Book Title: Yogashastram Part_2
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 598
________________ ॥९०९॥ BEHCHCHEHEHEENCHHETRICHCHEIGHEHEIGHCHCHCHCHEHCHCHEH सत्त सवाया पंच उ पउणा दो जोअणा चउत्थीए । घणउअहिमाइयाणं वलयाणं माणमेयं तु ॥३॥ सतिभाग सत्त तह अद्धछट वलयाण माणमेयं तु । जोअणमेगं बारसभागा दस पंचमाइ तहा ॥ ४ ॥ अट्ठ तिभागोणाई पउणाई छच्च वलयमाणं तु । छट्ठीए जोअणं तंह बारसभागा य एक्कारा ॥५॥ अट्ठ य छ च्चिय दु चिय घणोअहीमाइयाण माणं तु । सत्तममहीए नेयं जहासंखेण तिण्हं पि ॥६॥" [बृहत्संग्रहणी गा० २४६-२५१] एतानि च वलयानि पृथिव्याधारभूतघनोदध्यादिभ्यः पृथिवीपर्यन्तपरिधिप्रान्तेषु वलयाकारतया एतावद्विष्कम्भाणिक पृथिव्युत्सेधसमोत्सेधानि च ॥ १०४ ॥ १ सप्त सपादाः पञ्च तु पादोने द्वे योजने चतुर्थ्याम्। घनोदध्यादिकानां वलयानां मानमेतत्तु ॥ सत्रिभागाः सप्त तथा अर्धषष्ठानि वलयानां मानमेतत्तु । योजनमेकं द्वादशभागाः दश पञ्चम्यां तथा।। अष्ट त्रिभागोनानि पादोनानि षद् च वलयमानं तु। षष्ठयां योजनं तथा द्वादशभागाश्च एकादश। अष्ट च षडेव द्वावेव घनोदध्यादिकानां मानं तु। सप्तमपृथिव्यां ज्ञेयं यथासङ्ग्रेन त्रयाणामपि॥ २ यर्द्ध छ?-शां.॥ ३ पंचमीए-मु.॥ BHBHBHBHIBHEIGHBHBICHCHCHACHCHCHCHCHCHCHEHICHCHISHETCH ॥९०९॥ Jain Education Inter! For Private & Personal use only w.jainelibrary.org

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