास्त्रम्
श्लोकः १०४
॥९०८॥
॥९०८॥
लोक
HEHEREHENSHINDICHICHCHCHCHCHCHCHCHHEHENSHCHCHCHEHRIME
दुपरि योजनविभागो घनोदधौ, घनवाते गव्यूतम् , तनुवाते च गव्यूतत्रिभागो वर्तते । एतच्छर्करामभायां वलयमानम् । एवं शर्कराप्रभावलयमानादुपर्ययमेव प्रक्षेपः । एवं पूर्वपूर्ववलयमानादुपर्ययमेव प्रक्षेपः सप्तमपृथ्वी यावत् , यदाह
"तिभागो गाउयं चेव तिभागो गाउयस्स य ।
आइधुवे पक्खेवो अहो अहो जाव सत्तमिआ ॥ १॥" [ बृहत्संग्रहणी गा० २४५ ] प्रक्षेपे सति वलयविष्कम्भमानमाभ्यो गाथाभ्योऽवसेयम् , तद्यथा--
"छस्सतिभाग पउणा य पंच वलयाण जोअणपमाणं । एगं बारसभागा सत्त कमा बीयपुढवीए ॥१॥ जोअण सत्त तिभागोण पंच एग च वलयपरिमाणं ।
बारस भागा अट्ठ उ तइयाइ जहक्कम नेयं ॥२॥ १ पृथिवीं-मु.॥ २ त्रिभागो गव्यूतं चैव त्रिभागो गब्यूतस्य च । आदिध्रुवे प्रक्षेपः अधोऽधो यावत् सप्तमी। ३ षट् सत्रिभागाः पादोनाः पञ्च वलयानां योजनप्रमाणम्। एकं द्वादशभागाः सप्त क्रमेण द्वितीयपृथिव्याम् ॥
योजनानि सप्त त्रिभागोनानि पञ्चैकं च वलयपरिमाणम्। द्वादशभागा अष्ट तु तृतीयायां यथाक्रमं ज्ञेयम् ॥ ४ भागा पउणा पंच-संपू.। भागा पउणा यं पंच-खं.॥
भावनायां लोकस्वरूपवर्णनम्
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