Book Title: Yogashastram Part_2
Author(s): Hemchandracharya, Jambuvijay
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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॥९३३॥
पइदारं कलसाई-मुहमंडव-पेच्छमंडव-ऽक्खाडा। मणिपीढ-धूभ-पडिमा-चिइतरु-ज्झय-पुस्खरिणिओ अ॥ १४ ॥ अट्टच्चसोलसाययपिडुला मणिपीढिया जिणहरंतो। तदुवरि देवच्छंदा रयणमया साहियपमाणा ॥१५॥ तत्थुसभ-वद्धमाणय-चंदाणण-वारिसेणनामाणं । सासयजिणपडिमाणं पलियंकनिसण्णमट्ठसयं ॥१६॥ पडपडिम पुरो दो दो नागपडिम-जक्ख-भय-कंडधरा । दहओ दो चमरधरा पिटे छत्तधरपडिमेगा ॥ १७॥ तह घंटाचंदणघडभिंगारायरिसयाइसुपइट्ठा।
पुप्फाइणेगचंगेरिपडलच्छत्तासणाइ इह ॥ १८ ॥ १ कलसाई-शां. खं.॥ * प्रतिद्वारं कलशादिमुखमण्डपप्रेक्षामण्डपाक्षवाटाः। मणिपीठ-स्तूप प्रतिमा-चैत्यतरु-ध्वज-पुष्करिण्यश्च ॥१४॥
अटोच्चषोडशायतपृथुला मणिपीठिका जिनगृहान्तः। तदुपरि देवच्छन्दा रत्नमयाः साधिकप्रमाणाः ॥ १५॥ तत्र ऋषभ-वर्धमान-चन्द्रानन-वारिषेणनाम्नाम् । शाश्वतजिनप्रतिमानां पर्यङ्कनिषण्णमष्टशतम् ॥१६॥ प्रतिप्रतिम पुरोद्वौ द्वौ नागप्रतिमा-यक्ष-भूत-कुण्डधराः। उभयतों द्वी चामरधरी पृष्ठे छत्रधरप्रतिमैका ॥१७॥ तथा घण्टा-चन्दन-घट भृङ्गारा-ऽऽदर्शकादिसुप्रतिष्टाः। पुष्पाद्यनेकचङ्गेरीपटलच्छवासनादि इह ॥१८॥
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॥९३३॥
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